शनिवार, 27 जून 2009

कुछ पहलू........कुछ फलसफे...और कुछ कवितायें !!

१.

मैंने एक खिले हुए
फूल को तोडा था,
तो मैं तड़प गया था॥

मैंने नोचे थे पंख
एक परिंदे के
तो मैं बिलख उठा था॥

मैंने छेडा था एक
मोती की माला को
तो मैं बिखर उठा था॥
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२.

आज अगर मैं सोचता हूँ
तो बीच में कल आ जाता है
कल कल था
और कल कल होगा
यह याद आ जाता है॥
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३.

मैं तुमसे मिलूंगा
किसी किताब के पन्नों में
नाम अपना दर्ज
होने से पहले,
यह मेरा वायदा है
पर ठीक ऐसा ही हो
जैसा मैं कह रहा हूँ
यह कहना आज शायद
थोड़ा मुश्किल है,
पर कल ?????
नामुमकिन ज़रूर होगा॥
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४.

ख़्वाबों में झांकता हूँ
और गाता हूँ अपना ही राग
लंबे लंबे डगों से
लांघता हूँ दीवारों को
और
खोजता हूँ
उन खोये हुए
पलों को॥
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महफूज़ अली
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