रविवार, 22 सितंबर 2013

अंगड़ाई, छोटा सा संस्मरण, क्वालिटी, लर्निंग मोड, शब्दों की नींद, सिर्फ पुरुषों के लिए, जानू और मेरे शोना : महफूज़

अम्म्म …. आह…(अंगड़ाई!!!!) अच्छा इस अंगड़ाई लेने का भी एक अलग मज़ा है ... थके हों या सोकर उठे हों, ज़रा सा बदन को हाथ ऊपर कर के थोडा पंजों के बल ऊपर की ओर स्ट्रेच करिए , फिर देखिये सारी की सारी थकान उतर जाएगी और एक अलग से तरो-ताज़गी फील होगी और चल दीजिये नहा धो कर अपने काम पर। अच्छा! डॉक्टर्स भी कहते हैं कि दिन भर में तीन से चार बार खड़े हो कर खुद भी यूँ ही अंगड़ाई ले लेनी चाहिए। इससे एक आपका शरीर दोबारा उर्जावान हो जाता है और काम करने की क्षमता बढ़ जाती है। साइंस तो यहाँ तक कहती है कि अंगड़ाई लेने से हड्डियों में लचीलापन मेंटेन रहता है और कई रोगों से भी बचाव हो जाता है। 

डॉक्टर से याद आया कि मेरे मित्र हैं डॉ. आनंद पाण्डेय, जो कि जाने माने ओर्थपेडीक सर्जन हैं। डॉ. आनंद के एक मित्र हैं डॉ. मुदित खन्ना जो डॉ. आनंद से दो साल जूनियर भी रहे हैं। डॉ. आनंद ने बताया कि मुदित जो हैं वो पेशे से डॉक्टर नहीं हैं जबकि ओर्थो में पी . जी . किया है डॉ मुदित ने। यह  थोडा सा सरप्राईज़िंग था मेरे लिए। डॉ . मुदित जो हैं वो पेशे से लेखक हैं और मेडिकल सब्जेक्ट्स पर ही क़िताबें लिखते हैं और उन्हें सिर्फ किताब लिखने के सालाना पांच करोड़ रुपये रॉयल्टी मिलती है। डॉ मुदित गोवा में रहते हैं और वैसे भोपाल के रहने वाले हैं। डॉ मुदित ने शादी नहीं की है और गोवा में एक आलिशान बंगले में रहते हैं और बत्तीस कारों का काफिला रखा हुआ है। और गोवा के ही एक हॉस्पिटल से अटैच्ड हैं ... मूड होता है तो पेशेंट देखते हैं नहीं तो पूरा दिन गोवा क्लब में ही रहते हैं। डॉ . मुदित ने सिविल सर्विसेज की परीक्षा एक बार पास की और तीसरी रैंक पर रहते हुए भी ज्वाइन नहीं किया। कहते हैं कि कौन फंसे? डॉ मुदित बहुत ही जिंदादिल पर्सनालिटी के इंसान हैं जिनका ज़्यादातर समय बियर और खूबसूरत लड़कियों के साथ बीतता है। डॉ. मुदित ने पहली किताब मज़ाक मज़ाक में जब एम बी बी एस फाइनल इयर में थे तभी  लिख डाली थी और पहली ही किताब पॉपुलर हो गयी थी जिसका पहला चेक उन्हें पांच लाख का मिला था और अब बाकी सिर्फ बताने के लिए है. डॉ. मुदित से मैंने जब पूछा सफलता का राज़ तो सिर्फ एक कारण बताया उन्होंने अपार्ट फ्रॉम पेरेंट्स एंड गॉड'स ब्लेस्सिंग्स कि मस्त रहो, टेंशन फ्री रहो और जो मन कहे वही करो. डॉ. मुदित जैसी शख्सियत से मिलने के बाद एक अलग ही फीलिंग आती है और यह  भी फीलिंग आ सकती है कि यार हम शायद अपनी ज़िन्दगी वेस्ट कर रहे हैं. वैसे मैंने एक चीज़ सीखी कि ज़िन्दगी में क्वालिटी और क्वालिटी लोग बहुत मायने रखते हैं. 

