गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

जाने क्या क्या तलाश करता हूँ,
जब भी बाज़ार से गुज़रता हूँ ,


मैं कोई पीर नहीं
आदमी हूँ , गुनाह करता हूँ।


लोग डरते हैं मौत से
'महफूज़ ' मैं ज़िन्दगी से डरता हूँ॥



महफूज़ अली

3 टिप्पणियाँ:

डा. अमर कुमार ने कहा…

اِتنے بیہترین خ یالات کو آپنے کوئی نام کیوں ن دِیا، میرے بھائی ؟

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मैं कोई पीर नहीं
आदमी हूँ , गुनाह करता हूँ।
लोग डरते हैं मौत से
'महफूज़ ' मैं ज़िन्दगी से डरता हूँ॥

बहुत खूब.....स्वागत है आपका......!!

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

well said...main zindgee se darta hun....

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