गुरुवार, 15 अक्टूबर 2009

आरती ओम् जय जगदीश हरे का सच..... आईये जानें इसको और इस आरती के जनक को......



शारदा राम "फिल्लौरी" 19वीं शताब्दी के प्रमुख सनातनी धर्मात्मा थे. एक समाज सुधारक होने के साथ-साथ उन्होंने हिंदी तथा पंजाबी साहित्य क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किये. आधुनिक हिंदी के क्रमिक (Gradual) विकास में इनका अप्रतिम योगदान कभी न भुलाया जा सकेगा. 

बहुत कम लोग ही इस सच्चाई से वाकिफ होंगे कि दुनिया भर में प्रसिद्ध  प्रार्थना (आरती) 'ओम् जय जगदीश हरे' जो आज पूरे दुनिया में हिन्दू परिवारों में पूजा पद्धति के रूप में गाई जाती है के जनक(Father) श्री. शारदा राम "फिल्लौरी" थे. उनके द्वारा लिपिबद्ध कि गई यह प्रार्थना (आरती) उनके अपने जीवन काल में ही एक नई ऊंचाई को छू लिया था. श्री. शारदा राम "फिल्लौरी" के लिए श्रद्धा का मतलब इश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण था. 
मात पिता तुम मेरे,शरण गहूं मैं किसकी ,
तुम बिन और न दूजा,आस करूं मैं जिसकी...
भक्ति-भाव के प्रति समर्पण इनके द्वारा लिपिबद्ध कि गई प्रार्थना (आरती) के एक-एक पंक्ति में स्पष्ट रूप से झलकता है. वे दृढ रूप से इश्वर के प्रति समर्पण में विश्वास रखते थे.  सत्यधर्म व शतोपदेश ने श्री. शारदा राम "फिल्लौरी" को अनंत समर्पण के कवि के रूप में स्थापित किया तथा उनके कार्यों को भक्तिकाल के तुलसीदास व सूरदास के समकालीन माना. 

श्री. शारदा राम "फिल्लौरी" का जन्म जालंधर (पंजाब) के एक गाँव फिल्लौर के ब्राह्मण परिवार में 30 सितम्बर 1837 को हुआ था. इनके पिता श्री. जय दयालु जाने-माने ज्योतिषी थे. अपने पुत्र के जन्म के समय ही उन्होंने भविष्यवाणी कर दी थी कि उनका उनका पुत्र अपने अल्पकाल के जीवन में यश-कीर्ति कमाएगा और उनकी यह भविष्यवाणी सच साबित हुई. श्री. शारदा राम "फिल्लौरी" ने गुरमुखी  भाषा व लिपि का अध्ययन सन 1844 में सात साल कि उम्र में कर लिया था.

बाद के सालों में उन्होंने हिंदी, संस्कृत, फारसी और ज्योतिष कि भी शिक्षा ली तथा सन 1850 में संगीत विशारद कि उपाधि ली. श्री. शारदा राम "फिल्लौरी" का विवाह सिख औरत महताब कौर से हुआ था.  सन 1858 में श्री. शारदा राम की मुलाक़ात एक ईसाई पादरी न्यूटन (NEUTAN) से हुई तथा सन 1868 में उन्होंने गुरमुखी भाषा व लिपि में पहली बार बाइबल का अनुवाद किया. 

"सिखां दे राज दी विथिया" और "पंजाबी बातचीत" गुरमुखी लिपि में श्री. शारदा राम "फिल्लौरी" की यादगार रचनाएँ हैं. "सिखां दे राज दी विथिया" (प्रकाशन 1866)और "पंजाबी बातचीत" ऐसी प्रथम किताबें हैं जिनका अनुवाद गुरमुखी लिपि से रोमन लिपि में हुआ है. "सिखां दे राज दी विथिया" के सृजन ने शारदा राम को आधुनिक गद्य के जनक के रूप में स्थापित किया. यह किताब तीन अध्यायों में है. इसके आखिरी अध्याय में पंजाब के रीती-रिवाज़ , आम बोल-चाल के शब्द तथा लोक संगीत के बारे में जानकारी दी गई है. इसी कारण से इस किताब को पंजाब में पाठ्य-पुस्तक के रूप में उच्च शिक्षा के लिए निर्धारित किया गया था. 

