बहुत दिनों से सोच रहा था कि ग़ज़ल लिखूं. पर मुझे ग़ज़ल का क ख ग भी नहीं आता था.. फिर मैंने कुछ अध्ययन किया.. ग़ज़ल लिखने का तरीका सीखा. पर जब सीखा तो यही लगा कि रूल्ज़ फौलो करने पर हम वो चीज़ नहीं लिख पाते हैं....जो चाहते हैं... कुछ लोगों से पूछा तो लोगों ने कहा कि किसी से सीख लो.. अब लिखने का इतना वो था कि किसी से सीखने का वक़्त ही नहीं मिला... यहाँ वहां किसी तरह सीख कर लिखने कि कोशिश की है.... देख कर आप लोग बताइयेगा.... कैसी है? और कुछ अगर गलती है तो प्लीज़ उसे सुधारिएगा भी....
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नाम तेरा अभी मैं अपनी ज़ुबां से मिटाता हूँ...
मैं टूट जाऊँगा तुमने ये सोचा तो था,
पर देखो मैं पूरा नज़र आता हूँ.
मुझे छोड़ा था तुमने उस अँधेरे घर में,
अपने अन्दर ही मैं एक दीया पाता हूँ.
इन अंधेरों को जाना ही होगा घर से ,
रौशनी में नहा कर मैं आ जाता हूँ.
तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.
तेरा चर्चा भी मेरी ज़ुबां पर न हो,
नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ.
102 टिप्पणियाँ:
भाई साहब !
मकतबे-गजल का अच्छा तालिबे-इल्म
नहीं हूँ , फिर भी झटपट जो बना सो चटपट
रख रहा हूँ , सदोष तो होगा ही !
'' टूट जाऊँगा मैं तुमने सोचा यही ,
फिर भी देखो मैं पूरा नजर आ रहा |
मुझको छोड़ा है तुमने गहन अंध में
अपने अन्दर ही मैं इक दिया पा रहा |
भागना है अंधेरों को घर से मेरे ,
रोशनी में नहा करके मैं आ रहा |
ये न समझो कि ऐसे बिखर जाऊँगा
चोट खाने से पहले सिमट जा रहा |
तेरी चर्चा भी मेरी जुबां पर न हो
नाम तेरा अभी मैं मिटा जा रहा | ''
------ आपके भावों में छेड़छाड़ करना
मैंने उचित न समझा , बस 'जामा' - सा पहनाया है ..
.............. आभार ,,,
आपका पहला प्रयास बहुतों से अच्छा है!
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी की बात से
में तो सहमत नही हूँ!
किसी भी रचनाकार की रचना में गुण-दोष निकालना हमारा काम नही है! जब तक रचनाकार इसकी इजाजत न दे दे!
महफूज़ जी, आप ने बहुत बढ़िया गजल लिखी है...बहुत सुन्दर भाव हैं.....।बधाई स्वीकारें।
मैं तो मानता हूँ कि अपने कहने का जो अंदाज हो उसी मे अपनी बात कहे वही सब से अच्छा है....आप की गजल बहुत सुन्दर है..इसी तर्ह लिखते रहें....शुभकामनाएं।
"तर्ह" को "तरह" पढ़ें।
पहली कोशिश तो काफी दमदार रही .. बहुत खूब !!
@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
चलिए आपने मुझे गलत कह ही दिया तो
मैं भी कुछ बोल ही दूँ , बेजुबानी बड़ी वाहियात
चीज है ...
@ ''अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी की बात से
में तो सहमत नही हूँ!''
......... असहमति आपका मौलिक अधिकार है
मेरी औकात नहीं है इस मौलिक अधिकार को
'चैलेन्ज' करने की ..
............ पर यही मौलिक अधिकार मुझे भी मिला है !
@ ''किसी भी रचनाकार की रचना में गुण-दोष निकालना
हमारा काम नही है!''
.......... यह तो सरासर गलत कहा आपने , '' रचना में गुण-दोष ''
निकलना ही तो आलोचना है , आपको मालूम होना
चाहिए कि आलोचना साहित्य की एक सशक्त विधा है , आपका
ऐसा कहना विधा के साथ अन्याय करना है ..
