शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

...मत बनाना मेरा बुत, मेरी मौत के बाद....




मैं हमेशा चलना चाहता हूँ, 


बोलना  चाहता हूँ, 


सुनना  चाहता हूँ,


मत बनाना मेरा बुत,


मेरी मौत के बाद,


क्यूंकि


मैं नहीं चाहता बहरा , 


गूंगा और निश्चल होना.........











महफूज़ अली

71 टिप्पणियाँ:

shikha varshney ने कहा…

I am speechless...............

आप बुत नहीं बनना चाहते ...पर आपकी इस कविता को पड़ कर मैं बुत बन गई हूँ शब्द नहीं मिल रहे ......just tooooooooo good..बस और कुछ नहीं कह सकती

संगीता पुरी ने कहा…

मौत के बाद बुत बनाकर याद रखने से अच्‍छा है .. हमारे विचारों को चलाना , बोलना और सुनाना .. अच्‍छा लिखा है !!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव-भरी रचना।
काश सभी के विचार ऐसे ही हों।

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

ये लो कल्लो बात !!
अब क्या हुआ...?
ऐसी कविता ?
वैसे भी आपका बुत बनाना कौन सा आसान होगा ....
आप ही न सब को बुत बना दें....
कोई कोशिश भी न करे....
और हाँ......मरें आपके दुश्मन.......हाँ नहीं तो.....!!
लेकिन कविता बहुत बहुत अच्छी लगी...
पता नहीं कैसे लिखते हैं आप....!

Amit K Sagar ने कहा…

महफूज़ जी,
रचना में मुझे थोड़ी सी और जगह दिखती नज़र आती है...! अलावा इसके निशब्द! भी हूँ. यह एक गहरा विचार व् गहरा विन्यास है!
---
रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

बहुत सुंदर एक उम्दा और बेहतरीन सोच से भरी कविता..अच्छा लगा जी ..धन्यवाद!!

Unknown ने कहा…

बहुत से शब्दों में
बहुत से पन्नों पर
बहुत से प्रतीकों के माध्यम से

जो कुछ कहा जा सकता था..........
वो आपने
बड़े सलीके से
संक्षिप्त में
सुरुचिपूर्ण तरीके से कह दी है
___आपका लाख लाख अभिनन्दन !

Randhir Singh Suman ने कहा…

मत बनाना मेरा बुत.nice

अपूर्व ने कहा…

भई महफ़ूज़ साहब अगर खालिस साइंसाना जबान मे कहूँ (अनुराग साहब का असर है) तो आपकी कलम का फ़्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम बहुत विस्तृत और विविध है..एक बार लगा था कि शायद लम्बी पोस्ट्स आपके कलम को ज्यादा निखारती हैं.. मगर यहाँ चन्द लाइनों मे इतनी गहरी बात कही आपने जो कुछ शोहरत के कुत्ते के काटे लोगों को ताजिंदगी समझ मे नही आ पाती..बुत के बजाय इन्सान बने रहने की आपकी यह ख्वाहिश किसी खुदा के इंसान बनने..आम-आदमी बनने की मासूम ख्वाहिश जैसी है..उम्मीद करता हूँ..कि आपकी सलाह उन गूंगे-बहरे कानों मे पड़े...’बहन जी’ ने सुना या नही?

Mishra Pankaj ने कहा…

सुन्दर .......कविता

sanjay vyas ने कहा…

एक आदमी की सहज इच्छाओं को सुन्दरता से व्यक्त करती

Chandan Kumar Jha ने कहा…

बहुत गूढ़ बात कह दी आपने भैया । बहुत सुन्दर !!!

बेनामी ने कहा…

Vartmaan sthitiyon ko dekh kar to aisa lagata hai maano samaj mein jyada se jyade log jee kar bhi gunge, bahare aur nischal ban baithe hai, koi anyay ke khilaf awaaj hi nahi uthatha.:(

राजीव तनेजा ने कहा…

सही है...अभिव्यक्ति की आज़ादी तो मिलनी ही चाहिए मरने के बाद भी ...

मैँ तो यही चाहता हूँ कि मरते दम तक मैँ सभी को हँसाता रहूँ ...


