सोमवार, 11 जनवरी 2010

रोक सको तो रोक लो: - महफूज़



अभी थोड़े दिन पहले कि ही बात है. मैं जिम से एक्सरसाइज़ कर के अपने दोस्त पंकज के साथ घर लौट रहा था. कडाके कि ठण्ड में भी मुझे बहुत गर्मी लग रही थी. उस दिन कार्डियो और बेंच प्रेस बहुत ज्यादा कर लिया था. मुझे बॉडी बिल्डिंग का बहुत शौक़ है, मैं आज भी दो सौ पुश अप्स के साथ डेढ़ सौ पुल अप्स कर लेता हूँ. मेरे बयालीस इंच के बाइसेप्स और V-shaped  बॉडी पर टी-शर्ट खूब फब्ती है और इसीलिए मैं टी-शर्ट ज्यादा पहनता हूँ. इससे दो फायदे होते हैं एक तो सामने वाला पंगा लेने में थोडा घबराता है और खुद का सेल्फ-कॉन्फिडेंस भी अप रहता है. हमारे ज़ाकिर भाई कहते हैं कि वैसे भी आप बहुत हैंडसम हैं फिर काहे को इतनी बॉडी बिल्डिंग करते हैं?
अब क्या किया जाये... खुद को फिट रखना भी ज़रूरी है. अब ख़ुदा ने हमें जो अच्छी चीज़ दी है तो उसे संभालना भी हमारा ही काम है ना. ख़ैर! मैं बता रहा था कि उस दिन जब मैं लौट रहा था तो रस्ते में बहुत भीड़ थी, मेरा जिम मेरे घर से दस  किलोमीटर दूर हज़रतगंज में है, कई जगह बहुत जैम लगा हुआ था. बाइक ड्राइव करने में बहुत दिक्कत तो रही थी. मैं कैसे ना कैसे... किसी तरह सारे रुकावटों और भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ता चला जा रहा था. अपनी वैसे यह आदत है कि मैं ड्राइव करते वक़्त सामने वाले को कोई मौका नहीं देता, मेरा यही मोटिव रहता है कि बस बढ़ते रहो. रुकना  सामने वाले को है... मैंने कभी रुकना नहीं सीखा. अपने यही सिद्धांत पर कायम रहते हुए मैं बढ़ा  चला जा रहा था. तभी बाइक पर पीछे बैठा पंकज मुझसे कहता है कि," यार! महफूज़, तू बहुत ओफ्फेंसिव (offensive) ड्राइविंग करता है..."
मैं उसकी बात समझ नहीं पाया. मैंने कहा ," क्या मतलब?" मैं तो सारे रूल्ज़ फोल्लो करता हूँ...
उसने कहा कि " ओफ्फेंसिव से मेरा मतलब है कि तू सामने वाले को रुकने को मजबूर करता है और खुद रास्ता नहीं देता है. यह तेरा बहुत abstract behaviour है. उसकी बात सुनकर मैं जोर से हंस दिया. मैंने कहा कि यही तो अपना उसूल है. सामने वाले को मजबूर कर दो कि वो तुम्हे आगे बढ़ने के लिए रास्ता दे. मैं अपनी रियल ज़िन्दगी  में भी ऐसा ही करता हूँ... मैं कभी किसी को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता हूँ. मैं कभी किसी से डरता नहीं. ना ही खुद को किसी से कम समझता हूँ. आज जो दुनिया में इतनी कम उम्र में इतना नाम कमाया है ...उसके पीछे यही attitude है...  आज तक जिस काम में हाथ डाला है ... उसे पूरा कर के ही छोड़ा है. यही सब समझाते हुए कब उसका घर आ गया पता ही नहीं चला. उसे उसके घर ड्रॉप कर के मैं अपने घर आ गया.
उस वक़्त जो बात मैंने उसकी हंस कर टाल दी थी , वो बात मेरे दिल के अन्दर तक उतर चुकी थी. उसकी offensive driving वाली बात ने मुझे खुद के बारे बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर दिया था. उसका मुझे offensive कहना ना जाने क्यूँ अच्छा लगा था.हालांकि यह offensive  शब्द बहुत नेगेटिव है पर यह मुझ पर पोसिटिवली सूट करता है. मुझे बहुत अच्छे से याद है आज भी ... मैं जब स्कूल में था और अगर किसी लड़के के मेरे से ज्यादा मार्क्स आ जाते थे ...तो मैं उसे मारने के बहाने खोजा करता था और जब तक के उसे मार नहीं लेता था ..मुझे चैन नहीं मिलता था. उस के दिल में इतनी दहशत पैदा कर देता था कि वो बेचारा जानबूझ कर अपना टेस्ट खराब कर देता था. और तो और मैं खुद को ही अपनी क्लास का टोपपर घोषित कर दिया करता था.  मेरा अपना गैंग था स्कूल में ...और मेरे गैंग में जितने भी लड़के थे सब एक नंबर के आवारा और studious थे... हम लोग all-rounder थे... अब मेरे गैंग के ज़्यादातर लड़के कारगिल युद्ध में शाहिद हो चुके हैं. बाकी जो बचे हैं उनमें से कुछ IAS  हैं , कुछ lecturer हैं, कुछ डॉक्टर हैं तो कुछ यहाँ वहां अच्छे पदों पर हैं. एक -दो चुनाव लड़ कर विधायक हैं. स्कूल के दौरान मेरे टीचर्स भी मुझसे बहुत डरते थे... क्यूंकि मुझे ऐसा लगता था कि मैं अपने टीचर से कहीं ज्यादा जानता हूँ... और कई मौकों पे इसे मैंने साबित भी किया... मेरे टीचर्स खुद मुझसे परेशां रहते थे... मेरे टीचर्स जो पढ़ाते थे... वो मैं पहले से ही  जानता था... और जब मैं क्लास में जवाब पहले ही दे देता था... तो बेचारा टीचर खुद ही शर्मा जाता था. मेरे टीचर्स मेरे पिताजी से मेरी शिकायत भी किया करते थे कि आपका बेटा रिस्पेक्ट नहीं करता है.  और मेरे पिताजी मुझे सबके सामने डांट मार कर टीचर और खुद कि संतुष्टि कर लेते थे.

