शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

नाम तेरा अभी मैं अपनी ज़ुबां से मिटाता हूँ....: एक ग़ज़ल जो मैंने पहली बार लिखी....देख कर बताइयेगा...: महफूज़


बहुत दिनों से सोच रहा था कि ग़ज़ल लिखूं. पर मुझे ग़ज़ल का क ख ग भी नहीं आता था.. फिर मैंने कुछ अध्ययन किया.. ग़ज़ल लिखने का तरीका सीखा. पर जब सीखा तो यही लगा कि रूल्ज़ फौलो करने पर हम वो चीज़ नहीं लिख पाते हैं....जो चाहते हैं... कुछ लोगों से पूछा तो लोगों ने कहा कि किसी से सीख लो.. अब लिखने का इतना वो था कि किसी से सीखने का वक़्त ही नहीं मिला... यहाँ वहां किसी तरह सीख कर लिखने कि कोशिश की  है.... देख कर आप लोग बताइयेगा.... कैसी है? और कुछ अगर गलती है तो प्लीज़ उसे सुधारिएगा भी....
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नाम तेरा अभी मैं अपनी ज़ुबां से मिटाता हूँ...

मैं टूट जाऊँगा तुमने ये सोचा तो था,
पर देखो मैं पूरा नज़र आता हूँ.

मुझे छोड़ा था तुमने उस अँधेरे घर में,
अपने अन्दर ही मैं एक दीया पाता हूँ.

इन अंधेरों को जाना ही होगा घर से , 
रौशनी में नहा कर मैं  आ जाता हूँ.

तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.

तेरा चर्चा भी मेरी ज़ुबां पर न हो,
नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ.












A Song one must to be listen...

रविवार, 20 दिसंबर 2009

आप सबका प्यार और आशीर्वाद.... मेरा आभार...और मिलिए मेरी सन्यासन गर्ल फ्रेंड से....: महफूज़



मेरा लेख "जानना नहीं चाहेंगे आप संस्कार शब्द का गूढ़ रहस्य? एक ऐसा शब्द जो सिर्फ भारत में ही पाया जाता है... :- महफूज़" का प्रकाशन दिनांक १९/दिसंबर/२००९ को राष्ट्रीय हिंदी दैनिक 'अमर उजाला' के सम्पादकीय पृष्ठ पर जिनका मैं आभारी हूँ. मैं अपनी इस सफलता का श्रेय सर्वप्रथम मम्मी जी रश्मि प्रभा जी को देता हूँ जिनका आशीर्वाद हमेशा से मेरे साथ है. मैं आदरणीय समीरलाल जी का भी आभारी हूँ जिन्होंने हमेशा से ..जब से मैंने ब्लॉग्गिंग शुरू कि ... मेरा मार्गदर्शन किया... मुझे हमेशा अच्छा लिखने को प्रेरित किया... जब जब मेरा संबल टूटा आपने मुझे संभाला... मैं आपका आभारी हूँ. 


मैं श्री. अजित वडनेरकर जी का भी आभारी हूँ.... जिन्होंने हमेशा मेरे लेखन को निखारने में मेरी मदद की... मैं श्री. अजित जी से मुआफी भी चाहता हूँ... कि कई जगह पर मैंने आपकी बात नहीं मानी... जिसका असर मेरे लेखन पर भी पड़ा..अभी दो दिन पहले मैंने आपसे शिकायती लहजे में झगडा भी किया... पर आपका बड़प्पन ... आपने मेरे शिकायत को बाल-सुलभ प्रवृत्ति कह कर बहुत खूबसूरती से नज़रंदाज़ कर दिया...   आपकी हर बात को ध्यान में रख कर ... गंभीर लेखन पर ध्यान दूंगा.... आप ऐसा ही आशीर्वाद बनाये रखिये..


