शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

नाम तेरा अभी मैं अपनी ज़ुबां से मिटाता हूँ....: एक ग़ज़ल जो मैंने पहली बार लिखी....देख कर बताइयेगा...: महफूज़


बहुत दिनों से सोच रहा था कि ग़ज़ल लिखूं. पर मुझे ग़ज़ल का क ख ग भी नहीं आता था.. फिर मैंने कुछ अध्ययन किया.. ग़ज़ल लिखने का तरीका सीखा. पर जब सीखा तो यही लगा कि रूल्ज़ फौलो करने पर हम वो चीज़ नहीं लिख पाते हैं....जो चाहते हैं... कुछ लोगों से पूछा तो लोगों ने कहा कि किसी से सीख लो.. अब लिखने का इतना वो था कि किसी से सीखने का वक़्त ही नहीं मिला... यहाँ वहां किसी तरह सीख कर लिखने कि कोशिश की  है.... देख कर आप लोग बताइयेगा.... कैसी है? और कुछ अगर गलती है तो प्लीज़ उसे सुधारिएगा भी....
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नाम तेरा अभी मैं अपनी ज़ुबां से मिटाता हूँ...

मैं टूट जाऊँगा तुमने ये सोचा तो था,
पर देखो मैं पूरा नज़र आता हूँ.

मुझे छोड़ा था तुमने उस अँधेरे घर में,
अपने अन्दर ही मैं एक दीया पाता हूँ.

इन अंधेरों को जाना ही होगा घर से , 
रौशनी में नहा कर मैं  आ जाता हूँ.

तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.

तेरा चर्चा भी मेरी ज़ुबां पर न हो,
नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ.












A Song one must to be listen...

102 टिप्पणियाँ:

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

भाई साहब !
मकतबे-गजल का अच्छा तालिबे-इल्म
नहीं हूँ , फिर भी झटपट जो बना सो चटपट
रख रहा हूँ , सदोष तो होगा ही !

'' टूट जाऊँगा मैं तुमने सोचा यही ,
फिर भी देखो मैं पूरा नजर आ रहा |

मुझको छोड़ा है तुमने गहन अंध में
अपने अन्दर ही मैं इक दिया पा रहा |

भागना है अंधेरों को घर से मेरे ,
रोशनी में नहा करके मैं आ रहा |

ये न समझो कि ऐसे बिखर जाऊँगा
चोट खाने से पहले सिमट जा रहा |

तेरी चर्चा भी मेरी जुबां पर न हो
नाम तेरा अभी मैं मिटा जा रहा | ''

------ आपके भावों में छेड़छाड़ करना
मैंने उचित न समझा , बस 'जामा' - सा पहनाया है ..
.............. आभार ,,,

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपका पहला प्रयास बहुतों से अच्छा है!
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी की बात से
में तो सहमत नही हूँ!
किसी भी रचनाकार की रचना में गुण-दोष निकालना हमारा काम नही है! जब तक रचनाकार इसकी इजाजत न दे दे!

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

महफूज़ जी, आप ने बहुत बढ़िया गजल लिखी है...बहुत सुन्दर भाव हैं.....।बधाई स्वीकारें।

मैं तो मानता हूँ कि अपने कहने का जो अंदाज हो उसी मे अपनी बात कहे वही सब से अच्छा है....आप की गजल बहुत सुन्दर है..इसी तर्ह लिखते रहें....शुभकामनाएं।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

"तर्ह" को "तरह" पढ़ें।

संगीता पुरी ने कहा…

पहली कोशिश तो काफी दमदार रही .. बहुत खूब !!

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
चलिए आपने मुझे गलत कह ही दिया तो
मैं भी कुछ बोल ही दूँ , बेजुबानी बड़ी वाहियात
चीज है ...
@ ''अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी की बात से
में तो सहमत नही हूँ!''
......... असहमति आपका मौलिक अधिकार है
मेरी औकात नहीं है इस मौलिक अधिकार को
'चैलेन्ज' करने की ..
............ पर यही मौलिक अधिकार मुझे भी मिला है !
@ ''किसी भी रचनाकार की रचना में गुण-दोष निकालना
हमारा काम नही है!''
.......... यह तो सरासर गलत कहा आपने , '' रचना में गुण-दोष ''
निकलना ही तो आलोचना है , आपको मालूम होना
चाहिए कि आलोचना साहित्य की एक सशक्त विधा है , आपका
ऐसा कहना विधा के साथ अन्याय करना है ..
गुण-दोष निकलना विवेक - जागृत व्यक्ति की पहचान है !
किसी को यह पहचान नहीं खोनी चाहिए ..
@ ''..जब तक रचनाकार इसकी इजाजत न दे दे! ''
अरे मैंने गला नहीं दबाया है किसी का , महफूज भाई ने
कहा है जिसे शायद गौर नहीं किया आपने ---
'' देख कर आप लोग बताइयेगा.... कैसी है? और कुछ अगर गलती है
तो प्लीज़ उसे सुधारिएगा भी....''
...... अब आपही बताइए , मेरा क्या कुसूर है ?
.
.
जनाब !
मैंने कुछ गलत नहीं किया है , आप बड़े हैं , सम्माननीय हैं
पर '' गुण -दोष '' लिकालने को नहीं रोक सकते
मुझे ब्लोगिंग की दुकान नहीं चलानी है , अतः जो खटकेगा कहूँगा
'' चिटठा-चर्चों '' में घुसने का लोभ नहीं है मुझे ..