यही हाल मेरा यूनिवर्सिटी में भी रहा. मैंने कभी भी यूनिवर्सिटी में ग्रैजूईशन की क्लास नहीं की...पोस्ट ग्रैजूईशन में भी कभी क्लास नहीं किया... मैं अपने टीचर्स को भी नहीं जानता था... न ही मेरे टीचर्स मुझे जानते थे... लेकिन मैंने पोस्ट ग्रैजूईशन में टॉप किया ... गोल्ड मेडल मिला... जब convocation में मुझे बुलाया गया ... और गोल्ड मेडल देने के बाद दो शब्द बोलने के लिए कहा... तो मैं बहुत परेशां हो गया.. क्यूंकि बाकी लोग श्रेय तो अपने टीचर्स को दे रहे थे.... और मैं अपने टीचर्स को ही नहीं जानता था... और न ही मेरे टीचर्स मुझे... बड़ी दुविधा कि सिचुईशन थी.. ख़ैर! मैंने दो शब्द में कहा कि मेरे इस सफलता का सारा श्रेय मैं खुद को देता हूँ... क्यूंकि मेरी मेहनत का  ही नतीजा यह सफलता थी.... और जब यह बताया कि मुझे UGC (NET) JRF भी  मिल  चुका है... तो सबने और दांतों तले उँगलियाँ दबा ली...  बेचारे ... मेरे यूनिवर्सिटी के टीचर.. खुद ही परेशां  थे...  सबने पूछा कि भाई कौन से बिल में छुपे थे... और किस्से तुमने पढाई कि... और बिना गुरु के कैसे टॉप कर गए?
मुझे ऐसा लगता है कि मैं सर्वज्ञाता हूँ. मुझे ऐसा भी लगता है कि कोई मेरे बराबर खड़ा नहीं हो सकता. कई बार तो मुझे ऐसा भी लगता है कि मैं अजर-अमर हूँ. मुझे ऐसा लगता है कि मैं कोई सुपर -ह्यूमन (Super Human) हूँ या फिर मेरे में डबल Y क्रोमोज़ोम हैं जो कि रेयरली ही मिलता है. मैं जब छोटा था तो साईकिल चलाने का शौक रखता था, मैं इंडिया का बेस्ट साइक्लिस्ट भी रह चुका हूँ और आज भी साईकिल पर वैसा ही स्टंट करता हूँ जो आपने सिर्फ फिल्मों में ही देखे होंगे. अपने स्कूल के दौरान मैंने कोई चौरासी साइकलें तोड़ी हैं. कभी कभी मैं जब सुबह सो कर उठता था तो यह सोच लेता था कि आज साईकिल का ब्रेक नहीं मारूंगा... चाहे कुछ भी हो जाए... और मैं वाकई में साईकिल का ब्रेक नहीं मारता था... एक बार तो जीप से टकरा गया था ...लेकिन मैं टकराते ही जम्प लगा गया था... लोगों कि भीड़ लग गई... मुझसे पूछा गया कि तुमने ब्रेक क्यूँ नहीं मारा... मैंने कहा कि मैंने सोचा हुआ था आज कि ब्रेक नहीं मारूंगा... सबने कहा कि पागल है मेजर साहब का लड़का. उस वक़्त पिताजी आर्मी में मेजर थे. मेरे पिताजी भी मुझे सनकी कहते थे.... हमारे स्कूल में जब भी कोई फंक्शन होता था तो मैं ज़बरदस्ती माइक ले लेता था ... क्यूंकि मुझे कुछ ना कुछ करना होता था.

