गुरुवार, 15 जनवरी 2009


छोटी-छोटी हसरतें थीं,

छोटी-छोटी चाहतें थीं॥

क्यूँ न हम सुलझा सके

वो तो,

छोटी-छोटी उलझनें थीं॥

महफूज़ अली॥

1 टिप्पणियाँ:

PREETI BARTHWAL ने कहा…

वाह क्या बात कही।

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