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

अक्षर से शब्द बनते है शब्द से वाक्य . और गज़ल तो शब्दो की कारीगरी है . सीखाने वाले तो बहुत मिलेगे लेकिन मुझे लगता है शायरी अपने आप आती है .

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

महफूज़ जी,
ग़ज़ल लिखने की आपकी पहली कोशिश के लिए आपको बधाई........और यकीन जानिये....बहुतों से बहुत अच्छा लिखा है आपने ....
हमतो यही कहेंगे की आपकी कोशिश कमाल की है....
तारीफ के काबिल है...
मुझे बहुत पसंद आई.....
हर विधा में आप अपनी लेखनी आजमा रहे हैं....ये बहुत बड़ी बात है...
शुक्रिया...

shikha varshney ने कहा…

पहला प्रयास यकीनन बहुत अच्छा है. ग़ज़ल के पूरे रूल्स का तो मुझे भी नहीं पता ..पर भाव बहुत ही अच्छे हैं

राज भाटिय़ा ने कहा…

इन अंधेरों को जाना ही होगा घर से ,
रौशनी में नहा कर मैं आ जाता हूँ.
जीयो लाल जीयो बहुत सुंदर आप की पहली गजल

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

और हाँ महफूज़ जी...
ग़ज़ल एक कठिन विधा है...जो आते आते ही आती है....
अगली बार और बेहतर लिखेंगे आप मुझे पूरा विश्वास है...
आज ज़रा जल्दी में कमेन्ट कर रही हूँ.....यहाँ तो ले दे कर यही एक त्यौहार होता है और हमलोग ज़रा व्यस्त हैं....
क्रिसमस की शुभकामना.....!!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

गलती बताऊंगा तुमने सोचा यही
मैं क्या बताऊं गज़ल लिख पाता नहीं :)

अबयज़ ख़ान ने कहा…

पहली कोशिश काफी कामयाब रही.. लेकिन एक बेहतरीन ग़ज़लकार बनना है, तो किसी के दिल में डूबकर प्यार करिए... शायर खुद-ब-खुद बन जाएंगे...

राजीव तनेजा ने कहा…

गज़ल की तो मुझे रत्ती भर भी समझ नहीं है लेकिन इतना ज़रूर समझ पाया हूँ कि आपने जो भी लिखा है...दिल से लिखा है...


बहुत बढिया

अर्चना तिवारी ने कहा…

महफूज़ जी आपका पहला प्रयास बहुत सराहनीय है....जारी रखियेगा...वो कहते हैं न कि "गिरते हैं शह सवार मैदाने जंग में "...मैं भी अभी इसी दौर से गुजर रही हूँ ...शुभकामनाएँ

Unknown ने कहा…

तेरा नाम जब भी मेरी ज़ुबां पर आया महफूज़
चर्चा तेरा बड़ी शिद्द्त से जमाने में हुआ.
पहली कोशिश बहुत ही बढ़िया रही महफूज़जी.

शबनम खान ने कहा…

Mehfooz ji...
me ghazal k rules nahi smjhti...na kabi koshish ki...even mujhe to lagta ha kavita aur ghazal me ye hi fark hota ha ki ghazal me urdu k shabd zada hote ha...shayed.......
shayed ye bas meri soch ho....
me to bas likh deti hu jo feel krti hu dusre batate h ki nazm ha ghazal ha kavita h.....
aapki likhi ye GHAZAL dil ko chhu gyi....
तेरी चर्चा भी मेरी जुबां पर न हो
नाम तेरा अभी मैं मिटा जा रहा |
khaskar ye lines...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

मुझको छोड़ा है तुमने गहन अंध में
अपने अन्दर ही मैं इक दिया पा रहा |
बहुत बढिया-आभार

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

Bahut Hi Khoobsoorat Rachna Hai..

