बुधवार, 27 जनवरी 2010

जज़्बा ग़र दिल में हो तो हर मुश्किल आसाँ हो जाती है... मिलिए हिंदुस्तान के एक उभरते हुए ग़ज़लकार से: महफूज़

कहते हैं.....कविता या शायरी ख़ुदा  की ज़ुबां होती है...और उस ज़ुबां  को हम तक पहुँचाने वाले लोग बहुत ख़ास होते हैं...ऐसे ही एक बहुत ख़ास शख्स से आज मैं आपका विसाल करवाने जा रहा हूँ..नाम है जनाब पवन कुमार सिंह. यूँ  तो इनका तार्रुफ़ मेरी आवाज़ या मेरी कलम की मोहताज है ही नहीं ...इन्होने अपना बहुत ऊंचा मक़ाम बनाया हुआ है. जनाब पवन कुमार सिंह आई.ए.एस हैं....किसी ने मुझसे कहा था आई.ए.एस कोई बनता नहीं है,  आई.ए.एस पैदा होता  हैं....और यह बिलकुल सही बात है....शायद आपको आई.ए.एस कई मिल जाएँ ...लेकिन शायर आई.ए.एस , यह एक बहुत ही रेयर कॉम्बिनेशन है...और इनकी यही बात मुझे कायल कर गई.


जनाब पवन कुमार सिंह जी से मेरी मुलाक़ात अपने मेरे अपने शहर गोरखपुर प्रवास के दौरान हुई. जनाब पवन कुमार सिंह जी मेरे हमउम्र ही हैं और इस वक़्त गोरखपुर में जोइंट मैजिस्ट्रेट की बसात से ओज हैं...जनाब पवन कुमार सिंह जी लखनऊ के भी Sub divisional magistrate रह चुके  हैं. लखनऊ में प्रशासनिक शौर्य गाथा आपकी बहुत मशहूर है. लखनऊ में मुहर्रम के दौरान इनके वक़्त में पूरे अमन-ओ-चैन के साथ ताजिये का जुलूस निकलता था. पवन जी बहुत ही सदाक़त-म' आब शख्सियत हैं. 
 
पवन कुमार जी शुरू से ही एक मेधावी छात्र  रहे....पढाई लिखाई में हमेशा अव्वल....इनकी मेधा ऐसी तीखी की आईएस बनना बायें हाथ का खेल रहा....इस उपलब्धि में इनके पिता श्री जो कि पुलिस सेवा में रहे का भरपूर हाथ रहा.... आपके पिताश्री ने पुलिस सेवा में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित किया है.....इनके पिता भी बहुत तीक्ष्ण दिमाग  के व्यक्ति रहे....उनका व्यक्तित्व भी बहुत प्रभावपूर्ण है....जो भी उनसे मिलता है...उनकी मृदुभाषा से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता....

जैसा की मैंने आपसे बताया ..जनाब पवन कुमार जी एक आई.ए.एस होने के साथ-साथ एक पहुँचे हुए शायर भी हैं......इस ग़ज़लगो ने ग़ज़लों की दुनिया में भी धूम मचा रखी है....मैं ग़ज़लों की तमीज तो नहीं रखता लेकिन इनकी ग़ज़लों ने हमेशा मुझे झिंझोड़ा है..... आपको उर्दू की बहुत ज़हीन इल्मियत हासिल है. आप सही मायनों में ग़ज़ल को ग़ज़ल लिखते हैं. कहते हैं कि बिना उर्दू और फ़ारसी के ग़ज़ल बन ही नहीं सकती और आप ऐसा लगता है कि  आपकी क़लम से उर्दू कि स्याही निजात होती है. हालांकि...आजकल ग़ज़ल हर भाषा में लिखी जा रही है. आपकी कई ग़ज़लें हिंदुस्तान के मशहूर क़िताबों में निशाँ-ऐ-शुहूद हो चुकी हैं. कई मशहूर ग़ज़लकारों ने आपकी ग़ज़ल को इल्मियत तौर पर तस्दीक किया है. इसीलिए आज की मेरी पोस्ट जनाब पवन कुमार जी के नाम आबिद (समर्पित) करता हूँ...उम्मीद ही नहीं ...यकीं  है आप सब भी मुझसे ज़रूर इत्तेफ़ाक़ होंगे...... 

मैंने अपने गुरु मशहूर गीतकार और ग़ज़लकार जनाब जावेद अख्तर जिनसे मैं आजकल ग़ज़ल की बारीकियां सीख रहा हूँ...से आपके बारे में ज़िक्र किया और उन्होंने ने भी आपकी उर्दू ग़ज़लों को लायक-ऐ-तहसीन किया है. और आपको हिंदुस्तान का उभरता हुआ ग़ज़ल गो का तमगा दिया है. जनाब जावेद अख्तर साहब कहते हैं कि ग़ज़ल वो होती है जिसे गाई जा सके और आपकी ग़ज़लों को जावेद साहब ने उसी रूप में तस्दीक किया है. मैंने भी सोचा की मैंने हर विधा में लिखा है तो क्यूँ ना ग़ज़ल में भी हाथ आज़माया जाये? पर ग़ज़ल की बारीकियों को सीखने की ज़रूरत थी और उसके लिए एक अच्छे गुरु की ज़रूरत थी और जनाब जावेद साहब से अच्छा गुरु कौन हो सकता था. उम्मीद है की आने वाले दिनों में आप सबका तार्रुफ़ मेरी ग़ज़लों से भी होगा. ग़ज़ल सीखने में जनाब पवन कुमार सिंह जी भी मेरी काफी मदद कर रहे हैं. आपकी एक भूरे कवर की डाइरी है... जिसमें कई उम्दा ग़ज़लें आपकी क़लम से शिरकत कर चुकी हैं. मेरी आपसे गुज़ारिश है कि आप अपनी डाइरी के पन्नों को अपने ब्लॉग पर पूरी तरह से उकेर दें. आपकी एक ग़ज़ल जो मुझे बहुत दिल अज़ीज़  है...जिसमें आपने मोहब्बत में टूटने के एहसास को ... और टूट के फिर से खड़े होने के जज़्बात को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है....तो पेशे-ऐ-ख़िदमत है आपकी वही उम्दा ग़ज़ल ... तो हज़रात!!!!  ज़रा आप सब भी मोलाहिजा फरमाइयेगा...


