तुम मेरे संग एक पल बाँट लो,
वो पल आधा मेरा होगा
और
आधा तुम्हारे दुपट्टे की गाँठ में,
छोटा बच्चा बन के जो खेलेगा मेरे संग
तुम्हारी खुश्बू लिए ।
तुम एक ऐसा ख़्वाब बुन लो,
बता जाए जो बात तुम्हारे मन की
मेरे पास आ कर चुपके से ......
तुम जब सोती होगी भोली बन के
तो वो ख़्वाब खेलता होगा मेरी आँखों में॥
तुम वो रंग आज मुझे ला दो,
जो मुझे दिखाए थे
बादलों के झुरमुट के पीछे
झलकते आसमान के॥
तुम वो बूँद रख लो संभाल कर,
मेरी आँखों के भ्रम में ,
जिसने बसाया था डेरा
तुम्हारी आँखों में.........
उस खारे बूँद में ढूँढ लेना
कुछ ख़ूबसूरत पल मेरी यादों के,
मेरी बातों के॥
25 टिप्पणियाँ:
छोटा बच्चा बन के जो खेलेगा मेरे संग
तुम्हारी खुश्बू लिए ।
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उस खारे बूँद में ढूँढ लेना
कुछ ख़ूबसूरत पल मेरी यादों के,
मेरी बातों के॥
बेहतरीन ख्वाबो और मनुहारो से सजी कविता. भावो की प्रवाहमयी कविता.
वाह बहुत अच्छा लगा.
धत्त तेरे कि महफूज़ भाई.....प्यार के बांटे जाने पर कोई आधा-आधा थोडा ही ना होता है.....वो पूरा-पूरा ही होता है....दोनों जनों के लिए.....असल में तो ये पल पूरे से भी कहीं बहुत ज्यादा होता है इसका फलसफा ये है कि शून्य में से शून्य निकल जाने पर पूरा शून्य ही बच जाता है....प्यार का हर इक पल....बूँद में समुद्र की तरह है....जिसमें आप ऐसे खो जाते हो कि वापस निकल आने में गोया कई सदियों का वक्त लगता है....खैर आपने काफी गहरा लिखा है....जो दिल को छू गया.....!!
धत्त तेरे कि महफूज़ भाई.....प्यार में बांटा जाने वाला पल कोई आधा-आधा थोडा ही ना होता है.....वो पूरा-पूरा ही होता है....दोनों जनों के लिए.....असल में तो ये पल पूरे से भी कहीं बहुत ज्यादा होता है इसका फलसफा ये है कि शून्य में से शून्य निकल जाने पर पूरा शून्य ही बच जाता है....प्यार का हर इक पल....बूँद में समुद्र की तरह है....जिसमें आप ऐसे खो जाते हो कि वापस निकल आने में गोया कई सदियों का वक्त लगता है....खैर आपने काफी गहरा लिखा है....जो दिल को छू गया.....!!
वाह क्या बात है बहुत बढिया। बधाई
उस खारे बूँद में ढूँढ लेना
कुछ ख़ूबसूरत पल मेरी यादों के,
मेरी बातों के॥
-बहुत उम्दा भाव-बड़ी सुन्दरता और कोमलता से पिरोया है.
जी हाँ महफूज़ साहब,
भूत नाथ ठीक कह रहे हैं ये ५०-५० वाला मामला नही होता....ये तो १००% होता है....
गाना सुना है न ..
कोई शर्त होती नहीं प्यार की
लेकिन आपकी कविता अहसासों के नाज़ुकी में लिपटी हुई आपके मन कि बातें कह गयी हैं......
बहुत सुन्दर...
तुम मेरे संग एक पल बाँट लो,
वो पल आधा मेरा होगा ..kitni minnat hai ki ik pal bant lo...pyaar ho to pura pal duje ko de diya jata hai bina soche ki apke pas kya bacha..khbsurat kavita...
... बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। बहुत सुन्दरता पूर्ण ढंग से भावनाओं का सजीव चित्रण... आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी, बधाई स्वीकारें।
आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं। आप मेरे ब्लॉग पर आये और एक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया दिया…. शुक्रिया.