Arvind Mishra ने कहा…

गजल पढ़ा -मजा आ गया !
कोई भी काम जो नेक मन और भावना से किया जाया कभी गलत नहीं होता-
अमरेन्द्र जी ने आपकी गजल को पालिश कर चमका दिया है -उन्हें शुक्रिया तो कहिये !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ग़ज़ल के बारे में मैं भी कुछ नहीं जानती....
बस दिल से निकली बात अच्छी ही होती है....खूबसूरत प्रयास....बधाई

बेनामी ने कहा…

जो लिखा गया है, वह पसंद आया
बस इतना ही कह सकता हूँ

बी एस पाबला

अर्कजेश ने कहा…

अति सुंदर भाव हैं । अच्‍छा लिखा है । नियम की जानकारी तो अपने को भी नहीं है ।

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खूब महफूज भाई , आप तो यहाँ भी हिट है।

Meenu Khare ने कहा…

ग़ज़ल के भाव बहुत अच्छे हैं.छन्द में थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. लिखते रहिए.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

gazel k kayde kanoon to me bhi nahi jaanti lekin jo likha hai vo jaroor dil me sargoshi kar gaya. bahut acchhi gazel likhi hai.

Unknown ने कहा…

mehfooz bhai mubaaraq !

achha laga padh kar............

koi ustaad paida nahin hota.......

samay aur anubhav sab sikhaata hai

gazal nahin toh gazal ki koshish hi sahi lekin aapki baat umdaa lagi......

is shouq ko aur aage tak phoolne-phalne dijiye...

sabse bade nirnaayak khud baniye...

log zindgi bhar islaah karte karte mar jaate hain unkaa ek she'r kisi kaam nahin aata aur koi do line aisi likh deta hai jise saaraa zamaana gungunaata hai

ye kudrat ki niyaamat hai

ise prasaad ki tarah grahan kijiye aur mast rahiye..


ek baar phir badhaai !

आशु ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
आशु ने कहा…
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आशु ने कहा…

महफूज़ भाई,

बहुत अच्छी रचना है. मैं भी इस दौर से गुज़र चूका हूँ. ग़ज़ल को टेक्निकली फिट करने के चक्कर में कोशिश येही रहनी चाहिए की उस का भाव न बदले. पर कई बार यह बड़ा मुश्किल लगता है. अभी मैंने 'बहर' का ध्यान देना छोड़ दिया है सिर्फ अंदाज़े से ही लिख लेता हूँ . हाँ 'काफिये' और 'रदीफ़' पर ही ज़यादा तबोज्जो देने की कोशिश रहती है.

आप की ग़ज़ल के भाव अच्छे है और उसी में ग़ज़ल का अर्थ पूरा हो जाता है. जैसे कहते है न ग़ज़ल का मतलब है खूबसूरत औरतों से बातचीत. पर अब contemporary ग़ज़ल किसी भी टोपिक पर लिखी जा सकती है. आप के भाव सुन्दर है और उसी से कोई भी सुन्दर रचना बनती है. बहुत बहुत मुबारक हो आप को

मुझे आप की रचना बेहतर लगी. लिखते रहे उस से और भी खूब रंग व् निखार आयेगा आप की ग़ज़लों में.

आशु

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

महफूज भाई मुझे व्याकरण,शब्द,लय,छन्द अभी ज़्यादा नही आते मैं अभी अभी सीख रहा हूँ रही बात भावनाओं और विचारों की उसके महत्व को मैं बहुत मानता हूँ और उनके ही सरल और सुंदर प्रयोग पर फोकस करता हूँ आज अभी आपकी कविता मैं उसी चीज़ की प्रधानता देखी है..बहुत सुंदर भाई एक बढ़िया अभिव्यक्ति...ग़ज़ल मुझे तो बहुत अच्छी लगी पहला प्रयास पर बढ़िया प्रयास..बहुत बधाई

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन प्रयास है..


अमरेन्द्र जी का सुझाव सीखने योग्य है..ऐसे ही लिखते-सीखते लोग एक से एक बेहतरीन गज़ल कह रहे हैं. गज़ल के व्याकरण की जानकारी जरुरी है लेकिन भाव सर्वोपरि हैं.

सुन्दर भाव अगर व्याकरण के नियमों की कसौटी पर कस दिये जाये तो हीरा निकल कर आता है.

