मैं बैठा सोच रहा था,
ज़िन्दगी के बारे में,
जिसे सब पा लेना चाहते हैं
जिसके रंगों में रंग जाना चाहते हैं
आख़िर ये ज़िन्दगी है क्या?
ख़्वाब या धुंध?
या फिर किसी की याद?
तभी यह लगा कि
ज़िन्दगी कभी आसमाँ है,
तो कभी दरिया...........
वक्त को न तो किसी की याद है
न ही तलाश ......
वक्त तो चलते रहने का ही
दूसरा नाम है...........
और लगा आख़िर में कि
यही चलना ही ज़िन्दगी है॥
महफूज़ अली
२३.09
18 टिप्पणियाँ:
bahut sundar rachana hai,
वक्त तो चलते रहने का ही
दूसरा नाम है...........
और लगा आख़िर में कि
यही चलना ही ज़िन्दगी है॥
--यही सत्य है. उम्दा रचना!!
यही चलना ही ज़िन्दगी है॥
सार्थक सोच --
बेहतर ढंग से ज़िन्दगी को परिभाषित किया है.
आख़िर ये ज़िन्दगी है क्या?
ख़्वाब या धुंध?
या फिर किसी की याद?
तभी यह लगा कि
ज़िन्दगी कभी आसमाँ है,
तो कभी दरिया...........वाक़इ। आप ने बिल्कुल ठीक ही कहा है।
ये अच्छा है महफूज़ भाई ki आप जो सोंचते होते हैं वो मैं लिखता होता हूँ, लगता है कोई तार जुडी है हमारे बीच. और मैं मानता हूँ ki कुछ भी गर जुडा है तो बढ़िया है.
आपकी कवितायेँ भी सुन्दर होती हैं...लिखते रहें...कभी शायद मुझे भी लगे ki जो मैंने सोंचा वो आपने लिख दिया.. तब मजा आएगा
zindagi bas itefaq hai......
वाह ! बहुत खूब...चलना ही जिन्दगी है
वाह बहुत सुंदर रचना लिखा है आपने! ज़िन्दगी में मुश्किलें तो आती रहती हैं पर हमेशा आगे बढते रहना चाहिए और खुश रहना चाहिए!
bahut hi achchee rahcna likhi hai...yahi to jeevan hai..chalte rahna...
chitr bhi sundar select kiya hai...
सच कहा ......ये जिंदगी chalne का ही नाम है........... paana khoona, तो उसका एक ang है ...........
कविता तो सुंदर हैही ..लेकिन जो रास्ते की तस्वीर है ...वाह ! उसे अपने 'fiber art'के ज़रिये ज़रूर एक wall piece में तब्दील करना चाहूँगी ..! मुझे ऐसे रास्ते बेहद पसंद हैं ...जो कहीँ दूर निकल जाते हैं !
और इस रचनाको शीर्षक दे दीजिये ..'महफूज़ रहे ज़िंदगी '!
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ज़िन्दगी तू ही बता तू कौन है
कभी तू अपनी सी लगती है
कभी तू अनजान सी ..
कभी गमों का बोझ
तो कभी चंचल मुस्कान सी .....
और लगा आख़िर में कि
यही चलना ही ज़िन्दगी है॥ zindgee kuch bhi nahi.fir bhi jiye jate hai,tujhpe a waqat hum ahsan kiye jate hai....
zindagi shayad ek aasman hi hai,vishal sa,sunder rachana,badhai.
जिन्दगी के करीब ले जाती रचना.
{ Treasurer-T & S }
very nice poem about life.
but where you were sitting , thinking all about?
महफूज भाई,
जिन्दगी के फलसफे को बहुत करीब रहकर समझाया है आपने.कविता के भावः अद्भुत है..बधाई..!
वक्त तो चलते रहने का ही
दूसरा नाम है...........
और लगा आख़िर में कि
यही चलना ही ज़िन्दगी है॥
bahut hi umda baat kahi hai aapne
bahut bahut badhai..
aur main bhi kuch kehna chahti hun...
बहुत दूर से चली आ रही हूँ
ये सोच कर चल रही हूँ,
कि कभी न कभी,
घर आएगा
जी उछल जायेगा,
मन मुस्काएगा,
थके तन और मन,
दोनों को मिलेगी एक थाह,
सुस्ताने की अब प्रबल हो गयी है चाह,
पर घर है कि आता ही नहीं है,
बोझ थकन का मन से जाता ही नहीं है,
बिना रुके लगातार, निरंतर
हम चलते ही रहते हैं,
घर, कभी नहीं आता,
शायद इसे ही 'प्रगति' कहते हैं
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