शनिवार, 3 अगस्त 2013

सुबह की अज़ान, आरती का स्वर , धर्म और रोटी : महफूज़



हर बार 
सुबह की अज़ान 
आरती का स्वर 
हमसे 
रूठ जाता है।

सुबह की अज़ान में 
गीता के छंद 
भर दो 

मंदिर के आलोक में
क़ुरान के हर्फ़ पर
धर्म और रोटी
का व्यवहार
धरती पर आम कर दो --- 


(c) महफूज़


गुरुवार, 1 अगस्त 2013

एक कविता :-- ##### दरारों में शोर #####


आनंद, अँधेरे के रेशों में गुंथा हुआ 
एक सुकून है। 
शब्द, के भीतर अँधेरा बढ़ता 
जाता है और 
आनंद पर्त दर पर्त 
खुलता जाता है।
यही वो क्षण है जो 
व्यतीत नहीं होता 
वहीँ ठहरा रहता है,
इसीलिए यह एहसास नहीं है ---
आदमी आता है और बीत जाता है।
आसपास फैले हुए शोर के बीच 
एक नन्हा एकांत है जो 
शोर की दरारों में भर जाता है 
और आदमी को आदमी कर जाता है।।

(c) महफूज़ 
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