गुण-दोष निकलना विवेक - जागृत व्यक्ति की पहचान है !
किसी को यह पहचान नहीं खोनी चाहिए ..
@ ''..जब तक रचनाकार इसकी इजाजत न दे दे! ''
अरे मैंने गला नहीं दबाया है किसी का , महफूज भाई ने
कहा है जिसे शायद गौर नहीं किया आपने ---
'' देख कर आप लोग बताइयेगा.... कैसी है? और कुछ अगर गलती है
तो प्लीज़ उसे सुधारिएगा भी....''
...... अब आपही बताइए , मेरा क्या कुसूर है ?
.
.
जनाब !
मैंने कुछ गलत नहीं किया है , आप बड़े हैं , सम्माननीय हैं
पर '' गुण -दोष '' लिकालने को नहीं रोक सकते
मुझे ब्लोगिंग की दुकान नहीं चलानी है , अतः जो खटकेगा कहूँगा
'' चिटठा-चर्चों '' में घुसने का लोभ नहीं है मुझे ..
अक्षर से शब्द बनते है शब्द से वाक्य . और गज़ल तो शब्दो की कारीगरी है . सीखाने वाले तो बहुत मिलेगे लेकिन मुझे लगता है शायरी अपने आप आती है .
महफूज़ जी,
ग़ज़ल लिखने की आपकी पहली कोशिश के लिए आपको बधाई........और यकीन जानिये....बहुतों से बहुत अच्छा लिखा है आपने ....
हमतो यही कहेंगे की आपकी कोशिश कमाल की है....
तारीफ के काबिल है...
मुझे बहुत पसंद आई.....
हर विधा में आप अपनी लेखनी आजमा रहे हैं....ये बहुत बड़ी बात है...
शुक्रिया...
पहला प्रयास यकीनन बहुत अच्छा है. ग़ज़ल के पूरे रूल्स का तो मुझे भी नहीं पता ..पर भाव बहुत ही अच्छे हैं
इन अंधेरों को जाना ही होगा घर से ,
रौशनी में नहा कर मैं आ जाता हूँ.
जीयो लाल जीयो बहुत सुंदर आप की पहली गजल
और हाँ महफूज़ जी...
ग़ज़ल एक कठिन विधा है...जो आते आते ही आती है....
अगली बार और बेहतर लिखेंगे आप मुझे पूरा विश्वास है...
आज ज़रा जल्दी में कमेन्ट कर रही हूँ.....यहाँ तो ले दे कर यही एक त्यौहार होता है और हमलोग ज़रा व्यस्त हैं....
क्रिसमस की शुभकामना.....!!
गलती बताऊंगा तुमने सोचा यही
मैं क्या बताऊं गज़ल लिख पाता नहीं :)
पहली कोशिश काफी कामयाब रही.. लेकिन एक बेहतरीन ग़ज़लकार बनना है, तो किसी के दिल में डूबकर प्यार करिए... शायर खुद-ब-खुद बन जाएंगे...
गज़ल की तो मुझे रत्ती भर भी समझ नहीं है लेकिन इतना ज़रूर समझ पाया हूँ कि आपने जो भी लिखा है...दिल से लिखा है...
बहुत बढिया
महफूज़ जी आपका पहला प्रयास बहुत सराहनीय है....जारी रखियेगा...वो कहते हैं न कि "गिरते हैं शह सवार मैदाने जंग में "...मैं भी अभी इसी दौर से गुजर रही हूँ ...शुभकामनाएँ
तेरा नाम जब भी मेरी ज़ुबां पर आया महफूज़
चर्चा तेरा बड़ी शिद्द्त से जमाने में हुआ.
पहली कोशिश बहुत ही बढ़िया रही महफूज़जी.
Mehfooz ji...
me ghazal k rules nahi smjhti...na kabi koshish ki...even mujhe to lagta ha kavita aur ghazal me ye hi fark hota ha ki ghazal me urdu k shabd zada hote ha...shayed.......
shayed ye bas meri soch ho....
me to bas likh deti hu jo feel krti hu dusre batate h ki nazm ha ghazal ha kavita h.....
aapki likhi ye GHAZAL dil ko chhu gyi....
