सोमवार, 31 मई 2010

शेक्सपियर ग़लत था.... नाम में बहुत कुछ रखा है.... : महफूज़

दुनिया में इन्सान जब जन्म लेता है, तब वह अपने साथ कोई नाम नहीं लाता. हाँ! फ़ौरी तौर पर उसका नामकरण कर दिया जाता है. जैसे:- पप्पू, बिल्लू, पिंकी, चिंटू, बाबू.. आदि और भी बहुत से नाम. नाम तो पैदा होने के कुछ दिनों पर रखा जाता है, जिसे  हम बाकायदा नामकरण संस्कार कहते हैं, ताकि परिवार, समाज, गाँव, राष्ट्र और दुनिया में लोग उसे उस नाम से पहचानें और पुकारें, और यह परंपरा हर जगह, हर समाज में प्रचलित है. सामाजिक सरोकार में भी उस नाम से ही व्यवहार किया जाता है. सृष्टि के प्रारम्भ से ही हमारी धार्मिक क़िताबों से वस्तुओं के और पदार्थों के नाम पाए गए हैं और माता-पिता, भाई-बहन आदि सम्बन्धवाचक संज्ञाएँ भी हमारी धार्मिक क़िताबों से ही पायी गयीं हैं. इन्ही धार्मिक क़िताबों से इंसानों ने अपनी संतानों के लिए नाम रखना शुरू किया.  इस तरह देखा जाए तो नामकरण एक बहुत ही महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है. 


अगर सोचा जाए कि कोई नाम ही नहीं होता तो क्या होता? पेड़....पेड़ नहीं होता तो क्या होता? आम...आम नहीं होता तो क्या होता? मैं...महफूज़ नहीं होता तो क्या होता? समीरलाल जी...समीरलाल नहीं होते तो क्या होते? शिखा ....शिखा नहीं होती तो क्या होतीं? तो कहने का मतलब यह है कि अगर नाम नहीं होता, तो संसार का व्यवहार पल भर भी नहीं चल पाता, इसलिए नाम का बड़ा महत्त्व है और नाम से ही सहजता प्राप्त होतीं हैं. 

नाम कई प्रकार से हो सकते हैं. कुछ गुण के अनुसार, कुछ कर्म के अनुसार, स्वभाव के अनुसार, सम्बन्ध के अनुसार और व्यवहार के अनुसार भी देखने में आते हैं. एक इंसान के कई नाम हो सकते हैं, लेकिन मुख्य नाम एक ही होता है. जैसे मेरा प्यार से पुकारा जाने वाला नाम "पप्पू" है (ही ही ही ...), मेरे घर में, नाते-रिश्तेदार सब पप्पू बुलाते है, लेकिन मुख्य नाम महफूज़ है. वैसे, नाम कैसा रखना चाहिए इसका भी मार्गदर्शन, धर्मानुसार, संस्कृति व् संस्कार में पाया जाता है. और यह भी कहा जाता है कि नाम का असर हमारे पूरे व्यक्तित्व पर भी पड़ता है. अब कोई इंसान बुधवार को पैदा हुआ तो घर वालों ने उसका नाम प्यार से बुद्धू रख दिया, तो वो इंसान अपने नाम के ऐकौर्डिंग ही बिहेव करेगा... वो वाकई में बुद्धू होगा. ऐसे ही अगर देखें तो मोनिका, अंजलि, रश्मि, टीना, रीटा, फ़िज़ां, और पारुल नाम की लडकियां हमेशा सुंदर ही मिलेंगीं क्यूंकि इन नामों का मतलब ही सुंदर होता है. इसलिए नाम ऐसा होना चाहिए जो पूरे व्यक्तित्व को सार्थक बनाए और हमेशा उस नाम से ज़िंदगी   में प्रेरणा  मिलती रहे. बहुत पहले की बात है... मैं उस वक़्त नाइंथ क्लास में पढता था... मेरे साथ एक लड़का पढता था... उसका नाम छेदी लाल था... अब जैसा उसका नाम, वैसे ही उसका रूप और व्यवहार. उसे कोई भी स्टूडेंट अपने साथ नहीं रखना चाहता था, सिर्फ उसके नाम की वजह से.... वो पढने में भी छेदी टाईप का था... और उसको भी शर्म आती थी....उसे कोई अपने साथ बैठाना भी नहीं चाहता था.... उसे मैं अपने साथ बैठाने लगा... सिर्फ यह दिखाने के लिए... कि ... मेरे जैसे स्मार्ट को यह सब चीज़ें परेशान नहीं करतीं.... अब जब भी कोई नया टीचर आता.. वो खड़ा कर के सबका इंट्रो लेता तो उसके बाद मेरा ही नंबर आता .... अब उसका नाम छेदी लाल... अब इससे पहले कि मैं अपना नाम टीचर को बताता ...सारी क्लास पहले ही बोल  देती एक स्वर में..... कि सर...इसका नाम सुराख अली है.... अब छेदी लाल और सुराख अली का कॉम्बिनेशन भी देखिये.... एकदम ट्विन सिटी की तरह.... हैदराबाद और सिकंदराबाद ...की तरह...   अब धीरे धीरे मुझे भी वो प्रॉब्लम देने लगा.... तो मैं भी धीरे से अलग हो गया.... तो नाम का बहुत असर होता है. अगर नाम का असर नहीं होता... तो थ्री इडियट्स में करीना कपूर ...बेचारे आमिर खान का दोनों बार नाम सुनकर "यक" नहीं कहती और यह भी नहीं कहती कि मैं शादी के बाद अपना सरनेम नहीं चेंज करुँगी. .... 

