बुधवार, 25 नवंबर 2009

मेरी जंग: वक़्त का सबसे बड़ा झूठ...




जब मैं खोया हुआ रहता हूँ,
एकटक छत को घूरता रहता हूँ
अपने आसपास से अनजान
और काटता रहता हूँ
दांतों से नाखून.

नहीं सुनाई देती है
कोई भी आवाज़
कोई मुझे थक हारकर
झिंझोड़ता है और पूछता है
क्यूँ क्या हुआ?

मेरे मुहँ से अचानक निकलता है
नहीं......!!!! कुछ भी तो नहीं...
यह उस वक़्त का सबसे बड़ा झूठ होता है
वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....

84 टिप्पणियाँ:

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

बहुत ही सहज और खूबसूरत अंदाज़े बयान है तन्हाई को ज़ब्त करने का...
और एक बात इस ज़द्दो-जहद से तो हम सभी गुजरते हैं....
आपकी कविताओं कि सबसे बड़ी खासियत एक बार फिर बता दूँ.....हम सभी खुद को जुड़े हुए पाते हैं...
बहुत सुन्दर लगी आपकी रचना...
बधाई....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

खूबसूरत रचना के लिए,
प्यारी सी बधाई!

डॉ टी एस दराल ने कहा…

खुद से लड़े जानी वाली जंग ज़्यादा मुश्किल होती है.
आप जल्दी ही ये जंग जीत लें, यही कामना है.
बढ़िया रचना है भाई.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
"आज हर व्यक्ति के अंदर कुरुक्षेत्र का मैदान सजा हुआ है स्वयं से जंग इसी तरह लड़ी जाती है"
सुंदर रचना-आभार

सागर ने कहा…

अंत की उम्मीद ऐसी नहीं थी... कविता और सही जा सकती थी.. मैं तो कहूँगा इसे एडिट की जरुरत है यही से तो इसे बढ़ना चाहिए जहाँ ख़तम हो रही है.. .

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति .. सचमुच ये झूठ सभी बोलते हैं .. पर आप जंग जीत लेंगे .. हमारी शुभकामनाएं साथ रहेंगी !!

M VERMA ने कहा…

वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....
खुद न शामिल होते हुए भी जंग लडने की यह अदा बहुत सुन्दर है
वाकई तन्हाई मे हम खुद से भी तो एक जंग लडते है.

शरद कोकास ने कहा…

ठीक है आत्माभिव्यक्ति की कला अब परवान चढ रही है । इस अहसास को सामाजिकता के साथ और जोड़न ज़रूरी है तब यह मुकम्मल होगा ।

ρяєєтii ने कहा…

सबसे पहले दांतों से नाख़ून काटना बंध करो ..( मुझे भी किसी ख़ास ने यह कहा था, so I stoped it[:)])...वक़्त की लड़ाई और अंतर्मन्न की आवाज़ कभी झूठ नहीं, उससे हरेक झुझता है, यही सत्य है ....!
Take Care Bro...

shikha varshney ने कहा…

हम सब के अन्दर एक जंग का मैदान होता है और ये जंग हम सभी लड़ते हैं. अपने अंतर्मन के द्वन्द को अच्छी तरह व्यक्त किया है आपने....आप अपनी जंग जल्दी ही जीत जाएँ यही कामना है.वेसे मैं भी सागर साहेब से सहमत हूँ..वाकई जहाँ अंत हुआ वहां से कुछ और बढ़ना चाहिए था.

निर्मला कपिला ने कहा…

वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....
rरचना बहुत ही अच्छी है मगर मुझे अपने बेटों की कलम से उदासी भरी रचना अच्छी नहीं लगती। खुश रहा करो दुख सब की ज़िन्दगी मे आते रहते हैं तुम तो बहुत बहदुर हो फिर ऐसी उदासी भरी रचनायें क्यों? वैसे लिखते बहुत खूब हो बहुत बहुत आशीर्वाद आशा है अब सेहत भी ठीक होगी

Mithilesh dubey ने कहा…

वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से

क्या बात है महफूज भाई , बड़ी ही खूबसूरती से आप ने वह हालत बयाँ की है जिसे हम सब भी सोचते है । हम भी ऐसे वक्त से कभी-कभी गूजरते हैं , लेकिन अफसोस हम उस समय को आप जैसा सुन्दर एहसास नही दे पाते , और नहीं ही उसे शब्दो में पिरो ही पाते है । लाजवाब रचना

अबयज़ ख़ान ने कहा…

तन्हाई को इससे खूबसूरत तरीके से बयान नहीं किया जा सकता..