आपको और अमरेन्द्र जी को पढ़कर अच्छा लगा/

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

भई गजल, कविताओं के बारे में तो अपनी समझ उतनी ही है..जितनी कि एक गवारँ को विज्ञान की । लेकिन आपके इस प्रयास की हौंसला अफजाई के लिए वाह! वाह्! तो कर ही सकते हैं :)

RAJ SINH ने कहा…

हम तो लिखते हैं वही दिल में जो समां जाये
वह गजल है की अजल ,पूछिए ज़माने से .

तो आप की भावनाओं को सलाम ........
उसे समझने के लिए किसी ' व्याकरण ' की जरूरत ही नहीं .
बस लिखते रहिये ........

SHIVLOK ने कहा…

ye vyakaran, niyam, aadi to

pata nahiin , lekin jo BAAT

PAKKII PAKKII PATA HAI VO YE HAI

KI AAPNE

SHANDAAR LIKHAA

JORDAAR LIKHAA

DIL SE LIKHAA

THIIK THIIK AISA HII MUJHE BHII LAGTA HAI.

THANKS A LOT

SHIV RATAN GUPTA

SHIVLOK ने कहा…

mehfooz bhai mubaaraq !

achha laga padh kar............

koi ustaad paida nahin hota.......

samay aur anubhav sab sikhaata hai

gazal nahin toh gazal ki koshish hi sahi lekin aapki baat umdaa lagi......

is shouq ko aur aage tak phoolne-phalne dijiye...

sabse bade nirnaayak khud baniye...

log zindgi bhar islaah karte karte mar jaate hain unkaa ek she'r kisi kaam nahin aata aur koi do line aisi likh deta hai jise saaraa zamaana gungunaata hai

ye kudrat ki niyaamat hai

ise prasaad ki tarah grahan kijiye aur mast rahiye..


ALBELA JII SE 725% SAHMAT

THAKYOU ALBELA JII

SHIVLOK ने कहा…

हम तो लिखते हैं वही दिल में जो समां जाये
वह गजल है की अजल YA HAI FASAL
MAT पूछिए ज़माने से .

आप की भावनाओं को सलाम ........
उसे समझने के लिए किसी ' व्याकरण ' की जरूरत ही नहीं .
बस लिखते रहिये ........

M VERMA ने कहा…

पहला प्रयास शब्द ही काफी है
इतने खूबसूरत भावो को व्यक्त करने के लिये विधाओ के वैयाकरण से क्या लेना देना. (मेरा व्यक्तिगत विचार) भाव जिस भी भाषा, विधा, माध्यम से व्यक्त हो वही बेहतर. और फिर आपने बखूबी भावों का सम्प्रेषण किया है

हास्यफुहार ने कहा…

क़ाबिले-तारीफ़ है।

Himanshu Pandey ने कहा…

पहला प्रयास उत्तम है । अमरेन्द्र जी की सँवारी गज़ल भी बढ़िया है । अब ऐसे गुण-ग्राहक मिल जाँय तो गज़ल में उस्तादी तो आ ही जायेगी आपको ।
आभार ।

36solutions ने कहा…

बहुत सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति महफ़ूज भाई.


मेरा मानना है कि हृदय से निकले भाव यदि सीधे शव्‍दों का रूप धरते हैं वही असल गजल, कविता या गीत बनते है. इसीलिए तो छंद बंधनों से मुक्‍त कविताओं में जीवंतता बरसने लगती है.

36solutions ने कहा…

महफूज भाई, हम आपके पोस्‍ट को फीड सबस्‍क्राईब किया है उसमें आपके पोस्‍ट का शीर्षक बस आ रहा है, पूरा पोस्‍ट पढने के लिए आपके ब्‍लाग में आना ही पढ रहा है. फीड रीडरों को ब्‍लाग पर आकर पोस्‍ट पढने के बजाए मेल में ही फीड से संपूर्ण पोस्‍ट पढना ज्‍यादा सुविधाजनक लगता है.
अनुरोध है कि अपने संपूर्ण पोस्‍ट का फीड प्रदान करें ताकि फीड सबस्‍क्रीप्‍शन की सार्थकता बनी रहे.

वाणी गीत ने कहा…

तेरा चर्चा भी मेरी ज़ुबां पर न हो,
नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ....

वाह ....भाई जान ...गजल लिखने में जुटे हुए हैं ...लेखन की सारी विधाओं का बंटाधार करके मानेंगे ...:)...

वैसे बच्चे ...कितने नाम मिटाओगे ....हा हा हा हा ...