तेरी चर्चा भी मेरी जुबां पर न हो
नाम तेरा अभी मैं मिटा जा रहा |
khaskar ye lines...
मुझको छोड़ा है तुमने गहन अंध में
अपने अन्दर ही मैं इक दिया पा रहा |
बहुत बढिया-आभार
Bahut Hi Khoobsoorat Rachna Hai..
गजल पढ़ा -मजा आ गया !
कोई भी काम जो नेक मन और भावना से किया जाया कभी गलत नहीं होता-
अमरेन्द्र जी ने आपकी गजल को पालिश कर चमका दिया है -उन्हें शुक्रिया तो कहिये !
ग़ज़ल के बारे में मैं भी कुछ नहीं जानती....
बस दिल से निकली बात अच्छी ही होती है....खूबसूरत प्रयास....बधाई
जो लिखा गया है, वह पसंद आया
बस इतना ही कह सकता हूँ
बी एस पाबला
अति सुंदर भाव हैं । अच्छा लिखा है । नियम की जानकारी तो अपने को भी नहीं है ।
बहुत खूब महफूज भाई , आप तो यहाँ भी हिट है।
ग़ज़ल के भाव बहुत अच्छे हैं.छन्द में थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. लिखते रहिए.
gazel k kayde kanoon to me bhi nahi jaanti lekin jo likha hai vo jaroor dil me sargoshi kar gaya. bahut acchhi gazel likhi hai.
mehfooz bhai mubaaraq !
achha laga padh kar............
koi ustaad paida nahin hota.......
samay aur anubhav sab sikhaata hai
gazal nahin toh gazal ki koshish hi sahi lekin aapki baat umdaa lagi......
is shouq ko aur aage tak phoolne-phalne dijiye...
sabse bade nirnaayak khud baniye...
log zindgi bhar islaah karte karte mar jaate hain unkaa ek she'r kisi kaam nahin aata aur koi do line aisi likh deta hai jise saaraa zamaana gungunaata hai
ye kudrat ki niyaamat hai
ise prasaad ki tarah grahan kijiye aur mast rahiye..
ek baar phir badhaai !
महफूज़ भाई,
बहुत अच्छी रचना है. मैं भी इस दौर से गुज़र चूका हूँ. ग़ज़ल को टेक्निकली फिट करने के चक्कर में कोशिश येही रहनी चाहिए की उस का भाव न बदले. पर कई बार यह बड़ा मुश्किल लगता है. अभी मैंने 'बहर' का ध्यान देना छोड़ दिया है सिर्फ अंदाज़े से ही लिख लेता हूँ . हाँ 'काफिये' और 'रदीफ़' पर ही ज़यादा तबोज्जो देने की कोशिश रहती है.
आप की ग़ज़ल के भाव अच्छे है और उसी में ग़ज़ल का अर्थ पूरा हो जाता है. जैसे कहते है न ग़ज़ल का मतलब है खूबसूरत औरतों से बातचीत. पर अब contemporary ग़ज़ल किसी भी टोपिक पर लिखी जा सकती है. आप के भाव सुन्दर है और उसी से कोई भी सुन्दर रचना बनती है. बहुत बहुत मुबारक हो आप को
मुझे आप की रचना बेहतर लगी. लिखते रहे उस से और भी खूब रंग व् निखार आयेगा आप की ग़ज़लों में.
आशु
महफूज भाई मुझे व्याकरण,शब्द,लय,छन्द अभी ज़्यादा नही आते मैं अभी अभी सीख रहा हूँ रही बात भावनाओं और विचारों की उसके महत्व को मैं बहुत मानता हूँ और उनके ही सरल और सुंदर प्रयोग पर फोकस करता हूँ आज अभी आपकी कविता मैं उसी चीज़ की प्रधानता देखी है..बहुत सुंदर भाई एक बढ़िया अभिव्यक्ति...ग़ज़ल मुझे तो बहुत अच्छी लगी पहला प्रयास पर बढ़िया प्रयास..बहुत बधाई
बेहतरीन प्रयास है..
अमरेन्द्र जी का सुझाव सीखने योग्य है..ऐसे ही लिखते-सीखते लोग एक से एक बेहतरीन गज़ल कह रहे हैं. गज़ल के व्याकरण की जानकारी जरुरी है लेकिन भाव सर्वोपरि हैं.
