भाई सच बताऊं तो कभी कभी लगता है कि क्या आप महफूज भाई ही हैं या कोई और , भाई इतना डूब कर तो बहुत कम लोग ही इच्छा रखते हैं और साहस । बढ़िया रचना , परन्तु ये लेबल का चक्कर कुछ समझ नही आया ।
महफूज़ मियाँ, अब क्या त्रिवेणी लिखने का बुखार चढ़ा है.. मेरे भी सर के ऊपर से निकल रहा है ये तो ... फिर भी कोशिश करते हैं समझने की अरे बाबा...छिलके में प्याज मत ढूंढिए... थोड़ा और गहरे जाइए...मिल जायेगी प्याज़ ... वैसे यहाँ सबका यही हाल है.....हाँ ये अलग बात है कि लोग छिलके को ही प्याज समझे बैठे हैं और खुश हैं...
अगर इसे यूं कहा जाय तो ....प्याज में छिलकों को खोल/खोज रहा हूँ तब ? अक्सर सत्य प्याज के छिलकों में परत दर परत बाद कहीं छुपा होता है ! उऊपर की सतहों से ही न्याय कर देना ठीक नहीं है
हुम्म्म ! अब समझे कि ई ससुर प्याज एतना महंगा काहे हो रहा है । सब ठो तो आप छील छील के साहित्य साहित्य ढूंढ रहे हैं । मिल गया हो तो तनिक रसोई का भी ख्याल किया जाए । अरे हमरा नहीं महाराज अपना तो दाल रोटी मजे में चल रहा है . मगर आप काहे किसी के पेट पे लात ...नहीं नहीं प्याज मारते हैं जी ...
प्याज की तरह है जिंदगी भी ...छिलका छिलका उतरते बीत जाती है ...परते उघाड़ते आंसू भी खूब आते हैं मगर आखिर जो बचता है मीठा तीखा अलहदा सा स्वाद वही जिंदगी है ... ओवन में तपाना अच्छा ही रहा ....!!
hamara sahitya-kala se len-den hai tabhi naa ham sab yahan hain.chhilkon me pyaz khojne ke bajay aap registan me pani bhi talash kar sakte the mahfooz sahab!ha ha ha.
Pyaaj Sachaai aur atut-ta ka pratik hai bro... Sacchai uske kaatne per aasuo ki aur ek dusre se chilka juda ho tabhi pyaaj kahlata hai warna mahaz chilka hi rah jata hai...!
अजी जनाब आज जा के पता चला प्याज़ के महंगे होने का राज़ सरे तो आप ही ने छील डाले.हमारी रसोई का तो कुछ ख्याल करते.वैसे सही कहा है मैं भी जा रही हूँ प्याज़ छीलने
मैं झूठ नहीं बोलता, - ईमानदार स्वीकार, आगे की चार पंक्तियों पर लागू। भीतर की यात्रा इसके बाद ही प्रारम्भ होती है।
साहित्य-कला से क्या लेना? - साहित्य और कला भी तो उस यात्रा के साधन हैं। महफूजिया बयान - उनके लिए जो 'साधन पाखण्ड साधना' करते हैं।
ढूंढ रहा खुद को मैं, कह ही दिए
खोज रहा प्याज़, छिलकों में..... पर्तें, आँसू भरी यातनाएँ, मर्म के लिए तड़पन, कहीं अंत में भीतर संघनित अस्तित्त्व के होने का भ्रम और चलते जाना ...न समझना कि छिलके ही तो प्याज हैं। उन्हें क्या उतारना। बस जान लेना काफी नहीं क्या कि पर्ते हैं, होती हैं, रहेंगी। उनका रहना ही तो जीवन है।
सबकी टिप्पणी पढ़ ली पर किसी को यह चिंता नहीं है कि आप किसकी प्याज छील रहे हो और क्यों, ये कौन से भाव वाली प्याज है, कितने की है, ठेले से खरीदी है या किसी एयर कंडीशन्ड मॉल से, खैर कहीं से भी आई हो इस प्याज के भाग्य में केवल छिलना ही लिखा है, और हमेशा छिलती ही रहेगी। छीलते रहिये छीलते रहिये कभी न कभी तो आपको जो चाहिये वह मिल जायेगा।
खोज रहा प्याज़, छिलकों में... ye to apni apni samjh hai vaise chilke aaps me jude hai isiliye vo pyaj ban gya hai .vaise pyaj achhe ko rula deta hai srkare gira deta hai to jyda mat chiliye pyaj ko sabut hi rhne dijiye .
