शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

गाँधी-स्मृति में......



१.
मैं थोडा उत्तेजित हूँ,
दो अक्टूबर ! 
गाँधी का जन्मदिन
समाधि पर फूल चढाने
और कुछ क्षण शांत
मौन खडा सोचता,
"क्या यहाँ कभी कोई आता भी है और भी किसी दिन?"
शायद ! गाँधी कि याद में
"गाँधी" टंका रह गया है?
या फिर गाँधी के मरने के बाद,
हे! राम
कुछ ज्यादा ही प्रेम हो गया है?
===========================
२.
जल रहा है भारत,
जल रहें हैं गाँधी के सपने,
किसने लगायी यह खुशियों में
यह आग?
कितने विभाजन?
कितने आपातकाल?
कितने गोधरा?
और कितने अयोध्या?
क्यूँ है छदम-धर्म निरपेक्षता?
क्यूँ है, तू बहुजन?
तू समाजवादी?
तू ठाकुर?
तू ब्राह्मण?
और तू मुसलमाँ? 
क्यूँ  नहीं हैं सब अपने?
अब तो ....
जल रहा है भारत....
जल रहे हैं गाँधी के सपने.............

36 टिप्पणियाँ:

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

achhi kavita...

Mishra Pankaj ने कहा…

महफूज अली साहब आपका चिंतन सही है

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत कविता लिखा है आपने! पढ़कर अच्छा लगा! गाँधी जयंती की शुभकामनायें!

M VERMA ने कहा…

तू ब्राह्मण?
और तू मुसलमाँ?
क्यूँ नहीं हैं सब अपने?
===
यही तो बात है यह अंतर जब तक नही मिटेगा तब तक गाँधी जयंती मनाना सार्थक नही है.
बहुत सुन्दर

shikha varshney ने कहा…

कितने विभाजन?
कितने आपातकाल?
कितने गोधरा?
और कितने अयोध्या?
क्यूँ है छदम-धर्म निरपेक्षता?
क्यूँ है, तू बहुजन?
तू समाजवादी?
तू ठाकुर?
तू ब्राह्मण?
और तू मुसलमाँ?
क्यूँ नहीं हैं सब अपने?

bahut sahi chintan.....bahut achcha likha hai.

Saleem Khan ने कहा…

लूट लिया नेताओं ने हमारे देश को, बिखेर कर रख दिया.

लेकिन हमें चाहिए कि हम कुर-आन की उस आयत पर अमल करें जिसे ईश्वर ने अपनी अंतिम पुस्तक में कहा है;

"आओ उस बात की तरफ़, जो हममें और तुममें यकसां (समान) हों"

सलीम खान
स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़ (swachchhsandesh.blogspot.com)
हमारी अन्जुमन {विश्व का प्रथम एवम् एकमात्र हिंदी इस्लामी सामुदायिक चिट्ठा}(hamarianjuman.blogspot.com)

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

गाँधी जी की याद में बहुत बढ़िया प्रस्तुति..धन्यवाद!!

Unknown ने कहा…

बहुत प्यारी कविता!!!

मैं कोई कवि या शायर नहीं हूँ फिर भी इस कविता को पढ़ कर अनायास ही ये पंक्तिया बन गईं:

काश! सब अपने होते
इन्सां को इन्सां से प्यार होता!
भाई से भाई न लड़ता
प्यार से सारा कारोबार होता।
मज़हबी झगड़े न होते
खुदगर्जी का न व्यापार होता
नामोनिशां मिट जाता नफ़रत का
वतन हमारा गुल-ओ-गुलजार होता।

संजय भास्‍कर ने कहा…

गाँधी जी की याद में बहुत बढ़िया
बहुत प्यारी कविता!!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बढ़िया शब्दचित्रों के साथ धारदार व्यंग्य हैं।
बधाई!

Udan Tashtari ने कहा…

इस रचना से उठते सवालों पर विचार करने की जरुरत है एक बेहतर भारत बनाने के लिए. बढ़िया रचना.

गाँधी जयंती की शुभकामनाएँ.