सीमित शब्दों में बहुत बड़ी बात कह गई आपकी रचना

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बहुत ही अलग- सी बोलती,जागती,ज़िन्दगी के गीत गाती रचना है यह

शबनम खान ने कहा…

kavita ka bhav bohot gehra aur prabhavshali ha mehfooz ji....ye kavita jo sandesh de rahi ha usme ek gehra sach chupa hua ha....kash vo sach sab smjh sakte........
bohot khoob socha aapne.....

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

क्यूंकि
मैं नहीं चाहता बहरा ,
गूंगा और निश्चल होना.........

कविता जितनी छोटी है,भाव उतने ही गहरे हैं....
बुत बनने से कहीं अच्छा है कि हम अपने विचारों के जरिए मरने के बाद भी चलायमान रहें...
बहुत बढिया!!

manu ने कहा…

ji ..
nahfooj saab...

marein aapke dushman..

ye to galat baat hai..aap jeeete ji aiseee baat karte hain..

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

आखिर कहाँ खो जाता है

मेरा सारा दुःख और गुस्सा ?

पाकर साथ तुम्हारा,

भूल जाता हूँ मैं अपना सारा दर्द...

kahne ke liye lafz naheen....

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…

गहरे भाव है ....

सुन्दर कविता ....

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

पर भाई मौत के बाद बोलने, चलने और सुनने की चाहत तो कभी किसी की पूरी होते सुना नहीं.............

आपकी चाहत के लिए तो किसी नए वैज्ञानिक अविष्कार की आवश्यकता पड़ेगी..........

लोग तो जीते जी ही पत्थर दिल होगये हैं और कुछ आगे बढ़ कर बुत भी बनना चाह रहे हैं पर अधिकांश तो मट्टी ही में विलीन होते हैं........

यही शाश्वत सत्य है, प्रकृति के विधान में इंसानी दखलंदाजी पुर्णतः निषेध है........

पुनः गौर करें.........

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

Meenu Khare ने कहा…

यह रचना मुझे बहुत पसन्द आई.सुन्दर कविता.बधाई.

प्रज्ञा पांडेय ने कहा…

bahut sunder bhaw hain .. bahut sunder .

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी रचना। छोटी, सटीक।

Ambarish ने कहा…

arey bhaiya aapka to bhut banne se pahile hi ham but bana denge.. ab e baat aur hai ki u mitti ka but nahi hoga.. but hoga aapka aachar vichaar ka.. aapka aachaar vichaar door door tak pahuncha dunga.... dekhte rahiye...

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर अरे भाई क्या लाभ इन बुतो का, इन पर कुते पेशाब करते है,मेरी इच्छा है कि यह दुनिया शांति से चले.... मेरा कया मेरे जेसे पता नही कितने आये कितने गये.... कोन याद रखेगा??

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

महफूज़ जी .बहुत उम्दा रचना है।कम शब्दो मे बहुत बड़ी बात कह दी।बधाई।

Khushdeep Sehgal ने कहा…

महफूज़ मास्टर,
तुम्हें बुतों पर ज़माने को ताकीद करने की क्या ज़रूरत...जो दिल में रहता है उसे सड़क-चौराहों पर रूसवा (परिंदों की लीद से) होने के लिए क्यों छोड़ें...

इस काम के लिए देवी जी हैं न जो जीते-जी ही अपने बुत बनवाने पर तुली हैं...शायद भरोसा नहीं कि मरने के बाद उन्हें कोई याद करता है या नहीं...खैर देवी जी की माया है देवी जी ही जानें...

जय हिंद...

दीपक 'मशाल' ने कहा…

Gazab ki soch hai bade bhai....lekin ye baat Mayawati ko kaun samjhaye.. :)

Jai Hind.

M VERMA ने कहा…

सोच अलग सी.
आप तो बुतों के प्रदेश में हैं जहाँ जिन्दों के भी बुत बनते हैं. क्षमा करें वही प्रदेश मेरा भी है. तब तक किसी नए बुत के लिये जगह ही नहीं बचेगी, बेफिक्र रहें.
सुन्दर रचना

वाणी गीत ने कहा…

एक अलग तरह की सोच...वैसे तो लोग तो जीते जी बुत बनाने को बेताब हो रहे हैं ...
100 बरस जियो छोटे भैया ...बुत बनाने का कोई मौका ही ना मिले ...!!