ज़रा सी चोट को महसूस करके टूट जाते हैं !
सलामत आईने रहते हैं, चेहरे टूट जाते हैं !!

पनपते हैं यहाँ रिश्ते हिजाबों एहतियातों में,
बहुत बेबाक होते हैं वो रिश्ते टूट जाते हैं !!

नसीहत अब बुजुर्गों को यही देना मुनासिब है,
जियादा हों जो उम्मीदें तो बच्चे टूट जाते हैं !!

दिखाते ही नहीं जो मुद्दतों तिशनालबी अपनी, ,
सुबू के सामने आके वो प्यासे टूट जाते हैं !!

समंदर से मोहब्बत का यही एहसास सीखा है,
लहर आवाज़ देती है किनारे टूट जाते हैं !!

यही एक आखिरी सच है जो हर रिश्ते पे चस्पा है,
ज़रुरत के समय अक्सर भरोसे टूट जाते हैं !!


आपका यह कहना है कि  जिंदगी में जिन चीज़ों की ज़रूरत सबसे ज्यादा होती है उनमे दोस्तों को भी शामिल किया जाना बेहद ज़रूरी है। दोस्तों की ज़रूरत आपको उस समय सबसे ज्यादा होती है की जब आप उदास होते हैं या फ़िर कि जब आप काफी खुश होते हैं. वक्त पर दोस्तों का काम आना आपके लिए तसल्ली देने वाला लम्हा होता है। दोस्ती के बारे में एक बात और ,दोस्ती हमेशा तभी होती है जब आप निस्वार्थ तरीके से किसी से जुड़ते हैं. मुझे बहुत ख़ुशी है कि आप मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं.  चलते चलते पेश है आपकी एक और ग़ज़ल... 
ज़रा आप लोग भी नोश फरमाइयेगा... 

तेरी खातिर खुद को मिटा के देख लिया !
दिल को यूँ नादान बना के देख लिया !!

जब जब पलकें बंद करुँ कुछ चुभता है,
आँखों में एक ख्वाब सजा के देख लिया !!

बेतरतीब सा घर ही अच्छा लगता है,
बच्चों को चुपचाप बिठा के देख लिया !!

कोई शख्स लतीफा क्यों बन जाता है,
सबको अपना हाल सुना के देख लिया !!

खुद्दारी और गैरत कैसे जाती है,
बुत के आगे सर को झुका के देख लिया !!

वस्ल के इक लम्हे में अक्सर हमने भी,
सदियों का एहसास जगा के देख लिया !!

इत्तेफाक यह देखिये आज... कि... मैंने दिन में यह पोस्ट लिखी और शाम में जनाब पवन जी का फोन आ गया... कि आप लखनऊ में ही हैं... और अभी उन्ही से मिल कर आ रहा हूँ...  वो दिन दूर नहीं जब हम हिंदुस्तान के बड़े नुमाईन्दा शायरों और ग़ज़ल कारों में आपका नाम  शुमार होते हुए ... फ़ख्र से  देखेंगे.  जनाब पवन जी के लिए बहुत सारी दुआएं......  आमीन....

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

जब मैं चोरी करते पकड़ा गया..:- महफूज़



आज आपको अपने स्कूल का एक बहुत मजेदार संस्मरण बताने जा रहा हूँ. यह संस्मरण पढ़ कर आपको पता चलेगा कि मैं स्कूल में कितना बदमाश किस्म का लड़का था. चंचलता व बदमाशी तो आज भी इस उम्र में भी (?) करता हूँ. बात उन दिनों की है जब मैं बारहवीं क्लास में पढ़ता था. मेरा एक अपना गैंग हुआ करता था.. मेरे गैंग में हम कोई आठ लड़के थे.  हम आठों अपने क्लास के सबसे स्टूडिय्स और बदमाश लड़के थे.
 
एक लड़का जिसका नाम सेंथिल राजन था. उसका एक ही काम था कि वो लड़किओं का टिफिन रोज़ असेम्बली से पहले चुरा कर खा जाता था, आजकल इडियन एयर फ़ोर्स में स्क्वाड्रन लीडर है और फाइटर पाइलट है.
 
मनोज यह आर्मी में कैप्टन था और कारगिल युद्ध में शहीद हो चुका है और इसकी मूर्ती यहीं  लखनऊ में इसी के नाम से मशहूर है.
 