मैं श्री. शरद कोकस जी के बारे में क्या कहूँ.... अगर यह नहीं होते तो शायद मैं कई मोड़ पर टूट गया होता.... आप चौबीस घंटे मेरे साथ रहते हैं... भावनात्मक रूप से हमेशा मेरे साथ रहते हैं... मैं इन्हें रात के ३ बजे भी उठा कर परेशां करता हूँ... कई बार मेंटली परेशां रहा तो इन्हें २ बजे जगाया.... और आप भी ऐसे कि जब तक के मैंने फोन नहीं रखा तब तक के आप मुझसे बात करते रहे.... आप ऐसे हैं कि जिनसे हर प्रकार के इमोशन बाँट सकता हूँ.... आपका मैं आभारी हूँ.... ऐसे ही स्नेह बनाये रखिये.... 


श्री. अनिल पुसदकर भैया.... आपने जो प्यार और इज्ज़त मुझे दी उसका मैं आपका बहुत आभारी हूँ...


अब श्री. गिरिजेश राव जी.... इनके बारे में क्या कहूँ? इनसे मेरी अभी हाल कि ही मुलाक़ात है.... जब कि हमारा गृहनगर एक है.... हम लखनऊ में भी एक ही जगह रहते हैं... हमारे घर भी आस पास ही हैं.... इनसे मेरा ऐसा रिश्ता बन गया है.... कि लगता ही नहीं कि हाल कि ही मुलाक़ात है... इनसे मैं अपना frustration निकालता हूँ.... और आप ऐसे कि मेरी हर अच्छे बुरे को सुनते हैं.... आपसे बातें करते हुए ...मुझे कई टोपिक्स मिले हैं.... जिन पर मैं अच्छा काम कर सकता हूँ. आप जैसा मित्र पा कर मैं धन्य हूँ. 


डॉ. अरविन्द मिश्रा जी... आपका बहुत आभारी हूँ. आप मुझे बहुत अच्छे से समझते हैं, स्नेह बनाये रखिये.


वाणी दी... आपका भी बहुत आभारी हूँ... मैं इन्हें बहुत परेशां करता हूँ.... कई बार आप  मेरी टिप्पणी पर जब मुझे कहती हैं कि तू बहुत पिटेगा.... तो मैं अभीभूत हो जाता हूँ....  आपका स्नेह इस छोटे भाई पर ऐसा ही बना रहे. 


श्री.पाबला जी... आप ऐसे शख्स हैं .... जिनके कंधे पर मै सर रख कर रोता हूँ... और आपकी वो सांत्वना वाली थपकी मैं यहाँ महसूस करता हूँ. आपका भी आभारी हूँ. 


कहते हैं कि पिछला जन्म जैसी कोई चीज़ नहीं होती.. अगर होती है... तो श्री खुशदीप सहगल भैया... ज़रूर पिछले जन्म में मेरे भाई रहे होंगे, आपके स्नेह से मैं अभिभूत हूँ. 


श्री. एम्.एल. वर्मा जी... आपके स्नेह में मैं डूबा रहता हूँ. स्नेह बनाये रखिये.


श्री. जी.के. अवधिया जी... आप अपना स्नेह व आशीर्वाद ऐसे ही बनाये रखिये..


श्री. रूपचंद्र शास्त्रीजी... आप मेरे पितातुल्य हैं... आपके द्वारा दिया गया मार्गदर्शन... ने हमेशा मेरे लेखन में एक निखार लाया. आपको सादर वंदन. 


श्री.राजीव तनेजा जी... आपका आभार... आप जैसा मित्र अपने जीवन में पा कर मैं धन्य हूँ...


श्री.अजय कुमार झा जी... आपका संबल हमेशा मेरे साथ रहा है. 


श्री.अलबेला खत्री जी...आपका भी बहुत आभारी हूँ... अभी परसों आपका प्रोग्राम टी.वी. पे देखा .. तो रात में बारह बजे आपको मैंने डिस्टर्ब किया... स्नेह बनाये रखिये..