पेशे से प्रवक्ता और अपना व्यापार. मैंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम्.कॉम व डॉ. राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय,फैजाबाद से एम्.ए.(अर्थशास्त्र) तथा पूर्वांचल विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि ली है. I.G.N.O.U. से सन २००५ में PGJMC किया और सन् 2007 में MBA किया. पूर्णकालिक रूप से अपना व्यापार भी देख रहा हूं व शौकिया तौर पर कई कालेजों में भी अतिथि प्रवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं देता हूं. पढ़ना और पढ़ाना मेरा शौक़ है. अंग्रेज़ी में मुझे मेरी कविता 'For a missing child' के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. मेरी अंग्रेजी कविताओं का संकलन 'Eternal Portraits' के नाम से बाज़ार में उपलब्ध है,जो की Penguin Publishers द्वारा प्रकाशित है. अंग्रेजी में मैंने अब तक क़रीब 2600 कविताएं लिखी हैं. हंस, वागर्थ, कादम्बिनी से होते हुए ...अंतर्राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका 'पुरवाई' जो की लन्दन से प्रकाशित होती है ...में प्रकाशित हुआ, तबसे हिंदी का सफ़र जारी है... मेरी हिंदी कविताओं का संकलन 'सूखी बारिश' जो की सन् 2006 में मुदित प्रकाशन से प्रकाशित है... मैं करता हूं कि मेरा ब्लॉग मेरे पाठकों को ज़रूर अच्छा लगेगा... आपकी टिप्पणियां मेरा हौसला बढ़ाती हैं. इसलिए मेरी रचनाएं पढ़ने के बाद अपनी अमूल्य टिप्पणी ज़रूर दें.मेरा प्रमुख ब्लॉग 'लेखनी’ है.
Dreaming an old dream.......
-
As an ever flowing silver stream
This in my heart this is a dream
A dream of long ago ever shining bright this in my heart
The dream of long ago will alwa...
My new doggie
-
*Rex: My new doggie............I have got a dear and treasured friend, you
may be know him tooMore humble, meek, and gentle heof human beings (Dogs) I
ev...
84 टिप्पणियाँ:
वाह, वाह
nice
हमरा नाम काहें दिए ?
waah waah
wah mehfooz ji....kya likh dala aapne
sar k upar se nikal gaya.......
जो प्याज के छिलको के परत-दर परत में ढूढ रहा है वह कैसे कह सकता है "साहित्य-कला से क्या लेना?"
शायद परत-दर परत का सत्य ही तो साहित्य है
@शबनम जी,
वो तो दिखाई दे रहा है...सब सर के ऊपर से जा रहा है...
फोटू भी ले ली आपने ..:):)
भाई सच बताऊं तो कभी कभी लगता है कि क्या आप महफूज भाई ही हैं या कोई और , भाई इतना डूब कर तो बहुत कम लोग ही इच्छा रखते हैं और साहस । बढ़िया रचना , परन्तु ये लेबल का चक्कर कुछ समझ नही आया ।
इस कविता में पाँच पंक्तियों में पाँच
महफूज़ मियाँ,
अब क्या त्रिवेणी लिखने का बुखार चढ़ा है..
मेरे भी सर के ऊपर से निकल रहा है ये तो ...
फिर भी कोशिश करते हैं समझने की
अरे बाबा...छिलके में प्याज मत ढूंढिए...