लेकिन इस बात पर मैं पूर्णतया सहमत हूँ कि ग़ज़ल लेखन की सारी औपचारिकतायें पूरी की जाए तो लिखना बहुत मुशिकल हो जाता है ....इसलिए तो शरद जी को बार बार परेशां करना पड़ता है ...
अच्छी ग़ज़ल है ...अब बहर और इसके व्याकरण के बारे में तो हम खुद ही कुछ नहीं जानते ...!!

डॉ टी एस दराल ने कहा…

महफूज़ भाई, ग़ज़ल तो नहीं, पर हमने कहीं से दोहे लिखने सीखे थे। वो तो हम आपको सिखा सकते हैं।
वैसे प्रथम प्रयास अच्छा है। लिखते रहेंगे तो अपने आप रास्ते खुलते रहेंगे।
बधाई।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

टूटें छन्द बन्ध
मुक्त भाव
अक्षर सम्बन्ध
बस निबह जाय।
बात हो जाय
कह लें सुन लें
और मन बह ले।
व्याकरण पहेरू
बाहर ही ठीक।
घरनी कविता
डपट दे पहेरू को
इतनी तेजस्विनी
मानवती तो हो !!

छ्न्द मानव जाति के जीवन से ही आते हैं। मुझे सॉनेट लिखने को कहो तो बगले झाँकने लगूँ, दोहा या घनाक्षरी कहो तो शायद कर जाऊँ। बहुतेरे ऐसे हैं कि वह भी न कर पाएँ लेकिन मन की बात कह सकें और आप को द्रवित कर सकें, सोचने पर मजबूर कर सकें या नाचने, वाह वाह करने को उकसा सकें तो कवि हैं ...
ग़जल मुझे नहीं आती। कोई छन्द नहीं आते। मैं लय को थोड़ा समझता हूँ। बस। अब आप व्याकरण सम्मत रचना चाहते हैं तो पहेरू का गुलाम बनना पड़ेगा। अब आप के उपर है - स्वामी रहना चाहते हैं, कविता को स्वामिनी बनाना चाहते हैं कि पहेरू के हाथ घर की चाभी देना चाहते हैं ! ..
मुक्त रचिए - गजलगोई का शौक है तो उसकी लय में रचिए। बस लय पर दृष्टि रखिए, जिस दिन सध गई उस दिन बल्ले बल्ले... आहा चिकनाक चिकनाक... लोग झूमेंगे नाचेंगे और रोएँगे सोचेंगे.. कोई यह पूछने नहीं आएगा कि बहर किस शहर गया या इसमें का मतला ठिगना है..
वैसे आप की इस ग़जलनुमा कविता (;)) में शायद मतला को 'मत ला' श्रेणी में रख दिया गया है। हो सकता है कि मतला का अर्थ ही मैं न जानता होऊँ।
___________________
@
"तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ."
वाह ! अब देखिए मुझे इस शेर में ऐसा लग रहा है कि आम आदमी हुक्काम के किसी हलकट जमादार को अपनी दीनता दिखाते भी परोक्ष में चेता रहा है। कविता तो इसी को कहते हैं.. आगे विद्वान लोग जो सलाह दें, मानिए।

Unknown ने कहा…

अच्छा लिखा है तुमने!

गज़ल के रूल्स तो हमें भी नहीं पता, हाँ पर सुनते हैं तो अच्छा लगता है।

Murari Pareek ने कहा…

महफूज मियाँ हर हुनर रखते हैं !!! बधाई हो!!!

गौतम राजऋषि ने कहा…

हमारे इस ब्लौग-जगत को अमरेन्द्र जी उअर राव साह्ब जैसे टिप्पणिकारों की जरुरत है जो बेवजह की लल्लो-चप्पो न करके सटीक बातें कहें।

ग़ज़ल होती ही ग़ज़ल है अपने रूल्स की वजह से....वर्ना आजकल गद्य की पंक्तियां ऊपर-नीचे, छोटी-बड़ी करके "कविता" तो सब लिख रहे हैं। हर दूसरा लिखने वाला कवि बना हुआ है। शेष समीर लाल जी ने बहुत सही बात कही है।

आपका भाव पक्ष वाकई बेहतरीन है। कोई भी रचना ग़ज़ल कहलाने के लिये कुछ अतिरिक्त मेहनत माँगती है।

कल की गुफ़तगु बड़ी मजेदार रही...