सुन्दर भाव अगर व्याकरण के नियमों की कसौटी पर कस दिये जाये तो हीरा निकल कर आता है.
आपको और अमरेन्द्र जी को पढ़कर अच्छा लगा/
भई गजल, कविताओं के बारे में तो अपनी समझ उतनी ही है..जितनी कि एक गवारँ को विज्ञान की । लेकिन आपके इस प्रयास की हौंसला अफजाई के लिए वाह! वाह्! तो कर ही सकते हैं :)
हम तो लिखते हैं वही दिल में जो समां जाये
वह गजल है की अजल ,पूछिए ज़माने से .
तो आप की भावनाओं को सलाम ........
उसे समझने के लिए किसी ' व्याकरण ' की जरूरत ही नहीं .
बस लिखते रहिये ........
ye vyakaran, niyam, aadi to
pata nahiin , lekin jo BAAT
PAKKII PAKKII PATA HAI VO YE HAI
KI AAPNE
SHANDAAR LIKHAA
JORDAAR LIKHAA
DIL SE LIKHAA
THIIK THIIK AISA HII MUJHE BHII LAGTA HAI.
THANKS A LOT
SHIV RATAN GUPTA
mehfooz bhai mubaaraq !
achha laga padh kar............
koi ustaad paida nahin hota.......
samay aur anubhav sab sikhaata hai
gazal nahin toh gazal ki koshish hi sahi lekin aapki baat umdaa lagi......
is shouq ko aur aage tak phoolne-phalne dijiye...
sabse bade nirnaayak khud baniye...
log zindgi bhar islaah karte karte mar jaate hain unkaa ek she'r kisi kaam nahin aata aur koi do line aisi likh deta hai jise saaraa zamaana gungunaata hai
ye kudrat ki niyaamat hai
ise prasaad ki tarah grahan kijiye aur mast rahiye..
ALBELA JII SE 725% SAHMAT
THAKYOU ALBELA JII
हम तो लिखते हैं वही दिल में जो समां जाये
वह गजल है की अजल YA HAI FASAL
MAT पूछिए ज़माने से .
आप की भावनाओं को सलाम ........
उसे समझने के लिए किसी ' व्याकरण ' की जरूरत ही नहीं .
बस लिखते रहिये ........
पहला प्रयास शब्द ही काफी है
इतने खूबसूरत भावो को व्यक्त करने के लिये विधाओ के वैयाकरण से क्या लेना देना. (मेरा व्यक्तिगत विचार) भाव जिस भी भाषा, विधा, माध्यम से व्यक्त हो वही बेहतर. और फिर आपने बखूबी भावों का सम्प्रेषण किया है
क़ाबिले-तारीफ़ है।
पहला प्रयास उत्तम है । अमरेन्द्र जी की सँवारी गज़ल भी बढ़िया है । अब ऐसे गुण-ग्राहक मिल जाँय तो गज़ल में उस्तादी तो आ ही जायेगी आपको ।
आभार ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति महफ़ूज भाई.
मेरा मानना है कि हृदय से निकले भाव यदि सीधे शव्दों का रूप धरते हैं वही असल गजल, कविता या गीत बनते है. इसीलिए तो छंद बंधनों से मुक्त कविताओं में जीवंतता बरसने लगती है.
महफूज भाई, हम आपके पोस्ट को फीड सबस्क्राईब किया है उसमें आपके पोस्ट का शीर्षक बस आ रहा है, पूरा पोस्ट पढने के लिए आपके ब्लाग में आना ही पढ रहा है. फीड रीडरों को ब्लाग पर आकर पोस्ट पढने के बजाए मेल में ही फीड से संपूर्ण पोस्ट पढना ज्यादा सुविधाजनक लगता है.
अनुरोध है कि अपने संपूर्ण पोस्ट का फीड प्रदान करें ताकि फीड सबस्क्रीप्शन की सार्थकता बनी रहे.
तेरा चर्चा भी मेरी ज़ुबां पर न हो,
नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ....