थोड़ा और गहरे जाइए...मिल जायेगी प्याज़ ...
वैसे यहाँ सबका यही हाल है.....हाँ ये अलग बात है कि लोग छिलके को ही प्याज समझे बैठे हैं और खुश हैं...
शबनम और अदा ने बढ़िया कमेंट्स दिये हैं.. अरे प्याज के छिलके से बाहर निकलिए... बहुत खूब
अगर इसे यूं कहा जाय तो ....प्याज में छिलकों को खोल/खोज रहा हूँ तब ?
अक्सर सत्य प्याज के छिलकों में परत दर परत बाद कहीं छुपा होता है !
उऊपर की सतहों से ही न्याय कर देना ठीक नहीं है
बात कहने का ये लहजा भी खूब रहा!
प्याज के छिलके उतारने में तो
आँसू आ जाते हैं।
सच बोलिएगा
ये हाथ किसके हैं?
बी एस पाबला
भाई,
पावला जी की बातो में दम है , सच बता ही
दीजिये - ये हाथ किसके हैं ?
महफूज़ भाई बहुत बढ़िया काम कर रहे है करते रहिए ऐसे ही अचानक किसी दिन बहुत बड़े वैज्ञानिक बन जाएँगे...
हुम्म्म ! अब समझे कि ई ससुर प्याज एतना महंगा काहे हो रहा है । सब ठो तो आप छील छील के साहित्य साहित्य ढूंढ रहे हैं । मिल गया हो तो तनिक रसोई का भी ख्याल किया जाए । अरे हमरा नहीं महाराज अपना तो दाल रोटी मजे में चल रहा है . मगर आप काहे किसी के पेट पे लात ...नहीं नहीं प्याज मारते हैं जी ...
का भाई !
हमारे आने के बाद से पियाज
निकोलने में उलझ गए !
क्या ही ख़ूब कहते हो भाईजान। वाह वाह।
वाह वाह ....
देखता हूँ
उसकी गहरी आँखों से
टप टप गिरते
वो आँसूं...
-प्याज छिल कर आया है अभी!!!
:)
परत दर परत किसे खोज रहा है बंदे?...मैं तो तेरे अन्दर ही विद्यमान हूँ
पियाज छीलने से तो हमने भी सुना है आंसुए निकलने लगता है।
जितने प्याज के छिलके छिलोगे उतने आंसू निकलेंगे ..बेहतर होगा की एक परत निकालो और काम चलाओ :) सब यही करते हैं ...हम भी ....ही ही ही.
बहुत सुन्दर!!
सभी यही तो कर रहे हैं...
अपनी अपनी तलाश।
वाह !! वाह !!
क्या बात है जी
कम शब्दों में बहुत गहरी बात कह गए!!
मन की पर्तें खोलने पर ही किसी सत्य को जाना जा सकता है........
प्याज की तरह है जिंदगी भी ...छिलका छिलका उतरते बीत जाती है ...परते उघाड़ते आंसू भी खूब आते हैं मगर आखिर जो बचता है मीठा तीखा अलहदा सा स्वाद वही जिंदगी है ...
ओवन में तपाना अच्छा ही रहा ....!!
;-) Wah ........
बब्बन खान का बड़ा मशहूर नाटक रहा है...अदरक के पंजे...
अब महफूज़ अली लाए हैं...प्याज के छिलके
बब्बन खान ने साठ देशों में दस हज़ार से अधिक शो करके गिनीज़ बुक रिकॉर्ड बनाया...
महफूज़ अपने आप में ही एक रिकॉर्ड हैं...
जय हिंद...
वाह...
प्याज छिलको मे भी अपने प्याज होने के गुण धर्म लिये होता है, परत दर परत.
छिलको का आपसी सम्बन्ध उसे प्याज का पहचान देता है.
हम सारा जीवन प्याज छीलने में ही बिता देते हैं अंत में हाथ आता है .. शिफर.
