Introductory Lucknow: The City of Nawabs, Kebabs and Naqabs.
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*Dear Friends*,
This is *Dr. Mahfooz* commencing this *travelogue* with a *short
introduction* of my own city *Lucknow*. *Lucknow the City of Nawabs, Keb...
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१.
मैं थोडा उत्तेजित हूँ,
दो अक्टूबर !
गाँधी का जन्मदिन
समाधि पर फूल चढाने
और कुछ क्षण शांत
मौन खडा सोचता,
"क्या यहाँ कभी कोई आता भी है और भी किसी दिन?"
शायद ! गाँधी कि याद में
"गाँधी" टंका रह गया है?
या फिर गाँधी के मरने के बाद,
हे! राम
कुछ ज्यादा ही प्रेम हो गया है?
===========================
२.
जल रहा है भारत,
जल रहें हैं गाँधी के सपने,
किसने लगायी यह खुशियों में
यह आग?
कितने विभाजन?
कितने आपातकाल?
कितने गोधरा?
और कितने अयोध्या?
क्यूँ है छदम-धर्म निरपेक्षता?
क्यूँ है, तू बहुजन?
तू समाजवादी?
तू ठाकुर?
तू ब्राह्मण?
और तू मुसलमाँ?
क्यूँ नहीं हैं सब अपने?
अब तो ....
जल रहा है भारत....
जल रहे हैं गाँधी के सपने.............
हम इतिहास (History) क्यूँ पढ़ते हैं? सवाल था तो सीधा ...... लेकिन साथ ही साथ टेढा भी. अब आप लोग सोच रहे होंगे कि मैंने यह सीधा और सरल सवाल क्यूँ किया? वैसे यह सवाल करने का एक मकसद था. क्यूंकि हमारी ज़िन्दगी हमेशा पास्ट यानी की भूतकाल से जुडी होती है और हम कहते भी हैं कि छोडो वो पिछली बातें थीं क्या उनको याद करना..... जो बीत गया उसे भूल जाओ...
मेरा सिर्फ एक सवाल है....... आप सब लोगों से........... प्लीज़.................. इस पोस्ट को पढने के बाद जवाब ज़रूर दीजियेगा ............ सवाल यह कि सिर्फ यह बता दें कि
मैं हिंदी दैनिक "अमर उजाला" का फिर से आभारी हूं कि उन्होंने मेरे लेख "आईये जानें टाटा (TATA) का सच:-- एक ऐसा सच जो सोचने को मजबूर कर दे... ब्लॉग जगत में एक बहुत बड़े रहस्य से पर्दा उठा. "
को दिनांक २१/०९/२००९ को अपने सम्पादकीय पन्ने पे प्रमुखता से प्रकाशित किया. मैं हिंदी दैनिक अमर उजाला का शुक्रगुज़ार हूँ.
=====================================
मैं दूरदर्शन के हिंदी राष्ट्रीय चैनल LOKSABHA TV का भी शुक्रगुज़ार हूँ कि मेरे ब्लॉग "मेरी रचनाएँ" में लिखे गए अति चर्चित लेखों और कविताओं को अपने कार्य क्रम "साहित्य मँच" में शामिल किया तथा मेरे राष्ट्रवादी विचारों को आम लोगों तक पहुंचाया...
=====================================
मेरी एक सफलता मैं और आप लोगों से बांटना चाहूँगा ..... मेरी एक ENGLISH Poem "FIRE IS STILL ALIVE" का प्रकाशन UNIVERSITY OF WISCONSIN- MADISON United States (US) ke EMERITUS PROFESSOR Mr. Nancy L John Diekelmann के द्वारा किया जा रहा है..... जिनसे मेरी फोन पे भी बात हुयी .....जिसको वे वहां T-Shirts पे publish करेंगे ...... और वो T-Shirt पूरे US में बेचीं जाएँगी..... जिनका एक्सपोर्ट भारत में भी होगा..... मेरी वो कविता एक सामाजिक सन्देश देती है... जो कि US में बहुत लोकप्रिय हुई है..... T-Shirts का उत्पादन अगले साल के जून - जुलाई तक होगा....... इस सिलसिले में मैं नवम्बर में US जा रहा हूँ....