वाह ....भाई जान ...गजल लिखने में जुटे हुए हैं ...लेखन की सारी विधाओं का बंटाधार करके मानेंगे ...:)...
वैसे बच्चे ...कितने नाम मिटाओगे ....हा हा हा हा ...
लेकिन इस बात पर मैं पूर्णतया सहमत हूँ कि ग़ज़ल लेखन की सारी औपचारिकतायें पूरी की जाए तो लिखना बहुत मुशिकल हो जाता है ....इसलिए तो शरद जी को बार बार परेशां करना पड़ता है ...
अच्छी ग़ज़ल है ...अब बहर और इसके व्याकरण के बारे में तो हम खुद ही कुछ नहीं जानते ...!!
महफूज़ भाई, ग़ज़ल तो नहीं, पर हमने कहीं से दोहे लिखने सीखे थे। वो तो हम आपको सिखा सकते हैं।
वैसे प्रथम प्रयास अच्छा है। लिखते रहेंगे तो अपने आप रास्ते खुलते रहेंगे।
बधाई।
टूटें छन्द बन्ध
मुक्त भाव
अक्षर सम्बन्ध
बस निबह जाय।
बात हो जाय
कह लें सुन लें
और मन बह ले।
व्याकरण पहेरू
बाहर ही ठीक।
घरनी कविता
डपट दे पहेरू को
इतनी तेजस्विनी
मानवती तो हो !!
छ्न्द मानव जाति के जीवन से ही आते हैं। मुझे सॉनेट लिखने को कहो तो बगले झाँकने लगूँ, दोहा या घनाक्षरी कहो तो शायद कर जाऊँ। बहुतेरे ऐसे हैं कि वह भी न कर पाएँ लेकिन मन की बात कह सकें और आप को द्रवित कर सकें, सोचने पर मजबूर कर सकें या नाचने, वाह वाह करने को उकसा सकें तो कवि हैं ...
ग़जल मुझे नहीं आती। कोई छन्द नहीं आते। मैं लय को थोड़ा समझता हूँ। बस। अब आप व्याकरण सम्मत रचना चाहते हैं तो पहेरू का गुलाम बनना पड़ेगा। अब आप के उपर है - स्वामी रहना चाहते हैं, कविता को स्वामिनी बनाना चाहते हैं कि पहेरू के हाथ घर की चाभी देना चाहते हैं ! ..
मुक्त रचिए - गजलगोई का शौक है तो उसकी लय में रचिए। बस लय पर दृष्टि रखिए, जिस दिन सध गई उस दिन बल्ले बल्ले... आहा चिकनाक चिकनाक... लोग झूमेंगे नाचेंगे और रोएँगे सोचेंगे.. कोई यह पूछने नहीं आएगा कि बहर किस शहर गया या इसमें का मतला ठिगना है..
वैसे आप की इस ग़जलनुमा कविता (;)) में शायद मतला को 'मत ला' श्रेणी में रख दिया गया है। हो सकता है कि मतला का अर्थ ही मैं न जानता होऊँ।
___________________
@
"तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ."
वाह ! अब देखिए मुझे इस शेर में ऐसा लग रहा है कि आम आदमी हुक्काम के किसी हलकट जमादार को अपनी दीनता दिखाते भी परोक्ष में चेता रहा है। कविता तो इसी को कहते हैं.. आगे विद्वान लोग जो सलाह दें, मानिए।
अच्छा लिखा है तुमने!
गज़ल के रूल्स तो हमें भी नहीं पता, हाँ पर सुनते हैं तो अच्छा लगता है।
महफूज मियाँ हर हुनर रखते हैं !!! बधाई हो!!!
हमारे इस ब्लौग-जगत को अमरेन्द्र जी उअर राव साह्ब जैसे टिप्पणिकारों की जरुरत है जो बेवजह की लल्लो-चप्पो न करके सटीक बातें कहें।
ग़ज़ल होती ही ग़ज़ल है अपने रूल्स की वजह से....वर्ना आजकल गद्य की पंक्तियां ऊपर-नीचे, छोटी-बड़ी करके "कविता" तो सब लिख रहे हैं। हर दूसरा लिखने वाला कवि बना हुआ है। शेष समीर लाल जी ने बहुत सही बात कही है।
आपका भाव पक्ष वाकई बेहतरीन है। कोई भी रचना ग़ज़ल कहलाने के लिये कुछ अतिरिक्त मेहनत माँगती है।
कल की गुफ़तगु बड़ी मजेदार रही...