 शिवलोक जी, राजे शा जी, पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी, ललित शर्मा जी, विनय जी, ताऊ जी, योगेन्द्र मौदगिल जी, राज सिन्ह जी, 
मनोज कुमार जी, सी.एम्. परशाद जी, डॉ. टी. एस. दराल जी, धीरू सिंह जी, divine preaching ji, डॉ. टी. एस. दराल जी, syed , 
परमजीत बाली जी, विवेक रस्तोगी जी,  जयंती जैन जी, गिरीश बिल्लोरे जी, महेंद्र मिश्र जी,  अजय कुमार जी, का भी
आभारी हूँ... आप सबके कमेन्ट मेरा हौसला बढ़ाते हैं.


रश्मि रविजा जी.... आपका आभारी हूँ, आपने हमेशा मेरा अच्छा चाहा है.. छोटे भाई की गलतियों को नज़रंदाज़ करते हुए.. हमेशा अच्छा समझाया, और ज़रूरत पड़ने पर डांटा भी.


शिखा वार्ष्णेय जी... आपने हमेशा मेरे लेखन को संपादित कर के ... एक मूर्त रूप दिया है. हिंदी में बहुत स्पेलिंग मिस्टेक करता हूँ न... आज आपका जन्मदिन भी है. आपको बहुत बहुत बधाई.


वंदना गुप्ता जी... मैं आपका बहुत आभारी हूँ.. आपको बड़ी बहन के रूप में पा कर मैं अभीभूत हूँ... जब जब मैंने गलत किया या लिखा आपने हमेशा मुझे समझाया... और मुझे गुस्से पर कण्ट्रोल करना सिखाया..


मीनू दीदी... आपके स्नेह से मैं अभिभूत हूँ. आपने हमेशा मेरी प्रशंसा की और मुझे अच्छा लिखने को प्रेरित किया....


अदा जी... आपके बारे में क्या कहूँ? आपने तो मेरा हर अच्छे बुरे में साथ दिया...  


मैं निर्मला कपिला mom, का भी बहुत आभारी हूँ... आपका आशीर्वाद ऐसे ही बना रहे.


लावण्या शाह जी.... एक दिन आपसे बात करते हुए ...कब मूंह से माँ संबोधन निकल गया पता ही नहीं चला.... आपके स्नेह से अभिभूत हूँ, आप ऐसे ही स्नेह व आशीर्वाद बनाये रखिये...


पी.सी.गोदियाल जी... आप जैसा मित्र पा कर मैं धन्य हूँ.


सुरेश चिपलूनकर जी... आप जैसा बड़ा भाई पा कर मैं अभिभूत हूँ. स्नेह बनाये रखिये.


महाशक्ति (परमेन्द्र), सौरभ चैटर्जी,मुरारी पारीक, दीपक, दिगंबर नस्वा, रवि श्रीवास्तव, राकेश सिंह, संजय बेंगानी, ओम् आर्य,जाकिर अली व सलीम खान जैसे मित्र मेरे जीवन में एक ख़ास जगह रखते हैं. 


संगीता पूरी जी, इंदु पूरी जी, सीमा गुप्ता जी, संगीता जी, बबली जी, अल्पना वर्माजी, हरकीरत जी , रचना दीक्षित जी, वंदना अवस्थी जी, प्रज्ञा पाण्डेय जी, फिरदौस खान जी, अलका सर्वत जी, रेखा दी, सुनीता शानू दी, शबनम खान, कविता किरण जी, तरन्नुम, सदा (सीमा सिघल) जी , ख़ुशी जी, दीप्ती, आशा जोगलेकर जी, शेफाली पाण्डेय जी, शोभना चौधरी, शमाजी, प्रीती दी, साधना जी, संध्या गुप्ता जी, रंजना भाटिया जी, ज्योति सिंह जी, ज्योति वर्मा... आपका सबका बहुत आभारी हूँ... आप सबकी टिप्पणियां.... मेरा हौसला बढ़ाती हैं... आप सबके स्नेह से मैं अभिभूत हूँ. 