आशा है आप इसी तरह सदैव स्नेह बनाएं रखेगें….
very nice poem. lgta hai ajkal apko apni ex or ex-girl friends ['n' number of]ziyada yaad aa rahin haen
'wo pal..छोटा बच्चा बन के जो खेलेगा मेरे संग
तुम्हारी खुश्बू लिए ।'
waah! kitni masoomiyat liye hue panktiyan hain...
komal sa ahsaas liye hue aap ki yah kavita pasand aayi.
aur chitr bhi kavita ke bhaav se mel khata hua hai..
छोटा बच्चा बन के जो खेलेगा मेरे संग
तुम्हारी खुश्बू लिए ।
bahut sundar kalpana
तुम मेरे संग एक पल बाँट लो,
वो पल आधा मेरा होगा
और
आधा तुम्हारे दुपट्टे की गाँठ में,
kya bat hai .......mahfooz bhai lagta hai koimil gai .bhut hi khub shurt khowab hai .badhai ho!!
क्या बात है महफूज भाई ......... खुबसूरत ख्यालो के धनी हो कि आपसे नाराज होने का सवाल ही नही पैदा नही होता ....आपको कुछ ऐसा लगता है तो मै माफी चाहता हूँ.....पर आपकी रचनाओ के बहुत ही करीब होता हूँ मै .......बेहद खुब्सूरत एहसास वाली रचना
बेहद खूबसूरत रचना है
bhut hi pyari hai aap ki rachna or bhut hi komal hai aap ke vichar ek dam os ki bund jaise
इतने सारे comments के बाद कोई अलग से क्या कहे ?
वर्मा जी से सहमत हूँ ! बड़ी सादगी भरी रचना है...!
अति सुन्दर भावों से भरी प्यारी सी इस रचना की प्रस्तुति पर हार्दिक आभार.
बहुत बढिया। बधाई!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
wo pichli raat baanta tha jo ekkhwoab, chhat ke kone mein, man ke bichone pe.... ek tukda uska kahin aankhon mein ataka hai !
accha likhte hain...likhte rahiye !
बहुत ही भावपूर्ण, ख़ूबसूरत एहसास, मासूमियत से भरी और शब्दों में कोमलता से भरी इस प्यारी और लाजवाब रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ ! बहुत बढ़िया लगा!
तुम वो बूँद रख लो संभाल कर,
मेरी आँखों के भ्रम में ,
जिसने बसाया था डेरा
तुम्हारी आँखों में.........
उस खारे बूँद में ढूँढ लेना
कुछ ख़ूबसूरत पल मेरी यादों के,
मेरी बातों के॥
bahut hi sudar aur gehra ehsaas
-Sheena
छोटा बच्चा बन के जो खेलेगा मेरे संग
तुम्हारी खुश्बू लिए
बेहतरीन ... हैपी ब्लॉगिंग :)
महफूज अली जी,
अब किसी दिन उन्नाव/कानपुर आया तो जरूर आपसे मिलूंगा।
आपकी रचनाधर्मिता प्रभावित करती है और कवितायें सीधे-सीधे दिल छू लेतीं हैं। वो भोले और मासूम से प्रतीक बात पूरी कह जाते हैं :-
तुम वो रंग आज मुझे ला दो,
जो मुझे दिखाए थे
बादलों के झुरमुट के पीछे
झलकते आसमान के॥
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
तुम उड़ रहे हो जिस आसमा पे वो टुकड़े टुकड़े जोड़ के बना है। माना ज्यादा टुकड़े तुमने जोड़े है पर कुछ मैंने भी तो लगाये है। मेरे बिना भला आसमा कैसे बनता? मैं रंग ...
sanyogvsh ye kavitaen kitni milti julti hain....
तुम वो रंग आज मुझे ला दो,
जो मुझे दिखाए थे
बादलों के झुरमुट के पीछे
झलकते आसमान के॥
एक अलग सी दुनिया में ले जा रही है आपकी "रचनाऎ"
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