सीरियल की नारियाँ बड़ी हसीं लगती हैं,
घर की बागड़ोर उन्हीं के हाथों में चलतीं हैं।
सीरियल का घर, घर नहीं महल लगता है,
जिसमें हर पल मेला सा लगता है।
जिसमें हर पल मेला सा लगता है।
सीरियल के पात्रों को आराम ही आराम है ,
सजने के अलावा उन्हें न कोई काम है।
घर, व्यापार के सभी निर्णय हीरोइन द्वारा होते हैं,
क्या घर के सारे मर्द घोडे बेच के सोते हैं?
सीरियल की हीरोइन हमेशा रोती रहती है,
कभी चूडियाँ तोड़ती है, तो कभी फिर चढाती है।
सीरियल में कई शादियाँ और पुनर्जन्म दिखा रहे हैं,
वे आने वाली पीढ़ियों को क्या सिखा रहे हैं?
खलनायिका तो षड्यंत्र के ताने बाने बुनती है ,
हर समय ओट में खड़ी सबकी बातें सुनती है ।
सीरियल में आ के उम्र मानों ठहर जाती हैं,
सभी पात्रों के बालों में सफेदी कभी नहीं आती है ।
अगर ऐसे सीरियल कई-कई साल चलते रहेंगें,
हमारे घरों में सभी रिश्ते और संस्कार सड़ते रहेंगें ।।
25 टिप्पणियाँ:
are!!!bahut khoob aap to har wishey pe kmaal likhte hai..pyar ho ..zindgee ya fir serial...apki kalam khoob chalti hai....or bilkul sahi kaha kya sikha rahe hai ye serial?indeed a very gud post....
भाई वाह महफूज जी क्या बात है, आपने तो अपने इस कविता के माध्यम से सच्चाई को उकेर कर रख दिया। मै आपके इस बात से बिल्कुल सहमत हूँ कि आजकल के सिरीयलो की अदाकारा बङी खुबसुरत होती हैं, और उन्हे एक ही काम होता श्रृंगार करना, और मै आपको बताता चलूँ कि मर्द कलाकार इनके श्रृगांर से चमकते बदन को देखते रहते हैं , इसलिए ये और कुछ कर ही नही पाते। सुन्दर रचना
सीरियल में आ के उम्र मानों ठहर जाती हैं,
सभी पात्रों के बालों में सफेदी कभी नहीं आती है ।
अगर ऐसे सीरियल कई-कई साल चलते रहेंगें,
हमारे घरों में सभी रिश्ते और संस्कार सड़ते रहेंगें ।।
बहुत बढ़िया जनाब!
रचना करती, पाठ-पढ़ाती,
आदि-शक्ति ही नारी है।
फिर क्यों अबला बनी हुई हो,
क्या ऐसी लाचारी है।।
प्रश्न-चिह्न हैं बहुत,
इन्हें अब शीघ्र हटाना होगा।
नारी के अस्तित्वों को,
फिर भूतल पर लाना होगा।।
सीरियल में कई शादियाँ और पुनर्जन्म दिखा रहे हैं,
वे आने वाली पीढ़ियों को क्या सिखा रहे हैं?
आज आपने तो सीरियल्स की खूब धज्जिया उडाई.
बहुत खूब, वाह-वाह, बेहतरीन है मेरे भाई.
इस बात पर तो मैंने क्या सभी ने गौर किया है कि वो बस सजी सवरी खड़ी रहती हैं...ना काम ना धाम ....पता नहीं सब के सब इतने अमीर कैसे होते हैं....और आपकी रचना ने तो सारी पोल खोल ही दी है
आपकी कविता सीरियल की दुनिया दिखाती हैं
और कितनी सारी सच्ची बात बताती है
ये सच है कि अगर यही ऊंट-पटांग देखते रहेंगे
तो संस्कारों और रिश्तों की वाट लगाते रहेंगे
महफूज़ साहब, आपने बिलकुल नया विषय चुना है आज.....जो सामयिक भी है और सजग भी कराता है...
बहुत अच्छी रचना.
धन्यवाद... .
इसे दोबारा पढ़ा बहुत ज़बरदस्त लिखा है आपने...
आज कल तो षडयंत्र की ट्रेनिंग लडकियां यही से ले रही हैं..
एक बहुत ही उम्दा और बे-बाक रचना ..बहुत बहुत बधाई...
आप हर विषय पर सफलता के साथ लिख लेते है जानकर खुशी हुई........बहुत ही बढिया रचना!
bahut achchhi prastuti.baat bilkul sahi likhi hai aapne.Par inmein adakaron ka kya dosh.Ye to unki kala hai aur pesha bhi.Ye hamsabhi par depends karta hai.Achchhi lagi aapki kavita.
