गुरुवार, 3 मई 2012

दो ग़ज़लकार, ज़मीर का जिंदा न रहना और हम दोनों मिल के...ह्म्म्म...: महफूज़

आज हमारे घर मशहूर शायर फार्रूक जायसी साहब का आना हुआ. फार्रूक साहब एक्साइज़ कमिशनर भी हैं और शायरी का शौक़ भी रखते हैं और अक्सर मशहूर ग़ज़ल गायक प्रदीप श्रीवास्तव के साथ मंच साझा भी करते हैं. फारूक साहब की ग़ज़लों को दुनिया भर में काफी लोगों ने लयबद्ध किया है. हालांकि! मैंने उनकी ग़ज़लों को अब पढना शुरू किया है और ग़ज़लों की तासीर को समझा है. कहते हैं कि बिना उर्दू के ग़ज़ल बन ही नहीं सकती और फारूक साहब उर्दू के बहुत ही ज़हीन और मक़बूल शख्सियत हैं.  आज जब उनसे बातें हुई तो मैंने उन्हें अपनी हिंदी में लिखी हुई कवितायें दिखायीं हालांकि हिंदी में कुछ भी दिखाना वैसा ही होता है जैसा हाई स्कूल की सेकण्ड डिविज़न में मार्कशीट, मेरे जैसा आदमी शरमाता सकुचाता हुआ हिंदी की कवितायें दिखाता है. उन्होंने पहले ही सिरे से मेरी कविताओं को नकार दिया. उन्होंने कहा कि कविता वो होती है जो गाई जा सके. आपने जो लिखा है वो इन पैरा फॉर्म है. उन्हें गाया नहीं जा सकता. मैंने कहा कि यह भी एक विधा है और काफी लोग लिख रहे हैं. उन्होंने छूटते ही कहा कि आप जैसा आदमी भी काफी लोगों को फौलो करने लग गया है? मुझे इस जुमले पर शर्म तो आई फ़िर अपनी शर्म पर सफाई से काबू कर लिया.   उन्होंने बताया कि बिना भाव को छुए आप कैसे गद्य कविताओं को भी लयबद्ध कर सकते हैं. मैंने उनसे कहा कि अब से कोशिश रहेगी कि आपकी बताई विधा में लिखूं. हालांकि ! होता यह है कि कविता तभी होती है जब हमारे मन में भाव हो , एक फीलिंग हो. विधा वगैरह सब भाव के साथ सेकंडरी हो जातीं हैं. 

                  (फार्रूक साहब)
बात ग़ज़ल की चल रही है तो ग़ज़ल कहने और गायकी में सीमा गुप्ता जी का भी जवाब नहीं है. सीमा जी को मैं काफी अरसे से देख, पढ़ और सुन रहा हूँ और कई ग़ज़ल की बारीकियों को उनकी ग़ज़लों के माध्यम से समझा है. ग़ज़ल गायकी और एड्रेस में सीमा जी आज की तारीख में पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं और कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरुस्कारों से नवाजी जा चुकीं हैं. सीमा जी के बारे में नेक्स्ट पोस्ट में... फिलहाल तो उनकी किताब और प्रेजेंटेशन को पढ़ रहा हूँ.
    (सीमा जी जब टी. वी . पर थीं तो मैंने फोटो खींच ली थी)

अब एक मेरी कविता फ़िर से सबके  लिए.. 

ज़मीर का ज़िंदा ना रहना 
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आदमी की आँख 
जब उसके भीतर कहीं गिर जाती है 
तब बाहर से अंधा होने के बावजूद भी,
वो भीतर से देखने लगता है 
बाहर ठोकरें खाने के साथ 
उसे यह साफ़ दिखाई देने लगता है 
कि ज़्यादातर लोग 
क्यूँ ठोकरें खा रहे हैं? 
और कुछ लोग 
इन्ही सड़कों पर 
क्यूँ 
सुविधा से चल रहे हैं.. 

(c) महफूज़ अली 

फ़िर कह रहा हूँ कि हमारे ज़िन्दगी में गीत/गानों का बहुत महत्त्व है.. यह ना हों .. तो ज़िन्दगी वैसी ही है जैसे कार विदाउट स्टेयरिंग. यह भी हमारा एक मीडियम ऑफ़ कम्युनिकेशन/एक्प्रेशन ऑफ़ लव है. 

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