रविवार, 29 मार्च 2009

हर वक्त॥

खड़ा रहता हूँ अक्सर
ज़िन्दगी के चौराहों पर
अनजाने और पहचाने लोग दौड़ते रहते हैं
हर वक्त॥



महफूज़ अली

2 टिप्पणियाँ:

* મારી રચના * ने कहा…

kam alfaaz mai bahut kuch likh daala aapne...kyuki zindagi ki yehi to sacchai hai

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

un anjane or pahchane logo me se boht se apne bhi nikal jate hai or hum wahi k wahi khde rah jate hai...

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