एक बार हमारे स्कूल में स्कूल कैप्टन का चुनाव होने वाला था ...मैंने भी अपना नाम नोमिनेट किया पर हमारे प्रिंसिपल ने मेरा नाम काट दिया... प्रिंसी ने कहा कि तुम अगर कैप्टन बनोगे तो पूरा स्कूल तबाह हो जायेगा. और नोमिनेट ऐसे लड़के का नाम हुआ जिससे हमारे गैंग कि दुश्मनी थी. अब मुझे बहुत बेईज्ज़ती महसूस हुई ... मैंने भी प्रिंसी से कहा कि मैं इसे कैप्टन बनने ही नहीं दूंगा... प्रिंसी ने मुझे कहा कि मैं तेरे सीने के बाल खींच के मारूंगा... मेरे शर्ट में से मेरे सीने के बाल झलकते थे... उसे ही देख कर उसने कहा. मैंने भी कहा कि मैं उसे कैप्टन बनने ही नहीं दूंगा. फिर मैंने सब क्लास में जाकर सबको धमकी दी कि कोई अगर उसे वोट करेगा तो मार खायेगा. ख़ैर ! वो लड़का स्कूल कैप्टन बन गया. फिर वो हमारे ऊपर रौब गांठने लगा. पहले ही दिन हमने उसकी ऐसी धुनाई की कि वो सारी हेकड़ी भूल गया. और मैंने खुद को स्कूल कैप्टन घोषित कर दिया. अंत में प्रिंसी को भी मानना पड़ा ... बेचारे ने कहा कि पांच महीने की बात है यह लोग तो पास ओउट हो जायेंगे. इसी को बना देते हैं. मैं स्कूल कैप्टन बन गया.

