रविवार, 11 जनवरी 2009

टूटी औरत॥


टूटी कांच की चूडियाँ,

बूझी सिगरेट की राख,

दर्द से मदद को चिल्लाती,

और व्यर्थ में रोती॥


हजारों जूतों की आवाज़ ,

टूटा चेहरा,

खरोंच।


ऐसा पहली बार नही है........


पति के बदन से शराब की बदबू,

जो कोने में खड़ा माफ़ी मांगता,

और

आंसू बहाती,



टूटी औरत॥





महफूज़ अली




11 टिप्पणियाँ:

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

kamaal ka likhte hain huzur !!!
salaam...salaam...salaam

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत खूब सर!

----
कल 29/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

kanupriya ने कहा…

bahut hi umda

विभूति" ने कहा…

खुबसूरत अभिवयक्ति.....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

शराब की बदबू,
जो कोने में खड़ा माफ़ी मांगता,

बहुत खूब....
सादर बधाई...

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

कई बार पढ़ा, समझने का फिर से प्रयास करूँगा। इस अच्छी कविता में 'हज़ार जूतों' वाले हिस्से को फिर से समझूँगा। बहरहाल इस शब्दकारी के लिए रचनाकार को बहुत बहुत बधाई।

***Punam*** ने कहा…

ऐसा पहली बार नही है........

लेकिन फिर भी कितनी बार.......???

Unknown ने कहा…

बेहद भाव पूर्ण मार्मिक प्रस्तुति...नारी की कोमलता ओर विवशता से उपजी टूटन ....सादर शुभ कामनायें

Mamta Bajpai ने कहा…

बहुत खूब ..एक दम सच्चा सच्चा
लिखा है आभार

ashish tiwari ने कहा…

बहुत मार्मिक दास्ताँ आपने पंक्तिओं में ढाल दी

vicky ने कहा…

kya khub kaha hai sir..............

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