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

महफूज भाई,

यह तो सीखने का दौर है सीखते रहिये, कोई उस्ताद मिले तो क्या बात नही तो किसी को उस्ताद बनाके एकलव्य के तरीके से भी सीखा जा सकता है।

श्री अमरेन्द्र जी ने बड़ी मेहनत से सुधार किया,अलबेला खत्री जी ने सौ फीसदी सही कहा कि कोई उस्ताद पैदा नही होता घिसते-घिसते कंकर ही शंकर बने हैं, श्री समीरलाल जी से पूरा इत्तेफाक रखता हुँ, और श्री गौतम राजऋषी जी ने जो कहा सोलह आने सच।

पढ़के मजा आया और उन भावों को अपने दिल में उतारने की कोशिश की।

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

SHIVLOK ने कहा…

HAM TO
SHABD NAHIIN PADHTE
VYAKARAN BHII NAHIIN PADHTE
AUR NIYAM BHII NAHIIN PADHTE
HAMEN TO BURII AADAT HAI
SIRF AUR SIRF BHAV PADHNE KII
SIRF AUR SIRF BHAV PADHNE KII
SIRF AUR SIRF BHAV PADHNE KII
KYA KARUN YAR
AADAT SE MAJBOOR HUN

रंजू भाटिया ने कहा…

आपने लिखा दिल से लिखा और वह बहुत पसंद आया ...शुक्रिया

vandana gupta ने कहा…

mahfooz

main to ismein ulajhna hi nhi janti ki kya gazal hai aur kya kavita bas itna janti hun jo bhi dil se nikle aur doosre dil tak pahunche wo hi lekhan ki sashakt vidha hai aur usmein tum mahir ho.

ab kis kis pankti ki tarif karoon .........har pankti ek dastan si kahti hai, har pankti mein ek kahani si chupi lagti hai..........seedhe dil mein utar gayi.

Khushdeep Sehgal ने कहा…

ओ, रौशनी में नहाए हुए इंसान,
बस काबू में रखा कर ज़ुबान
कहां-कहां तक मिटाता रहेगा नाम
दिल को तून वॉर मेमोरियल बना रखा है...

जय हिंद...

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ.
....कुछ नया बात कह गए आप तो.

वैसे ग़ज़ल विधा का मैं भी नया खिलाड़ी हूँ. उस्ताद की सोहबत जरुरी है. जैसा की ऊपर कुछ रचनाकारों ने गिनाया है.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

'' टूट जाऊँगा मैं तुमने सोचा यही ,
फिर भी देखो मैं पूरा नजर आ रहा |

मुझको छोड़ा है तुमने गहन अंध में
अपने अन्दर ही मैं इक दिया पा रहा |

बहुत बढिया जी.

रामराम.

Asha Joglekar ने कहा…

महफूज जी बहुत अच्छी लगी गज़ल । कुछ कुछ साठ के दशक के गानों की तरह जो हीरो तब गाता था जब वो समझता था कि हिरॉइन ने उसका दिल तोड दिया है । जैसे
मेरे दुश्मन तू मेरे दोस्ती को तरसे
मुझे गम देने वाले तू खुशी को तरसे ।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

gazal me bhi dum hai

दिगम्बर नासवा ने कहा…

तेरा चर्चा भी मेरी ज़ुबां पर न हो,
नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ....

महफूज़ भाई ........ दिल में भाव होने चाहिएं ...... मौलिक सोच होनी चाहिए ....... सीखने की ललक होनी चाहिए ...... शिप आते आते आ ही जाता है ........... बहुत खूबसूरत अल्फ़ाज़ हैं ......... नयी सोच है .......... लिखते रहें .........

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

भाई जी गज़ल की समझ तो हमको भी नही है, कोई गा कर सुना तो बहुत अच्‍छा लगता है।

समयचक्र ने कहा…

तेरा चर्चा भी मेरी ज़ुबां पर न हो,

नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ.
बहुत ख़ूबसूरत रचना अभिव्यक्ति . बधाई

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

BAHUT HI SUNDAR GAZAL KAHI HAI.

BADHAAYI.

--------
क्या आपने लोहे को तैरते देखा है?
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?

Preeti tailor ने कहा…

ek achchhi rachna aapki kamyabi ke vartmanpatroke kating padhe ...bahut badhi aur aage tarakki ke liye hardik shubhkamna...
aaj pahli baar yahan aana hua hai ...