बेनामी ने कहा…

ek bahut acchi poem....dua karte hai aapki jung jald hi khatam ho jaye...

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत खुबसुरत रचना, अब मियां जल्दी से हाथ पीले कर लो, फ़िर आप की कवितओ मै ऎसी उदासी नही आयेगी

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से

कभी तनहाई में ऐसी हालत पाई जाती है....:)

Arvind Mishra ने कहा…

अरे यह कैसी जंग है-एकतरफा सी !

मनोज कुमार ने कहा…

रचना बहुत अच्छी लगी।

kshama ने कहा…

Kya andaze bayan hai...aisa laga jaise mere moohse alfaaz chhin gaye ho!aapki ye tanhaayee jaldhee door hogee...

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

सच्चाई यही है भाई की हम सब अपने अंदर एक बड़ा विशाल सपनों का संसार लिए फिरते है जिसके साकार होने की खुशी और टूटने का भय भी हमारे जेहन में आता जाता रहता हैपर हम दूसरों से उसे छुपाना चाहते हैं..

महफूज़ भाई बहुत बढ़िया आगी आपकी यह मनोभाव..

अर्कजेश ने कहा…

शुरुआत बढिया की है, लेकिन ऐसा लगा जैसा कविता अचानक खत्‍म कर दी गई हो । किस तरह की जंग चलती रहती है आदमी के अंदर इसे थोडा खोलकर लिखते तो और अच्‍छी बन पडती ।

बेनामी ने कहा…

खुदी से जंग ,खुदी से सवाल और
खुद hi को जवाब
हर नाजुक,शायराना मिजाज इन्सान के साथ ऐसा hi होता है
चेहरे पे ये उजाला तेरे इश्क का है
उदासी कुछ कुछ झाँकती सी है क्यों
तेरी झुकी पलकों से ,कोई देखे
इनमे भी असर उसके इश्क का है
इश्क क्या किया ,इश्क का पैगम्बर हो गया
अमृता का hi नही, इश्क वालों का तु खुदा हो गया
हैं ,
अपने को hi समझाने के लिए झूठ भी,खुद hi से
थोडा और खुलते ,लगा जैसे इज़हारे जज्बात मे भी कंजूसी कर दी
क्या यहाँ भी ......युद्ध ...अपने जज्बात ओ ख़यालों से
mamma

सहसपुरिया ने कहा…

अरे किया है यह? ना सिर ना पेर , अरे यार कुछ तो वज़न का ख़याल रखो, या फिर इंग्लीश मैं ही लिखते रहो, अब यह जो वाहवाह कर रहें है, बेचारे खुद को बुद्धिजीवी साबित करने मैं लगे हैं, भाई हम को तो सच बोलने मैं मज़ा आता है,
झूठ वाले कहाँ से कहाँ बॅड गये
एक मैं था की सच बोलता रह गया

Jyoti Verma ने कहा…

bilkul sahi kaha apne. kaise aap itna achchha soch lete hai.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

किस सोच में डूबे रहते हैं महफूज जी ....कौन है वो ....???

ख्वाबों ..ख्यालों की मल्लिका ...हुस्न-ए-महफूज़ की अनारकली ....तसवीरें तो लगाइए ....!!

बेनामी ने कहा…

खुदी से जंग ,खुद से swal और खुद hi को जवाब ,हर नाजुक,शायराना मिजाज इन्सान के साथ ऐसा hi होता है
अपने aapko को समझाने के लिए खुद hi से झूठ bhi.....
थोडा और खुलते ,लगा जैसे इज़हारे जज्बात मे भी कंजूसी कर दी
क्या यहाँ भी ......युद्ध ...अपने जज्बात ओ ख़यालों से
उठो, जिंदगी से कहो -'' पंजा लड़ाएगी?

