
वो गुलाबी मोमबत्ती,
सौन्दर्य बोध से भरपूर
पीली लपटों में कोलाहल करतीं
अपनी ही रौशनी से खेल रही थी।
उजली रात में भी
अँधेरा जशन मना रहा था
धरती काग़ज़ पर ख़्वाबों की
खेती कर रही थी,
मोमबत्ती फिर भी जल रही थी।
अँधेरा दुस्वप्न की तरह भाग रहा था
जलती पिघलती, मृत्यु-वेदना से शनैः-शनैः
धुंधली होती लपटों में,
मोमबत्ती चिल्ला रही थी
आख़िर कौन अमर होता है?
महफूज़ अली