बुधवार, 30 सितंबर 2015

हॉर्न ओके प्लीज (Horn OK Please): Mahfooz Ali (महफूज़)

हम सबने अक्सर भारतीय ट्रकों के पीछे हॉर्न ओके प्लीज (Horn OK Please) लिखा देखा है. कई बार पढ़ कर हंसे भी हैं और कई बार आपस में दोस्तों से, टीचर से या बड़े बूढों से पूछा भी है कि आख़िर ट्रक के पीछे ऐसा क्यूँ लिखते हैं? हमने अक्सर देखा होगा कि हॉर्न (Horn) और प्लीज (Please) के बीच में बड़ा सा ओके (OK) लिखा होता है. 

द्वितीय विश्व युद्ध के समय पूरे विश्व में पेट्रोल की बहुत कमी हो गयी थी जिस वजह से ट्रांसपोर्टेशन केरोसिन पर डिपेंड हो गया था और युद्ध में रसद सामग्री केरोसिन आधारित वाहनों से ही हर जगह पहुंचाई जा रही थी. केरोसिन का नेचर (प्रकृति) बहुत ही प्रतिक्रियाशील होता है तो अक्सर ट्रक वगैरह में चलते चलते आग लग जाती थी जिससे कि पीछे और अगल बगल वाले वाहनों को भी नुक्सान हो जाता था. इस वजह से हर ट्रक के पीछे लिखा होता था हॉर्न ओके प्लीज... जिसमें से ओके (OK) बीच में बड़ा इसलिए लिखते थे क्यूंकि ओके (OK) का मतलब होता था ऑन केरोसिन (On Kerosene) मतलब केरोसिन से चलने वाला वाहन ताकि लोग दूर से देख लें और एक दूरी बना कर रखें और ओवरटेक हॉर्न देते हुए करें. 

पूरी दुनिया को पता है कि हम भारतीय बिना नदी में उतरे ही गहराई बताने लगते हैं. धीरे धीरे यह भारत में एक अनजाना बिना मतलब में ट्रेंड बन गया जो आज तक कायम है. कभी टाटा कंपनी ने जब अपना औल-पर्पस ओके साबुन लांच किया था तो इस ट्रक के पीछे लिखे ओके को अपनी मार्केटिंग में बहुत भुनाया था. तो अब जब भी ट्रक के पीछे हॉर्न ओके प्लीज (Horn OK Please) को आप देखेंगे तो मुझे भी याद करेंगे. है ना यूनिक जानकारी?

रविवार, 20 सितंबर 2015

फेसबुक पर धार्मिक दंगे करने वालों को पहचानिए : महफूज़

मैं जब भी फेसबुक पर लोगों को हिन्दू-मुस्लिम झगडे या गंदी धार्मिक आहत करने वाली बातें करते देखता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है कि इस टाइप के लोग एक दूसरे से जैसे कह रहे हों कि : भाई! मैं इक कुत्ता हूँ ... ठीक वैसे ही जैसे तुम हो ...और तुम्हे मालूम ही है जैसे कि तुम्हे उन्मुक्त होकर भौंकना पसंद है, वैसे ही मुझे भी पसंद है और यही हमारा नेचर है. आप जब ऐसे लोगों को जो धार्मिक गंदगी या उन्माद फैलाने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं बहुत आसानी से पहचान सकते हैं. एक तो इनका फॅमिली, स्कूल और दोस्तों का बैकग्राउंड कमज़ोर होता है, 



दूसरा इस तरह के लोग अंडर-एम्प्लोयेड या छोटे कामों में एम्प्लोयेड होते हैं, मोस्टली बेरोज़गार होते हैं, लडकियां/छोटे बच्चे/महिलाएं/हायर पढ़ा लिखा क्लास इनके पास नहीं फटकते, इनके घर की महिलायें मोस्टली प्रताड़ित होती हैं, ऐसे लोग स्कूल टाइम से ही नेग्लेक्टेड होते हैं... ऐसे लोगों के बाप का बिहेवियर इनके अपने घर में खराब होता है... और यह राजनीतिज्ञों और फ़िल्मी लोगों से बहुत इम्प्रेस्ड रहते हैं क्यूंकि इन लोगों की अपनी कोई पर्सनालिटी नहीं होती तो यह दूसरों में खुद को या मसीहा तलाशते हैं. मेरा धर्म ... तेरा धर्म बतियाने वालों से दूर रहना चाहिए .... यह लोग आपकी पर्सनालिटी भी खराब करते हैं. सभ्य समाज में लोग धर्म को घर के अन्दर रखते हैं.
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