शनिवार, 9 अप्रैल 2016

लखनऊ: गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल- महफूज़ (Mahfooz)

"लखनऊ है तो महज़ गुम्बद-ओ-मीनार नहीं,
सिर्फ एक शहर नहीं,कूचा-ओ-बाज़ार नहीं.....
इसके दामन में मोहब्बत के फूल खिलते हैं
इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं..."



अब ज़रा लखनऊ की जगह हिंदुस्तान का कोई भी शहर इमेजिन कर लीजिये... खराब लगा न? लखनऊ के ही बगल में कानपुर है... अब ज़रा कानपुर को इमेजिन कर के देखिये. मन खिन्न हो जायेगा... ऐसे ही कई शहर सोच लीजिये आप लखनऊ से तुलना नहीं कर सकते. यहाँ की ज़बान, यहाँ की विरासत, यहाँ का आर्किटेक्चर, यहाँ का खाना, यहाँ के लोग, यहाँ लोग लोग धीमे, धीरे और सलीके से बोलते हैं. यहाँ की फिज़ा... आब-ओ-हवा... और यहाँ के लोगों की शक्लों की बात ही अलग है. हर तरफ सुंदर लोग दिखेंगे. कम खूबसूरती का यहाँ नाम-ओ-निशान नहीं है... यहाँ का ज़र्रा ज़र्रा खूबसूरत है. लखनऊ का इतिहास, सांस्कृतिक विरासत, गंगा-जमुनी तहज़ीब... हर वर्ग-सम्प्रदाय का आपस में प्यार बेजोड़ है. यही आपसी प्यार वह धागा है जो यहाँ के हर निवासियों को बिना भेद-भाव के आपस में जोड़ता है. हमारे लखनऊ का जातीय और सांस्कृतिक इकाई के रूप में एक रुतबा है जिससे हमारे हिंदुस्तान का निर्माण हुआ है. यहाँ के नवाब आज भी अपनी ठसक से दुनिया में मिसाल कायम करते हैं. आप दुनिया में कहीं भी जायेंगे और अगर लखनऊ वाले हैं तो लखनऊ को मिस ज़रूर करेंगे. दुनिया में आप सिर्फ इतना बता दीजिये कि आप लखनऊ से हैं तो इज्ज़त आपकी मोहताज होगी... कोई ऐसा शहर आपको इतनी इज्ज़त नहीं दिला सकता जो सिर्फ लखनऊ शब्द में ही काफी है. यहाँ की धार्मिक एकता को देखते हुए यही कामना करता हूँ कि पूरे देश का नाम बदल कर लखनऊ कर देना चाहिए. शान्ति अपने आप आ जाएगी.


चलते-चलते: लखनऊ वाले अलग से "जान" लिए जाते हैं,
अपनी ज़बान से पहचान लिए जाते हैं. © महफूज़
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