शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

जब मैं चोरी करते पकड़ा गया..:- महफूज़



आज आपको अपने स्कूल का एक बहुत मजेदार संस्मरण बताने जा रहा हूँ. यह संस्मरण पढ़ कर आपको पता चलेगा कि मैं स्कूल में कितना बदमाश किस्म का लड़का था. चंचलता व बदमाशी तो आज भी इस उम्र में भी (?) करता हूँ. बात उन दिनों की है जब मैं बारहवीं क्लास में पढ़ता था. मेरा एक अपना गैंग हुआ करता था.. मेरे गैंग में हम कोई आठ लड़के थे.  हम आठों अपने क्लास के सबसे स्टूडिय्स और बदमाश लड़के थे.
 
एक लड़का जिसका नाम सेंथिल राजन था. उसका एक ही काम था कि वो लड़किओं का टिफिन रोज़ असेम्बली से पहले चुरा कर खा जाता था, आजकल इडियन एयर फ़ोर्स में स्क्वाड्रन लीडर है और फाइटर पाइलट है.
 
मनोज यह आर्मी में कैप्टन था और कारगिल युद्ध में शहीद हो चुका है और इसकी मूर्ती यहीं  लखनऊ में इसी के नाम से मशहूर है.
 
गुरजिंदर सिंह सूरी यह महाशय भी कैप्टन थे और कारगिल में शहीद हो चुके हैं इनकी भी मूर्ती पंजाब के गुरदासपुर में लगी है. गुरजिंदर को बकरियां  चुराने का बहुत शौक था. यह बकरियां चुरा कर काट कर खा जाता था और खाल बेच देता था १०० रुपये में.  

सुखजिंदर सिंह ...इसको हम लोग सुक्खी बुलाते थे... इसकी ख़ास बात यह थी कि यह जब अपना जूडा खोल देता था तो बिलकुल लड़की लगता था. एक बार संडे के दिन इसके घर हम लोग गए  कॉल बेल बजाई तो यह बाहर निकला ...हम लोगों ने पूछा दीदी सुक्खी है? इसने हम लोगों को एक झापड़ लगाया और अपने बाल पीछे कर के बोला कि यह रहा सुक्खी... यह IIT से इंजिनियर हो कर आजकल कनाडा में है.
 
वजीह  अहमद खान यह आजकल लन्दन में है और वर्ल्ड का बहुत जाना माना कॉस्मेटिक सर्जन है. इसको घूमने का बहुत शौक है यह उस ज़माने में कालोनी के घरों का टी.वी. बना कर पैसे बचाता था और फिर घूमने निकल जाता था.  और आज पूरी दुनिया घूम रहा है. हमारे फिल्म जगत के काफी लोगों ने इससे सर्जरी करवाई है.  
 
अमलेंदु यह आजकल एक डिग्री कॉलेज में सीनियर लेक्चरार है.  अमलेंदु बिहारी था और  को  बोलता था. यह बहुत जिनिअस था. यह इतिहास का बहुत बड़ा ज्ञाता है. और सिविल में सेलेक्शन ना होने कि वजह से फ्रस्ट्रेट रहता है. 
 
मनीष ....मनीष आजकल IAS है ... और इस वक़्त डिस्ट्रिक्ट मैजिसट्रेट है. यह दसवीं क्लास से दारु पीता था. IIT कानपूर से पास हुआ ... यह फ्रूटी (Frooti) के पैकेट में दारु भर कर पीता था. 


बात हमारी बारहवीं क्लास की है.  अब जैसा की मै बता चुका हूँ कि हम लोग स्कूल के सबसे बदमाश लड़कों में आते थे. हम लोग क्या करते थे कि स्कूल में छुट्टी के बाद घर नहीं जाते थे...  और हम सब मिल कर दूसरे क्लासेस में जा कर फैन और ट्यूबलाईट के चोक खोल लिया करते थे. और फिर वही फैन्स और चोक्स को हम लोग  मार्केट में ले जा कर बेच दिया करते थे. फिर जो भी पैसे मिलते थे. उससे हम शाम में होटल प्रेसिडेंट में जाकर ऐश किया करते थे. हमारा स्कूल  बहुत बड़ा था ... प्राइमरी क्लास मिला कर कुल पांच सौ साठ कमरे थे... और हर क्लास में दस -दस फैन और छह ट्यूबलाईट लगे  होते थे. होटल प्रेसिडेंट आज भी है गोरखपुर में. हम लोग रोज़ एक फैन और चोक चुरा लिया करते थे और फिर बेच देते थे. धीरे धीरे पूरे स्कूल में खबर फ़ैल गई कि पंखे और चोक चोरी हो रहे हैं. प्रिंसिपल हमारा बहुत परेशां लेकिन उसको चोर मिल ही नहीं रहे थे. और हम लोग अपना काम बहुत सफाई से कर लिया करते थे. एक बार क्या हुआ कि हम दूकान पर फैन और चोक बेच रहे थे... तो जिस दूकान पर हम लोग सब बेच रहे थे उसी दूकान  पर एक प्राइमरी क्लास का टीचर भी कुछ सामान खरीद रहा था और उस टीचर को हम लोग जानते ही नहीं थे, लेकिन वो हम लोगों को जानता था ...उसने फैन बेचते हुए देख लिया और स्कूल के हर फैन पर पेंट से स्कूल का नाम शोर्ट फॉर्म में लिखा होता था. दूकानदार ने भी हमें पैसे दिए और हम लोग चलते बने. 