Arvind Mishra ने कहा…

ठीक बात मगर लोग मानेगें क्या ?

Unknown ने कहा…

"मत बनाना मेरा बुत,


मेरी मौत के बाद,


क्यूंकि


मैं नहीं चाहता बहरा ,


गूंगा और निश्चल होना........."



सुन्दर अभिव्यक्ति!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

क्यूंकि
मैं नहीं चाहता बहरा ,
गूंगा और निश्चल होना.........


बहुत सुन्दर, जीवन की निरंतरता ही असली मोक्ष है !
और एक बात और कहू, अगर आप जैसा साहित्यकार चुप बैठ गया वो दुनिया का आठवा आर्श्चय कहलायेगा !

सदा ने कहा…

गहरे शब्‍द लिये बहुत ही भावपूर्ण प्रस्‍तुति ।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

गागर में सागर.
सुन्दर भाव.

Arshia Ali ने कहा…

कम शब्दों में बहुत गहरी बात कह दी आपने। बधाई।
--------------
स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक
आइए आज आपको चार्वाक के बारे में बताएं

Unknown ने कहा…

kam shabdo me bahut kuchh bol gye aap .....bahut hi achhi soch ka partik.....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

kamaal का MAHFOOZ भाई ........... BAHOOT ही SAARTHAK, SATEEK और SAAMYIK लिखा है ......... AAJKAL लोग DILON में याद नहीं RAKHTE बस BUT BANA कर प्रेम की ITISHREE समझ LETE हैं ...........

rashmi ravija ने कहा…

सच है,एक बुत बना उनके विचारों और आदर्शों से किनारा कर लेते हैं सब....बेहतर है व्यक्ति को नहीं,उसके दिए सन्देश को याद रखें...इस बार तो गागर में सागर भर दिया आपने.

Dr. Ravi Srivastava ने कहा…

विचार अच्छे हैं.....पर यहाँ, कौन सुनेगा...? ...अधिकांश तो पहले से ही बुत बने हुए हैं.

* મારી રચના * ने कहा…

Awesome...!!! Mahefooz ji aapne hum sab ke dil ki baat ko shabdo main dhaal ke pesh kiya hain...

संजय भास्‍कर ने कहा…

सोच अलग सी.
आप तो बुतों के प्रदेश में हैं जहाँ जिन्दों के भी बुत बनते हैं.

संजय भास्‍कर ने कहा…

लेकिन कविता बहुत बहुत अच्छी लगी...
पता नहीं कैसे लिखते हैं आप....!

बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.

संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

vandana gupta ने कहा…

mahfooz ji,

mat banana mera but meri maut ke baad..........title padhkar hi aisa laga jaise kisi ne dil hi nikaal liya ho aur jab rachna padhi to kahne ko shabd hi kam pad gaye...........bahut hi gahrayi mein utar gaye aap aur ek sashakt rachna bana di aur wo hi shayad aaj ha rkoi chahta hai.
abhi kuch din pahle maine bhi kuch milta julta likha tha.......bhav thode alag hain.
lash ka meri jo chahe karna yaron
main nhi poochhne aane wala
zinda hun jab talak ji lene do
main nhi yahan amar hone wala.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

वाह...कमाल के भाव पिरोये हैं आपने इस छोटी सी रचना में...अति सुन्दर...
नीरज

बेनामी ने कहा…

बहुत उम्दा....

वैसे कहीं ये आपने 'मायावती' के लिए तो नहीं लिखा :)

...और ये साथ वाली तस्वीर शायद सहारागंज की है ...

Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…

महफूज भाई, थोडा और लिखा करो जब इतना बेहतर विषय चुन लेते हो....कविता बेहतर पर मै तो प्यासा ही रह गया.....

ओम आर्य ने कहा…

क्या कहे और शिवाय इसके ........
फीज़ा भी चुप है,
ख्वाहीशे भी ठहर गयी,

अरमानो ने लगा ली समाधि
तेरी इस नजाकत पर......

