रविवार, 25 जनवरी 2009

पीछे मुड कर
देखना भी
ज़रूरी होता है
जब कहीं नज़र न आती हो
आगे जाने की राह॥



महफूज़ अली


गुरुवार, 15 जनवरी 2009


छोटी-छोटी हसरतें थीं,

छोटी-छोटी चाहतें थीं॥

क्यूँ न हम सुलझा सके

वो तो,

छोटी-छोटी उलझनें थीं॥

महफूज़ अली॥

दांते

एक और बड़ा अच्छा वाक़या याद आया है। बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं क्लास में पढता था..... हमारे एक इतिहास के टीचर हुआ करते थे.... उनका नाम तो याद नही आ रहा है..... पर लंगूर नाम से पूरा स्कूल उनको जानता था.... यह नाम भी उनका इसलिए पड़ा था.... क्यूंकि एक तो वो ख़ुद भी बड़े लाल लाल थे....और दूसरा एक बार उनकी क्लास में लंगूर बन्दर घुस आया था.... तो बेचारे डर के मारे टेबल के निचे घुस गए थे...तबसे उनका नाम लंगूर पड़ गया था...... खैर.... मैं अपने वाकये पर आता हूँ।

एक बार वो हमें क्लास में इतिहास पढ़ा रहे थे..... तो किसी चैप्टर में इटली के महान दार्शनिक दांते का ज़िक्र आया..... तो वो दांते के बारे में पढ़ा रहे थे...... तभी क्या हुआ की मेरे बगल में मेरा दोस्त अरुण साईंबाबा मुहँ बंद करके हंसने लगा.... तो हम कुछ लड़कों का गैंग था... सब उसकी उसकी ओर चोर नज़रों से देखने लगे.... हमने पुछा की 'अबे! हंस क्यूँ रहा है?'

तो उसने एक और लड़के की ओर इशारा कर दिया... हमने उस लड़के की ओर देखा तो हम लोग सारी कहानी समझ गए.... की अरुण क्यूँ हंस रहा था?

दरअसल हमारे साथ एक लड़का पढता था जिसके दांत बिल्कुल सीधे बाहर की ओर निकले हुए थे.... तो अब हमारी क्लास में एक और नामकरण हो गया....उस बेचारे लड़के का नाम दांते पड़ गया......

और सही बता रहा हूँ....अज भी उसको हम लोग दांते ही बुलाते हैं..... खैर ! आजकल वो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में ग्रेड बी का साइंटिस्ट है॥

रविवार, 11 जनवरी 2009

टूटी औरत॥


टूटी कांच की चूडियाँ,

बूझी सिगरेट की राख,

दर्द से मदद को चिल्लाती,

और व्यर्थ में रोती॥


हजारों जूतों की आवाज़ ,

टूटा चेहरा,

खरोंच।


ऐसा पहली बार नही है........


पति के बदन से शराब की बदबू,

जो कोने में खड़ा माफ़ी मांगता,

और

आंसू बहाती,



टूटी औरत॥





महफूज़ अली




शुक्रवार, 9 जनवरी 2009



मेरे बचपन को याद नही है वो मैदान,


जहाँ मैं पतंग उडाने की कोशिश किया करता था,


और


साथ में माँ भी होती थी......................


मेरे बचपन को याद नही है वो मैदान।


पर


वो मैदान अब भी है,


उसी जगह,


लेकिन!


अब माँ नही है॥





महफूज़ अली


गुरुवार, 8 जनवरी 2009

मुझसे अक्सर यह सवाल होता है की मैं इंग्लिश को गालियाँ क्यूँ देता हूँ....?????? लोग मुझे कहते भी हैं.... की आप ख़ुद तो इंग्लिश में लिखते हैं , इंग्लिश ही ज्यादातर बोलते हैं.....तो आप इंग्लिश को गाली क्यूँ देते हैं? अब मैं इन महान लोगों को कैसे समझाउन....की मैं इंग्लिश को गाली बही देता ... बस यह है की मैं इंग्लिश का विरोधी हूँ...और वैसे भी आप किसी भी चीज़ का विरोध तभी कर पाएंगे जब आपको उसके बारे में पूरी जानकारी हो....
अब सवाल यह है की मैं इंग्लिश क्यूँ बोलता हूँ और क्यूँ लिखता हूँ....? दरअसल इसमे मेरी गलती नही है....मेरी परवरिश ही इंग्लिश में हुई है....बचपन में कॉन्वेंट में डाल दिया गया.... पूरी एजूकेशन ही इंग्लिश माध्यम से हुई..... घर में भी मेरे अभिभावकों ने अंग्रेज़ी का ही माहौल diya.... मेरी पेर्सोनालिटी भी अँगरेज़ है.... तो मैं क्या करून.....????? पर जबसे अक्ल आई है....मैंने इंग्लिश का इस्तेमाल पूरी तरह से आम ज़िन्दगी में बंद कर दिया है....और यह अक्ल आए हुए १५ साल हो गए हैं.....

