दिन निकल आया,
रात टूट गई,
बात ही बात में ,
एक बात छूट गई।
याद है मुझे
शाम के धुंधलके में
टहलते हुए तुम्हारे साथ
आँगन में ,
उखाड़ा था मैंने एक पौधा
गुलाब के गमले से ,
कहकर कि खर-पतवार है
और अचानक तुमने टोक दिया था
कि रहने दो न !!!!!
यह प्यार का पौधा है
अपने आप ऊग आया है।
फिर न जाने क्या बात हुयी?
कौन सी गाँठ लगी
हमारे बीच में?
जो आज तक न खुल पाई,
जो अचानक रुकी थी
वो घड़ी भी न चल पाई।
वह शीशा न मिल पाया
जो गलतियों को दिखाता,
वो क़िताब ही खो गई,
पन्ने जिसके पलटता.......
सवाल तो मन में कई हैं
वो पौधा आज भी वहीँ है,
सवालों का जवाब मिले भी तो कैसे?
जब प्यार की ड़ाली ही टूट गई॥
(See DISCLAIMER below in the footer.......)
28 टिप्पणियाँ:
कि रहने दो न !!!!!
यह प्यार का पौधा है
अपने आप ऊग आया है।
haan kuch paudhe pyar ke ug aate hain apne aap aur pata bhi nahi chalta..
ahsaaon ki qaawa odhe aapki nazm behad khoobsurat..
dil mein utarti si gayi hai..
badhai....aapko
बहुत खूब महफूज़ भाई...
कि रहने दो न !!!!!
यह प्यार का पौधा है
अपने आप ऊग आया है।
bahut hi maasum bhav hai,sunder rachana
कि रहने दो न !!!!!
यह प्यार का पौधा है
अपने आप ऊग आया है।
-अहा!! क्या कोमल भाव उठे हैं. बहुत खूब, भाई जान!! लिखते चलो..मौसम बना हुआ है!!
प्यार का पौधा अपने आप उग आया है न वैसे ही आपका प्यार भी लौट आयेगा । सुंदर कविता ।
pyar ka nazuk pouda jangli ghas sa apne aap ugta hai...par har mosam sah leta hai....fir bhi marta nahi....hara rahta hai.....
हल्की फुल्की बातों में ही गहरी बातें कह डालीं हैं |
kya baat hai...bade pyaar se likhi pyaari si rachna
बहुत खुब .......सुन्दर भावो और शब्दो से सज्जी रचना...........अतिसुन्दर
बहुत खुब .......सुन्दर भावो और शब्दो से सज्जी रचना...........अतिसुन्दर
बेहतरीन भाव लिये हुए आपकी रचना से फिर रूबरू हो रहा हूँ.
वह शीशा न मिल पाया
जो गलतियों को दिखाता,
वो क़िताब ही खो गई,
पन्ने जिसके पलटता.......
कितने कोमल एहसास है. शायद आत्मसाक्षात्कार न कर पाने की यह पीडा है.
उखाड़ा था मैंने एक पौधा
गुलाब के गमले से ,
कहकर कि खर-पतवार है
और अचानक तुमने टोक दिया था
कि रहने दो न !!!!!
ye panktiya bahut hi khub shurti se likhi gai .aise aapke likhane ka andaz khi kuch alag hai. bahut pasand aai .
अली भाई हमें तो आपकी रचना बहुत पसंद आई
"सवालों का जवाब मिले भी तो कैसे?
जब प्यार की ड़ाली ही टूट गई॥"
वाह...
क्या उम्दा शेर है।
बधाई!
bhaut achchee poem, v nice. I like dis line कि रहने दो न !!!!!
यह प्यार का पौधा है
अपने आप ऊग आया है।
I m sorry fr my yesterday"s comment.
वह शीशा न मिल पाया
जो गलतियों को दिखाता,
वो क़िताब ही खो गई,
पन्ने जिसके पलटता.......
सवाल तो मन में कई हैं
वो पौधा आज भी वहीँ है,
सवालों का जवाब मिले भी तो कैसे?
जब प्यार की ड़ाली ही टूट गई॥
दिल की गहराई को नाँपकर,टटोलकर लिखी गई इस रचना के लिये अभिनंदन!!!!
बहुत खूब लिखा है।
nice
सवाल तो मन में कई हैं
वो पौधा आज भी वहीँ है,
सवालों का जवाब मिले भी तो कैसे?
...........waah
BAHUT BAHUT DHNYABAD ,JO AAPNE MUJHE PROTSAHIT KARNE KE LIYE .AAP KI LEKHEENI KE SAMNE TO MAI BAHUT HI TUKSH HU .AP BAHUT ACHHA LIKHTE HAI .AISE HI LIKHATE RAHIYE..
महफूज जी,
प्यार को बड़े ही रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया है।
एक प्यार का पौधा, काश के इन्सानों के बीच भी उग आये और कोई डाली भी ना टूटे।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
प्यार खो जाने पर ऐसा ही होता है ........... khoobsoorat हैं आपके ehsaas के रंग ............ लाजवाब लिखा है
I like this creation very much.
shilpa
Ug aaten hain, kuchh paudhe..yaa maalee seenchta nahee,ya, qudrat chahtai nahee...wo sookh bhee jate hain..
Saral,sahaj rachna...
महफूज़ जी ...... सही chitr khaincha है serials के naari paatron का, पर ये भी सही कहा ही की इन serials की vajah से rishte bemaani होते जा रहे हैं ....... जो ये paroste हैं वो samaaj के लिए jahar से कम नहीं है ...
कि रहने दो न !!!!!
यह प्यार का पौधा है
अपने आप ऊग आया है।
आज तक मैंने आपकी जितनी भी कवितायेँ पढीं हैं ये सबसे खुबसूरत लगी ...खुबसूरत भावः.खुबसूरत एहसास..सुंदर शब्द और अति सुंदर उनकी बुनाई बहुत ही प्यारी रचना है.
प्यार को बड़े ही रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया है।
AATI SUNDER
प्यार को बड़े ही रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया है।
AATI SUNDER
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