बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

धर्म-निरपेक्ष और युवा भारत ही देश और समय की ज़रूरत है : महफूज़

किसी भी देश के नागरिकों की बुनियादी ज़रूरत क्या हो सकती है? रोटी, कपडा और मकान के बाद सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक सुरक्षा व पारस्परिक भागीदारिता किसी भी नागरिक का मूल अधिकार है। किसी भी एक के डांवाडोल स्थिति में आने पर अराजकता पैदा हो सकती है और देश में एक अशांति व्याप्त हो सकती है। यह देश के शासकों पर निर्भर करता है कि अपने हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा किस प्रकार करते हैं? अनेकता में एकता हमारे देश की पहचान रही है। इतनी विविधताओं के बाद भी हमने एक देश का नारा बुलंद किया है।  फिर भी आज देश में एक छिपी हुई अराजकता व्याप्त है, लोग अभी भी धर्म, जाति और क्षेत्रवाद में बंटे हुए हैं और चंद लोग इसे बढ़ावा दे कर गोरिल्ला युद्ध की तरफ देश को अग्रसित करने की कोशिश कर रहे हैं। 

धर्म-निरपेक्षता की व्याख्या को अब कुछ लोग अलग मायने देने लगे हैं।  देश के राजनेता अब धर्म-निरपेक्षता शब्द पर लोगों को बांटने पर लगे हैं।  अब धर्म-निरपेक्ष शब्द से लोगों को आपस में लड़वाने की कोशिश हो रही है।  एक वर्ग को दूसरे वर्ग से इसी शब्द के आधार पर भड़काया जा रहा है और हम सिर्फ मूक दर्शक बने हालात को देख रहे हैं।  देश में आज हर वर्ग अपने आप में असंतुष्ट है किसी को हिन्दू से समस्या है तो किसी को मुसलमान से तो किसी को किसी जाति से।  हर वर्ग एक दूसरे को संशय की दृष्टि से देख रहा है मगर मिलकर साथ चलने की नहीं सोच रहा है।  आज देश में सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा देने की बात कोई भी राजनीतिक दल नहीं करता है हर दल और उसके नेता आपस में लोगों को द्वेष और नफरत की ओर धकेलने में लगे हुए हैं। यह देश धर्म-निरपेक्ष हो कर ही तरक्की कर सकता है किसी भी एक वर्ग को नज़रअंदाज़ करके हम देश में  अराजकता की स्तिथि ही पैदा करेंगे। 

देश के नेताओं को भी समझना होगा कि यह समय राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि का नहीं है और देश की एकता को खंडित होने से बचाने की ज़रूरत है।  देश के नागरिकों को भी यह समझना होगा कि पहले हम भारतीय हैं और उसके बाद धर्म पालनकर्ता। आज देश में जिस तरह हिन्दू मुसलमान से और मुसलमान हिन्दू से अलग थलग है उसके लिए हिन्दू-मुसलमान नहीं इस देश के चंद राजनेता हैं जो एक दूसरे के बीच नासमझी की खाई पैदा किये हुए हैं और दोनों धर्मों के कुछ जाहिल अपने अपने स्वार्थ के लिए इस खाई को और चौड़ा कर रहे हैं। आज देश के हिन्दू-मुसलमान में आपस में एक दूसरे से कटे हुए हैं , यह आपस में एक "पारस्परिक बातचीत" से ही एक दूसरे को समझ सकते हैं और आपस की गलतफहमियों को दूर कर सकते हैं। 

आज देश का युवा वर्ग भी आपस में एक दूसरे से धार्मिक और आर्थिक आधार पर भ्रमित है। नवयुवाओं का दिमाग उपजाऊ ज़मीन की तरह होता है, अगर उन्नत विचारों के बीज बो दें तो वही उगेंगे।  आज का युवा भ्रमित है, दिशाहीन हैं उन्हें जो जैसा समझा देता है उसे ही सच मान बैठते हैं और आगे चल कर खुद को ठगा महसूस करते हैं। आज युवा पीढ़ी के दिल-दिमाग में अच्छे बीजों का रोपण करने वाले घटते जा रहे हैं।  कला, साहित्य, और विज्ञान में रोज़ नई प्रतिभाएं उभरतीं हैं परन्तु सही दिशा व मौका न मिलने से भीड़ का हिस्सा बन कर रह जाती हैं।  सवाल यह भी उठता है कि क्या हम और हमारा देश युवाओं को उभरने का मौका देता है? आज देश और देश के राजनेताओं को यही साबित करना है कि युवाओं का जोश और प्रतिभा बेकार ना जाने पाये और देश के युवाओं को जाति-धर्म से ऊपर उठायें। 

सूचना और संचार तकनीक ने युवाओं में बड़े पैमाने पर नकारात्मक बदलावों को विकसित किया है। ज़्यादातर युवा पहले खुद के बारे में सोचता है, और देश समाज के बारे में बाद में। इस लिहाज़ से ऐसे समाज और विज्ञान की ज़रूरत है जो युवाओं को राष्ट्रनिष्ठ बना सके, युवाओं को एक ऐसे ढाँचे में ढालने और गढ़ने की ज़रूरत है जो उन्हें सक्षम, कुशल, और योग्य बना सके। युवाओं के लिए वर्ष 2014 बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। आने वाले लोकसभा चुनाव के परिणाम नए  भारत के निर्माण के लिए निर्णायक होंगे।  सशक्त, स्वावलम्बी, और सक्षम भारत के लिए  साहसी और पराक्रमी नेतृत्व की ज़रूरत है। भारतीय राजनीति, अर्थनीति, और समाजनीति में सशक्तिकरण होना एक मांग है और इस मांग को सिर्फ भारत का युवा ही पूरा कर सकता है, तभी सबल, सक्षम और समर्थ भारत का निर्माण हो सकता है। 

देश की अखंडता को बरकरार रखने के लिए "सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा" को सार्थक करने की ज़रूरत है ना कि सिर्फ यह कविता में ही रह जाये।  हम ऐसा प्रयास करें की हमारी धार्मिक एकता बनी रहे और फिर से विश्व पटल पर उस फलक तक पहुंचे जहाँ भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था और यह तभी सम्भव है जब हम सब भारतीय मिलजुल कर एकजुट होकर साथ होंगे। 
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