१। गर्मी से प्यासा सूरज,
बादलों से करता बातें,
मानसून अभी नही आया?॥
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२। जर्ज़र काया की मेरी कामवाली,
कहती नही छोडूंगी आपका घर,
क्यूंकि पेट नही तो भेंट नहीं॥
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३। सुनो! तुम रोना मत,
मुझे काफ़ी आगे जाना है, मैं लौटूंगा...
मैंने ऐसा तो नही कहा॥
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४। लाल सूरज उगता ऊँचा, ऊँचा......
निष्फल पेड़ों से भी ऊँचा,
खड़ा निड़र, मुहँ चिढाता॥
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५। नदिया बहती कल-कल ,
लादे पीठ पर कोहरा
और पेट में बर्फ॥
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(हाइकू कविता लिखने की जापानी विधि है, जिसे हम 5-7-5 के Syllables में लिखते हैं, हिन्दी में लिखने के लिए कोई ज़रूरी नही है की हम Syllables को फोल्लो करें.... लेकिन तीन पंक्तियाँ का होना ज़रूरी है..... यह एक कोशिश है.... उम्मीद है की ठीक लगेंगी..... )
8 टिप्पणियाँ:
अच्छी क्षणिकायें है.
हाईकु के नियम तो कुछ और हैं, इसलिए हाईकु कहना उचित न होगा. क्षणिकायें ही उचित प्रतीत होता है/
प्रभावी लेखन.
बहुत खूब
चाहे क्षणिका हो या हो हायकू
भावनाए सुन्दर
सुनो! तुम रोना मत,
मुझे काफ़ी आगे जाना है, मैं लौटूंगा...
मैंने ऐसा तो नही कहा॥...bahut sunder.....suraj bhi sach me batein karta laga.....
बहुत सुंदर रचनाएँ हैं , इतनाही कहूँगी ! अधिक technicalities तो नही पता ..!
महफूज़ साहब,
आपके हाइकु पर टिपण्णी करने से पहले हम हाइकु का मतलब समझने में लगे हुए थे , वैसे तो आपने लिख ही दिया है ५-७-५ Syllables , यानी कुल १७ Syllables या उससे कम होने चाहिए....
और हम बहुत प्रभावित हुए देख कर कि आपके हाइकु इस नियम का पालन करते हुए अर्थ भी लिए हुए हैं...बहुत बहुत बधाई...आपका पहला प्रयास बहुत सफल रहा....अब तो हमें भी लगने लगा कि एक-आध हम भी लिख ही डालें.....अगर ऐसा हुआ तो आपसे ज़रूर कहेंगे मार्गदर्शन करने के लिए...
फिलहाल...... सभी बहुत अच्छी बनी हैं लेकिन मुझे जो सबसे खूबसूरत लगी वो :
सुनो! तुम रोना मत,
मुझे काफ़ी आगे जाना है, मैं लौटूंगा...
मैंने ऐसा तो नही कहा॥
बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना बहुत अच्छा लगा ! लिखते रहिये!
लाल सूरज उगता ऊँचा, ऊँचा......
निष्फल पेड़ों से भी ऊँचा,
खड़ा निड़र, मुहँ चिढाता॥
सुन्दर प्रस्तुति ,शुभकामनायें
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