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

aapke sawaal sochne ko majboor kar rahe hain..
Kaash ki in sawaalon par amal bhi kare koi..
Gnadhi ji ke janmdivas par aapka yah tohfa unhein zaroor bhaaya hoga..
Badhai..
(Mayank ki banayi tasveer ka sahi sadupyog kiya hai aapne..dhanyawaad)

निर्मला कपिला ने कहा…

कितने विभाजन?
कितने आपातकाल?
कितने गोधरा?
और कितने अयोध्या?
क्यूँ है छदम-धर्म निरपेक्षता?
क्यूँ है, तू बहुजन?
तू समाजवादी?
तू ठाकुर?
तू ब्राह्मण?
और तू मुसलमाँ?
क्यूँ नहीं हैं सब अपने?
बहुत सही कहा है आओ हम लोग जितने भी कह सकें कि हम भारातीय हैं बस् आज के दिन कम से कम खुद से तो एक प्रण ली ही सकते हैं शुभकामनायें

Chandan Kumar Jha ने कहा…

बहुत ही सार्थक रचना । हमें फिर से सोचना ही पड़ेगा

शेफाली पाण्डे ने कहा…

बापू को नमन .... chinta jaayaz hai aapkee..

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

सार्थक रचना...

Anil Pusadkar ने कहा…

अच्छी रचना।

Randhir Singh Suman ने कहा…

कुछ ज्यादा ही प्रेम हो गया है?nice

Mithilesh dubey ने कहा…

आपकी चिन्ता बिल्कुल जायज है। बहुत अनोखे अन्दाज से आपने सच्चाई को सामने रखा है। बहुत-बहुत बधाई आपको

बेनामी ने कहा…

bahut accha likha hai...par afsos hota hai ki 2 oct ko sab Gandhiji ko hi yaad karte hai Lal Bahadur Shastriji ko koi yaad bhi nahi karta.aaj sabne Gandhiji ke bare mai hi likha hai........shayad hum kafi logo ko bhul jate hai....kabhi Lal Bahadur Shastriji par bhi likhna......

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

Donon rachnayein bahut sarthak Gandhi jayanti par ....sach ko ukerti ....!!

अपूर्व ने कहा…

bhai Gandhi ji ko shraddhanjali dene ka aapka andaaj bahut anukuul aur acchaa laga..aur aapaki bhavanon se shat-pratishat sahmat hun..bahut sateek rachna..!!

वाणी गीत ने कहा…

काश की गाँधी के विचारों को अमल में लाना इतना आसान होता ...
गाँधी जयंती पर अनमोल भेंट के लिए आभार ...!!

kshama ने कहा…

आइये हम मिलके इन सपनों को जलने से बचाएँ ...सिर्फ दुःख दर्द का बयान ना करें......रोज़ जीवन के केवल चंद लम्हें इस सपने को अर्पण करें.......!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

काश कि हम हिन्दुस्तानी इन सब से ऊपर उठकर खुद की पहचान एक हिन्दुस्तानी के रूप में बना पाते ! अफ़सोस कि आज गांधी जयंती बच्चो के लिए एक छुट्टी का दिन, बडो के लिए एक फोर्मलिटी और इन हरामखोर नेतावो के लिए सरकारी खाते में हराम एक और दिन का चाय-नाश्ता करने का बहाना मात्र रह गया है !

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

आपकी चिंता जायज है।
वाकई किसे इस सबकी चिंता है?
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

सदा ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत शब्‍दों में पिरोया अपने हर सच्‍चाई को, बधाई के साथ शुभकामनाएं ।

SACCHAI ने कहा…

" acchi kavita hai mahfooz aapke bhavna ki kadr karte hai hum "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

Unknown ने कहा…

achh rachna hai ....

बेनामी ने कहा…

बहुत अच्छा महफ़ूज भाई।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

SACH MEIN AAJ GANDHI KE SAPNE JAL RAHE HAIN .... GAANHI KE NAM KI DUHI DE KAR SAB APNA APNA ULLOO SEEDHA KAR RAHE HAIN .... JAANDAAR LIOKHA HAI

Arvind Mishra ने कहा…

बिलकुल सच कहा आपने -जल रहे हैं गांधी के सपने !

sandhyagupta ने कहा…

Gehra asar chodti hai dono hi rachnayen.

Ambarish ने कहा…

सोचने की बात तो ये है कि गाँधी जयंती के दिन हमारे पॉलिटीशियन लोग बोलते हैं कि हमें गाँधीजी के बताए रास्तों पर चलना चाहिए और ये भी भूल जाते हैं की गाँधीजी ने सदा सच बोलने को कहा था..

ओम आर्य ने कहा…

लड़ना मनुष्य की प्रकृति में है, महफूज़ भाई, अगर कोई न हो तो हम दीवारों से लडेंगे...गांधी जी ने उस प्रकृति पे विजय पायी थी, हमें भी गांधी हो जाने की जरूरत है...पर...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

jagrookta paida karane wali rachna....sochane par vivash karati hui si....badhai

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