टूटी कांच की चूडियाँ ,
बुझी सिगरेट की राख,
दर्द से मदद को चिल्लाती
और
व्यर्थ में रोती......
हजारों जूतों की आवाज़
टूटा चेहरा
खरोंच,
ऐसा पहली बार नहीं है,
पति के बदन से शराब की बदबू
जो कोने में खडा माफ़ी मांगता
और आंसू बहती,
टूटी औरत॥
महफूज़ अली
बुझी सिगरेट की राख,
दर्द से मदद को चिल्लाती
और
व्यर्थ में रोती......
हजारों जूतों की आवाज़
टूटा चेहरा
खरोंच,
ऐसा पहली बार नहीं है,
पति के बदन से शराब की बदबू
जो कोने में खडा माफ़ी मांगता
और आंसू बहती,
टूटी औरत॥
महफूज़ अली
3 टिप्पणियाँ:
Ab kya kahun......
Behtareen !!
now whats this toothi aurat
i cant understand
whatever sounds nice
यह दृश्य अनदेखा, अनजाना नहीं है.....
अपने आस पास ऐसी टूटी-बिखरी ललनाएं मिल ही जाती हैं..
बहुत ही सजीव, सार्थक और सामयिक रचना...
मुबारक हो जी !!!
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