गुरजिंदर सिंह सूरी यह महाशय भी कैप्टन थे और कारगिल में शहीद हो चुके हैं इनकी भी मूर्ती पंजाब के गुरदासपुर में लगी है. गुरजिंदर को बकरियां  चुराने का बहुत शौक था. यह बकरियां चुरा कर काट कर खा जाता था और खाल बेच देता था १०० रुपये में.  

सुखजिंदर सिंह ...इसको हम लोग सुक्खी बुलाते थे... इसकी ख़ास बात यह थी कि यह जब अपना जूडा खोल देता था तो बिलकुल लड़की लगता था. एक बार संडे के दिन इसके घर हम लोग गए  कॉल बेल बजाई तो यह बाहर निकला ...हम लोगों ने पूछा दीदी सुक्खी है? इसने हम लोगों को एक झापड़ लगाया और अपने बाल पीछे कर के बोला कि यह रहा सुक्खी... यह IIT से इंजिनियर हो कर आजकल कनाडा में है.
 
वजीह  अहमद खान यह आजकल लन्दन में है और वर्ल्ड का बहुत जाना माना कॉस्मेटिक सर्जन है. इसको घूमने का बहुत शौक है यह उस ज़माने में कालोनी के घरों का टी.वी. बना कर पैसे बचाता था और फिर घूमने निकल जाता था.  और आज पूरी दुनिया घूम रहा है. हमारे फिल्म जगत के काफी लोगों ने इससे सर्जरी करवाई है.  
 
अमलेंदु यह आजकल एक डिग्री कॉलेज में सीनियर लेक्चरार है.  अमलेंदु बिहारी था और  को  बोलता था. यह बहुत जिनिअस था. यह इतिहास का बहुत बड़ा ज्ञाता है. और सिविल में सेलेक्शन ना होने कि वजह से फ्रस्ट्रेट रहता है. 
 
मनीष ....मनीष आजकल IAS है ... और इस वक़्त डिस्ट्रिक्ट मैजिसट्रेट है. यह दसवीं क्लास से दारु पीता था. IIT कानपूर से पास हुआ ... यह फ्रूटी (Frooti) के पैकेट में दारु भर कर पीता था. 


बात हमारी बारहवीं क्लास की है.  अब जैसा की मै बता चुका हूँ कि हम लोग स्कूल के सबसे बदमाश लड़कों में आते थे. हम लोग क्या करते थे कि स्कूल में छुट्टी के बाद घर नहीं जाते थे...  और हम सब मिल कर दूसरे क्लासेस में जा कर फैन और ट्यूबलाईट के चोक खोल लिया करते थे. और फिर वही फैन्स और चोक्स को हम लोग  मार्केट में ले जा कर बेच दिया करते थे. फिर जो भी पैसे मिलते थे. उससे हम शाम में होटल प्रेसिडेंट में जाकर ऐश किया करते थे. हमारा स्कूल  बहुत बड़ा था ... प्राइमरी क्लास मिला कर कुल पांच सौ साठ कमरे थे... और हर क्लास में दस -दस फैन और छह ट्यूबलाईट लगे  होते थे. होटल प्रेसिडेंट आज भी है गोरखपुर में. हम लोग रोज़ एक फैन और चोक चुरा लिया करते थे और फिर बेच देते थे. धीरे धीरे पूरे स्कूल में खबर फ़ैल गई कि पंखे और चोक चोरी हो रहे हैं. प्रिंसिपल हमारा बहुत परेशां लेकिन उसको चोर मिल ही नहीं रहे थे. और हम लोग अपना काम बहुत सफाई से कर लिया करते थे. एक बार क्या हुआ कि हम दूकान पर फैन और चोक बेच रहे थे... तो जिस दूकान पर हम लोग सब बेच रहे थे उसी दूकान  पर एक प्राइमरी क्लास का टीचर भी कुछ सामान खरीद रहा था और उस टीचर को हम लोग जानते ही नहीं थे, लेकिन वो हम लोगों को जानता था ...उसने फैन बेचते हुए देख लिया और स्कूल के हर फैन पर पेंट से स्कूल का नाम शोर्ट फॉर्म में लिखा होता था. दूकानदार ने भी हमें पैसे दिए और हम लोग चलते बने. 

दूसरे दिन स्कूल में असेम्बली में हम आठों का नाम पुकारा गया. हम  आठों बड़े मज़े से डाइस की ओर दौड़ते हुए गए... क्यूंकि आये दिन हम आठों को कोई ना कोई प्राइज़ या फिर ट्राफी मिलती ही रहती थी और काफी ट्रोफीज़/प्राइज़ हम लोगों को मिलनी बाकी थीं... हम लोगों ने वही सोचा कि कुछ ना कुछ प्राइज़ मिलेगा इसीलिए नाम पुकारा गया है.  हम बड़ी शान से डाइस पर जाकर खड़े हो गए... सीना चौड़ा कर के. फिर असेम्बली वगैरह शुरू हुई. सारी औपचारिकताएं पूरी हुईं असेम्बली की. उसके बाद हमारा प्रिंसिपल माइक पर आ गया. हमारा प्रिंसिपल हम लोगों की तारीफ़ करने लगा ...फिर कहता है कि आज इन शेरों की महान करतूत  मैं बताने जा रहा हूँ. तब तक के सामने टेबल सज गई. हम लोगों ने सोचा कि ट्राफी इसी पर रखी जाएँगी और एक एक कर के हम लोगों को दी जाएँगी. थोड़ी देर के बाद हम लोग क्या देखते हैं कि टेबल पर वही फैन्स और चोक सजाये जा रहे हैं जो हम लोगों ने मिल कर चुराए थे. अब हम लोगों को काटो तो खून नहीं.. शर्म के मारे हालत खराब हो रही थी. हम लोग समझ गए कि चोरी पकड़ी गई. अब हमारे प्रिंसिपल ने हम लोगों की तारीफ़ करनी शुरू की.. पांच हज़ार बच्चों के सामने बताया कि हम ही लोग थे वो चोर. उसने उस दुकानदार को भी बुला लिया था. वो भी असेम्बली  में खड़ा था. वो टीचर भी आ गया गवाही देने.  अब हम लोगों की ख़ैर नहीं थी यह हम लोगों की समझ में आ गया. 