ऐसे ही हमारे ट्वेल्थ के बोर्ड एक्जाम चल रहे थे.. हमारा सेंटर एक दूसरे स्कूल में पड़ा था... मैंने बोर्ड एक्जाम के तीन महीने पहले ही हिंदी छोड़ के इकोनोमिक्स सब्जेक्ट ले लिया था... अब जब बोर्ड में इकोनोमिक्स का पेपर आया तो मेरे तो हाथ पाँव फूल गए, मुझे पूरे पेपर में से सौ में से सिर्फ छब्बीस नंबर के सवाल आते थे... मैं कहा कि लो मेरी तो कम्पार्टमेंट अब पक्की हो गई... मैं बहुत परेशां हुआ . मेरे बगल में एक रीटा नाम की लड़की बैठी थी और उसके बगल में खिड़की के पास मेरा दोस्त दिनेश बैठा था... मैंने दिनेश से कहा कि भाई मैं तो गया इस बार ... आधे घंटे तक मैं इसी सोच में पागल हुआ जा रहा था.. थोड़ी देर के बाद मैंने एक डेसिशन लिया और अपना प्लान दिनेश को बताया ... दिनेश ने मेरा साथ देने के लिए कहा ... प्लान यह था कि क्लास के बाहर दिनेश का बैग रखा था उसमें इकोनोमिक्स की  बुक थी.. अब सवाल यह था कि बुक कैसे निकालूँगा ... ख़ैर! दिमाग में एक प्लान आ गया ... मैं दौड़ते हुए टोइलेट का बहाना बना कर बाहर भागा और दिनेश के बैग को जोर से लात मारी और बैग सीधा बाथरूम के अन्दर ... मैं किताब अपने जैकट में छुपा कर ले आया था... और पूरी चीटिंग की... बेल लगने के ठीक दस मिनट पहले टीचर ने मुझे चीटिंग करते हुए पकड़ लिया ... मैंने बुक उठा कर दिनेश को दी और दिनेश ने किताब उठा कर खिड़की से बाहर pond में फ़ेंक दी.. और मैं टीचर से उलझ गया कि मैंने चीटिंग नहीं की.. टीचर ने कहा कि इतने सारे लोगों ने तुम्हे देखा है चीटिंग करते हुए... मैंने कहा कि अगर कोई कह देगा तो मान जाऊंगा. अब मेरे डर से किसी ने कुछ कहा ही नहीं. और ऐसे मैं बच गया.. पर यह बात हमारे प्रिंसी को मालूम चल गई... जब CBSE board का रिज़ल्ट आया तो मैंने हर सब्जेक्ट में टॉप किया था ... इकोनोमिक्स में छियासी नंबर थे. इंग्लिश का रिकॉर्ड तो आज भी मेरे ही नाम है है मेरे नाइंटी एट नंबर थे.  हमारे प्रिंसिपल ने कहा कि जिस दिन महफूज़ और उसका गैंग स्कूल से निकलेगा उस दिन मैं पूरे स्कूल को गंगा जल से धोऊंगा.
मैं शुरू से offensive रहा हूँ. Aggressiveness मेरी नसों में दौड़ता है.  मेरे साथ यह है कि अगर मुझे किसी ने खराब बोला तो वो सिर्फ मेरा खराब वाला रूप ही देखेगा. अगर मेरी कहीं कोई गलती है तो मैं अपनी गलती मानते हुए चुपचाप माफ़ी लेता हूँ. मुझसे कभी कोई जीत नहीं सकता. मेरे से जीतने के लिए वो जूनून डेवलप करना पड़ेगा. मुझे सिर्फ प्यार से ही जीता जा सकता है... प्यार से तो मैं जान भी दे दूंगा. मेरे गुस्से या ताप से अगर कोई बचा सकता है तो वो कोई नहीं खुद मैं ही हूँ. मैं अपनी आज की ज़िन्दगी में भी बहुत aggressive रहता हूँ.. मैं सामने वाले को खुद के सामने काम्प्लेक्स कर देता हूँ. मुझे हमेशा लोगों से घिरा रहने में ज्यादा मज़ा आता है. मेरे aggressiveness  की हद यहाँ तक है कि ... मेरी जिस भी गर्ल फ्रेंड ने मुझे लो करने कि कोशिश की उसे मैंने अपने ज़िन्दगी  से निकाल फेंका. इसीलिए.. ऐसी पर्सनैलिटी होने के बावजूद भी मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है. और इस बात का कोई यकीन भी नहीं करेगा. लड़कियां मुझ से बहुत डरती हैं....आज भी मुझे लोगों को डरा कर रखना बहुत अच्छा लगता है.  उत्तर प्रदेश सरकार में कई मंत्री ऐसे हैं/रहे जो मुझसे गाली भी खाए और एक दो तो मार खाते खाते बचे. अब जब मैं खुद इस बार मेयर का चुनाव लड़ने जा रहा हूँ... गोरखपुर से... तो मेरा यही बिहैवियर मेरे बहुत काम आ रहा है.
मेरे साथ यह भी है कि मुझसे किसी भी सब्जेक्ट पर बात किया जा सकता है. मुझे ऐसा लगता है कि आप अगर किसी को दबा सकते हैं तो वो सिर्फ नॉलेज है. अगर मुझे किसी चीज़ कि नॉलेज नहीं है... तो मैं उस वक़्त शांत रह कर ...चुपचाप उस नॉलेज को गेन करने में लग जाता हूँ. मैं हमेशा लर्निंग मोड में रहता हूँ.  Offensive होना बुरा नहीं है... जब तक offensive  नहीं होंगे... तब तक के मंज़िल को नहीं पाया जा सकता.  और फिर offensive होने के लिए भी सबसे पहले नौलेजैबल होना पड़ता है , बिना नॉलेज के आप offensive हो ही नहीं सकते हैं. अगर हम ड्राविंग भी कर रहे हैं तो हमें offensive  होना पड़ेगा नहीं तो सामने वाला तो आगे बढ़ने के लिए तैयार है ही. आम ज़िन्दगी में भी वही इंसान सफल होता है जिसमें जूनून होता है. और यह जूनून बिना offensive हुए आप ला नहीं सकते. और यही चीज़ मैं खुद के साथ करता हूँ. मेरे सामने मैं कभी किसी को टिकने नहीं देता. और कोई अगर मेरी बुराई बिना मतलब में करता है तो उसे मेरे गुस्से को भी झेलना होगा. अगर यह offense है तो ऐसा offense मैं कई बार करने के लिए तैयार हूँ. ब्लॉग जगत में भी कई बार offensive हुआ हूँ.. .. पर वो तभी हुआ हूँ... जब किसी ने मेरे दोस्तों को बिना मतलब में बुरा-भला कहा.. तो अपने दोस्तों के साथ खडा होना मेरा फ़र्ज़ है... भले ही वो गलत हों... मैं तो अपने ताप से गलत को भी सही करने कि ताक़त रखता हूँ... मेरे अन्दर इतनी एनर्जी है... कि एक बार हमारे यहाँ बाथरूम का नल खराब हो गया था..प्लंबर आया लेकिन वो नल अपने रिंच  से नहीं खोल पाया... कहता है कि तेल डाल कर दो घंटे रखिये तब खोलूँगा... मैंने कहा ऐसे कैसे नहीं खुलेगा..और मैंने उस नल को  सिर्फ अपने हाथों से पाइप से अलग कर कर दिया. बेचारा , आँखें फाड़ कर देख रहा था. तो यहाँ वो नल खोलने में मेरी शारीरिक ताक़त कम और दिमागी ताक़त ज्यादा थी.. यहाँ भी वही offensive nature  काम आया. मतलब यही है कि offensive नेचर को पोज़िटिवली यूज़ कर सकते हैं. अब मुझे यहाँ घमंडी भी कह सकते हैं.... पर क्या offensive होना वाकई में घमंडी होना है?