=========================================
मेरी इस सफलता का श्रेय (CREDIT) सर्वप्रथम मैं अपनी आदरणीय मम्मी रश्मि प्रभाजी को देता हूँ. जिनके दुआओं और मार्गदर्शन से यह सफलता हासिल हुई.
=====================================
मैं श्री. समीर लाल जी (उड़न तश्तरी) जी का बहुत ही आभारी हूँ, उन्होंने मुझे हमेशा अच्छा लिखने कि प्रेरणा दी. मैं जब ब्लॉग पे नया नया था आया था.... तो सबसे पहले श्री. समीर लाल जी ने ही मेरा मनोबल बढाया... और उनके इसी SUPPORT से मैं आज उनको नमन करता हूँ.
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मैं श्री. ॐ आर्य जी का भी बहुत शुक्रगुज़ार हूँ.... एक सच्चे दोस्त के रूप में ....इन्होने मेरा हमेशा साथ दिया.
शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2009
गाँधी-स्मृति में......
१.
मैं थोडा उत्तेजित हूँ,
दो अक्टूबर !
गाँधी का जन्मदिन
समाधि पर फूल चढाने
और कुछ क्षण शांत
मौन खडा सोचता,
"क्या यहाँ कभी कोई आता भी है और भी किसी दिन?"
शायद ! गाँधी कि याद में
"गाँधी" टंका रह गया है?
या फिर गाँधी के मरने के बाद,
हे! राम
कुछ ज्यादा ही प्रेम हो गया है?
===========================
२.
जल रहा है भारत,
जल रहें हैं गाँधी के सपने,
किसने लगायी यह खुशियों में
यह आग?
कितने विभाजन?
कितने आपातकाल?
कितने गोधरा?
और कितने अयोध्या?
क्यूँ है छदम-धर्म निरपेक्षता?
क्यूँ है, तू बहुजन?
तू समाजवादी?
तू ठाकुर?
तू ब्राह्मण?
और तू मुसलमाँ?
क्यूँ नहीं हैं सब अपने?
अब तो ....
जल रहा है भारत....
जल रहे हैं गाँधी के सपने.............
बुधवार, 30 सितंबर 2009
तो क्यूँ ना माँगूं आसमाँ यहाँ??
दुनिया की इस भीड़ में,
खोजता फिरता हूँ अपना मुकाम
हर चीज़ वो मिलती नहीं
जिसकी होती चाहत यहाँ,
क्या खोने के डर से,
मैं भूलूँ,
कुछ पाने की चाह यहाँ?
जब चाहत हो तारों की,
तो क्यूँ ना माँगूं आसमाँ यहाँ??
खोजता फिरता हूँ अपना मुकाम
हर चीज़ वो मिलती नहीं
जिसकी होती चाहत यहाँ,
क्या खोने के डर से,
मैं भूलूँ,
कुछ पाने की चाह यहाँ?
जब चाहत हो तारों की,
तो क्यूँ ना माँगूं आसमाँ यहाँ??
रविवार, 27 सितंबर 2009
हम इतिहास सिर्फ इसीलिए पढ़ते हैं क्यूंकि....... कल के सवाल का जवाब....
हम इतिहास (History) क्यूँ पढ़ते हैं? सवाल था तो सीधा ...... लेकिन साथ ही साथ टेढा भी. अब आप लोग सोच रहे होंगे कि मैंने यह सीधा और सरल सवाल क्यूँ किया? वैसे यह सवाल करने का एक मकसद था. क्यूंकि हमारी ज़िन्दगी हमेशा पास्ट यानी की भूतकाल से जुडी होती है और हम कहते भी हैं कि छोडो वो पिछली बातें थीं क्या उनको याद करना..... जो बीत गया उसे भूल जाओ...