प्रकाश पाखी ने कहा…

महफूज भाई,
हर आदमी की एक जंग अपने जीवन के सबसे बड़े झूठ से जुडी होती है...आपने शब्दों का चित्र खींच डाला!

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

खुद की लड़ाई पर एक शेर याद आ गया ---
'' कैसा मेरे जिस्म में इक शोर मचा है .
अपनी ही आवाज सुनाई नहीं देती | ''
शुक्रिया जनाब ... ...

Kusum Thakur ने कहा…

"वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है...."

बहुत खूबसूरत रचना , बहुत बहुत बधाई !!

Dr.Aditya Kumar ने कहा…

Excellent,

अपूर्व ने कहा…

काफ़ी कॉम्लीकेटेड कविता लिख दी इस बार आपने..बोले तो साइकॉलोजिकल इम्पैस..
खोये रहने का यह फिजिकल सिम्प्टम

और काटता रहता हूँ
दांतों से नाखून.

और मेंटल सिम्प्टम

एकटक छत को घूरता रहता हूँ

एक सही मुकाम पर ले आती है कविता को..

यह उस वक़्त का सबसे बड़ा झूठ होता है

उस आत्मसमर के थोथेपन को उजागर करते हुए..

एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....

मुझे लगता है कि कविता का छोटा होना ही इसकी बड़ी शक्ति है..जो कविता के आगे के सारे सूत्र पाठकों के हाँथ मे ही थमा देती है..बिना किसी व्यक्तिगत भावारोपण किये..
आपकी बेहतर और बेहद ईमानदार कविताओं मे से एक...

अपूर्व ने कहा…

और इस हालत का सोल्यूशन
..आपकी पिछली वाली पोस्ट मे है ;-)

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

यह उस वक़्त का सबसे बड़ा झूठ होता है
वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है..

mahafooz jee, akelepan ko rekhaaMkit karatee bahut sundar rachanaa hai.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब महफूज़ भाई ........ कमाल का लिखा है ..... सच में कभी कभी इंसान जब खुद से ही लड़ रहा होता है .... अचानक उसका झूठ चेहरे पर आ जाता है ...... अपने आप से लड़ने की जद्दोजेहद चलती रहती है ...

RAJ SINH ने कहा…

हम भी गुजरते हैं इन मुकामों से
खुद के नाखून काट ,
खुद से ही लड़ लेते हैं .

हाँ नहीं होती ये बेमतलब लडाई
होता है तब ,
जब हो ख्वाबों में कुछ समाई
या मिल जाये जब ,
कोई तगड़ी सी बेवफाई

तो बरखुरदार हरकीरत ' हीर ' के सवाल का जबाब दे देना ,मुझे भी मिल जायेगा :)

Meenu Khare ने कहा…

मेरे मुहँ से अचानक निकलता है
नहीं......!!!! कुछ भी तो नहीं...
यह उस वक़्त का सबसे बड़ा झूठ होता है
वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....

बहुत सुन्दर लगी आपकी रचना...
बधाई....

Udan Tashtari ने कहा…

वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....

-बहुत गहरे भाव!! वाह महफूज!

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

अवश्य ही
लिंक के लिए आपका आभार

Khushdeep Sehgal ने कहा…

महफूज़ प्यारे,
शादी कर लो...फिर तुम्हे कुछ नहीं करना होगा...जो जंग लड़नी होगी बस मोहतरमा ही लड़ेंगी...तुम्हे तो बस हम जैसे बड़े भाइयों से बस बचाव के दांव सीखने होंगे...

जय हिंद...

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से

हम में से हर कोई किसी न किसी जंग में उलझा हुआ है...
बढिया रचना!

बेनामी ने कहा…

ye to mere saath bhi aksar hota hai:)

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

संजय भास्‍कर ने कहा…

आप अपनी जंग जल्दी ही जीत जाएँ यही कामना है

Unknown ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति!

ये जीवन एक जंग ही तो है।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

मेरे मुहँ से अचानक निकलता है
नहीं......!!!! कुछ भी तो नहीं...
यह उस वक़्त का सबसे बड़ा झूठ होता है
वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....