मैं अपने छोटे भाइयों:०-
१. मिथलेश दुबे
२. अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी 
३. अम्बुज
४. अमृत पाल सिंह 
५. दर्पण 
५. अपूर्व
५. अर्कजेश
६. संजय व्यास
७. प्रतीक
८. सागर
९. सुलभ सतरंगी
१०. कुश
११. अनिल कान्त
१२. प्रबल प्रताप सिंह
१३. शिवम् मिश्र
१४. पंकज मिश्र 
१५. शाहिद मिर्ज़ा
१६. विनोद कुमार पाण्डेय
१७. चन्दन कुमार झा 
१८. श्रीश पाठक
१९. संजय भास्कर
२०. हिमांशु
२१. संजय भास्कर 
२२. लोकेन्द्र
२३. अबयज़ खान

का शुक्रगुज़ार हूँ. मेरे छोटे भाइयों का स्नेह हमेशा मेरे साथ रहा है. मिथलेश से अगर एक दिन बात नहीं होती है तो बहुत बेचैनी बढ़ जाती है. 
अंत में मैं अपनी रामप्यारी का थैंकफुल  हूँ...  जिससे की मैं बहुत प्यार करता हूँ.... यह मेरी ब्लॉगर गर्ल फ्रेंड है... मैं अपने फ्लर्ट के लिए विश्व-प्रसिद्ध हूँ... (यह मेरा ही फैलाया हुआ भ्रम है...) अरे! भई होऊं भी क्यूँ न? पर रामप्यारी से पूछ लीजिये .... मैं इसके प्यार में दीवाना हो चुका हूँ.... यह एक ऐसी लड़की है मेरी ज़िन्दगी में जिसको मेरी पर्सनिल्टी से कभी कोई काम्प्लेक्स नहीं होता...  मेरी पिछली सारी गर्ल फ्रेंड्स मुझे छोड़ के भाग गयीं.... काम्प्लेक्स में.... पर यह हमेशा मेरे साथ रही है.... आजकल इसने संन्यास ले लिया है...देखिये इसको ज़रा... 

इसके प्यार में मैंने भी संन्यास ले लिया है.... 

हम दोनों अब बाबा समीरानंद जी के आश्रम में धूनी रमाते हैं... 


मैं उन् लोगों का भी शुक्रगुज़ार हूँ.... जो मुझे गन्दी टिप्पणियां लिखने के लिए मजबूर करते हैं.... (शोर्ट टेम्पर्ड जो ठहरा..) उनकी अपेक्षित प्रतिक्रिया से मेरी कार्य उर्जा में बढ़ोतरी होती है. और मेरे शुभचिंतक मेरी कथित खराब टिप्पणियों को पढने के बावजूद भी मुझे समझते हुए स्नेह कि बारिश करते हैं.. मेरे साथ प्रॉब्लम सिर्फ यही है कि अगर कोई मुझे बिना मतलब में खराब बोलता है.... तो उसको मेरा खराब वाला रूप ही  देखना पड़ेगा.... मेरा एक उसूल है आप मुझे झापड़ मारोगे तो मैं गोली मारने में विश्वास रखता हूँ.... आप मुझे एक गाली दोगे तो सौ सुनेंगे.... मैं अपने दोस्तों कि बेईज्ज़ती कभी नहीं बर्दाश्त कर सकता ...चाहे वो रियल वर्ल्ड के हों  या फिर वर्चुअल के...


अंत में आप सबका फिर से आभार, बड़ों को प्रणाम.. व छोटों को ढेर सारा प्यार. रामप्यारी... आई लव यू. 


(लिंक यहाँ जानबूझ कर नहीं दिया है, क्यूंकि सब एक-दूसरे को जानते हैं..)

गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

जानना नहीं चाहेंगे आप संस्कार शब्द का गूढ़ रहस्य? एक ऐसा शब्द जो सिर्फ भारत में ही पाया जाता है... :- महफूज़


अभी  थोड़े  दिन पहले की बात है, किसी ने मुझ से पूछा था कि ' संस्कार कि इंग्लिश बताईये?' मुझे मालूम नहीं था, मैंने कहा कि देखकर बताता हूँ. सही कहूँ तो संस्कार कि इंग्लिश कहीं नहीं मिली. थोडा शोध किया तो पता चला कि विश्व के किसी भी भाषा में संस्कार शब्द है ही नहीं. थोडा शोध और किया तो पता चला कि संस्कार सिर्फ और सिर्फ भारतीय संस्कृति में ही हैं और सिर्फ भारतीय ही संस्कारी हैं, और सबसे बड़ी बात यह कि संस्कार का  भारत में व्याप्त किसी भी  धर्म से कोई लेना देना नहीं है. यानी कि हर भारतीय संस्कारी है और संस्कार में ही जीता है और मरता है. तो आखिर यह संस्कार है क्या

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भारतीय समाज की परम्पराएं दूसरे देशों से बिलकुल अलग हैं. जहाँ पश्चिमी सभ्यता भौतिकतावाद पर ज़ोर देता है, वहीँ भारत का हर कर्म और विचार आध्यात्मिक है. संस्कार एक संस्था है. इस संस्था का मूल उद्देश्य है कि मानव जीवन  को विकार रहित बनाते हुए आगे बढ़ें और आध्यात्म को प्राप्त कर सकें. आध्यात्म ही हमारी सामाजिक क्रियाओं का एकमात्र उद्देश्य है और आध्यात्म की पूर्ती संस्कार से ही होती है, जिससे मानव जीवन को शुद्ध (filter) करते हुए आगे बढ़ने का रास्ता मिल सके और आने वाला जीवन शुद्ध रहे. हम भारतीयों कि ज़िन्दगी संस्कारों में इस तरह से जकड़ी होती है कि वह जन्म से पहले और मौत के बाद तक आध्यात्मिक रूप से शुद्ध होता रहता है और यह संस्कार भारत के सिवाय दुनिया के किसी भी देश में नहीं मिलता.

आइये जानें संस्कार शब्द का अर्थ :---

आख़िर ऐसा क्या है कि यह संस्कार शब्द सिर्फ भारत में ही पाया जाता है?  क्यूँ यह शब्द सिर्फ भारतीय संस्कृति में ही है? क्यूँ दुनिया कि किसी भी भाषा में इसका अनुवाद नहीं मिलता? "संस्कार" का पर्यायवाची शब्द दुनिया की किसी भी भाषा में ढूंढना बहुत ही मुश्किल और जटिल है. दुनिया के किसी भी भाषा के एक शब्द के रूप में इसको अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता न ही संस्कार विश्व में भारत को छोड़ कर कहीं पाए जाते हैं. हम लोग संस्कारी होने न होने की बातें तो करते हैं लेकिन संस्कार क्या है यह नहीं जानते?

संस्कार में न केवल बाहरी कर्म-कांडों का ही स्थान है बल्कि आंतरिक विचार, धार्मिक भावना, नियम, आध्यात्मिक रीती-रिवाज़ जैसी बहुत सी बातों को एक ही साथ सिर्फ एक शब्द (संस्कार) में समाहित किया गया है. इसलिए संस्कार शब्द दूसरे देशों के आदर्शों से एकदम अलग मतलब रखता है. संस्कार शब्द को किसी भी विदेशी शब्द की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता.