पर जो बीत जाता है... न तो उसे हम भूल पाते हैं और न ही उनको याद करना छोड़ पाते हैं. हम अपनी निजी ज़िन्दगी में जब भी कोई बात करते हैं तो पिछले बातों को भी याद करते हैं. और पीछे जो गलतियाँ हुई हैं उनसे सबक लेते हुए अपने आने वाले नए भविष्य का निर्माण करते हैं. यानी कि मतलब यह है कि भविष्य कि नींव भूतकाल में ही तय हो जाती है.
वैसे हम इतिहास क्यूँ पढ़ते हैं? इतिहास पढने के कई महत्वपूर्ण तर्क हैं और इन तर्कों को हम नकार भी नहीं सकते. कई तर्क यह कहते हैं कि: -------
- इतिहास हमें हमारी दुनिया कि उत्पत्ति को जानने में मदद करता है.
- इतिहास जानने से हम तर्कों को और प्रमाणिक कर देते हैं.
- इतिहास हमारे चिंतन को मजबूती प्रदान करता है.
- इतिहास हमें हमारे वर्तमान और भूतकाल को समझने में मदद करता है .
- इतिहास में घटनाओं और लोगों के बारे में पढना अच्छा लगता है.
- इतिहास हमें बाकी विषयों को समझने में मदद करता है.
- इतिहास हमें आधुनिक राजनितिक और सामाजिक समस्याओं को समझने में मदद करता है.
- इतिहास हमें यह भी जानने में मदद करता है कि भूतकाल में लोग सिर्फ अच्छे या बुरे ही नहीं थे, बल्कि जटिल परिस्थितिओं में किस प्रकार व्यवहार करते थे.
ऐसे कई तर्क हैं जिनको हम कह सकते हैं कि जानने व समझने के लिए हम इतिहास पढ़ते हैं. वैसे यह कहना कि भूतकाल में जो गलतियाँ हो चुकी हैं उन्हें भविष्य में न दोहराया जाये इसलिए हम इतिहास पढ़ते हैं कहना काफी हद तक सही नहीं है.... क्यूंकि यह तो है ही कि हम अपनी पिछली गलतियों से सबक लेते हैं..... और उन्ही सबक के आधार पर भविष्य का निर्माण करते हैं..... और फिर भी वही गलतियाँ दोहराते हैं जो भूतकाल में हो चुकी हैं.. फिर इतिहास पढने का फायदा क्या है? जब हम बार बार वही गलतियाँ दोहराते हैं. इतिहास में हम युद्ध , न्याय-अन्याय , गरीबी, भुखमरी , सम्पन्नता इत्यादि के बारे में जानते हैं , पढ़ते हैं. फिर भी हम उनसे कोई सबक नहीं लेते हैं. और आज भी वही गलतियाँ दोहरा रहे हैं. फिर इतिहास पढने से क्या फायदा, जब हमें गलतियाँ दोहरानी ही है?
पर हमारे लिए इतिहास जानना बहुत ही ज़रूरी है. हमें आखिर मालूम तो होना चाहिए न, कि हम पहले क्या थे और आज क्या हैं?
अब यह कहना कि इतिहास खुद को दोहराता है , यह कहने के लिए तो सही है पर कभी हमने यह नहीं सोचा कि इतिहास खुद को दोहराता ही क्यूँ हैं? इसका जवाब बहुत ही आसान है क्यूंकि हमने अपने भूतकाल से कुछ सीखा ही नहीं ..... इसलिए इतिहास ने खुद को दोहरा दिया... इतिहास भविष्य नहीं बताता ...इतिहास यह बताता है कि जो गलती वर्तमान में हुयी है, उसको ध्यान में रखते हुए अपने भविष्य का निर्माण करो.... नहीं करोगे ....तो इतिहास फिर और बार - बार दोहराया जायेगा... इसलिए हमें वर्तमान को सही करना या रखना ज़रूरी है तभी तो भविष्य सही होगा और यही इतिहास हमें सिखाता है.