सुनीता शानू ने कहा…

महफ़ूज़ भाई, आपकी भावनाएं सचमुच काबिले तारीफ़ है,इसे गज़ल न लिख कर रचना ही लीखिये, बहुत सुन्दर रचना है, खुदा ने चाहा तो कभी न कभी ग़ज़ल भी बन ही जायेगी। लगे रहिये बस।

निर्मला कपिला ने कहा…

गौतम जी और त्रिपाठी जी की बात से सहमत हूँ। पहले पहले सभी ऐसे ही लिखते हैं मुझे पता ही नहीं था कि गज़ल और गीत मे क्या फर्क है। जब पता चला ति उस गलती को सुधार लिया। अगर गज़ल नहीं भी बनी तो कविता कहने मे क्या बुराई है। भाव अच्छे हैं बस यही बहुत है। सुन्दर कविता के लिये बधाई। आस्जीर्वाद्

प्रज्ञा पांडेय ने कहा…

ग़ज़ल लिखने का आपका प्रयास बहुत सराहनीय है . त्रिपाठी जी का सुझाव आपके रास्ते को और प्रशस्त करेगा बहुत. बहुत बधाई आपको.

Unknown ने कहा…

तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,

ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.

ये लाइन बहुत अच्छी है .......आपने अच्छी प्रयास भी की है ....पर मुझे जो लग रहा है कि कुछ कमी हैं .....लिखना तो मुझे भी नहीं आता है पर सुनना अच्छा लगता है ....आपके बोल बहुत ही सुंदर है भाव भी बहुत अच्छा है,पर जब इसे स्वर देने जाये तो ...तो फिर उस समय आपको..... मुखरा और अंतरा... होनी चाहिए .तो पूर्ण गज़ल कहेंगे .....ऐसे आपके बोल और भाव बहुत अच्छा है ...बस उसे सम्पूर्णता कि जरूरत है ......
..
.
.
.और मैं कुछ बोलना चाहूंगी कि जब तक समीक्षा न कि जाये तब तक कमेंट्स देने का कोई मतलब ही नहीं है ........सो मैं अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी से सहमत हूँ .....

Pawan Kumar ने कहा…

bas yahi kahoonga pahla prayas bahut hi accha...........

baki jo gautam rajrishi ji ne kaha usme mera sur bhi shamil hai.

संजय भास्‍कर ने कहा…

पहली कोशिश तो काफी दमदार रही .. बहुत खूब !!

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

मेरी आवाज सुनो ने कहा…

आप हर काम पहली बार ही करते हैं भाईजान, और पहली बार me ही verendr shvaag ki tarah पहली baal ko seema rekha ke paar pahunchaa dete हैं.

bahut umda gazal likhi hai aapne. badhaai...!

Raj Singh ने कहा…

बहुत सुंदर.

नया साल मुबारक हो।

उम्दा सोच ने कहा…

ओफ़ ओ .... प्यार का लहू दर्द और सिसकी टपक टपक टपक .....
महफूज़ भाई मई बैंडेज लाता हूँ वाश्प्रूफ़ वाला आप के दिल पे चिपकाने के लिए ..
आखिर इतना दर्द कहा से ????

विवेक रस्तोगी ने कहा…

बधाई हो महफ़ूज भाई ....

हाँ इतन जरुर महसूस हुआ कि गजल लिखने की विधा के उपर भी किसी को ब्लॉग लेखन शुरु करना चाहिये, हम तो इस विधा को लिखने से अनभिज्ञ हैं।

rashmi ravija ने कहा…

बड़े बेहतरीन भाव हैं....और किसी भी विधा में पारंगत होने के लिए बार बार उन पर आजमाईश जरूरी है...ऐसे ही लिखते रहें...इतने गुनी पाठक हैं...बिलकुल निखर जाएगी ग़ज़ल.

रचना दीक्षित ने कहा…

gazal ko padh kar to nahin lagta hai ki pahli baar likhi hai abhar

Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…

कोई रचना कैसे सुघड़ बन जाती है..अमरेन्द्र जी ने अथक परिश्रम कर के जतला दिया...!

शिल्प से बगावत थोड़े ही किया जा सकता है....!

आपका प्रयास सुंदर है..सुंदरतम के लिए अभ्यास और सीख लेने मे बुराई कहाँ है..!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,

ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.


तेरा चर्चा भी मेरी ज़ुबां पर न हो,

नाम तेरा अभी लो मैं मिटाता हूँ.

बहुत खूब , prayaas achchaa thaa !

ρяєєтii ने कहा…

tum to jo bhi likhte ho andaje bayaan alag hi hota hai.. behtarin gazal...

सदा ने कहा…

तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.

बिल्‍कुल भी नहीं लगा की यह आपका पहला प्रयास है, बहुत ही अच्‍छा लिखा है, शुभकामनाओं के साथ बधाई ।

Alpana Verma ने कहा…

तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,

ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.
waah ! kya khoob!

aur yah song....:)
kisi ke liye khaas post kiya lagta hai??
Well....complement kar rahaa hai aap ki gazal ko!

alka mishra ने कहा…

अति सुन्दर भावनाएं
हार्दिक साधुवाद
कोशिश जारी रहे......

sandhyagupta ने कहा…

Pahli hi baar me teer nishane par ja kar laga hai.

