गुरुवार, 16 जुलाई 2009

भरोसा बुनियाद है ज़िन्दगी की !!!

मैं इबादत करता हूँ। नमाज़ (सलात्) पढता हूँ, हालांकि देखा जाए तो यह सब regularly करने का discipline मुझमें नही है। मेरी कोशिश रहती है की मैं रोज़ मस्जिद जाऊँ। यह मुझे एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत जैसा लगता है। मुझे अपने धर्म, इबादत के तौर-तरीके, और क़ुरान से लगाव है, मोहब्बत है। वैसे मैं बहुत ज़्यादा religious होने का दिखावा नहीं करता, बावजूद इसके मेरे ख़ुदा पे मेरा भरोसा ही मेरा बेसिक सिद्धांत रहा है। मैं अपने ज़िन्दगी में काफ़ी doubtful situations से गुज़रा हूँ, कभी भी कुछ भी otherwise नही होता। ऐसा ही मेरा मानना है। मैं हमेशा अब इस्लाम और अपने ख़ुदा के बारे में सोचता हूँ। कई बार मैंने यह महसूस किया है की मेरी ज़िन्दगी ज़्यादा अच्छी और decisive होती, अगर मैंने इस्लाम और ख़ुदा पे अपना ईमान कायम रखता। मुझे अपना पेशा खोजने में भी इतना वक्त नही लगता, मैं यूनिवर्सिटी में भी इतना गैर-ज़िम्मेदार नही होता या रहता।


मैंने ज़्यादा सीधी-सादी और आसान ज़िन्दगी बिताई होती। मैंने भरोसे के लिए struggle किया है और अपने धर्म को समझने के लिए ख़ुद से जूझता रहा हूँ । मेरी आस्था ने develop होने में वक्त लिया है। पर मैं इसे एक ताक़त और एनर्जी के रूप में देखता हूँ। वाकई में कोई न कोई ताक़त है जो की दुनिया को चला रही है जैसे हमें अलग अलग रास्तों पे चल के मंजिल नहीं मिल सकती, उसी तरह हमें ख़ुदा को पाने के लिए भी एक ही रस्ते पर चलना होता है, अलग अलग रूपों में और अलग अलग रास्तों पे चल कर हम ख़ुदा को नहीं पा सकते और मेरे इसलाम ने मुझे यही सिखाया है हम तो उस ख़ुदा की बहुत बड़ी सत्ता का एक छोटा सा हिस्सा हैं हरेक को अपना-अपना रोल प्ले करना होता है, इसलिए हमारी ज़िन्दगी का आखिरी purpose यही है की जो कुछ हमें मिला है, उसमें और अपनी wishes के बीच में balance करना व भाग्यवाद के शिकंजे और अहम् से दूर रहना


हम पर हमेशा कुछ हासिल करने का दबाव होता है, इसलिए हम अपनी OPEN WISHES (मुक्त इच्छाओं) का इस्तेमाल करते हैं , लेकिन हमें यह भी देखना चाहिए की हम किस दिशा में और कैसे आगे बढ़ रहे हैं मेरा मानना है की ज़िन्दगी में सबसे बड़ी लड़ाई हमारी मुक्त इच्छाओं (OPEN WISHES) के बीच संतुलन को पाना है, जो अहम् और किस्मत को represent करती है हमें अहम् की ज़रुरत होती है क्यूंकि इसके बिना हम कुछ भी नहीं हैं, लेकिन इस बात के भी chances बन जाते हैं की हम अपने अहम् से ही govern होने लगें


उदाहरण के तौर पे हम intelligent हो सकते हैं, इसमें proud करने जैसा कुछ भी नही है, यह हमारा करम या किस्मत कह सकते हैं। हाँ! अगर कोई हमारे बारे में कुछ अच्छा कहता है या फिर झूठी तारीफ़ करता है तो यहाँ अहम् के भटकने का खतरा है, जिसकी वजह से हम अपने बारे में ऊंचा सोच सकते हैं और यही संतुलन की situation है।

अहम् को control में रखना और उस संतुलन को पाना ऐसा जद्दोजहद है, जिसका सामना मुझे रोज़ करना पड़ता है और यही सामना करना मेरा इसलाम मुझे सिखाता है और मैं इसे मानता हूँ मैं अपने कुछ पिछले सालों की और देखता हूँ तो सोचता हूँ की अपने ईमान से हटने की वजह से मैंने न जाने कितनी गलतियाँ की हैं मैं शुक्रगुज़ार हूँ अपने इसलाम का , अपने ख़ुदा का, जिसने मुझे सही वक़्त रहते मुझे भटकने से बचा लिया इसलिए अब ज्यादा confidence के साथ रहता हूँ मैं सोचता हूँ, इसलाम की वजह से मैं अब अपने काम और ज़िन्दगी में ज्यादा सहनशील और व्यवस्थित हुआ

महफूज़ अली

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