इतिहास एक प्रगति की प्रक्रिया है, जो बदली जाती हैं, संशोधित की जातीं हैं और कभी न भूलने के लिए लिखी जातीं हैं. सुकरात (Socrates) ने कहा था की "Know thyself" मतलब खुद को जानिए . यहाँ पे सुकरात का मतलब खुद को जानना ही नहीं था..... उसका मतलब पूरे अद्भुत और प्रक्रितिविश्यक संसार को जानने से था. और यही जानने को हम इतिहास कहते हैं. यह खुद को जानने व समझने की एक प्रक्रिया है. और इसी प्रक्रिया को हम आत्म-ज्ञान या स्व-सुधार की प्रक्रिया कहते हैं जो की इतिहास से ही हो कर गुज़रता है. यानी की इतिहास का मतलब है स्व - सुधार .....
वैसे दो शब्दों में आपको बता दूं की हम इतिहास इसलिए पढ़ते हैं ताकि हम अपने संस्कार और संस्कृति को भूले नहीं.... उन्हें हम जानें...... और जानकर ..... भविष्य की पीढी को विरासत में दें..... अपने संस्कार और संस्कृति को जानना ही इतिहास है. जो व्यक्ति अपने संस्कार, संस्कृति और इतिहास को नहीं जानता है वो सामाजिक रूप से बहिष्कृत (PARIAH) होता है. और यही गलती आजकल हम कर रहे हैं.... की हम अपने संस्कार और संस्कृति को भूल रहे हैं और इतिहास जैसे विषय का मज़ाक उड़ा रहे हैं. जिसने इतिहास नहीं जाना उसने खुद को नहीं जाना. अपनी धरोहरों को संभाल कर रखना ही इतिहास है. स्व- ज्ञान ही इतिहास है.
सारांश यही है कि हम इतिहास इसलिए पढ़ते हैं जिससे कि हम भूल सुधार करते हुए अपनी संस्कृति और संस्कार को भूले नहीं...
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दोस्तों, इतिहास मज़ाक का विषय नहीं है..... न ही यह कोई बोर करने वाला विषय है.. यह इसलिए हमारे syllabus में है कि हम जानें खुद को..... अपने संस्कार को और अपने संस्कृति को.... वरना यह इतना प्रसिद्ध विषय कैसे होता.... ? क्यूँ इतिहास से CIVIL SERVICES EXAM को पास करने वाले को Genius कहा जाता है? क्यूँ एक Archaeologist को आदर कि निगाह से देखा जाता है? क्यूँ ARCHAEOLOGY DEPT. बनाये गए हैं? यह तो हर इंसान को जानना ही चाहिए.... तभी वो अपने धर्म और कर्म को भी जान पाएगा.... नहीं तो सिर्फ बिना मतलब कि बहस ही करता रहेगा......
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काफी लोगों इस पोस्ट को देखा ...... और काफी लोगों ने इसका जवाब भी दिया.... और काफी लोग इस सवाल से बच के निकल भी गए.... अगर हम हिंदुस्तानिओं ने इतिहास विषय को स्कूल में सही तरीके से पढ़ा होता ..... तो इसका सही जवाब बहुत आसान था.... हम ज़ात, धर्म, प्रांत और भाषा को लेके सिर्फ इसीलिए झगड़ते हैं...... क्यूंकि हमने इतिहास नहीं पढ़ा है.....
खैर..... मेरे सवाल का लगभग सही के करीब जवाब जिन लोगों ने दिया है.... उनके नाम इस प्रकार है......
- श्री. समीरलाल जी : इतिहास समय दर्ज करता है तो हमारे भविष्य का मार्गदर्शक होता है.
- श्री. जैराम विपल्व : अतीत को जानकर-समझ कर और उससे सीख लेकर वर्तमान तथा भविष्य दोनों को बेहतर किया जा सकता है।
- श्री. वर्माजी: भूत की नीव पर वर्तमान और भविष्य होता है.