हमारे प्रिंसिपल ने एक पतला सा डंडा रखा हुआ था ... उस डंडे का नाम उसने गंगाराम रखा था. गंगाराम जिस पर भी पड़ता वो सीधा हॉस्पिटल जाता था. और जहाँ पड़ जाता था ...वहां से चमड़ी भी साथ लेकर निकलता था. अब प्रिसिपल ने चपरासी से कहा कि जाओ गंगाराम को लेकर आओ. गंगाराम आ गए. चपरासी रोज़ कपडे को तेल में डुबो कर गंगाराम की मालिश किया करता था. बस फिर क्या था.. सुबह -सुबह  जो मार पड़ी कि आज तक याद है. मुझे तो प्रिंसिपल ने नीचे गिरा कर लातों से भी मारा था. उसको मेरे सीने के बालों से बहुत चिढ थी... हमेशा कहता था कि सीने  के बाल नोच-नोच कर मारूंगा. प्रिंसिपल मुझे लीडर समझता था. कहता था कि यह शक्ल से धोखा देता है. एक और मजेदार बात बता रहा हूँ . हमारे स्कूल में हिंदी का नया टीचर आया था ...वो क्लास में सबका इंट्रो ले रहा था... मेरी बारी आई ...मैंने भी अपना इंट्रो दिया. उसके बाद वो टीचर बोलता है कि बड़ा भोला बच्चा है. इतना सुनते ही पूरी क्लास हंसने लग गई. बेचारे! के समझ में आया ही  नहीं कि सब लोग क्यूँ हंस रहे हैं. बहुत दिनों के बाद उसके समझ में आया कि उस दिन सब लोग क्यूँ हंस रहे थे. 

ख़ैर! हम लोग पांच हज़ार बच्चों के सामने मार खा कर क्लास में गए टूटे-फूटे. लेकिन शर्म नाम की चीज़ हम लोगों के चेहरे पर बिलकुल भी नहीं थी. क्लास में पहुँचते ही हम लोगों को देख कर पूरी क्लास खूंब हंसी... हम लोग भी खूब हँसे. हँसते हँसते बीच में यहाँ वहां दर्द भी हो उठता था. थोड़ी देर के बाद हम लोगों का सस्पेंशन आर्डर लेकर चपरासी आ गया. हम लोगों के लिए सस्पेंड होना आम बात थी. With immediate effect हम लोगों को स्कूल छोड़ने और अपने-अपने गार्जियंस को लाने का आदेश था.  हम लोगों ने अपना अपना बैग उठाया... पूरी क्लास हम लोगों को विदा करने गेट तक आई और अश्रुपूरित आँखों से सबने हमें विदाई दी. सब लोगों ने कहा कि जल्दी आना नहीं तो पूरा स्कूल सूना-सूना लगेगा. यह विदाई साल में पांच-छः बार ज़रूर होती थी. हमने भी जल्द ही दोबारा आने का वादा कर के सबसे गले मिल कर विदा लिया. उसके बाद घर पर क्या हुआ वो मैं बता नहीं सकता. 

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

सिर्फ एक सवाल का जवाब आज मांगता हूँ...: महफूज़



कहाँ खो गयीं थीं तुम?
जवाब दो....
मत पूछो हाल मेरा,
पर मेरे हर आंसू  का हिसाब दो.

बुना था जो ख़्वाब तुम्हारे साथ,
उसे धड़कन बना कर पास रखा था,
तस्वीर जो बनाई थी तुम्हारी,
उसे आँखों में बसा कर रखा था.

सिर्फ एक सवाल का जवाब आज मांगता हूँ तुमसे,
क्या दूर रह कर तुम भी उदास रहतीं थीं? 

