मंगलवार, 18 अगस्त 2009


था दिन आज ही का,
चली गयीं थीं तुम मुझे छोड़ के ,
हमेशा के लिए ...........
फिर कभी न आने के लिए .............
क्या क़ुसूर था मेरा ?


सोच रहा हूँ कि
क्यूँ होता है ऐसा ?
क्या कभी तुमसे मिल पाउँगा?
क्यूँ जो होता है सबसे प्यारा
वो ही होता है दूर हमेशा........?????


हमेशा ही रहेंगीं यह आँखें नम
और
यादें ग़मज़दा ........
तुम आज भी बसी हो मेरी साँसों में
धडकनों में,
क्यूंकि हूँ तो अंश ही तुम्हारा.....


या! ख़ुदा , एक बार मुझपर थोड़ा सा रहम कर दो,
बस एक बार मुझे मेरी माँ से मिला दो !!!!!!!
क्यूंकि यह काम है बस तुम्हारा ही.....
क्या वो तुम्हे भी इतनी पसंद आई ?????


एक ख़्वाहिश है मेरी
बस एक बार जी भर के उन्हें देख लूं
इन तरसती आंखों को थोड़ा सुकून पा लूँ .....
बस मेरी इतनी इल्तिजा है तुमसे
उनका पूरा ख़याल रखना
कभी न आंसू आए उन आंखों में
मुस्कुराए वो हमेशा की तरह ...........
उनको जन्नत बख्शना
और उनकी बगिया में हमेशा ही फूलों को महकाना ......
और अपने लिए बस मांगूं मैं इतना ही.....
हर जनम में बनाना उन्हें ही

"मेरी माँ!!"
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