Alpana Verma ने कहा…

bahut khoob likha hai!

bhaav abhivyakti kuchh hi panktiyan mein prabhaavshali hai.

संजय भास्‍कर ने कहा…

कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।

kishore ghildiyal ने कहा…

bahut badiya likha hain bhaiya aapne

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

महफूज़ साहब कहाँ से लाते हैं इतने गहरे अर्थ ....???

न जाने कितनी बार पढ़ गयी ...हर बार नए अर्थ जुड़ते गए....लाजवाब....!!

मुनीश ( munish ) ने कहा…

nice thoughts in a time when living people want their statues erected with state money !

Udan Tashtari ने कहा…

सुपर्ब!!


मैं कहाँ था इतनी देर...बहुत उँची बात कह गये. वाह!!

यह होती है सोच की गहराई. छा गये, बालक!!

शेफाली पाण्डे ने कहा…

abhi nazar padee .....bahut sundar...

कडुवासच ने कहा…

... bahut khoob !!!!!!

Urmi ने कहा…

वाह वाह क्या बात है! इस लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ !

Satya Vyas ने कहा…

shahar e butan me but banwakar koi fayda bhi nahi hai mahfooj bhai .
aapki value waise hi mahfooj hai .

satya

Dr.Aditya Kumar ने कहा…

शाबास .......जीवन है चलने का नाम

शरद कोकास ने कहा…

इसका सही फॉर्म ऐसा होना चाहिये


मैं हमेशा चलना चाहता हूँ,
बोलना चाहता हूँ
सुनना चाहता हूँ
मत बनाना मेरा बुत
मौत के बाद भी
मैं नहीं चाहता होना
गूंगा बहरा और निश्चल ........

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

Jee .....sharad bhaiya....... aapke kahe mutaabiq thoda thik kar liya hai......

pata nahin kyun main is kavita lekar bahut pareshan hoon.... pata nahin iski theme mujhe kahan se , kaise mili...... yahi soch kar pareshan hoon.....

khair kabhi na kabhi to yaad aayega hii...

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

बेहतरीन भावाभिव्यक्ति हेतु साधुवाद...

लोकेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा…

अपनी मुख्यमंत्री जी को भी कुछ सीख देते ऐसा.........
जिससे उच्चतम न्यायालय की फटकार से आगे बच सकें वो.........
सुन्दर अभिव्यक्ति.......

Anil Pusadkar ने कहा…

इतना अच्छा लिखोगे तो लोग जबरिया बुत देंगे चाहे लाख मना करिये।हा हा हा।बहुत सुन्दर भाव और संदेश भी।

Brahmanand ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

एक गहरी अभिव्यक्ति...सम्पूर्ण विचार ..विचार के साथ चलने की प्रक्रिया को
सटीक शब्द दिए हैं....बहुत बहुत बधाई

बेनामी ने कहा…

abhi se ye khyal kaise aaya maan main abhi to puri zindgi padi hai...

satish kundan ने कहा…

bahut badhiya aur sasakat abhivakti...mahfooz jee mere blog par aapka swagat hai...jarur aana

Pappu Yadav ने कहा…

Mahfooz ji,
maine to socha tha...
IK BUT BANAUNGA TERI AUR POOJA KARUNGA
lekin ab kya hoga ?
hamesha ki tarah lajwaab kavita hai aapki !!

शरद कोकास ने कहा…

@महफूज़ अली said...
Jee .....sharad bhaiya....... aapke kahe mutaabiq thoda thik kar liya hai......

pata nahin kyun main is kavita lekar bahut pareshan hoon.... pata nahin iski theme mujhe kahan se , kaise mili...... yahi soch kar pareshan hoon.....

khair kabhi na kabhi to yaad aayega hii..

तुम्हारे अवचेतन मे उदय प्रकाश की यह कविता है जो हो सकत है तुमने कही पढी हो .. या ऐसे भी विचार आ सकते है कोई ज़रूरी नही ..।

मरने के बाद
आदमी कुछ नही बोलता
मरने के बाद
आदमी कुछ नही सोचता
कुछ नही बोलने और
कुछ नही सोचने पर
आदमी मर जाता है

( इस पर मेरे दो कमेंट हो गये अब और नही दूंगा)

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