.. वैसे खुद को ढूंढ रहे हैं तो किसी गुठली वाले फल में ढूंढते.... कुछ न कुछ तो है आपके अंदर.
"मैं झूठ नहीं बोलता ..."
पछताओगे भैया! तत्काल शुरू कर दो झूठ बोलना!!
pyaaz ke chhilkon me jivan ka rahasya hai,seekh hai......prat-dar-parat badhte jao,aankhon se bahta pani uski bhasha ban jati hai
hamara sahitya-kala se len-den hai tabhi naa ham sab yahan hain.chhilkon me pyaz khojne ke bajay aap registan me pani bhi talash kar sakte the mahfooz sahab!ha ha ha.
nice
खोजता हूँ प्याज छिलकों में.........
बहुत खूब !
और चित्र में छिल आलू रहे हो :)
bahut sundar kavita!
Pyaaj Sachaai aur atut-ta ka pratik hai bro... Sacchai uske kaatne per aasuo ki aur ek dusre se chilka juda ho tabhi pyaaj kahlata hai warna mahaz chilka hi rah jata hai...!
Bahot gahri baat kah gaye ho tum...
छिलका छिलका प्याज है...खूब.
महफूज़ जी छिलकों के अन्दर जो आपने सच्चाई छिपा रखी है वो हम सब जानते हैं ....ये भी कि आप झूठ नहीं बोलते ....अब छोडिये राज़ को राज़ ही रहने दें ......!!
mahfooz
kya baat kah di..........bahut khoob.
झूठ तो मैं भी नही बोलता और बचपन से लेकर आज तक़ सिर्फ़ नुकसान ही उठाते आया हूं,देखना सोचना फ़िर से और हो सके तो फ़िर से विचार करना।
बहुत खूब ..प्याज के छिलकों में सत्य का सार ..बहुत बढ़िया शुक्रिया
achcha hai mile to batayiye ga
सरासर झूठ बोल रहे हो मैने प्याज देखा उसमे तो तुम नहीं थे। हा हा हा अब निश्चिन्त होजाओ कहीं और खोजो खुद को आशीर्वाद्
MUJHE KUCHH BHI SAMJH ME NAHI AAYA ....MRE SAR KE DO HATH UPAR SE GUJAR GAYE SARE SHBAD..PLZ AAP ISAKI VYAKHYA KIJIYE....
ये सब क्या है?
जुकाम ठीक हुआ की नहीं?
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प्याज और प्यार दोनों में बड़ी समानता है ,दोनों को ढूँढने के लिए छिलका उतारना पड़ता है !
अजी जनाब आज जा के पता चला प्याज़ के महंगे होने का राज़ सरे तो आप ही ने छील डाले.हमारी रसोई का तो कुछ ख्याल करते.वैसे सही कहा है मैं भी जा रही हूँ प्याज़ छीलने
प्याज छिलना और कुछ भी नहीं पाना
यही सत्य अन्वेषण है.
जब तक जीवन है यह खोज जारी रहे.
- सुलभ
सभी को अपनी अपनी तलाश है....पर अभी तक किसी की पूरी हुई हो, ऐसा कोई नहीं मिला!
कभी कभी जिंदगी उलझ जाती है ढूँढती है परत दर परत ....... गहरी बात ......
bhai sahab namaskar
kamal hail aap..........
पियाज छीलने से तो हमने भी सुना है आंसुए निकलने लगता है।
सचमुच बढिया है.
वाह!अंजुरी में सागर.
pasand aa gaya ye andaaj...
वाह!!! इन दो पंक्तियों में जितना अर्थ लगा सकते हैं उतना कम है ! कई रामायणकार पुस्तके भी कम पड़ जाएँगी!!!
हर कोई अपने आपको खुद खोज रहा है ..... वाह भाई ..
प्याज़ में तो आंसू मिलेंगे महफ़ूज़ भाई :)
vrey nice...!!