दूसरे दिन स्कूल में असेम्बली में हम आठों का नाम पुकारा गया. हम  आठों बड़े मज़े से डाइस की ओर दौड़ते हुए गए... क्यूंकि आये दिन हम आठों को कोई ना कोई प्राइज़ या फिर ट्राफी मिलती ही रहती थी और काफी ट्रोफीज़/प्राइज़ हम लोगों को मिलनी बाकी थीं... हम लोगों ने वही सोचा कि कुछ ना कुछ प्राइज़ मिलेगा इसीलिए नाम पुकारा गया है.  हम बड़ी शान से डाइस पर जाकर खड़े हो गए... सीना चौड़ा कर के. फिर असेम्बली वगैरह शुरू हुई. सारी औपचारिकताएं पूरी हुईं असेम्बली की. उसके बाद हमारा प्रिंसिपल माइक पर आ गया. हमारा प्रिंसिपल हम लोगों की तारीफ़ करने लगा ...फिर कहता है कि आज इन शेरों की महान करतूत  मैं बताने जा रहा हूँ. तब तक के सामने टेबल सज गई. हम लोगों ने सोचा कि ट्राफी इसी पर रखी जाएँगी और एक एक कर के हम लोगों को दी जाएँगी. थोड़ी देर के बाद हम लोग क्या देखते हैं कि टेबल पर वही फैन्स और चोक सजाये जा रहे हैं जो हम लोगों ने मिल कर चुराए थे. अब हम लोगों को काटो तो खून नहीं.. शर्म के मारे हालत खराब हो रही थी. हम लोग समझ गए कि चोरी पकड़ी गई. अब हमारे प्रिंसिपल ने हम लोगों की तारीफ़ करनी शुरू की.. पांच हज़ार बच्चों के सामने बताया कि हम ही लोग थे वो चोर. उसने उस दुकानदार को भी बुला लिया था. वो भी असेम्बली  में खड़ा था. वो टीचर भी आ गया गवाही देने.  अब हम लोगों की ख़ैर नहीं थी यह हम लोगों की समझ में आ गया. 


हमारे प्रिंसिपल ने एक पतला सा डंडा रखा हुआ था ... उस डंडे का नाम उसने गंगाराम रखा था. गंगाराम जिस पर भी पड़ता वो सीधा हॉस्पिटल जाता था. और जहाँ पड़ जाता था ...वहां से चमड़ी भी साथ लेकर निकलता था. अब प्रिसिपल ने चपरासी से कहा कि जाओ गंगाराम को लेकर आओ. गंगाराम आ गए. चपरासी रोज़ कपडे को तेल में डुबो कर गंगाराम की मालिश किया करता था. बस फिर क्या था.. सुबह -सुबह  जो मार पड़ी कि आज तक याद है. मुझे तो प्रिंसिपल ने नीचे गिरा कर लातों से भी मारा था. उसको मेरे सीने के बालों से बहुत चिढ थी... हमेशा कहता था कि सीने  के बाल नोच-नोच कर मारूंगा. प्रिंसिपल मुझे लीडर समझता था. कहता था कि यह शक्ल से धोखा देता है. एक और मजेदार बात बता रहा हूँ . हमारे स्कूल में हिंदी का नया टीचर आया था ...वो क्लास में सबका इंट्रो ले रहा था... मेरी बारी आई ...मैंने भी अपना इंट्रो दिया. उसके बाद वो टीचर बोलता है कि बड़ा भोला बच्चा है. इतना सुनते ही पूरी क्लास हंसने लग गई. बेचारे! के समझ में आया ही  नहीं कि सब लोग क्यूँ हंस रहे हैं. बहुत दिनों के बाद उसके समझ में आया कि उस दिन सब लोग क्यूँ हंस रहे थे. 

ख़ैर! हम लोग पांच हज़ार बच्चों के सामने मार खा कर क्लास में गए टूटे-फूटे. लेकिन शर्म नाम की चीज़ हम लोगों के चेहरे पर बिलकुल भी नहीं थी. क्लास में पहुँचते ही हम लोगों को देख कर पूरी क्लास खूंब हंसी... हम लोग भी खूब हँसे. हँसते हँसते बीच में यहाँ वहां दर्द भी हो उठता था. थोड़ी देर के बाद हम लोगों का सस्पेंशन आर्डर लेकर चपरासी आ गया. हम लोगों के लिए सस्पेंड होना आम बात थी. With immediate effect हम लोगों को स्कूल छोड़ने और अपने-अपने गार्जियंस को लाने का आदेश था.  हम लोगों ने अपना अपना बैग उठाया... पूरी क्लास हम लोगों को विदा करने गेट तक आई और अश्रुपूरित आँखों से सबने हमें विदाई दी. सब लोगों ने कहा कि जल्दी आना नहीं तो पूरा स्कूल सूना-सूना लगेगा. यह विदाई साल में पांच-छः बार ज़रूर होती थी. हमने भी जल्द ही दोबारा आने का वादा कर के सबसे गले मिल कर विदा लिया. उसके बाद घर पर क्या हुआ वो मैं बता नहीं सकता. 
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