शनिवार, 12 सितंबर 2009

शब्द खो गए हैं......... ढूंढ दे कोई..


मैं परेशान था,

पता नहीं कहाँ खो गए?

मेरे शब्द नहीं मिल रहे थे।

शब्द थे तो थोड़े से ही,

पर भाव ज़्यादा थे,

उन शब्दों से मैं बड़े - बड़े ख़्वाब देखता था,

कभी-कभी याद करके रोता था,

पता नहीं कहाँ खो गए?

मेरे शब्द नहीं मिल रहे थे।


बहुत दिनों से मैंने कुछ लिखा नहीं था,

और आज जब लिखने चला तो,

शब्द ही खो गए।

मैं परेशान था,

मेरे शब्द नहीं मिल रहे थे।


वो मुस्कुराते हुए,

मुझे परेशान देख रही थी।

मैंने उससे पूछा कि,

"देखें हैं तुमने मेरे शब्द कहीं ?"

उसने मासूम सा चेहरा

हिला कर कहा--------

"नहीं! नहीं तो!!!!!!!"

ठीक से देखो होंगे यहीं कहीं.............

वो बोली

छत पर देखो

कल शाम को तुम टहल रहे थे

छोड़ आए होगे किसी

फूलों कि टहनी पे...

कहीं तकिये के नीचे तो नहीं रख दिए तुमने

सोने से पहले?


मैं खामोशी से सुन रहा था,

उसके मासूम चेहरे को

देख मुस्कुरा रहा था।

कुछ शरारत सी उसकी आँखों में

मुझे नज़र आ रही थी ।

मैंने कहा कहीं तुमने तो नहीं छुपा दिए,

मुझे परेशां करने के लिए,

दे दो न मुझे मेरे शब्द

मुझे कविता लिखनी है ।


वो शर्म का परदा ओढे खड़ी थी,

अपने होठों पे ख़ामोशी सजाये थी,

अपने हाथों कि मुट्ठी

को बंद किए पीठ के

पीछे छुपाये खड़ी थी।


उसके चेहरे कि शरारत और बंद मुट्ठी

नज़र आ रही थी।

मैं आगे बढ़ा ,

वो पीछे हटी,

मैं थोड़ा और बढ़ा

वो थोड़ा और पीछे हटी........

शायद वो समझ गई थी................

मैं फिर आगे बढ़ा

और रुक गया

वो भी रुक गई......

मैंने अचानक उसे अपनी बाहों में जकड लिया,

मेरी शरारत को भांप उसने

झट से अपनी बंद मुट्ठी

मेरे आगे खोल दी,

शब्द मुट्ठी से बाहर निकल कर

काग़ज़ पर फैल गए,

और

मेरी कविता पूरी हो गई......


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