प्याज का पतला सा छिलका कितना कुछ कह गया. हाँ, गिरिजेश के पोस्ट से पता चला कि इस प्याज के पकोड़े तो आपने खा लिये और छिलके हमारे लिये पेश कर दिये.
वाह महफूज़ भाई।
गागर में सागर।
आदमी गर खुद को पहचान ले तो फिर समझो गंगा स्नान हो गया, हज भी हो गई।
बहुत गहरी बात कही है आज आपने , बधाई।
प्याज में प्याज ढूँढना यही सत्य है :)
मैं झूठ नहीं बोलता, - ईमानदार स्वीकार, आगे की चार पंक्तियों पर लागू। भीतर की यात्रा इसके बाद ही प्रारम्भ होती है।
साहित्य-कला से क्या लेना? - साहित्य और कला भी तो उस यात्रा के साधन हैं। महफूजिया बयान - उनके लिए जो 'साधन पाखण्ड साधना' करते हैं।
ढूंढ रहा खुद को मैं, कह ही दिए
खोज रहा प्याज़,
छिलकों में..... पर्तें, आँसू भरी यातनाएँ, मर्म के लिए तड़पन, कहीं अंत में भीतर संघनित अस्तित्त्व के होने का भ्रम और चलते जाना ...न समझना कि छिलके ही तो प्याज हैं। उन्हें क्या उतारना। बस जान लेना काफी नहीं क्या कि पर्ते हैं, होती हैं, रहेंगी। उनका रहना ही तो जीवन है।
सबकी टिप्पणी पढ़ ली पर किसी को यह चिंता नहीं है कि आप किसकी प्याज छील रहे हो और क्यों, ये कौन से भाव वाली प्याज है, कितने की है, ठेले से खरीदी है या किसी एयर कंडीशन्ड मॉल से, खैर कहीं से भी आई हो इस प्याज के भाग्य में केवल छिलना ही लिखा है, और हमेशा छिलती ही रहेगी। छीलते रहिये छीलते रहिये कभी न कभी तो आपको जो चाहिये वह मिल जायेगा।
बहुत खूब..गागर में सागर...क्या बात है
बहुत दूर की सोचते हो यार। देखकर तो ऐसा ही लगता है। बहुत खूब।
वाह जनाब क्या तुलना की है आपने.. मान गए :)
Choti rachna , arth bada. Bahut acha laga. Nai saal ki shubhkamnay.
Is baar sir se upar gayee !!
kash kuchh aur badi hoti post.
प्याज की हर परत छिलका बन गयी
इसी तरह कुछ हमारी ज़िन्दगी बन गयी.
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!
एतना प्याज छीलेंगे तो आंसू ही मिलेंगे और आंसुओं से ही बेहतरीन साहित्य रचा जाता है ।
एतना प्याज छीलेंगे तो आंसू ही मिलेंगे और आंसुओं से ही बेहतरीन साहित्य रचा जाता है ।
मैं भी झूठ नहीं बोलती ...
मैं आपकी "जी ...........अच्छा................" का कब से इन्तिज़ार कर रही हूँ
खोज रहा प्याज़,
छिलकों में...
ye to apni apni samjh hai vaise chilke aaps me jude hai isiliye vo pyaj ban gya hai .vaise pyaj achhe ko rula deta hai srkare gira deta hai to jyda mat chiliye
pyaj ko sabut hi rhne dijiye .
खोजता हूँ प्याज छिलकों में.....वाह, बहुत ही खूब अन्दाज साहित्य प्रस्तुति का बधाई ।
अभी तक प्याज ही छिल रहे हैं क्या!!
dikha rahe ho seb...kah rahe ho pyaaj....aisa kyun?
गिरिजेश भईया की टिप्पणी पढ़कर आपकी इस रचना को समझना आसान है । देर से आया हूँ इसलिये कुछ न कहूँगा ।
आभार ।
aap ke qalam ko mera salam.allah kare zore qalam aur ziyada!
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