बहुत ही सुन्दर ,महफूज जी
सीरियल्स के नारी चरित्रों पर सुन्दर व्यंग्य के लिए बधाई.,
आपने इनकी असलियत गिन - गिन कर बताई .
सीरियल की नारी पड़ती है सब पर भारी ...इतने गहने औ कांजीवरम साड़ी पहनकर करती है खाने की तैयारी..इन धारावाहिकों के माध्यम से जिस तरह स्त्रियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है ..आगे घर परिवारों का क्या होने वाला है.. राम जाने !
वाह क्या सच्चा और सही चित्रण किया है सीरियल के माहोल और संस्कारो का, न कोई बुजुर्ग हुआ, मरा तो फिर से जन्म हो गया, नारी ही नारी की दुश्मन , साज सज्जा न कोई काम न धाम. एक दम सटीक, क्योंकि यथार्थ के धरातल से इन सीरियल का कोई लेना देना नहीं , क्या सिख दे रहे हैं आज की पीढी को ये एक प्रश्न चिन्ह है.
regards
कल चैट के दौरान कुछ पढ़ा था आज फुर्सत मे पूरा पढ़ लिया विषय तो खैर अच्छा उठाया है आपने । हाँ पंक्तियों में थोड़ा वज़न का ध्यान तो रखना पड़ेगा केवल तुक मिलाने के चक्कर मे न रहे तुक न भी मिली तो कोई बात नही लय्बद्धता और प्रवाह यानि रवानी होनी चाहिये । - शरद कोकास ,दुर्ग छ.ग.
बहुत खूब.. हैपी ब्लॉगिंग
महफूज़ जी ...... सही chitr khaincha है serials के naari paatron का, पर ये भी सही कहा ही की इन serials की vajah से rishte bemaani होते जा रहे हैं ....... जो ये paroste हैं वो samaaj के लिए jahar से कम नहीं है ...
कमाल का कविता लिखा है आपने! आप हर विषय पर इतने सुंदर रूप से कविता लिखते हैं की तारीफ के लिए शब्द कम पर जाते हैं! कविता में हर एक लाइन आपने सही कहा है ! सीरियल में न जाने कितनी शादियाँ होती है फिर कौन किसका बच्चा है इस बात से कभी कभी अन्जान रहते हैं और तो और पुनर्जन्म भी होता है! वैसे मैं सीरियल कभी देखती नहीं हूँ और मुझे कोई दिलचस्पी भी नहीं है पर मेरी माँ को बहुत पसंद है ये सब सीरियल और उनसे सीरियल के बारे में सुनने को मिलता है! सीरियल तो जैसे ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती और कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे ज़िन्दगी में सीरियल ही सब कुछ है क्यूंकि लोग सीरियल के वक्त सब काम छोड़कर टीवी के सामने बैठ जाते हैं और इतने ध्यान से देखते हैं मानो की कुछ गंभीर बात चल रही है! इस सीरियल से कुछ सिखने को भी नहीं मिलता बस वक्त बरबाद होता है !
सचमुच बहुत सुंदर रचना !!
BAHUT KHUB ...........SERIAL KI SACHHAI LIKHE HAI AAPNE .
waah......ek-ek paksh ko uthaya hai,par lagta hai yahi silsila chalta rahega.......
or serial naari ki kaisee image paish kar rahe hai??kya naari sazishe hi karetee hai??bahut achhi post...
सीरियल का घर, घर नहीं महल लगता है,
जिसमें हर पल मेला सा लगता है।
वाह!महफ़ुज़ अली वाह! ये सिरीयलवाले आपको अगर पिटने के लिये आजायें तो हमारा ज़िम्मेदार नहिं। ईतना भी सच मत लिखा करो.
सीरियल्स को देख सभी के मन में यही विचार आते हैं, आपने उन्हें बखूबी रचना में पिरोया है.
एक यथार्थ प्रदर्शित करती रचना के लिए बहुत बधाई. अच्छा लगा पढ़कर.
bilkul सही कहा जी आपने यहाँ देख कर यही vichaar आते हैं ..शुक्रिया
सबसे पहले 'बिखरे सितारे 'पे सुंदर -सा comment देनेके लिए तहे दिलसे शुक्रिया !
हाँ ..सच है ..सभी सीरियल में एक जैसी ही कहानी चलती है ..एक जैसी ही सजधज होती है...नींदसे जगी महिला भी पूरे प्रसाधन और ज़ेवरात के साथ दिखती है!.कहीँ न बाल बिखरे होते हैं न, ज़ेवर उतारा जाता है..!.देखना बंद ही कर दिए हैं !
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