बहुत सुन्दर महफूज भाई, गहरे अहसास ! अक्सर यह मेरे साथ भी होता है !

Sudhir (सुधीर) ने कहा…

यह उस वक़्त का सबसे बड़ा झूठ होता है
वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से


सत्य और अच्छी (या यूं कहे कि सधी हुई) अभिव्यक्ति. वाह!

शबनम खान ने कहा…

कविता पढ़कर लग रहा है मन की उलझन को शब्दों में पिरों दिया हो...
सुन्दर...

Anil Pusadkar ने कहा…

हर कोई इसे महसूस कर सकता है और चाह कर भी अपनी इस जंग मे किसी को शामिल नही कर पाता,सबका जवाब एकसा ही होता है नही,कुछ नही,कुछ भी तो नही,बस यूंही ही।

Pratik Maheshwari ने कहा…

कम शब्द और भाव पूरे..
सुन्दर...

आभार
प्रतीक
धर्म से कमाई या कमाई का धर्म?

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

महफूज़ जी,

आपका इतना बड़ा झूठ एक बहुत बड़ा सच है .
आपकी ये रचना शायद हर इंसान का सच है.

आपकी अभिव्यक्ति सटीक और सुन्दर है...बधाई

सदा ने कहा…

वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....

हर व्‍यक्ति के मन में एक कशमकश के भाव कभी न कभी आ ही जाते हैं, और फिर वह उनसे बाहर भी आ जाता है, बहुत ही सुन्‍दर रचना, आप हर क्षेत्र में विजयी हों, शुभकामनायें ।

rashmi ravija ने कहा…

कई लोगों के दिल की बात कह डाली आपने,शायद हर कोई खुद को इस परिस्थिति में कभी ना कभी जरूर पाता है (हाँ नाखून काटने वाली बात एक्सक्लुसिव हो सकती है :) )..बाहर की जंग से अपने अन्दर चलने वाली जंग सबसे मुश्किल होती है.
सुन्दर अभिव्यक्ति

vandana gupta ने कहा…

khud se jung duniya ki sabse badi jung hoti hai aur uska sira hi to pakad mein nhi aa pata ........kyun khud se lad rahe hain agar yahi hath mein aa jaye to kafi pareshaniyan door ho jayein........ek bahut hi mukammil rachna.........badhayi.

zara yahn bhi gaur farmaiyega-------
http://redrose-vandana.blogspot.com

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

महफूज भाई,

एक दो दिनों से कोशिश कर रहा हूँ आपका फोन नही लग पा रहा है।

तन्हाईयों में डूबी हुई कविता पाठक को भी तन्हाईयों में खींच ले जाती है :-


एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

Sujata ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अनिल कान्त ने कहा…

मन की व्यथा उजागर कर दी

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

रंजू भाटिया ने कहा…

खुद से जंग और वक़्त का झूठ दोनों ही बहुत बड़े सच है ..अच्छी लगी आपकी यह रचना .शुक्रिया

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

अच्छा है
ऐसा अक्सर सभी के साथ होता है
शब्द आपने दिया
..बधाई

ज्योति सिंह ने कहा…

bahut khoobsurat ,ada ji ki baat se main bhi sahmat hoon

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत खूब सूरत अंदाजे बयां है बंधू. अति सुंदर. आनंद आया.

रामराम.

उम्दा सोच ने कहा…

अति सुन्दर और सत्य वचन महफूज़ भाई !!!

Unknown ने कहा…

bahut hi sachhi bat aapne bol diya hai ...ye bahut hi bara sachh hai... akasar log yahi kahate hai hai.... kuch bhi to nahi ....bahut bara sachai ko liye huye poem ...bahut achha .

नीरज गोस्वामी ने कहा…

वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है.

कमाल की रचना है ये आपकी...शब्दों का अद्भुत प्रयोग...वाह...
नीरज

रश्मि प्रभा... ने कहा…

jane kitni baar yah jhooth bolte hain hum.......kaafi saral rachna

Urmi ने कहा…

अद्भुत रचना! बेहद खूबसूरती से आपने हर शब्द लिखा है! आप जंग ज़रूर जीतिएगा ये मुझे पूरा विश्वास है! इस उम्दा रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

sanjay vyas ने कहा…

भीतर की लड़ाई अक्सर अकेले लड़ी जाती है,इस सच को सामने लाती.बढ़िया रचना महफूज़ भाई.

