शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

नाम तेरा अभी मैं अपनी ज़ुबां से मिटाता हूँ....: एक ग़ज़ल जो मैंने पहली बार लिखी....देख कर बताइयेगा...: महफूज़


बहुत दिनों से सोच रहा था कि ग़ज़ल लिखूं. पर मुझे ग़ज़ल का क ख ग भी नहीं आता था.. फिर मैंने कुछ अध्ययन किया.. ग़ज़ल लिखने का तरीका सीखा. पर जब सीखा तो यही लगा कि रूल्ज़ फौलो करने पर हम वो चीज़ नहीं लिख पाते हैं....जो चाहते हैं... कुछ लोगों से पूछा तो लोगों ने कहा कि किसी से सीख लो.. अब लिखने का इतना वो था कि किसी से सीखने का वक़्त ही नहीं मिला... यहाँ वहां किसी तरह सीख कर लिखने कि कोशिश की  है.... देख कर आप लोग बताइयेगा.... कैसी है? और कुछ अगर गलती है तो प्लीज़ उसे सुधारिएगा भी....
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नाम तेरा अभी मैं अपनी ज़ुबां से मिटाता हूँ...

मैं टूट जाऊँगा तुमने ये सोचा तो था,
पर देखो मैं पूरा नज़र आता हूँ.

मुझे छोड़ा था तुमने उस अँधेरे घर में,
अपने अन्दर ही मैं एक दीया पाता हूँ.

इन अंधेरों को जाना ही होगा घर से , 
रौशनी में नहा कर मैं  आ जाता हूँ.

तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.

तेरा चर्चा भी मेरी ज़ुबां पर न हो,
नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ.












A Song one must to be listen...
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