सोमवार, 11 जनवरी 2010

रोक सको तो रोक लो: - महफूज़



अभी थोड़े दिन पहले कि ही बात है. मैं जिम से एक्सरसाइज़ कर के अपने दोस्त पंकज के साथ घर लौट रहा था. कडाके कि ठण्ड में भी मुझे बहुत गर्मी लग रही थी. उस दिन कार्डियो और बेंच प्रेस बहुत ज्यादा कर लिया था. मुझे बॉडी बिल्डिंग का बहुत शौक़ है, मैं आज भी दो सौ पुश अप्स के साथ डेढ़ सौ पुल अप्स कर लेता हूँ. मेरे बयालीस इंच के बाइसेप्स और V-shaped  बॉडी पर टी-शर्ट खूब फब्ती है और इसीलिए मैं टी-शर्ट ज्यादा पहनता हूँ. इससे दो फायदे होते हैं एक तो सामने वाला पंगा लेने में थोडा घबराता है और खुद का सेल्फ-कॉन्फिडेंस भी अप रहता है. हमारे ज़ाकिर भाई कहते हैं कि वैसे भी आप बहुत हैंडसम हैं फिर काहे को इतनी बॉडी बिल्डिंग करते हैं?
अब क्या किया जाये... खुद को फिट रखना भी ज़रूरी है. अब ख़ुदा ने हमें जो अच्छी चीज़ दी है तो उसे संभालना भी हमारा ही काम है ना. ख़ैर! मैं बता रहा था कि उस दिन जब मैं लौट रहा था तो रस्ते में बहुत भीड़ थी, मेरा जिम मेरे घर से दस  किलोमीटर दूर हज़रतगंज में है, कई जगह बहुत जैम लगा हुआ था. बाइक ड्राइव करने में बहुत दिक्कत तो रही थी. मैं कैसे ना कैसे... किसी तरह सारे रुकावटों और भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ता चला जा रहा था. अपनी वैसे यह आदत है कि मैं ड्राइव करते वक़्त सामने वाले को कोई मौका नहीं देता, मेरा यही मोटिव रहता है कि बस बढ़ते रहो. रुकना  सामने वाले को है... मैंने कभी रुकना नहीं सीखा. अपने यही सिद्धांत पर कायम रहते हुए मैं बढ़ा  चला जा रहा था. तभी बाइक पर पीछे बैठा पंकज मुझसे कहता है कि," यार! महफूज़, तू बहुत ओफ्फेंसिव (offensive) ड्राइविंग करता है..."
मैं उसकी बात समझ नहीं पाया. मैंने कहा ," क्या मतलब?" मैं तो सारे रूल्ज़ फोल्लो करता हूँ...
उसने कहा कि " ओफ्फेंसिव से मेरा मतलब है कि तू सामने वाले को रुकने को मजबूर करता है और खुद रास्ता नहीं देता है. यह तेरा बहुत abstract behaviour है. उसकी बात सुनकर मैं जोर से हंस दिया. मैंने कहा कि यही तो अपना उसूल है. सामने वाले को मजबूर कर दो कि वो तुम्हे आगे बढ़ने के लिए रास्ता दे. मैं अपनी रियल ज़िन्दगी  में भी ऐसा ही करता हूँ... मैं कभी किसी को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता हूँ. मैं कभी किसी से डरता नहीं. ना ही खुद को किसी से कम समझता हूँ. आज जो दुनिया में इतनी कम उम्र में इतना नाम कमाया है ...उसके पीछे यही attitude है...  आज तक जिस काम में हाथ डाला है ... उसे पूरा कर के ही छोड़ा है. यही सब समझाते हुए कब उसका घर आ गया पता ही नहीं चला. उसे उसके घर ड्रॉप कर के मैं अपने घर आ गया.
उस वक़्त जो बात मैंने उसकी हंस कर टाल दी थी , वो बात मेरे दिल के अन्दर तक उतर चुकी थी. उसकी offensive driving वाली बात ने मुझे खुद के बारे बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर दिया था. उसका मुझे offensive कहना ना जाने क्यूँ अच्छा लगा था.हालांकि यह offensive  शब्द बहुत नेगेटिव है पर यह मुझ पर पोसिटिवली सूट करता है. मुझे बहुत अच्छे से याद है आज भी ... मैं जब स्कूल में था और अगर किसी लड़के के मेरे से ज्यादा मार्क्स आ जाते थे ...तो मैं उसे मारने के बहाने खोजा करता था और जब तक के उसे मार नहीं लेता था ..मुझे चैन नहीं मिलता था. उस के दिल में इतनी दहशत पैदा कर देता था कि वो बेचारा जानबूझ कर अपना टेस्ट खराब कर देता था. और तो और मैं खुद को ही अपनी क्लास का टोपपर घोषित कर दिया करता था.  मेरा अपना गैंग था स्कूल में ...और मेरे गैंग में जितने भी लड़के थे सब एक नंबर के आवारा और studious थे... हम लोग all-rounder थे... अब मेरे गैंग के ज़्यादातर लड़के कारगिल युद्ध में शाहिद हो चुके हैं. बाकी जो बचे हैं उनमें से कुछ IAS  हैं , कुछ lecturer हैं, कुछ डॉक्टर हैं तो कुछ यहाँ वहां अच्छे पदों पर हैं. एक -दो चुनाव लड़ कर विधायक हैं. स्कूल के दौरान मेरे टीचर्स भी मुझसे बहुत डरते थे... क्यूंकि मुझे ऐसा लगता था कि मैं अपने टीचर से कहीं ज्यादा जानता हूँ... और कई मौकों पे इसे मैंने साबित भी किया... मेरे टीचर्स खुद मुझसे परेशां रहते थे... मेरे टीचर्स जो पढ़ाते थे... वो मैं पहले से ही  जानता था... और जब मैं क्लास में जवाब पहले ही दे देता था... तो बेचारा टीचर खुद ही शर्मा जाता था. मेरे टीचर्स मेरे पिताजी से मेरी शिकायत भी किया करते थे कि आपका बेटा रिस्पेक्ट नहीं करता है.  और मेरे पिताजी मुझे सबके सामने डांट मार कर टीचर और खुद कि संतुष्टि कर लेते थे.

