टूटी कांच की चूडियाँ,
बूझी सिगरेट की राख,
दर्द से मदद को चिल्लाती,
और व्यर्थ में रोती॥
हजारों जूतों की आवाज़ ,
टूटा चेहरा,
खरोंच।
ऐसा पहली बार नही है........
पति के बदन से शराब की बदबू,
जो कोने में खड़ा माफ़ी मांगता,
और
आंसू बहाती,
टूटी औरत॥
महफूज़ अली