मंगलवार, 19 मई 2009

हम फिर साथ खेलेंगे....

एक पल लिए तो मैं घबरा ही गया था, मेरे समझ में ही नहीं आ रहा था की क्या करुँ......... ?



मुझे लगा की अब सब ख़त्म!!!!!!!! डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया....... डॉक्टर ने चेक अप



करने के बाद कहा की अब देखो यह प्रॉब्लम में फिफ्टी/फिफ्टी का चांस है....... ............... .....



मैंने कहा की " डॉक्टर ! मैं इसके बगैर नहीं रह सकता........ कुछ भी करिए....... मैं इससे बहुत प्यार करता हूँ"......नहीं रह सकता मैं इसके बगैर......... ...... .........



डॉक्टर ने मुझे कुछ दवाएं लिखी और कहा की फ़ौरन मेयो हॉस्पिटल जा कर यह दवाएं लेते आईये.....



मैं परेशां ....... बदहवास..... कार में बैठे बैठे अजीब खयाल आ रहे थे..... मेयो पहुँचा... और फ़ौरन दवा ले के.....



वापस अपने डॉक्टर के पास पहऊँचा ............







थोडी देर के बाद डॉक्टर ने बताया की पैरालिटिक अटैक हुआ है....... इसलिए धड का निचला हिस्सा काम नही कर रहा है....... सुन के मेरे पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई...... मैं सोच में पड़ गया ............







मैं अब कुछ भी खोने की पोसिशन में नहीं हूँ ..... बहुत कुछ खोया है मैंने .... अब और नहीं ..... मैं यही सोच रहा था क्या सब मेरी ही किस्मत में लिखा है.... ? क्या मेरी ज़िन्दगी में सिर्फ खोना ही खोना है?


डॉक्टर ने कहा की आपके पास अब दो रास्ते हैं....या तो इसे एक इंजेक्शन दे के हमेशा के लिए इसको आज़ाद कर दें या फिर इसका लम्बे वक़्त तक इलाज कराएँ ...... और दोनों ही बहुत परेशानज़दा तरीका हैं....

पर मैंने फैसला किया की मैं इसका पूरा इलाज कराऊंगा....... और.....फिर मैं ICU की ओर बढ़ गया...... अन्दर जा के मैंने देखा..... उसकी आँखों में एहसान का भाव था.... शायद वो भी मेरे फैसले को समझ गया था....

मैं उसके पास पहुंचा और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा.....


और वो धीरे धीरे पूँछ हिला कर मेरा शुक्रिया अदा करने लगा....






मैंने धीरे से उससे कहा की हम फिर साथ खेलेंगे....






महफूज़ अली















सोमवार, 18 मई 2009

लेकिन, अब ? ? ? ? ? ? ? ?


बहुत पहले

ऐसा होता था

आदि काल में

शैतान पहचान लिया जाता था

भेष-भूषा और बोल-चाल से॥

लेकिन


अब ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ?







महफूज़ अली

तुम कहती हो.....


तुम कहती हो की

मैं अपना ख़ुद का ख़याल नहीं रख सकता

मैं कहता हूँ की

शायद,

तुम

सही कहती हो....... ॥








महफूज़ अली

गुरुवार, 7 मई 2009

रात बहुत लम्बी है..


रात बहुत लम्बी है,

रात बहुत ठंडी है,

मैं जाग रहा हूँ,

मैं जाग रहा हूँ।

सामने नदी है,

पेड़ की छाया है,

पर छाया पकड़ी नहीं जा सकती।

रात बहुत लम्बी है,

रात बहुत ठंडी है,

और

मैं जाग रहा हूँ॥

महफूज़ अली

कल्पना

कल्पना

धरती के नीचे आकाश में,
चमक रहे थे तारे,
और तैर रहे थे द्वीप,
उग रहे थे बीज,
खिल रही थीं कलियाँ,
लावा और डायनासौर की हड्डियाँ।।



महफूज़ अली

रविवार, 3 मई 2009

सूरज कहाँ चला जाता है?

मैं सोच रहा था की रात में सूरज कहाँ चला जाता है?
क्या बादलों के बीच खो जाता है?
या फिर चाँद के थकने का इंतज़ार करता है
या फिर थक कर सो जाता है?
क्या सूरज कहीं जा सकता है?
क्या कहीं खो सकता है?
क्या सूरज को नींद आ सकती है?
क्या वह इतना डरपोक हो सकता है कि
अंधेरे से डरकर छिप जाए?





(मेरी यह प्रस्तुत कविता कादम्बिनी पत्रिका जून २००६ में पृष्ठ संख्या १७२ में छाप चुकी है । )



महफूज़ अली

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

My page Visitors

A visitor from Singapore viewed 'भगवान् राम' 4 days 22 hrs ago
A visitor from Paris viewed 'लेखनी...' 5 days 10 hrs ago
A visitor from Boardman viewed 'लेखनी...' 6 days 7 hrs ago
A visitor from Clonee viewed 'हॉर्न ओके प्लीज (Horn OK Please): Mahfoo' 7 days 23 hrs ago
A visitor from Delhi viewed 'लेखनी...' 20 days 12 hrs ago
A visitor from Indiana viewed 'लेखनी...' 29 days 23 hrs ago
A visitor from Suffern viewed 'लेखनी...' 1 month ago
A visitor from Columbus viewed 'लेखनी...' 1 month 2 days ago