सोमवार, 9 जनवरी 2012

न्यू इयर रिज़ोल्यूशन का वादा और तुम्हारा अक्स... महफूज़


अपने न्यू इयर रिज़ोल्यूशन के मुताबिक़ फ़िर से हाज़िर हूँ. अब भाई लिखना तो है ही... लिखने से क्या होता है ना मन के अंदर का बहुत कुछ बाहर आ जाता है... नहीं तो अपने फीलिंग्स को या फ़िर विचार को सिर्फ एक बंद किताब में रखने से क्या फायदा.. हाँ? आजकल मैं ऋचा के द्वारा दी गई साइकोलॉजी की किताब (टी. मॉर्गन) पढने में लगा हुआ हूँ... (ऋचा द्विवेदी मेरी छोटी, लाडली बहन cum दोस्त है, और वर्ल्ड फेमस साइकोलॉजिस्ट है... पर ब्लॉगर नहीं है...ऋचा साइकोलॉजी समझाने के लिए थैंक्स... कभी कभी सोचता हूँ कि उपरवाला मेरे ऊपर कितना मेहरबान है... जो तुम मेरे हर अच्छे बुरे में साथ रही हो... अगर तुम नहीं होती ना... तो ज़िन्दगी इतनी आसान नहीं होती... एक तुम ही तो हो जो हर बार यही कहती हो... कि सर! मुझे मालूम है.. कि फ़िर से आप उठ खड़े होगे... चाहे वो कैसी भी सिचुएशन रही हो ... ज़िन्दगी के उथल पुथल, करियर का टेंशन या फ़िर रिश्तों की टूटन.... तुमने हमेशा मेरा साथ दिया... ) साइकोलॉजी पढने से एक बात तो है... आपको हर व्यक्ति एक सब्जेक्ट नज़र आएगा... और आपका मन उसी किताब के ऐकौर्डिंग उस व्यक्ति को स्टडी करने लगेगा.. अच्छा! रिश्तों की साइकोलॉजी को समझना भी एक कला है और यह कला हर कोई नहीं जानता .... अब रिश्तों की साइकोलॉजी को समझने में बहुत अच्छा लगता है... वो क्या है ना कि किसी भी रिश्ते को बनाये रखने के लिए हमें भी बहुत कुछ करना पड़ता है.... फ़िर चाहे वो कैसा भी रिश्ता हो... पर जो रिश्ता प्रेम ..मेरा मतलब लव का होता है ना... उसमें हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है... साइकोलॉजी  यह कहती है कि प्यार हमें विनम्र, सहनशील, भरोसा और हाई सेल्फ एस्टीम वाला बनाता  है... मैंने भी एक कविता लिखी है... है तो यह प्रेम कविता... और इस कविता में मैंने यही बताया है.. कि हमें प्यार के रिश्तों को सहेज कर ही रखना चाहिए... (अगर प्यार है तो)... हमें कभी भी प्यार को फिसलने नहीं  देना चाहिए... खोने नहीं देना चाहिए....
[पीछे वंदना गुप्ता जी.. ...]

[यह अपना स्टायल है... ऐज़ पर अजय झा..]

[यहाँ भी ...]



[और यह तो मत पूछो.... यह पल मेरी ज़िन्दगी का सबसे खुशगवार पल था... है न ममा..?]
बस! यह फ़ोटोज़ भी ना बिना मतलब में ठेली गयी हैं... 


तुम्हारा अक्स ! ! ! ! !  

अब तुम्हारा अक्स
हमेशा के लिए 
मेरे ज़ेहन में बस गया है.
जिसे मैंने 
शब्दों के एल्बम में 
सहेज कर रख लिया है .... 

उन दिनों के लिए 
जब एल्बम पर 
धूल जम जाएगी,
और
अलमारी में जाले
पड़ जायेंगे...
तब हमारे सम्बन्ध 
हथेलियों के बीच से
साबुन की तरह फ़िसल 
कर  गिर
नहीं 
पायेंगें... 

वैसे रिश्तों/प्रेम पर बात करते हुए मुझे शे'अर याद आ रहा है... किसने लिखा है याद नहीं है, इतना याद है कि दर्शन कौर धनोए जी के वॉल पर पढ़ा था... और बड़ा अच्छा लगा था...कुछ यूँ हैं...

"बुलंदी पर पहुंचाने के लिए दुआ किसके लिए मांगूं?
जिसे सर पर बैठाता हूँ वही सर काट देता है."

अब यह तो प्रैक्टिकल है कि जिसे भी जिस भी रिश्ते में हम सर बैठाते हैं वही सर काट देता है. 

एक और बहुत ही मज़ेदार बात रहा हूँ... चलते चलते... पोस्ट भी काफी लम्बी हो रही है अब...अपने एक बहुत ही हम सबके प्यारे ब्लॉगर हैं... जो फादर ऑफ़ कंप्यूटर/इन्टरनेट टेक्निकलीटीज़ हैं, जिनके  दाढ़ी भी है... पगड़ी  भी पहनते हैं. उन्हें एक बार रात के दो बजे किसी महिला या महिला ब्लॉगर का फ़ोन आया और वो महिला उन्हें गहरी नींद से जगा कर पूछती है कि "कतिपय" का मतलब क्या होता है? बेचारे रात के दो बजे उनकी क्या हालत हुई सोचिये... और उस महिला की हालात सोचिये कि कितना परेशान हुई होगी ऐसी हिंदी से... अब भई मैं तो कहता हूँ ही ऐसी हिंदी या अंग्रेज़ी नहीं लिखनी चाहिए कि सामने वाला पढ़ कर आत्महत्या कर ले... 

अब भाई पोस्ट ख़त्म करता हूँ... खामख्वाह (अंग्रेजी में वीली-निल्ली) झेला रहा हूँ... जाते जाते मेरा एक और फेवरिट गाना तो देखते जाइये.. वो मैं कहता हूँ न की गीत हमारी ज़िन्दगी के बहुत बड़े हिस्से होते हैं और हमारी बात कहने का माध्यम... तो भाई हम अपनी बात कहे देते हैं ... तो लीजिये...


{एक शिकायत सबकी यह दूर करना चाहूँगा... कि फिलहाल मैं जब तक के फुरसत में नहीं आ जाता ... कमेन्ट बॉक्स नहीं खुलेगा... भई.... प्लीज़ बियर विद मी...}
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