यही हाल मेरा यूनिवर्सिटी में भी रहा. मैंने कभी भी यूनिवर्सिटी में ग्रैजूईशन की क्लास नहीं की...पोस्ट ग्रैजूईशन में भी कभी क्लास नहीं किया... मैं अपने टीचर्स को भी नहीं जानता था... न ही मेरे टीचर्स मुझे जानते थे... लेकिन मैंने पोस्ट ग्रैजूईशन में टॉप किया ... गोल्ड मेडल मिला... जब convocation में मुझे बुलाया गया ... और गोल्ड मेडल देने के बाद दो शब्द बोलने के लिए कहा... तो मैं बहुत परेशां हो गया.. क्यूंकि बाकी लोग श्रेय तो अपने टीचर्स को दे रहे थे.... और मैं अपने टीचर्स को ही नहीं जानता था... और न ही मेरे टीचर्स मुझे... बड़ी दुविधा कि सिचुईशन थी.. ख़ैर! मैंने दो शब्द में कहा कि मेरे इस सफलता का सारा श्रेय मैं खुद को देता हूँ... क्यूंकि मेरी मेहनत का  ही नतीजा यह सफलता थी.... और जब यह बताया कि मुझे UGC (NET) JRF भी  मिल  चुका है... तो सबने और दांतों तले उँगलियाँ दबा ली...  बेचारे ... मेरे यूनिवर्सिटी के टीचर.. खुद ही परेशां  थे...  सबने पूछा कि भाई कौन से बिल में छुपे थे... और किस्से तुमने पढाई कि... और बिना गुरु के कैसे टॉप कर गए?
मुझे ऐसा लगता है कि मैं सर्वज्ञाता हूँ. मुझे ऐसा भी लगता है कि कोई मेरे बराबर खड़ा नहीं हो सकता. कई बार तो मुझे ऐसा भी लगता है कि मैं अजर-अमर हूँ. मुझे ऐसा लगता है कि मैं कोई सुपर -ह्यूमन (Super Human) हूँ या फिर मेरे में डबल Y क्रोमोज़ोम हैं जो कि रेयरली ही मिलता है. मैं जब छोटा था तो साईकिल चलाने का शौक रखता था, मैं इंडिया का बेस्ट साइक्लिस्ट भी रह चुका हूँ और आज भी साईकिल पर वैसा ही स्टंट करता हूँ जो आपने सिर्फ फिल्मों में ही देखे होंगे. अपने स्कूल के दौरान मैंने कोई चौरासी साइकलें तोड़ी हैं. कभी कभी मैं जब सुबह सो कर उठता था तो यह सोच लेता था कि आज साईकिल का ब्रेक नहीं मारूंगा... चाहे कुछ भी हो जाए... और मैं वाकई में साईकिल का ब्रेक नहीं मारता था... एक बार तो जीप से टकरा गया था ...लेकिन मैं टकराते ही जम्प लगा गया था... लोगों कि भीड़ लग गई... मुझसे पूछा गया कि तुमने ब्रेक क्यूँ नहीं मारा... मैंने कहा कि मैंने सोचा हुआ था आज कि ब्रेक नहीं मारूंगा... सबने कहा कि पागल है मेजर साहब का लड़का. उस वक़्त पिताजी आर्मी में मेजर थे. मेरे पिताजी भी मुझे सनकी कहते थे.... हमारे स्कूल में जब भी कोई फंक्शन होता था तो मैं ज़बरदस्ती माइक ले लेता था ... क्यूंकि मुझे कुछ ना कुछ करना होता था.

एक बार हमारे स्कूल में स्कूल कैप्टन का चुनाव होने वाला था ...मैंने भी अपना नाम नोमिनेट किया पर हमारे प्रिंसिपल ने मेरा नाम काट दिया... प्रिंसी ने कहा कि तुम अगर कैप्टन बनोगे तो पूरा स्कूल तबाह हो जायेगा. और नोमिनेट ऐसे लड़के का नाम हुआ जिससे हमारे गैंग कि दुश्मनी थी. अब मुझे बहुत बेईज्ज़ती महसूस हुई ... मैंने भी प्रिंसी से कहा कि मैं इसे कैप्टन बनने ही नहीं दूंगा... प्रिंसी ने मुझे कहा कि मैं तेरे सीने के बाल खींच के मारूंगा... मेरे शर्ट में से मेरे सीने के बाल झलकते थे... उसे ही देख कर उसने कहा. मैंने भी कहा कि मैं उसे कैप्टन बनने ही नहीं दूंगा. फिर मैंने सब क्लास में जाकर सबको धमकी दी कि कोई अगर उसे वोट करेगा तो मार खायेगा. ख़ैर ! वो लड़का स्कूल कैप्टन बन गया. फिर वो हमारे ऊपर रौब गांठने लगा. पहले ही दिन हमने उसकी ऐसी धुनाई की कि वो सारी हेकड़ी भूल गया. और मैंने खुद को स्कूल कैप्टन घोषित कर दिया. अंत में प्रिंसी को भी मानना पड़ा ... बेचारे ने कहा कि पांच महीने की बात है यह लोग तो पास ओउट हो जायेंगे. इसी को बना देते हैं. मैं स्कूल कैप्टन बन गया.