बिना भूत को जाने हम न तो वर्तमान और फिर न तो भविष्य को स्वरूप दे सकते है. जिस तरह अगर हम अपने मकान पर एक मंजिल और बनवाना चाहेंगे तो उसकी नीव को जाने बिना नही आगे बढ सकते है. - श्री. अवधिया जी : कहा जाता है कि 'इतिहास स्वयं को दुहराता है'।इतिहास पढ़ने से हमें इस बात का कुछ कुछ भान हो जाता है कि कौन सी बातें दुहराई जा सकती हैं, और हम स्वयं को उसके लिए मानसिक रूप से तैयार रखते हैं।
- शिखा वर्ष्णे जी : हम इतिहास इसलिए पड़ते हैं क्योंकि अतीत की जड़ों से ही भविष्य का पेड़ उपजता है ,उसकी गर्त से ही हमें अपने विकास का मार्ग मिलता है.
- चन्दन झा: हम अपने अतीत को याद रखते हुए एक सुःखद भविष्य की कल्पना कर सके । इतिहास हमें अपनी गलतियों से अवगत कराता है और सही मार्ग भी दिखलाता है.
- अदाजी : इतिहास हमें अपने अतीत से जोड़ता है और माप दंड देता है कि हमने उपलब्धियों और गलतियों से कितनी दूरी तय की है और कैसे की हैं...इतिहास हमें अपने अतीत से भागने नहीं देता है, हमें हर दिन उससे जोड़े रखता है ..
(आप सब लोगों से निवेदन है कि अपने Addresses कृपया मेल कर दें ....)
और सीमा जी का बहुत बहुत धन्यवाद .....आपने सही अंदाजा लगाया था कि... ह्म्म्म बेहद सम्वेदनशील प्रश्न...लकिन हमे आपके जवाब का इंतजार है, आप ने ये प्रश्न ऐसे ही नहीं पुछा होगा....इसमें जरुर कोई न कोई तर्क होगा.....
शुक्रवार, 25 सितंबर 2009
सिर्फ एक सवाल.. कि " हम इतिहास (HISTORY) क्यूँ पढ़ते हैं?" जवाब राष्ट्रहित में ज़रूरी है..
मेरा सिर्फ एक सवाल है....... आप सब लोगों से........... प्लीज़.................. इस पोस्ट को पढने के बाद जवाब ज़रूर दीजियेगा ............ सवाल यह कि सिर्फ यह बता दें कि
" हम इतिहास (HISTORY) क्यूँ पढ़ते हैं?"
(सही और शानदार जवाब पे मेरी ओर से एक शानदार PEN SET....... GIFT.... )
(सही और शानदार जवाब पे मेरी ओर से एक शानदार PEN SET....... GIFT.... )
मंगलवार, 22 सितंबर 2009
अमर उजाला में प्रकाशन,प्रसारण, जग में नाम, माँ का आशीर्वाद.. और आप लोगों का प्यार.. .
मैं हिंदी दैनिक "अमर उजाला" का फिर से आभारी हूं कि उन्होंने मेरे लेख "आईये जानें टाटा (TATA) का सच:-- एक ऐसा सच जो सोचने को मजबूर कर दे... ब्लॉग जगत में एक बहुत बड़े रहस्य से पर्दा उठा. "
को दिनांक २१/०९/२००९ को अपने सम्पादकीय पन्ने पे प्रमुखता से प्रकाशित किया. मैं हिंदी दैनिक अमर उजाला का शुक्रगुज़ार हूँ.
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मैं दूरदर्शन के हिंदी राष्ट्रीय चैनल LOKSABHA TV का भी शुक्रगुज़ार हूँ कि मेरे ब्लॉग "मेरी रचनाएँ" में लिखे गए अति चर्चित लेखों और कविताओं को अपने कार्य क्रम "साहित्य मँच" में शामिल किया तथा मेरे राष्ट्रवादी विचारों को आम लोगों तक पहुंचाया...