"पंजाबी बातचीत" में पंजाब के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रचलित कहावतें, मुहावरों व क्षेत्रीय भाषा शैली का चित्रण किया गया है. पंजाबी शब्दकोष से लुप्त हो चुके तथा दुर्लभ शब्दों को पाठक पंजाबी बातचीत में खोज सकते हैं. ब्रिटिश काल में भारतीय सिविल सेवा में प्रवेश लेने के लिए ब्रिटिशों और भारतियों को पंजाबी बातचीत पर आधारित विस्तार पूर्ण (Subjective) परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य (Mandatory) था. 

श्री. शारदा राम भारत के प्रथम उपन्यासकार के रूप में भी जाने जाते हैं. उनके द्वारा लिखित प्रथम हिंदी उपन्यास "भाग्यवती" जिसको निर्मल प्रकाशन ने सन 1888 में प्रकाशित किया था. इस उपन्यास की केंद्रीय पात्र एक स्त्री भाग्यवती है जो लड़की के पैदा होने पर अपने पति को समझाती है की लड़का और लड़की में कोई भेद नहीं है. इस उपन्यास में श्री. शारदा राम ने  बाल-विवाह, दहेज़-प्रथा व शिशु (बालिका) -हत्या का प्रबल विरोध किया है तथा विधवा-विवाह व प्रौढ़-शिक्षा का घोर समर्थन किया है. इसी वजह से यह उपन्यास अपने समय से काफी आगे था. दिलचस्प बात यह है कि उस ज़माने में यह उपन्यास माता-पिता द्वारा अपनी बेतिओं को उनके विवाह के समय दहेज़ स्वरुप भेंट किया जाता था. 

ऐसा माना जाता है कि भारत का प्रथम हिंदी उपन्यास सन् 1902 में प्रकाशित "प्रीक्षा-गुरु" (PRIKSHA-GURU) था जिसके लेखक श्री. लाला श्रीनिवास थे. परन्तु डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी जो कि गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर में हिंदी विभाग में प्रोफ़ेसर हैं, के खोजों  व ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार भारत का प्रथम हिंदी उपन्यास "भाग्यवती" था जिसने भारतीय साहित्य के इतिहास को दोबारा लिखने को मजबूर कर दिया. 

श्री. शारदा राम "फिल्लौरी" एक श्रेष्ठ चिन्तक होने के साथ - साथ स्वतंत्र विचारों वाले व्यक्ति थे तथा वेदों व शास्त्रों की व्याख्या अपनी सोच व ढंग से किया करते थे. श्री. शारदा राम "फिल्लौरी ने देश की आज़ादी के आन्दोलनों में भी हिस्सा लिया था. महाभारत से उद्धृत अपने भाषणों का इस्तेमाल उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ किया था. जिसके लिए अंग्रेज़ों ने उन्हें अपने गाँव फिल्लौर से देश निकला दे दिया था. 

इसे विड़म्बना ही कहेंगे की जिस प्रार्थना (आरती) 'ओम् जय जगदीश हरे' से विश्व भर के हिन्दू अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते हैं उसी प्रार्थना (आरती) के जनक को भुला चुके है. श्री. शारदा राम "फिल्लौरी का देहांत मात्र 44 वर्ष की अल्प आयु में 24 जून 1881 को लाहौर में हुआ. 

अपने साहित्यिक अनुसरण और भाषणों से श्री. शारदा राम "फिल्लौरी ने न सिर्फ पंजाबी साहित्य में महत्वपूर्ण विकास किया बल्कि हिंदी साहित्य को भी अपने अप्रतिम योगदान से एक नया आयाम दिया.


Sources (सन्दर्भ) :--
१. गुरु नानक विश्वविद्यालय, अमृतसर. (फोटो भी यहीं से लिया है)
२. डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी (प्रो. व डीन हिंदी विभाग GNDU, अमृतसर.... किसी भी प्रकार का शुबह होने पर इनसे इस नंबर पर 9356133665 संपर्क  किया जा सकता है.)
३. प्रस्तुत लेख सत्य तथ्यों और स्वयं किये गए शोध  पर आधारित है. 
(आप सब को दीपावली कि हार्दिक शुभकामनाएं....)

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