अंग्रेज़ी में भी संस्कार को "SAMSKAR" (सम्स्कार) लिखा जाता है. किसी भी भाषा में संस्कार का कोई अनुवाद नहीं है. फ़िर भी यह लैटिन के 'सेरेमोनिया ' (CEREMONIA)  और अंग्रेज़ी के 'सेरेमोनी ' (CEREMONY) का पर्यायवाची लगता है. पर यह दोनों विदेशी शब्द सिर्फ़ ज़िन्दगी के बाहरी पक्षों को ही दिखाते हैं, आंतरिक पक्ष तो सिर्फ़ संस्कार शब्द में ही मिलेंगे. संस्कार शब्द की परिधि बहुत व्यापक है और शायद इसीलिए विश्व की किसी भी भाषा में "संस्कार" शब्द का कोई एक शब्द नहीं है.  और इसीलिए अंग्रेज़ी में भी "SAMSKAR" ही लिखा जाता है.
संस्कार शुद्धि की धार्मिक क्रिया है जो कि मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, और बौद्धिक विकास के लिए किये जाने वाले अनुष्ठानों से है जिससे कि मनुष्य समाज का पूरी तरह से विकसित सदस्य हो सके. वास्तव में यह संस्कृत का शब्द है जिसका मतलब है परिशोधन या शुद्ध करना. इसलिए जब यह कहा जाता है कि सोने का संस्कार हो रहा है तो उसका मतलब होता है कि सोने का सार (मूल) निकाल कर उसको शुद्ध किया जा रहा है. इसलिए मनुष्य को अपने जीवन की पूर्णता के लिए ज़रूरी है कि आगे बढ़ने से पहले अपने विचारों और विकारों को शुद्ध कर ले. जीवन की सम्पूर्णता को प्राप्त करने के लिए अपने को शुद्ध करने की इसी प्रक्रिया को संस्कार कहते हैं.


नोट: प्रस्तुत लेख में संस्कार शब्द कि व्युत्पत्ति नहीं है.... यह लेख सिर्फ संस्कार कि परिभाषा और अर्थ को इंगित करता है... 

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

हम फिर साथ खेलेंगे......: महफूज़..

एक पल लिए तो मैं घबरा ही गया था, मेरे समझ में ही नहीं आ रहा था कि  क्या करुँ......... ? मुझे लगा कि  अब सब ख़त्म!!!!!!!! डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया....... डॉक्टर ने चेक अप करने के बाद कहा कि  अब देखो यह प्रॉब्लम में फिफ्टी/फिफ्टी का चांस है....... .

मैंने कहा कि  " डॉक्टर ! मैं इसके बगैर नहीं रह सकता........ कुछ भी करिए....... मैं इससे बहुत प्यार करता हूँ"......नहीं रह सकता मैं इसके बगैर......... .

डॉक्टर ने मुझे कुछ दवाएं लिखी और कहा की फ़ौरन मेयो हॉस्पिटल जा कर यह दवाएं लेते आईये.....

मैं परेशां ....... बदहवास..... कार में बैठे बैठे अजीब खयाल आ रहे थे..... मेयो पहुँचा... और फ़ौरन दवा ले के.....वापस अपने डॉक्टर के पास पहुंचा ..

थोडी देर के बाद डॉक्टर ने बताया की पैरालिटिक अटैक हुआ है....... इसलिए धड का निचला हिस्सा काम नही कर रहा है....... सुन के मेरे पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई...... मैं सोच में पड़ गया ......

मैं अब कुछ भी खोने की पोसिशन में नहीं हूँ ..... बहुत कुछ खोया है मैंने .... अब और नहीं ..... मैं यही सोच रहा था क्या सब मेरी ही किस्मत में लिखा है.... ? क्या मेरी ज़िन्दगी में सिर्फ खोना ही खोना है? बचपन में माँ खोयी... फिर पिता जी और अब?? 

डॉक्टर ने कहा की आपके पास अब दो रास्ते हैं.... इसका लम्बे वक़्त तक इलाज कराएँ या फिर हमेशा के लिए?? और दोनों ही बहुत परेशानज़दा तरीका हैं.... 