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मेरी एक सफलता मैं और आप लोगों से बांटना चाहूँगा ..... मेरी एक ENGLISH Poem "FIRE IS STILL ALIVE" का प्रकाशन UNIVERSITY OF WISCONSIN- MADISON United States (US) ke EMERITUS PROFESSOR Mr. Nancy L John Diekelmann के द्वारा किया जा रहा है..... जिनसे मेरी फोन पे भी बात हुयी .....जिसको वे वहां T-Shirts पे publish करेंगे ...... और वो T-Shirt पूरे US में बेचीं जाएँगी..... जिनका एक्सपोर्ट भारत में भी होगा..... मेरी वो कविता एक सामाजिक सन्देश देती है... जो कि US में बहुत लोकप्रिय हुई है..... T-Shirts का उत्पादन अगले साल के जून - जुलाई तक होगा....... इस सिलसिले में मैं नवम्बर में US जा रहा हूँ....
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मेरी इस सफलता का श्रेय (CREDIT) सर्वप्रथम मैं अपनी आदरणीय मम्मी रश्मि प्रभाजी को देता हूँ. जिनके दुआओं और मार्गदर्शन से यह सफलता हासिल हुई.
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मैं श्री. समीर लाल जी (उड़न तश्तरी) जी का बहुत ही आभारी हूँ, उन्होंने मुझे हमेशा अच्छा लिखने कि प्रेरणा दी. मैं जब ब्लॉग पे नया नया था आया था.... तो सबसे पहले श्री. समीर लाल जी ने ही मेरा मनोबल बढाया... और उनके इसी SUPPORT से मैं आज उनको नमन करता हूँ.
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मैं श्री. ॐ आर्य जी का भी बहुत शुक्रगुज़ार हूँ.... एक सच्चे दोस्त के रूप में ....इन्होने मेरा हमेशा साथ दिया.
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हौसला अफज़ाई और इतना प्यार देने के लिए आप सब लोगों को धन्यवाद ................
- मैं श्री. M.L. वर्मा जी का बहुत ही शुक्रगुजार हूँ, इनका आर्शीवाद इस छोटे भाई पे शुरू से रहा है.
- मैं श्री.डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक का बहुत ही आभारी हूँ, आपका आर्शीवाद हमेशा साथ रहा है.
- श्री. शरद कोकस जी.. इनके बारे में जितना कहूँ कम है... आज जो मैं अच्छी हिंदी लिख रहा हूँ... वो आपकी ही बदौलत... लिख पा रहा हूँ..... अब चूंकि मैं CONVENT BACKGROUND से हूँ.... तो कहते हुए शर्म आ रही है कि ...मेरा हाथ हिंदी में तंग था... जब भी कहीं हिंदी में अटकता हूँ ... तो सीधा इनको याद करता हूँ..... शरद भैया इसका मतलब बता दीजिये.... इस फलां शब्द कि हिंदी बता दीजिये... और यह भी रात बेरात मेरे लिए हमेशा तैयार रहते हैं.... हर वक़्त मेरे साथ खड़े रहते हैं......
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मैं "अदाजी " (स्वप्ना मञ्जूषा जी) का भी बहुत ही शुक्रगुज़ार हूँ ... इनके कमेंट्स हमेशा मेरा हौसला बढाते हैं.
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मैं :--------
- श्री. अजय कुमार झा जी
- श्री. सुमन जी
- श्री. समीउद्दीन नीलू जी
- श्री. चन्द्र मोहन गुप्त जी
- श्री. दिगंबर नस्वा. जी
- श्री. सुरेश चिपलूनकर जी
- श्री. जी.के. अवधिया जी
- गुरूजी डॉ. आदित्य कुमार जी
- श्री. आशीष खंडेलवालजी
- श्री . सच्चाई जी
- श्री. पप्पू यादव जी
- श्री संजय व्यास जी
- श्री. प्रकाश पाखी जी..