महफूज भाई,
यह तो सीखने का दौर है सीखते रहिये, कोई उस्ताद मिले तो क्या बात नही तो किसी को उस्ताद बनाके एकलव्य के तरीके से भी सीखा जा सकता है।
श्री अमरेन्द्र जी ने बड़ी मेहनत से सुधार किया,अलबेला खत्री जी ने सौ फीसदी सही कहा कि कोई उस्ताद पैदा नही होता घिसते-घिसते कंकर ही शंकर बने हैं, श्री समीरलाल जी से पूरा इत्तेफाक रखता हुँ, और श्री गौतम राजऋषी जी ने जो कहा सोलह आने सच।
पढ़के मजा आया और उन भावों को अपने दिल में उतारने की कोशिश की।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
HAM TO
SHABD NAHIIN PADHTE
VYAKARAN BHII NAHIIN PADHTE
AUR NIYAM BHII NAHIIN PADHTE
HAMEN TO BURII AADAT HAI
SIRF AUR SIRF BHAV PADHNE KII
SIRF AUR SIRF BHAV PADHNE KII
SIRF AUR SIRF BHAV PADHNE KII
KYA KARUN YAR
AADAT SE MAJBOOR HUN
आपने लिखा दिल से लिखा और वह बहुत पसंद आया ...शुक्रिया
mahfooz
main to ismein ulajhna hi nhi janti ki kya gazal hai aur kya kavita bas itna janti hun jo bhi dil se nikle aur doosre dil tak pahunche wo hi lekhan ki sashakt vidha hai aur usmein tum mahir ho.
ab kis kis pankti ki tarif karoon .........har pankti ek dastan si kahti hai, har pankti mein ek kahani si chupi lagti hai..........seedhe dil mein utar gayi.
ओ, रौशनी में नहाए हुए इंसान,
बस काबू में रखा कर ज़ुबान
कहां-कहां तक मिटाता रहेगा नाम
दिल को तून वॉर मेमोरियल बना रखा है...
जय हिंद...
नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ.
....कुछ नया बात कह गए आप तो.
वैसे ग़ज़ल विधा का मैं भी नया खिलाड़ी हूँ. उस्ताद की सोहबत जरुरी है. जैसा की ऊपर कुछ रचनाकारों ने गिनाया है.
'' टूट जाऊँगा मैं तुमने सोचा यही ,
फिर भी देखो मैं पूरा नजर आ रहा |
मुझको छोड़ा है तुमने गहन अंध में
अपने अन्दर ही मैं इक दिया पा रहा |
बहुत बढिया जी.
रामराम.
महफूज जी बहुत अच्छी लगी गज़ल । कुछ कुछ साठ के दशक के गानों की तरह जो हीरो तब गाता था जब वो समझता था कि हिरॉइन ने उसका दिल तोड दिया है । जैसे
मेरे दुश्मन तू मेरे दोस्ती को तरसे
मुझे गम देने वाले तू खुशी को तरसे ।
gazal me bhi dum hai
तेरा चर्चा भी मेरी ज़ुबां पर न हो,
नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ....
महफूज़ भाई ........ दिल में भाव होने चाहिएं ...... मौलिक सोच होनी चाहिए ....... सीखने की ललक होनी चाहिए ...... शिप आते आते आ ही जाता है ........... बहुत खूबसूरत अल्फ़ाज़ हैं ......... नयी सोच है .......... लिखते रहें .........
भाई जी गज़ल की समझ तो हमको भी नही है, कोई गा कर सुना तो बहुत अच्छा लगता है।
तेरा चर्चा भी मेरी ज़ुबां पर न हो,
नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ.
बहुत ख़ूबसूरत रचना अभिव्यक्ति . बधाई
BAHUT HI SUNDAR GAZAL KAHI HAI.
BADHAAYI.
--------
क्या आपने लोहे को तैरते देखा है?
