बुधवार, 22 जुलाई 2009

काश! ....... एक ख़्वाब


दिल छोटा नही करते,
कह के तुम हौसला
बढाती हो,

कुछ न कुछ बुरे में भी,
कुछ न कुछ अच्छा है
कह के तस्सल्ली देती हो।

मुश्किल पलों में भी
दूर से ही सीने से
लगाती हो।

कौन हो तुम?
क्या हो तुम?
क्यूँ आई हो मेरी ज़िन्दगी में?
मुझे सही रस्ते पे लाने?
या
मेरी अधूरी कहानीयों को पूरा करने?

काश! तुम आतीं थोड़े पहले
ज़िन्दगी में मेरी,
तो छूता मैं इतनी ऊचाईयाँ
इतनी ऊचाईयाँ.....
की रोज़ देता एक तारा
आसमान से तोड़ के तुम्हे॥


महफूज़ अली

13 टिप्पणियाँ:

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

wow!roj ek tara???kya imagination hai..fir to dharti pe raat ko bhi roshni rahti...

adwet ने कहा…

बहुत खूब।

शरद कोकास ने कहा…

और तारे कभी खत्म नहीं होते ... वाह .. ऊचाईयाँ .सही शब्द है

M VERMA ने कहा…

मुश्किल पलों में भी
दूर से ही सीने से
लगाती हो।
========
दूर से ही गले लगाने की यह अदा पसन्द आई.
बहुत खूब

mehek ने कहा…

bahut badhiya

ओम आर्य ने कहा…

क्या बात है बन्धू ......बहुत ही हसीन पल है आप्के .....यह वक्त हमेशा वर्करार रहे आपके जिन्दगी मे ........बहुत खुब्सूरत ......मुश्किल पलों में भी
दूर से ही सीने से
लगाती हो। ......


अतिसुन्दर

विवेक सिंह ने कहा…

आप यूँ ही कल्पना करिये फ़िर हकीकत में भी बदल डालिए !

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! चित्र भी बहुत ही सुंदर है!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

दोस्तों.... ....... मैं आप लोगों का बहुत शुक्रगुजार हूँ ....... की आप लोगों ने इस कविता को इतना सराहा... मैं श्री. शरद कोकस जी का मार्गदर्शन करने के लिए बहुत शुक्रगुजार हूँ ...... और श्री ओम जी के कमेंट्स भी काफ़ी हौसला badhaate हैं....

apke emails mera hausla badhaate hain.....

dhanywaad...

प्रकाश पाखी ने कहा…

बहुत खूबसूरत कविता...
शरद जी से सहमत हूँ..
बधाई..!
प्रकाश पाखी

Alpana Verma ने कहा…

अच्छी रचना है महफूज जी..

बिना मांगे..एक सुझाव दूँ?
इस पंक्ति में--कह के तस्सल्ली देती हो।
देटी हो की जगह अगर दे जाती हो' लिखें तो शब्दों में प्रवाह अच्छा बनता है...

shama ने कहा…

Rachnake khyal behad achhoote aur komal hain...Aplpanaji sahee keh rahee hain..ek lay aa jayegee...!

Excellent expressions!

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बेनामी ने कहा…

बहुत खूब लिखा है आपने।

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