शनिवार, 1 अगस्त 2009

परी आसमान की..




जब दुनिया की बातों से मैं थक जाया करता था,



जब ज़िन्दगी से भाग कर छुप जाया करता था,



तब माँ ने ही सुलाया था,



अपने हाथों से सर को सहलाया था।





याद आते हैं मुझे हर वो पल



जो कभी गुज़ारे थे माँ के साथ



याद आते हैं हर वो शरारत



जो की थी कभी माँ से।





वो स्कूल से आना,



पर घर न जाना



और रस्ते में ही कुछ उल्टा सीधा खा लेना,



वो घर आकर फिर प्यारे से बहाने बनाना,



और वो मम्मी का गुस्से से आँखें दिखाना।





जब खेल कर आया करता था,



सर दर्द की शिकायत करता था,



तब माँ के हाथों से मालिश करा के



उसके हाथों की खुशबु को पा के



ज़िन्दगी को एहसास किया करता था।





वो जब बनाती थी आलू के परांठे,



और खिलातीं थी दाल और चावल,



तब मैं शक्ल बिगाडा करता था,



"क्या माँ! रोज़-रोज़ यही बनाती हो"



कहकर शिकायत किया करता था



आज तरसता हूँ उसी स्वाद को पाने



और



तड़पता हूँ उसी छाओं को पाने।





अब शायद बहुत देर हो गई है,



अब वो बहुत दूर हो गई है,



मुझे याद आती है वो उसकी सभी बातें,



मेरी माँ आसमाकी परी हो गई है॥







महफूज़ अली




(२६/नवम्बर/2006)

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