(डॉ  . मुदित)

(डॉ आनंद)

क्वालिटी से फिर याद आया  …. बाय गॉड बता रहा हूँ कि आज याद बहुत कुछ आ रहा है. हाँ! तो मैं बता रहा था कि ज़िन्दगी में क्वालिटी बहुत मायने रखती है ख़ास कर लोग जो आपके आस-पास हैं उनकी क्वालिटी क्या है? अगर क्वालिटी लाइफ नहीं होगी तो तरक्की रुक जाती है और क्वालिटी पैसे के अलावा एटीट्युड से भी भी आती है. और अपने आस-पास हमेशा ऐसे लोग रखिये जिनसे कुछ सीखने को मिले और जो आपको हमेशा लर्निंग मोड में रखें। जो आपकी राह में बाधा बनें तो ऐसे लोगों से दूर हो जाना ही सही है. 
(अब ये मैं ही हूँ  … यूँ ही मॉल में आनंद के साथ पिक्चर देखने गया था रात में ग्यारह बजे)

मैं हर बार सोचता हूँ कि ब्लॉग रोज़ लिखूंगा… टाइम इसकी परमिशन नहीं देता और वैसा भी मैं रोज़ नहीं लिखता था और ना ही लिख पाउँगा  … भई! इतना फ़ालतू टाइम भी तो होना चाहिए और फिर उसके बाद लिखने के लिए टॉपिक। रोज़ाना ज़िन्दगी में ऐसे बहुत से वाकये होते हैं जिन्हें लिखा जा सकता है मगर उन्हें भी लिखने के लिए शब्दों को नींद से जगाना पड़ता है और शब्दों की नींद टूटती देरी से ही है. तो जब मूड करता है तभी ही लिखना हो पाता है. आह! बहुत हुआ…. अब चलता हूँ। 

चलते चलते एक मजेदार बात सिर्फ पुरुषों के लिए (वैसे यह मैं नहीं कह रहा… एक रिसर्च ने कहा है) वो यह कि भाई अगर आपने नेट से कोई गर्ल फ्रेंड या बीवी बनायीं है और वो आपको जानू, कुत्ता, जलनटू, शोना, बेबी, या फिर कोई और प्यार के संबोधन से पुकारती है तो आप सावधान हो जाइये  … आपके अलावा और भी लोगों को ऐसे संबोधनों से पुकारा जा रहा होगा  … तस्दीक करने के लिए आप अपनी उनसे पासवर्ड अचानक में मांग कर चेक कर लीजिये  …. हा हा हा  … आँखें खुल जायेंगीं। ख़ैर! चलिए यह तो मज़ाक की बात हो गयी  … अब आपको अपनी एक सीरियस कविता पढ़वाता हूँ जो कि रियलिस्टिक कविता है : --- तो लीजिये पेश-ऐ-नज़र है ----


### अखबारी कॉलम और कितना भूखा है ####


अखबारी कॉलम 
और विज्ञापन सूचना 
भार विहीन 
हल्की होती वेदना,
जितना तन रेतीला है 
मन उतना ही सूखा है ....
एक रोज़गार की प्रतीक्षा में 
बेरोज़गार दिन,
कितना भूखा है।। 

(c) महफूज़

कविता तो चलती रहती है और कविता लिखी भी तभी जा सकती है जब भावनाएं अपने चरम पर हों  …अंत में यही मायने रखता है कि हम खुश हैं ना और बाकी दुनिया जो समझे। 

एक फेवरेट विडियो के साथ पोस्ट ख़त्म करता हूँ :--      (कमेंट बॉक्स खोलने के  बारे में सोचूंगा  … सो नो रिक्वेस्ट प्लीज)

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