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?
ek achchhi rachna aapki kamyabi ke vartmanpatroke kating padhe ...bahut badhi aur aage tarakki ke liye hardik shubhkamna...
aaj pahli baar yahan aana hua hai ...
महफ़ूज़ भाई, आपकी भावनाएं सचमुच काबिले तारीफ़ है,इसे गज़ल न लिख कर रचना ही लीखिये, बहुत सुन्दर रचना है, खुदा ने चाहा तो कभी न कभी ग़ज़ल भी बन ही जायेगी। लगे रहिये बस।
गौतम जी और त्रिपाठी जी की बात से सहमत हूँ। पहले पहले सभी ऐसे ही लिखते हैं मुझे पता ही नहीं था कि गज़ल और गीत मे क्या फर्क है। जब पता चला ति उस गलती को सुधार लिया। अगर गज़ल नहीं भी बनी तो कविता कहने मे क्या बुराई है। भाव अच्छे हैं बस यही बहुत है। सुन्दर कविता के लिये बधाई। आस्जीर्वाद्
ग़ज़ल लिखने का आपका प्रयास बहुत सराहनीय है . त्रिपाठी जी का सुझाव आपके रास्ते को और प्रशस्त करेगा बहुत. बहुत बधाई आपको.
तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.
ये लाइन बहुत अच्छी है .......आपने अच्छी प्रयास भी की है ....पर मुझे जो लग रहा है कि कुछ कमी हैं .....लिखना तो मुझे भी नहीं आता है पर सुनना अच्छा लगता है ....आपके बोल बहुत ही सुंदर है भाव भी बहुत अच्छा है,पर जब इसे स्वर देने जाये तो ...तो फिर उस समय आपको..... मुखरा और अंतरा... होनी चाहिए .तो पूर्ण गज़ल कहेंगे .....ऐसे आपके बोल और भाव बहुत अच्छा है ...बस उसे सम्पूर्णता कि जरूरत है ......
..
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.और मैं कुछ बोलना चाहूंगी कि जब तक समीक्षा न कि जाये तब तक कमेंट्स देने का कोई मतलब ही नहीं है ........सो मैं अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी से सहमत हूँ .....
bas yahi kahoonga pahla prayas bahut hi accha...........
baki jo gautam rajrishi ji ne kaha usme mera sur bhi shamil hai.
पहली कोशिश तो काफी दमदार रही .. बहुत खूब !!
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
आप हर काम पहली बार ही करते हैं भाईजान, और पहली बार me ही verendr shvaag ki tarah पहली baal ko seema rekha ke paar pahunchaa dete हैं.
bahut umda gazal likhi hai aapne. badhaai...!
बहुत सुंदर.
नया साल मुबारक हो।
ओफ़ ओ .... प्यार का लहू दर्द और सिसकी टपक टपक टपक .....
महफूज़ भाई मई बैंडेज लाता हूँ वाश्प्रूफ़ वाला आप के दिल पे चिपकाने के लिए ..
आखिर इतना दर्द कहा से ????
बधाई हो महफ़ूज भाई ....
हाँ इतन जरुर महसूस हुआ कि गजल लिखने की विधा के उपर भी किसी को ब्लॉग लेखन शुरु करना चाहिये, हम तो इस विधा को लिखने से अनभिज्ञ हैं।
बड़े बेहतरीन भाव हैं....और किसी भी विधा में पारंगत होने के लिए बार बार उन पर आजमाईश जरूरी है...ऐसे ही लिखते रहें...इतने गुनी पाठक हैं...बिलकुल निखर जाएगी ग़ज़ल.
gazal ko padh kar to nahin lagta hai ki pahli baar likhi hai abhar
कोई रचना कैसे सुघड़ बन जाती है..अमरेन्द्र जी ने अथक परिश्रम कर के जतला दिया...!
शिल्प से बगावत थोड़े ही किया जा सकता है....!
आपका प्रयास सुंदर है..सुंदरतम के लिए अभ्यास और सीख लेने मे बुराई कहाँ है..!
तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.
तेरा चर्चा भी मेरी ज़ुबां पर न हो,
नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ.
बहुत खूब , prayaas achchaa thaa !
tum to jo bhi likhte ho andaje bayaan alag hi hota hai.. behtarin gazal...
तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.
बिल्कुल भी नहीं लगा की यह आपका पहला प्रयास है, बहुत ही अच्छा लिखा है, शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.
waah ! kya khoob!
aur yah song....:)
kisi ke liye khaas post kiya lagta hai??
Well....complement kar rahaa hai aap ki gazal ko!
अति सुन्दर भावनाएं
हार्दिक साधुवाद
कोशिश जारी रहे......
Pahli hi baar me teer nishane par ja kar laga hai.
Nav varsh ki dher sari shubkamnayen.
देर से आने के लिए माफी नही माँगूंगा... इतने सारे कॉमेंट्स फ्री जो मिले पढ़ने को!!!
पहली ग़ज़ल अच्छी बनाई आपने और अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी ने उसे और भी शानदार बना दिया..
जब मैने लिखना शुरू किया था, मुझे पता ही नही था कि ग़ज़ल के रूल्स भी होते हैं... धीरे धीरे जगजीत और गुलाम अली को सुनते सुनते पॅटर्न के बारे में थोड़ा बहुत समझ में आया... और बाकी अभी तक गौतम सर और अदा दी जैसों को पढ़ पढ़ कर सीखने की कोशिश जारी है... अपनी diary से कुछ पेश किया है आज ब्लॉग पर.. आपकी आलोचना के इंतज़ार में है ये ग़ज़ल...
http://ambarishambuj.blogspot.com/2009/12/blog-post_30.html
गजल का क ख ग तो हमे भी नहीं आता |
मगर आपकी गजल के भाव बहुत अच्छे लगे
आभार
बिंदास।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
--------
पुरूषों के श्रेष्ठता के जींस-शंकाएं और जवाब।
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित।
महफूज भाई,
आप इतना अच्छा लिखते है और फिर भी सीखने की इच्छा रखते है यह जान कर अच्छा लगा ...बस भाव से समझौता न करे.
नव वर्ष की शुभ कामनाएं.
प्रकाश पाखी
महफूज़ भाई ......... हमारी तरफ से आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की मंगल कामनाएँ ........
बढ़िया गज़ल बधाई।
--नववर्ष मंगलमय हो।
HAPPY NEW YEAR MAHFUJ BHAI
बढ़िया ग़ज़ल लिखी है जी ...वाह जी वाह
आगामी नव वर्ष पर ईश्वर अनेकानेक खुशियाँ प्रदान करें ये शुभकामना भेज रही हूँ ........
स स्नेह,
लावण्य , दीपक व परिवार
Wishing you Happy, Healthy and Prosperous 2010
Mahfooz Bhai, आपको एवं समस्त पारिवारिक जनों को मेरी तरफ से नववर्ष की मंगलमय कामनाये !
सुन्दर अभिव्यक्ति.....
नव वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ आपके लेखन को भी शुभ कामनाएं......
sundar rachanaa
badhaai
happy new year
no comment on GAJAL
नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ ढेर सारी बधाई ।
अब साहब, इतनी सलाह तो मिल गयी पहली ग़ज़ल पर... दूसरी कब सुना रहें हैं ?
तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.
bahut khoob..peheli baar apke blog par aai hu..ati sundar...
शतक लगाने की बारी को कैसे चुकने हूँ .....सर्वप्रथम तो इस शतक की बधाई .....तिस पर ये कमाल की चोट ......
म न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.
वाह ....बहुत खूब .....!!
नयी पोस्ट का इन्तजार है ......!!
101th comment from my side
mahfooz ji
gazal kathin vidha hai maante hain lekin mehnat aur lagan se seekhi jaa sakti hai
aapne isko seekhne ki koshish ki hai ye bahut khushi ki baat hai
kuch achchhe artile aapko abhivayakti ke rachna samay mein milenge
unhe padhne se kafi had tak bahar ki aur kafiye radeef ki jaankari ho jaayegi
aapmein vaicharik shakti to hai hi
mujhe yaqeen hai ki aap bahut jald shaandaar gazal ke saath milenge
sundar rachanaa
badhaai
happy new year
charhca bhi hai..aur zubaan se naam bhi mita rahe ho.... behad khoobsoorat tareh se bayan kiya hai..
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