रविवार, 17 जून 2012

कुछ लोग पानी पर कील ठोक कर उसे रस्सों से बाँध देते हैं: महफूज़

आज कोई भूमिका या यहाँ वहां की बातें (बेकार की) लिखने का मन नहीं है. और इतिहास सीरीज भी टाईप  नहीं हुई है, रीना छुट्टी पर है और अपने पास टाइम नहीं है टाईप करने का। आज देखिये सीधे मेरी एक कविता। बहुत पहले लिखी थी और पोस्ट अब कर रहा हूँ। आज कोई फ़ोटो(ज़) भी नहीं है, कंप्यूटर की हार्ड डिस्क क्रैश हो गयी है। वैसे सन्डे का दिन  बहुत  बोरिंग होता हैखुशदीप भैया की तबियत भी ठीक नहीं है... सब लोग दुआ करिए की भैया जल्दी ठीक हो जाएँ। 



मुश्किल नहीं है पानी को बांधना 

पानी खतरे के निशान को पार 
कर गया है,
इसमें सब कुछ डूब 
गया है 
कुछ लोग पानी पर 
कीलें ठोक रहें हैं 
और कुछ 
पानी को रस्सों से बाँध 
रहे हैं 
यह वो लोग हैं 
जिन्होनें हमेशा 
पानी और ज़मीन को 
जूतों से छुआ है 
इनके तलवे ज़मीन और पानी 
की ज़ात से परिचित नहीं हैं ,
हर अपरिचित पानी को 
रस्सों से बांधता 
और फिर उसके जिस्म पर 
कीलें ठोकता है।

(c) महफूज़ अली 
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