ऐसे ही हमारे ट्वेल्थ के बोर्ड एक्जाम चल रहे थे.. हमारा सेंटर एक दूसरे स्कूल में पड़ा था... मैंने बोर्ड एक्जाम के तीन महीने पहले ही हिंदी छोड़ के इकोनोमिक्स सब्जेक्ट ले लिया था... अब जब बोर्ड में इकोनोमिक्स का पेपर आया तो मेरे तो हाथ पाँव फूल गए, मुझे पूरे पेपर में से सौ में से सिर्फ छब्बीस नंबर के सवाल आते थे... मैं कहा कि लो मेरी तो कम्पार्टमेंट अब पक्की हो गई... मैं बहुत परेशां हुआ . मेरे बगल में एक रीटा नाम की लड़की बैठी थी और उसके बगल में खिड़की के पास मेरा दोस्त दिनेश बैठा था... मैंने दिनेश से कहा कि भाई मैं तो गया इस बार ... आधे घंटे तक मैं इसी सोच में पागल हुआ जा रहा था.. थोड़ी देर के बाद मैंने एक डेसिशन लिया और अपना प्लान दिनेश को बताया ... दिनेश ने मेरा साथ देने के लिए कहा ... प्लान यह था कि क्लास के बाहर दिनेश का बैग रखा था उसमें इकोनोमिक्स की  बुक थी.. अब सवाल यह था कि बुक कैसे निकालूँगा ... ख़ैर! दिमाग में एक प्लान आ गया ... मैं दौड़ते हुए टोइलेट का बहाना बना कर बाहर भागा और दिनेश के बैग को जोर से लात मारी और बैग सीधा बाथरूम के अन्दर ... मैं किताब अपने जैकट में छुपा कर ले आया था... और पूरी चीटिंग की... बेल लगने के ठीक दस मिनट पहले टीचर ने मुझे चीटिंग करते हुए पकड़ लिया ... मैंने बुक उठा कर दिनेश को दी और दिनेश ने किताब उठा कर खिड़की से बाहर pond में फ़ेंक दी.. और मैं टीचर से उलझ गया कि मैंने चीटिंग नहीं की.. टीचर ने कहा कि इतने सारे लोगों ने तुम्हे देखा है चीटिंग करते हुए... मैंने कहा कि अगर कोई कह देगा तो मान जाऊंगा. अब मेरे डर से किसी ने कुछ कहा ही नहीं. और ऐसे मैं बच गया.. पर यह बात हमारे प्रिंसी को मालूम चल गई... जब CBSE board का रिज़ल्ट आया तो मैंने हर सब्जेक्ट में टॉप किया था ... इकोनोमिक्स में छियासी नंबर थे. इंग्लिश का रिकॉर्ड तो आज भी मेरे ही नाम है है मेरे नाइंटी एट नंबर थे.  हमारे प्रिंसिपल ने कहा कि जिस दिन महफूज़ और उसका गैंग स्कूल से निकलेगा उस दिन मैं पूरे स्कूल को गंगा जल से धोऊंगा.
मैं शुरू से offensive रहा हूँ. Aggressiveness मेरी नसों में दौड़ता है.  मेरे साथ यह है कि अगर मुझे किसी ने खराब बोला तो वो सिर्फ मेरा खराब वाला रूप ही देखेगा. अगर मेरी कहीं कोई गलती है तो मैं अपनी गलती मानते हुए चुपचाप माफ़ी लेता हूँ. मुझसे कभी कोई जीत नहीं सकता. मेरे से जीतने के लिए वो जूनून डेवलप करना पड़ेगा. मुझे सिर्फ प्यार से ही जीता जा सकता है... प्यार से तो मैं जान भी दे दूंगा. मेरे गुस्से या ताप से अगर कोई बचा सकता है तो वो कोई नहीं खुद मैं ही हूँ. मैं अपनी आज की ज़िन्दगी में भी बहुत aggressive रहता हूँ.. मैं सामने वाले को खुद के सामने काम्प्लेक्स कर देता हूँ. मुझे हमेशा लोगों से घिरा रहने में ज्यादा मज़ा आता है. मेरे aggressiveness  की हद यहाँ तक है कि ... मेरी जिस भी गर्ल फ्रेंड ने मुझे लो करने कि कोशिश की उसे मैंने अपने ज़िन्दगी  से निकाल फेंका. इसीलिए.. ऐसी पर्सनैलिटी होने के बावजूद भी मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है. और इस बात का कोई यकीन भी नहीं करेगा. लड़कियां मुझ से बहुत डरती हैं....आज भी मुझे लोगों को डरा कर रखना बहुत अच्छा लगता है.  उत्तर प्रदेश सरकार में कई मंत्री ऐसे हैं/रहे जो मुझसे गाली भी खाए और एक दो तो मार खाते खाते बचे. अब जब मैं खुद इस बार मेयर का चुनाव लड़ने जा रहा हूँ... गोरखपुर से... तो मेरा यही बिहैवियर मेरे बहुत काम आ रहा है.
मेरे साथ यह भी है कि मुझसे किसी भी सब्जेक्ट पर बात किया जा सकता है. मुझे ऐसा लगता है कि आप अगर किसी को दबा सकते हैं तो वो सिर्फ नॉलेज है. अगर मुझे किसी चीज़ कि नॉलेज नहीं है... तो मैं उस वक़्त शांत रह कर ...चुपचाप उस नॉलेज को गेन करने में लग जाता हूँ. मैं हमेशा लर्निंग मोड में रहता हूँ.  Offensive होना बुरा नहीं है... जब तक offensive  नहीं होंगे... तब तक के मंज़िल को नहीं पाया जा सकता.  और फिर offensive होने के लिए भी सबसे पहले नौलेजैबल होना पड़ता है , बिना नॉलेज के आप offensive हो ही नहीं सकते हैं. अगर हम ड्राविंग भी कर रहे हैं तो हमें offensive  होना पड़ेगा नहीं तो सामने वाला तो आगे बढ़ने के लिए तैयार है ही. आम ज़िन्दगी में भी वही इंसान सफल होता है जिसमें जूनून होता है. और यह जूनून बिना offensive हुए आप ला नहीं सकते. और यही चीज़ मैं खुद के साथ करता हूँ. मेरे सामने मैं कभी किसी को टिकने नहीं देता. और कोई अगर मेरी बुराई बिना मतलब में करता है तो उसे मेरे गुस्से को भी झेलना होगा. अगर यह offense है तो ऐसा offense मैं कई बार करने के लिए तैयार हूँ. ब्लॉग जगत में भी कई बार offensive हुआ हूँ.. .. पर वो तभी हुआ हूँ... जब किसी ने मेरे दोस्तों को बिना मतलब में बुरा-भला कहा.. तो अपने दोस्तों के साथ खडा होना मेरा फ़र्ज़ है... भले ही वो गलत हों... मैं तो अपने ताप से गलत को भी सही करने कि ताक़त रखता हूँ... मेरे अन्दर इतनी एनर्जी है... कि एक बार हमारे यहाँ बाथरूम का नल खराब हो गया था..प्लंबर आया लेकिन वो नल अपने रिंच  से नहीं खोल पाया... कहता है कि तेल डाल कर दो घंटे रखिये तब खोलूँगा... मैंने कहा ऐसे कैसे नहीं खुलेगा..और मैंने उस नल को  सिर्फ अपने हाथों से पाइप से अलग कर कर दिया. बेचारा , आँखें फाड़ कर देख रहा था. तो यहाँ वो नल खोलने में मेरी शारीरिक ताक़त कम और दिमागी ताक़त ज्यादा थी.. यहाँ भी वही offensive nature  काम आया. मतलब यही है कि offensive नेचर को पोज़िटिवली यूज़ कर सकते हैं. अब मुझे यहाँ घमंडी भी कह सकते हैं.... पर क्या offensive होना वाकई में घमंडी होना है?