इंसानों और इश्वर के नामों में बहुत अंतर देखने में आता है. इंसानी नाम सार्थक, यथार्थ और वास्तविक नहीं होते, लेकिन अगर देखें तो ईश्वर (ख़ुदा) के सारे नाम सार्थक हैं. जैसे किसी एक मनुष्य का नाम अमरसिंह है. लेकिन, नाम अमर होने से क्या वह मरेगा नहीं? मरना तो उसे है ही, इसका मतलब है कि उसका नाम सार्थक ना रहा. अगर किसी का नाम अन्नपूर्णा है और वो भीख मांगती है, तब क्या उसका नाम सार्थक हुआ? 

इसलिए नाम का बहुत महत्त्व है, नाम हमारे व्यक्तित्व को सार्थक बनाते हैं. अगर हम ग़ुलाब को ग़ुलाब ना कहें तो क्या उसकी ख़ुशबू कम हो जाएगी? नहीं..... लेकिन नाम तो ग़ुलाब ही रहेगा न, जुलाब तो नहीं होगा ना? इसलिए शेक्सपियर ग़लत था. यह कह देने भर से कि नाम में क्या रखा है? काम नहीं चलेगा. नाम में तो बहुत कुछ रखा है. नाम हमें सार्थकता व् सम्पूर्णता प्रदान करते है, नाम तो अव्यय, अविनाशी और ईश्वर जैसा है.
==================================
साहित्य जगत व ब्लॉग जगत के तमाम मित्रों को यह बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी हिंदी कविता "बचपन" अंतर्राष्ट्रीय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका "पुरवाई' जो कि लन्दन से प्रकाशित होती है, में प्रकाशित हुई है. कविता की  स्कैन कॉपी अवलोकन के लिए प्रस्तुत है.



Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

My page Visitors

A visitor from Singapore viewed 'भगवान् राम' 3 days 21 hrs ago
A visitor from Paris viewed 'लेखनी...' 4 days 9 hrs ago
A visitor from Boardman viewed 'लेखनी...' 5 days 6 hrs ago
A visitor from Clonee viewed 'हॉर्न ओके प्लीज (Horn OK Please): Mahfoo' 6 days 21 hrs ago
A visitor from Delhi viewed 'लेखनी...' 19 days 11 hrs ago
A visitor from Indiana viewed 'लेखनी...' 28 days 21 hrs ago
A visitor from Suffern viewed 'लेखनी...' 29 days 6 hrs ago
A visitor from Columbus viewed 'लेखनी...' 1 month 1 day ago