मैं जब भी फेसबुक पर लोगों को हिन्दू-मुस्लिम झगडे या गंदी धार्मिक आहत करने वाली बातें करते देखता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है कि इस टाइप के लोग एक दूसरे से जैसे कह रहे हों कि : भाई! मैं इक कुत्ता हूँ ... ठीक वैसे ही जैसे तुम हो ...और तुम्हे मालूम ही है जैसे कि तुम्हे उन्मुक्त होकर भौंकना पसंद है, वैसे ही मुझे भी पसंद है और यही हमारा नेचर है. आप जब ऐसे लोगों को जो धार्मिक गंदगी या उन्माद फैलाने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं बहुत आसानी से पहचान सकते हैं. एक तो इनका फॅमिली, स्कूल और दोस्तों का बैकग्राउंड कमज़ोर होता है,
दूसरा इस तरह के लोग अंडर-एम्प्लोयेड या छोटे कामों में एम्प्लोयेड होते हैं, मोस्टली बेरोज़गार होते हैं, लडकियां/छोटे बच्चे/महिलाएं/हायर पढ़ा लिखा क्लास इनके पास नहीं फटकते, इनके घर की महिलायें मोस्टली प्रताड़ित होती हैं, ऐसे लोग स्कूल टाइम से ही नेग्लेक्टेड होते हैं... ऐसे लोगों के बाप का बिहेवियर इनके अपने घर में खराब होता है... और यह राजनीतिज्ञों और फ़िल्मी लोगों से बहुत इम्प्रेस्ड रहते हैं क्यूंकि इन लोगों की अपनी कोई पर्सनालिटी नहीं होती तो यह दूसरों में खुद को या मसीहा तलाशते हैं. मेरा धर्म ... तेरा धर्म बतियाने वालों से दूर रहना चाहिए .... यह लोग आपकी पर्सनालिटी भी खराब करते हैं. सभ्य समाज में लोग धर्म को घर के अन्दर रखते हैं.
2 टिप्पणियाँ:
Dear Dr. Sahib;
Nice to see you on your blog after a long-long time and that too with an open comment box :-)
अली साहब , क्या कहूँ , इन धर्म के ठेकेदारों ने न सिर्फ देश अपितु पूरी दुनिया का बड़ा गरक कर के रखा है। बस यही कहूँगा की ये काम पढ़े-लिखे नहीं अपितु कमअक्ल लोग है।
Anyway, keep writing. आपकी लेखनी गजब की है।
great article , keep posting
blog.youlorry.com
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