Nav varsh ki dher sari shubkamnayen.

Ambarish ने कहा…

देर से आने के लिए माफी नही माँगूंगा... इतने सारे कॉमेंट्स फ्री जो मिले पढ़ने को!!!
पहली ग़ज़ल अच्छी बनाई आपने और अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी ने उसे और भी शानदार बना दिया..

जब मैने लिखना शुरू किया था, मुझे पता ही नही था कि ग़ज़ल के रूल्स भी होते हैं... धीरे धीरे जगजीत और गुलाम अली को सुनते सुनते पॅटर्न के बारे में थोड़ा बहुत समझ में आया... और बाकी अभी तक गौतम सर और अदा दी जैसों को पढ़ पढ़ कर सीखने की कोशिश जारी है... अपनी diary से कुछ पेश किया है आज ब्लॉग पर.. आपकी आलोचना के इंतज़ार में है ये ग़ज़ल...
http://ambarishambuj.blogspot.com/2009/12/blog-post_30.html

शोभना चौरे ने कहा…

गजल का क ख ग तो हमे भी नहीं आता |
मगर आपकी गजल के भाव बहुत अच्छे लगे
आभार

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

बिंदास।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
--------
पुरूषों के श्रेष्ठता के जींस-शंकाएं और जवाब।
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्‍कार घोषित।

प्रकाश पाखी ने कहा…

महफूज भाई,
आप इतना अच्छा लिखते है और फिर भी सीखने की इच्छा रखते है यह जान कर अच्छा लगा ...बस भाव से समझौता न करे.
नव वर्ष की शुभ कामनाएं.
प्रकाश पाखी

दिगम्बर नासवा ने कहा…

महफूज़ भाई ......... हमारी तरफ से आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की मंगल कामनाएँ ........

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बढ़िया गज़ल बधाई।
--नववर्ष मंगलमय हो।

Murari Pareek ने कहा…

HAPPY NEW YEAR MAHFUJ BHAI

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

बढ़िया ग़ज़ल लिखी है जी ...वाह जी वाह
आगामी नव वर्ष पर ईश्वर अनेकानेक खुशियाँ प्रदान करें ये शुभकामना भेज रही हूँ ........
स स्नेह,
लावण्य , दीपक व परिवार

बेनामी ने कहा…

Wishing you Happy, Healthy and Prosperous 2010

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

Mahfooz Bhai, आपको एवं समस्त पारिवारिक जनों को मेरी तरफ से नववर्ष की मंगलमय कामनाये !

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति.....
नव वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ आपके लेखन को भी शुभ कामनाएं......

manu ने कहा…

sundar rachanaa
badhaai
happy new year



no comment on GAJAL

सदा ने कहा…

नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ ढेर सारी बधाई ।

बेनामी ने कहा…

अब साहब, इतनी सलाह तो मिल गयी पहली ग़ज़ल पर... दूसरी कब सुना रहें हैं ?

Dr. Tripat Mehta ने कहा…

तुम न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.

bahut khoob..peheli baar apke blog par aai hu..ati sundar...

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

शतक लगाने की बारी को कैसे चुकने हूँ .....सर्वप्रथम तो इस शतक की बधाई .....तिस पर ये कमाल की चोट ......

म न समझो के मैं यूँ बिख़र जाऊँगा,
ठोकरों से पहले ही सिमट जाता हूँ.

वाह ....बहुत खूब .....!!

नयी पोस्ट का इन्तजार है ......!!

zeashan haider zaidi ने कहा…

101th comment from my side

श्रद्धा जैन ने कहा…

mahfooz ji
gazal kathin vidha hai maante hain lekin mehnat aur lagan se seekhi jaa sakti hai
aapne isko seekhne ki koshish ki hai ye bahut khushi ki baat hai
kuch achchhe artile aapko abhivayakti ke rachna samay mein milenge
unhe padhne se kafi had tak bahar ki aur kafiye radeef ki jaankari ho jaayegi

aapmein vaicharik shakti to hai hi

mujhe yaqeen hai ki aap bahut jald shaandaar gazal ke saath milenge

संजय भास्‍कर ने कहा…

sundar rachanaa
badhaai
happy new year

Reetika ने कहा…

charhca bhi hai..aur zubaan se naam bhi mita rahe ho.... behad khoobsoorat tareh se bayan kiya hai..

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