आज अवधिया जी ने एक पोस्ट लिखी है उस पोस्ट में एक लाइन उन्होंने लिखी जो मुझे छू गई "पुण्य करने के लिये पाप भी करना पड़ता है। पाप और पुण्य का एक दूसरे के बिना काम ही नहीं चल सकता।याने कि पाप और पुण्य एक दूसरे के पूरक हैं।" इस लाइन में कितनी प्रेक्टिकलिटी है. अब बात तो सही  है कि पुण्य करने के लिये पाप भी करना पड़ता है। मैं ऐसे हज़ारों पाप करने के लिए तैयार हूँ. जिस चीज़ को करने से अंतरात्मा रोकती नहीं है वो पुण्य है, और जिस चीज़ को करने से अंतरात्मा रोकती है वो पाप है. कुल मिला कर सारांश यही है कि .... बहुत थोड़े शब्दों में कहूँगा खुद को डिफाइन करते हुए....
आप मुझे या तो प्यार कर सकते हैं या फिर नफरत, 
पर आप मुझे मुझे नज़रंदाज़ नही कर सकते....... 
क्यूंकि यही मेरा जादू है, 
लीक से हटकर काम करने का एक अलग ही जूनून  है.... 
और मैं हमेशा विवादों में ही रहता हूँ.....

बस फर्क यह है की मैं कोई राजनीतिज्ञ या फिर अभिनेता नही हूँ.... 

लेकिन उनसे कम भी नही हूँ....

इसे आप लोग मेरा मेरे प्रति पूर्वाग्रह मत समझ लीजियेगा.....

एक दिन आप मुझे रुल करते हुए पायेंगे...

अब आप ही लोग बताइयेगा कि क्या offensive होना बुरा है?

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