गुरुवार, 2 सितंबर 2010

दो बड़े अजीब इंसिडेंट के साथ...... अजनबी मेरे शब्दों से खेल गया....: महफूज़

दो  बड़े ही अजीब इंसिडेंट हुए मेरे साथ....अभी कुछ दिन पहले की ही बात है.....  पहले इंसिडेंट में हुआ यह कि मैं टी. वी. देख रहा था शाम की चाय के साथ... तो सोचा कि चैनल चेंज कर लूं... तो रिमोट उठा कर चैनल चेंज करने लगा... तो चैनल चेंज ही नहीं हुआ... बहुत कोशिश की ... रिमोट के बटन को खूब जोर से भी दबाया... लेकिन चैनल चेंज नहीं हुआ... बहुत जोर से गुस्सा आया... तो रिमोट उठा कर दीवार पर दे मारा... रिमोट टूट फूट कर बिखर गया... जब ज़मीन पर देखा तो वो मेरा रिमोट ना हो कर ....मेरा मोबाइल था... बेचारे के अस्थि-पिंजर अलग हो चुके थे... वो तो अच्छा  हुआ कि सस्ता मोबाइल था... . नहीं तो कहीं मेरा सैमसंग कॉरबी  प्रो होता तो हार्ट अटैक ही हो जाता... अच्छा मुझे गुस्सा भी कई बार बिना मतलब के आता है... जब आता है तो घर के कई सामान टूट फूट जाते हैं.... मेरे फादर मुझे बहुत एरोगेंट समझते थे... मेरे फादर मुझे कहते थे कि मैं अपने आप को अमिताभ बच्चन समझता हूँ... जबकि मैं सही बता रहा हूँ कि मुझे फिल्म स्टार्ज़ से कम्पैरीज़न बिल्कुल भी पसंद नहीं है... ऐसा नहीं लगता है कि बहुत लम्बा हो जायेगा ...यह सेल्फ-ऐप्रेसियेशन ...? (मैं बहुत आत्म-मुग्ध किस्म का इंसान हूँ) .... अब दूसरे  इंसिडेंट पर आता हूँ...

दूसरा इंसिडेंट हुआ यह कि पिछली पोस्ट लिखी थी एक्सिस बैंक के बारे में... तो एक्सिस बैंक में मोनिका नाम कि लड़की है... मुझे उसे अपनी कुछ डिटेल्ज़ मेल करनी थी... वो मैंने उसे कर दी... लेकिन हुआ क्या कि मैंने अपने जीमेल में सिग्नेचर में अपने ब्लॉग का लिंक दिया हुआ है... वो लिंक भी उसके पास चला गया...  मैं एक्सिस बैंक  मोनिका के चैंबर में पहुंचा दूसरे दिन ... तो मोनिका ने बहुत प्यार से मेरी धोयी ... वो भी बिना पानी के... उसने मेरा पहले बैंक का काम किया... फिर मुझसे मेरी हौबीज़ के बारे में बात करने लगी... मैंने बताया कि रीडिंग, राईटिंग और ट्रैवलिंग मेरी हौबी है... फिर उसने मुझसे लिट्रेचर पर भी बहुत सारी बातें की... डैन ब्राउन से लेकर ... प्रेमचंद, प्रेमचंद से लेकर मिल्टन जॉन, मिल्टन जॉन से गोर्की.. और भी बहुत सारी बातें... उसने सब्जेक्ट्स पर भी बातें की.. मैं बहुत इम्प्रेस्ड हुआ... और जब चलने को हुआ तो कहती है कि आपका ब्लॉग पढ़ा था... मेरा हाल ऐसा हुआ कि एयर-कंडीशंड कमरे में भी कान के पीछे से शर्म के मारे पसीना चू गया...   मैं वापस बैठ गया... और आधे घंटे तक उसे दुनिया भर के एक्स्प्लैनैशन देता रहा ... मेरे यह समझ में आ गया.. कि कभी भी किसी लड़की को अंडर-एसटीमेट नहीं करना चाहिए...  साला! यह सुपीरियरटी  कॉम्प्लेक्स  भी ना ... जो ना करा दे...  मोनिका समझ गयी कि मैं अब अनिज़ी फील कर रहा हूँ...  मैं वही सोचा कि बहुत बुरे तरह से मोनिका ने धो दी... लेकिन शाम में मोनिका का फ़ोन आया... हंस रही थी... .......उसने बहुत अच्छे से काम-डाउन किया... मैं जब बैंक से बाहर आया था... तो यह इंसिडेंट सबसे पहले अजित गुप्ता ममा को फ़ोन कर के बताया... ममा भी बहुत हंस रही थीं... 

अब फिर से थोडा खुद को सीरियस कर लूं... एक कविता लिखी है... मुझे पसंद आई है लिखने के बाद.... यह कविता भी स्व. सुभाष दशोत्तर जी को पढने के बाद ही लिखी है... सोच रहा हूँ... कि स्व.सुभाष दशोत्तर जी के जीवन और रचनाओं पर एक ब्लॉग बनाऊं ....ख़ैर! ख़ुद को वर्चुयल दुनिया में सीरियस  करना भी एक आर्ट है...  क्या वर्चुयल और क्या अन्वर्चुअल .... मेरे लिए तो सब बराबर है... तो पेश है कविता...

अजनबी ने मेरे शब्दों से खेल लिया...

एक अजनबी मेरे शब्द 
अपने साथ चुरा ले गया,
उसने उन्हें अपने
अनुसार ढाल कर
मेरे नाम से कसबे में बिखेर दिया....
और मैं
गालियों की बौछार झेलता हुआ
उस घटना से  अपरिचित हूँ 
क्यूंकि मैं 
दो असम्बद्ध वाक्यों में 
कॉमा का प्रयोग 
नहीं कर पाता हूँ. 

पोस्ट ख़त्म करने से पहले एक बात और याद आ  गयी... मेरी एक फ्रेंड थी..  वो मुझे समझाती थी... कि महफूज़ ...कभी भी किसी दोस्त को अपना नौकर मत बनाना और कभी अपने नौकर को अपना दोस्त मत बनाना... असफल लोगों से दूर रहना... अनपढ़, सेमी-लिटरेट (यह वो लोग होते हैं जिनके पास डिग्रियां तो होतीं हैं लेकिन नॉलेज नहीं) और नासमझ लोगों से बहस मत करना... और अपने विरोधियों को कभी कोई जवाब मत देना... और कमाल की बात यह है कि मैं .... यहीं  फेल हो गया... ही ही ही ही ... आज की पोस्ट श्री. राजेंद्र स्वर्णकार जी को समर्पित है.   

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

My page Visitors

A visitor from Ilam viewed 'लेखनी...' 26 days 6 hrs ago
A visitor from Columbus viewed 'लेखनी...' 1 month 9 days ago
A visitor from Columbus viewed 'लेखनी...' 1 month 13 days ago