शेफाली पाण्डे ने कहा…

hum sab apnee - apnee jung aise hee ladte hain....bahut achchhe rachna hai..badhaai

राजीव तनेजा ने कहा…

कोई मुझे थक हारकर
झिंझोड़ता है और पूछता है
क्यूँ क्या हुआ?

मेरे मुहँ से अचानक निकलता है
नहीं......!!!! कुछ भी तो नहीं...
यह उस वक़्त का सबसे बड़ा झूठ होता है

अरे!...ये तो अपुन के साथ भी होता है...
बहुत बढिया

मेरी आवाज सुनो ने कहा…

मेरे मुहँ से अचानक निकलता है
नहीं......!!!! कुछ भी तो नहीं...
यह उस वक़्त का सबसे बड़ा झूठ होता है
वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....

bahut badhiya line hai bhaijaan....!!

SACCHAI ने कहा…

वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से

" kya baaaat hai bahut hi baddhiya rachana dil ko choo gayi ...aapko dhero badhai sir ."

----- eksacchai { AAWAZ ]

http://eksacchai.blogspot.com

maafi chahunga ki mai kuch jaroori kaam ki vajah se net per nahi aa raha tha

वाणी गीत ने कहा…

हर कोई लड़ता है अपनी जंग ...होकर इसी तरह गुमसुम ...खुद इसी तरह अनजान बन कर ..!!

Asha Joglekar ने कहा…

यह उस वक़्त का सबसे बड़ा झूठ होता है
वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....
हर आदमी की सचाई है यह ।

Pawan Kumar ने कहा…

महफूज़ भाई....

यह उस वक़्त का सबसे बड़ा झूठ होता है
वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....

जिंदगी जंग है........लड़ना नियति.....! हारना भी नहीं है
बहुत ही उम्दा नज़्म.........!

Murari Pareek ने कहा…

अद्भुत अंतर्द्वंद बहुत ही बड़ा होता है| किसी युद्ध जैसा जो किसी को दिखाई नहीं देता कितने तूफ़ान मन में चलते हैं | लेकिन किसी और को दिखाई नहीं देते पर महसूस कर सकते है!!! आपकी रचनाएँ वास्तव में लाजवाब हैं!!!

Chandan Kumar Jha ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना भैया !!!!!!

PREETI BARTHWAL ने कहा…

बहुत खूब लिखा है।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

महफूज़ भाई ,
आदाब
... इंसान अपने आप से सच बोलता है तब
समझिये , एक न एक दिन वह जिन्दी की जंग भी जीतेगा ------
आप, इसी तरह लिखते रहें.....और हां,
ये भी कहना चाहूंगी के,
आपका मेरे जाल घर पर आना और मेरी बातें सुनना ,
आपके संवेदनशील व्यक्तित्त्व का बोध देता रहता है
शुक्रिया ...

- लावण्या

कविता रावत ने कहा…

जब मैं खोया हुआ रहता हूँ,
एकटक छत को घूरता रहता हूँ
अपने आसपास से अनजान
और काटता रहता हूँ
दांतों से नाखून.

Sundar sahaj bhav abhivyki ke liye badhai. Saath mein ID ki haardik shubhkamnayne.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

pehli baar aapke blog per aayi hu..bahut acchhi lagi aapki rachna ek aam aadmi ki kashmokash ko kitni saadgi se lafzo ka jama pehnaya hai jo rachna ki sundarta ko badha raha hai.

badhayi.

Rohit Jain ने कहा…

sahajta se kahi achchhi rachna.......shukriya

Ambarish ने कहा…

pahle se itne comments hain, kya likhun.. par han.. padh kar laga jaise apne hi man ki baat ho.. balconi mein baithe rahna aur kisike puchne par kahna ki kuch nahi soch raha....

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर और सच्चाई बयां करती रचना है | बधाई स्वीकार करे |

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