आज अवधिया जी ने एक पोस्ट लिखी है उस पोस्ट में एक लाइन उन्होंने लिखी जो मुझे छू गई "पुण्य करने के लिये पाप भी करना पड़ता है। पाप और पुण्य का एक दूसरे के बिना काम ही नहीं चल सकता।याने कि पाप और पुण्य एक दूसरे के पूरक हैं।" इस लाइन में कितनी प्रेक्टिकलिटी है. अब बात तो सही  है कि पुण्य करने के लिये पाप भी करना पड़ता है। मैं ऐसे हज़ारों पाप करने के लिए तैयार हूँ. जिस चीज़ को करने से अंतरात्मा रोकती नहीं है वो पुण्य है, और जिस चीज़ को करने से अंतरात्मा रोकती है वो पाप है. कुल मिला कर सारांश यही है कि .... बहुत थोड़े शब्दों में कहूँगा खुद को डिफाइन करते हुए....
आप मुझे या तो प्यार कर सकते हैं या फिर नफरत, 
पर आप मुझे मुझे नज़रंदाज़ नही कर सकते....... 
क्यूंकि यही मेरा जादू है, 
लीक से हटकर काम करने का एक अलग ही जूनून  है.... 
और मैं हमेशा विवादों में ही रहता हूँ.....

बस फर्क यह है की मैं कोई राजनीतिज्ञ या फिर अभिनेता नही हूँ.... 

लेकिन उनसे कम भी नही हूँ....

इसे आप लोग मेरा मेरे प्रति पूर्वाग्रह मत समझ लीजियेगा.....

एक दिन आप मुझे रुल करते हुए पायेंगे...

अब आप ही लोग बताइयेगा कि क्या offensive होना बुरा है?

बुधवार, 6 जनवरी 2010

मैं झूठ नहीं बोलता: महफूज़




मैं झूठ नहीं बोलता,
साहित्य-कला से क्या लेना?
ढूंढ रहा खुद को मैं,
खोज रहा प्याज़,
छिलकों में.....


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

My page Visitors

A visitor from Singapore viewed 'लेखनी...' 3 days 21 hrs ago
A visitor from Singapore viewed 'लेखनी...' 4 days 13 hrs ago
A visitor from Santiago viewed 'लेखनी...' 7 days 4 hrs ago
A visitor from London viewed 'लेखनी...' 7 days 4 hrs ago
A visitor from Makiivka viewed 'लेखनी...' 7 days 4 hrs ago
A visitor from Dallas viewed 'लेखनी...' 11 days 15 hrs ago
A visitor from Dallas viewed 'लेखनी...' 11 days 15 hrs ago
A visitor from New york viewed 'लेखनी...' 16 days 12 hrs ago
A visitor from New york viewed 'लेखनी...' 16 days 12 hrs ago
A visitor from Singapore viewed 'भगवान् राम' 22 days 8 hrs ago