पर मैंने फैसला किया की मैं इसका पूरा इलाज कराऊंगा....... और.....फिर मैं ICU की ओर बढ़ गया...... अन्दर जा के मैंने देखा..... उसकी आँखों में एहसान का भाव था.... शायद वो भी मेरे फैसले को समझ गया था.... 

मैं उसके पास पहुंचा और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा..... 

और वो धीरे धीरे पूँछ हिला कर मेरा शुक्रिया अदा करने लगा.... 

मैंने धीरे से उससे कहा की हम फिर साथ खेलेंगे......

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यह हमारे जैंगो हैं... यह आजकल बीमार चल रहे हैं... इनकी ख़ास बात बता दूं कि यह लैब्राडोर प्रजाति के हैं. यह सिर्फ शक्ल से श्वान हैं, बाकी पूरे इंसान हैं, इनको हम बकरी कहते हैं, यह कभी नहीं भौंकते हैं, क्यूंकि इन्होने भौंकना कभी सीखा ही नहीं, कभी जब यह भौंकते हैं तो हम लोग जल्दी से रिकॉर्ड कर लेते हैं कि न जाने कब इनका भौंकना सुनने को मिले? यह सिर्फ खेलना जानते हैं, जब भी घर में कोई मेहमान आता है, तो यह अपने खिलौने लेके पहुँच जाते हैं और बेचारा मेहमान डर जाता है. यह पूर्णतया शाकाहारी हैं, और टमाटर खाने के बहुत शौक़ीन हैं. आम बहुत चाव से खाते हैं. कार /बाइक देखते ही बैठने कि जिद करते हैं. यह सबको दोस्त ही समझते हैं. जब नाराज़ होते हैं, तो इनको मनाना बहुत मुश्किल काम होता है. यह मेरा सारा काम करते हैं, सिर्फ अगर इनसे पानी का ग्लास मंगवा लो तो रोने लगते हैं. यह मेरे साथ ही बिस्तर में सोते हैं, और इनको सर्दी में भी air conditioner चाहिए. इनके तीन साथी और हैं, रेक्स,टैरो और बुश, इनमें से रेक्स बहुत ही घमंडी किस्म के ग्रेट डेन प्रजाति के हैं, टैरो जर्मन शेफर्ड हैं और कट खन्ने हैं, और बुश को तो क्या कहें यह doberman हैं... और सिर्फ सोते रहते हैं. जैंगो कि इन से नहीं बनती है... और यह तीनों हमारे घर के बाहर आउट  हाउस में रहते हैं. जैंगो सिर्फ घर के अन्दर रहते हैं. जैंगो मेरा बेटा है. यह आजकल लखनऊ के एक नर्सिंग होम में भर्ती  हैं. कृपया सब लोग दुआ करें कि जैंगो जल्द से जल्द ठीक हो जाएँ....



(जैंगो हॉस्पिटल में...ड्रिप चढ़ते हुए..)

(यह मेरे साथ ही सोते हैं.)

(हमेशा गोदी चढ़ना चाहते हैं.)

(यह जब छोटे थे..तो पार्क जाने कि बहुत जिद करते थे.)

(यह मिलिए रेक्स से.. इनकी vertical लम्बाई ३.५ फीट है और horizontal लम्बाई ६ फीट २ इंच है.और अभी जैंगो से मिलने हॉस्पिटल आये थे..)

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

BOLD अत्याधुनिक नारी.....: एक लघुकथा.....





तृप्ति ने शादी से पहले अपने होने वाले पति से पूछा ............ 'क्या तुम वर्जिन हो'? 


शायद अटपटा लगा था संदीप को यह सुनकर, पर जल्द ही संभलकर बोला। 


"......और तुम.......?" अबकी सवाल उसने दागा...........


जवाब बोल्ड था...............






खुलेपन ने संवाद को तो विस्तार दे दिया, पर मन् और दिमाग के किसी कोने में विश्वास की खिड़की फिर भी न खुल सकी। 





(प्रस्तुत लघुकथा सत्य घटना पर आधारित है....)
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