शुक्रवार, 12 जून 2009

मोमबत्ती की मौत!!!!!!!!!!!


वो गुलाबी मोमबत्ती,

सौन्दर्य बोध से भरपूर

पीली लपटों में कोलाहल करतीं

अपनी ही रौशनी से खेल रही थी।


उजली रात में भी

अँधेरा जशन मना रहा था

धरती काग़ज़ पर ख़्वाबों की

खेती कर रही थी,

मोमबत्ती फिर भी जल रही थी।


अँधेरा दुस्वप्न की तरह भाग रहा था

जलती पिघलती, मृत्यु-वेदना से शनैः-शनैः

धुंधली होती लपटों में,

मोमबत्ती चिल्ला रही थी

आख़िर कौन अमर होता है?
महफूज़ अली

6 टिप्पणियाँ:

श्यामल सुमन ने कहा…

किसी शायर ने कहा है कि-

अंधेरा माँगने आया था रौशनी की भीख।
हम अपना घर न जलाते तो क्या करते।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

jahajalega roshni dega...kisi diye ka apna koee mkan nahi hota....boht sunder likha hai..mombatti khubsurat bhi hai....roshni bhi de rahi hai...or til til ke mar bhi rahi hai......kisi or ke liye....

ओम आर्य ने कहा…

आपकी कविताओ मे शब्द बहुत ही खुब्सूरत है
एक सुन्दर भावभिव्यक्ति
ऊत्तम

Manish Kumar ने कहा…

जिसमें सच्चे त्यागी होते हैं वो अपने सुकर्मों के प्रतिफल के रूप में अमरता की बात नहीं सोचते ,फिर मोमबत्ती को अमरता की चाह क्यूँ?

Manish Kumar ने कहा…

जो सच्चे त्यागी होते हैं.. पढ़ें

Priyanka Singh ने कहा…

nice one...keep going...

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