जब दुनिया की बातों से मैं थक जाया करता था,
जब ज़िन्दगी से भाग कर छुप जाया करता था,
तब माँ ने ही सुलाया था,
अपने हाथों से सर को सहलाया था।
याद आते हैं मुझे हर वो पल
जो कभी गुज़ारे थे माँ के साथ
याद आते हैं हर वो शरारत
जो की थी कभी माँ से।
वो स्कूल से आना,
पर घर न जाना
और रस्ते में ही कुछ उल्टा सीधा खा लेना,
वो घर आकर फिर प्यारे से बहाने बनाना,
और वो मम्मी का गुस्से से आँखें दिखाना।
जब खेल कर आया करता था,
सर दर्द की शिकायत करता था,
तब माँ के हाथों से मालिश करा के
उसके हाथों की खुशबु को पा के
ज़िन्दगी को एहसास किया करता था।
वो जब बनाती थी आलू के परांठे,
और खिलातीं थी दाल और चावल,
तब मैं शक्ल बिगाडा करता था,
"क्या माँ! रोज़-रोज़ यही बनाती हो"
कहकर शिकायत किया करता था
आज तरसता हूँ उसी स्वाद को पाने
और
तड़पता हूँ उसी छाओं को पाने।
अब शायद बहुत देर हो गई है,
अब वो बहुत दूर हो गई है,
मुझे याद आती है वो उसकी सभी बातें,
मेरी माँ आसमान की परी हो गई है॥
महफूज़ अली
(२६/नवम्बर/2006)
15 टिप्पणियाँ:
आसमान की कथा कहानियो जैसा ही लगता है.....माँ का प्यार आपने बहुत ही सुन्दर रचना को पढाया .....बहुत बहुत शुक्रिया
pari aasmaan ki badhiya rachna
माँ का बखान जितना भी किया जाये कम ही है, पर उसकी उपयोगिता की ज्यादा समझ देर ही में क्यों आती है, और तब पछताने के सिवाय और कुछ बचता भी तो नहीं................
सुन्दर रचना प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
बहुत सुन्दर रचना, वन्दे मातरम!
बहुत भावुक प्रस्तुति!
भावुक कर देने वाली रचना
मेरी माँ आसमान की परी हो गई है...aapse door kaha hai woh aapki kavitao me,aapke dil me,aapki bato me ab bhi aapke pass hai..door nahi hai aapki ma.....
याद आते हैं मुझे हर वो पल
जो कभी गुज़ारे थे माँ के साथ
याद आते हैं हर वो शरारत
जो की थी कभी माँ से।
बहोत भावुक रचना। दिल को छू गइ।
कोई लौटा दे हमें बीते वो दिन....बहुत ही निश्छल ख्याल
sunder bhavuk kavita badhai
komal ahsas se bhari ma bete ki emotional rachna......
माँ की ममता से भरी सुंदर कविता ....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये सुंदर रचना मुझे बेहद पसंद आया!
wow!very nice poem. still you in rememberance.
very good.
maa ke baare me kuch bhi likha jaaye wo kam hota hai ... khuda ka dusra roop maa hi to hai na ...
badhai
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