मैं दो बार संघ लोक सेवा आयोग के इंटरव्यू में गया हूँ....वहां भी यह सवाल हुआ की अपने पूरा एक्साम इंग्लिश में दिया ...फिर इंटरव्यू का माध्यम अपने हिन्दी क्यूँ चुना? अब वहां भी सवाल...पर अपने हिसाब से जवाब दिया मैंने..... और बेचारे संतुष्ट हो गए....


अच्छा मेरा यह मानना है की जब दो सूअर आपस में अपनी भाषा में बात करते हैं..... कोई शेर की भाषा में तो बात करता नही? क्यूँ? तो हम हिन्दुस्तानी क्यूँ नही अपनी भाषा में बात करना पसंद करते हैं.....? क्यूं हमें एक तीसरी भाषा का इस्तेमाल करना पड़ता है.... इंग्लिश तीसरी भाषा है....कैसे ज़रा यह आप लोग ही मुझे बताएँगे....फिर मैं इसका जवाब दूँगा.....


इंग्लिश हें ज़रूर आनी चाहिए...वो आजकल की ज़रूरत है...पर हमें इसको अपने ऊपर हावी नही करना चाहिए.....
पता नही लोगों को हिन्दी में और हिन्दी से क्या प्रॉब्लम है....

हिन्दी से मेरा मतलब क्लिष्ट हिन्दी नही है.... हिन्दी से मेरा मतलब आम हिन्दी है...जो हर हिन्दुस्तानी बोलता है,,,,.... जो हम समझते हैं.....

क्या आप जानते हैं की हिन्दी का विकास क्यूँ नही हुआ..... ? क्यूंकि हमने हिन्दी के विकास के लिए कुछ भी नही किया..... अगर हम हिन्दी में कोई शब्द अंग्रेज़ी या फिर कोई और भाषा के प्रयोग करते हैं....तो ख़ुद हिन्दी वाले ही कहते हैं.... की हिन्दी में बोलो.....अरे! भाई जब हिन्दी में शब्दों की कमी है तो हमें बाहर से शब्द लेने में क्या हर्ज़ है?

कुल मिला के सार यह है की अंग्रेज़ी नालायकों की भाषा है.... ज़रा अपने आस पास नज़र डाल के देखियेगा ....आपको तमाम नालायक मिल जायेंगे.... जो बड़ी बड़ी डिग्री लिए होंगे लेकिन ज्ञान के नाम पे काले धब्बे हैं॥ ज़रा गौर करियेगा....अपने आस पास... कोई न कोई शराबी ज़रूर ऐसा मिलेगा... जो की अनपढ़ होगा लेकिन शराब पीने के बाद आपको अंग्रेज़ी बोलता हुआ मिलेगा... गौर करियेगा .... सैल्समैन टाइप के लोग आपको अंग्रेज़ी बोलते हुए ज़रूर मिलेंगे.... हर कम पढ़ा लिखा हुआ आदमी आपको अंग्रेज़ी बोलता हुआ मिलेगा... जो की अपने आप को यह दिखायेगा की वोह बहुत पढ़ा लिखा है... आपको लडकियां अंग्रेज़ी बोलते हुए ही मिलेंगीं क्यूंकि बहुत कम लड़कियां ही सही मायनों में पढ़ी लिखी मिलेंगीं.... डिग्रीयां बहुत मिलेंगी उनके पास लेकिन नॉलेज कम..... सही मायनों में पढ़ा लिखा वही आदमी है....जिसने अपनी पढ़ाई को अपने अन्दर जज्ब कर लिया हो॥ जो नौलेज्वाला हो.... जिससे आप हर टोपिक पे बात कर सकते हों॥












महफूज़ अली

बुधवार, 7 जनवरी 2009


बाहर से हँसी की आवाज़ ,

और

बर्तनों के खटपट की आवाज़ भी आती रहती है,

बहन की बचकानी हँसी,

कलकल बहते झरने की तरह,

और

माँ की आवाज़ भी बीच-बीच में सुनायी देती है॥

महफूज़ अली।

मंगलवार, 6 जनवरी 2009

इस दीवार को ढहाना ज़ुरूरी है,
मगर यह काम मुझसे अकेले नहीं होगा॥

आसमान की चाहत है मुझे,
मगर ज़मीं कम है॥

प्यास बहुत थी,
और मैं देखता रहा सामने उफनते दरिया को॥




महफूज़ अली

रविवार, 4 जनवरी 2009


हमारे हिंदुस्तान में जब भी हड़ताल होती है, तो मजदूर काम करना बंद कर देते हैं , जिससे काफ़ी अर्थ और आर्थिक नुक्सान होता है पर क्या आप जानते हैं? जापान एक ऐसा देश है जहाँ हड़ताल करने का अनोखा तरीका है, वहां पे मजदूर काम करते हैं पूरे हड़ताल के दौरान पर जो भी काम करते हैं वो अधुरा करते हैं। अगर जूते बनाने की फैक्ट्री है तो एक पैर का ही जूता बनायेंगे, नट-बोल्ट बनाने की फैक्ट्री है तो सिर्फ़ बोल्ट ही बनायेंगे...... ऐसे ही हर चीज़ आधी-अधूरी बनायेंगे..... है न अनोखा तरीका हड़ताल करने का.......???????????

महफूज़ अली

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