- श्री. जाकिर अली जी
- श्री. सलीम खान जी
- श्री. विज कुमार सप्पति जी
- श्री. अरविन्द मिश्र जी
- श्री वत्स जी
- श्री. भूतनाथ जी
- श्री. प्रसन्न वादन चतुर्वेदी जी
- श्री. मनीष कुमार जी.
आप सब का मैं बहुत ही आभारी हूँ..... कि आप सबने मेरे लेख को सराहा और इतना प्यार दिया... जो इज्ज़त आप लोगों ने मुझे दी है ...उसका मैं शुक्रगुज़ार हूँ.
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मैं अपने छोटे भाइयों :
- विनोद कुमार पाण्डेय
- मिथलेश दुबे
- अनिल कान्त
- अम्बुज
- पंकज मिश्र
- दर्पण
- सत्य
- खुर्शीद
- संजय भास्कर
- चन्दन कुमार झा
- अपूर्व
- अमृत पाल सिंह
- रौशन
- प्रवीण शाह
- और नवल
का भी बहुत ही शुक्र गुज़ार हूँ...... मेरे इन छोटे भाइयों ने मुझे हर कदम पे सराहा और support किया ...जिसका मैं अपने छोटे भाइयों का अभिनन्दन करता हूँ.
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I am also very much thankful to :
- Respected Sangeeta puri Aunty
- Respected Nirmala kapila Aunty
- Raj ji
- Shobhna Chaudhry
- Vani di
- Babli ji
- Uttama ji
- Dipti ji
- Mehek ji
- Razia ji
- Shikha Varshney ji
- Sadhna Gupta ji
- Shefaali ji
- Seema Gupta ji
- Alpana Vermaji
- Ranjana ji
- Pallavi Trivedi ji
- Archna ji
- Vandana Dubey ji
- Asha Joglekar Aunty
- Sreena ji
- Richaji
- Rukhsar ji
- Sada ji
- Shamaji
- Kshamaji
- Sareetha ji
- and Maansi ji
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हौसला अफज़ाई और इतना प्यार देने के लिए आप सब लोगों को धन्यवाद ................
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चलिए! थोडा घूम आयें...
जो मेरे अपने हैं.......
यादगार लम्हे...
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मेरे बारे में
- डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)
- पेशे से प्रवक्ता और अपना व्यापार. मैंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम्.कॉम व डॉ. राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय,फैजाबाद से एम्.ए.(अर्थशास्त्र) तथा पूर्वांचल विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि ली है. I.G.N.O.U. से सन २००५ में PGJMC किया और सन् 2007 में MBA किया. पूर्णकालिक रूप से अपना व्यापार भी देख रहा हूं व शौकिया तौर पर कई कालेजों में भी अतिथि प्रवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं देता हूं. पढ़ना और पढ़ाना मेरा शौक़ है. अंग्रेज़ी में मुझे मेरी कविता 'For a missing child' के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. मेरी अंग्रेजी कविताओं का संकलन 'Eternal Portraits' के नाम से बाज़ार में उपलब्ध है,जो की Penguin Publishers द्वारा प्रकाशित है. अंग्रेजी में मैंने अब तक क़रीब 2600 कविताएं लिखी हैं. हंस, वागर्थ, कादम्बिनी से होते हुए ...अंतर्राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका 'पुरवाई' जो की लन्दन से प्रकाशित होती है ...में प्रकाशित हुआ, तबसे हिंदी का सफ़र जारी है... मेरी हिंदी कविताओं का संकलन 'सूखी बारिश' जो की सन् 2006 में मुदित प्रकाशन से प्रकाशित है... मैं करता हूं कि मेरा ब्लॉग मेरे पाठकों को ज़रूर अच्छा लगेगा... आपकी टिप्पणियां मेरा हौसला बढ़ाती हैं. इसलिए मेरी रचनाएं पढ़ने के बाद अपनी अमूल्य टिप्पणी ज़रूर दें.मेरा प्रमुख ब्लॉग 'लेखनी’ है.
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