Kashmir: Kherishu in Land of turbulence... Welcoming, Courtship,
Honeymooning and Varishu
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*"Welcome* *to Kashmir*" this I had a warm welcome by CRPF constable Mangal
Singh at Srinagar airport exit gate last year. It was my first visit to the
Sta...
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एक और बड़ा अच्छा वाक़या याद आया है। बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं क्लास में पढता था..... हमारे एक इतिहास के टीचर हुआ करते थे.... उनका नाम तो याद नही आ रहा है..... पर लंगूर नाम से पूरा स्कूल उनको जानता था.... यह नाम भी उनका इसलिए पड़ा था.... क्यूंकि एक तो वो ख़ुद भी बड़े लाल लाल थे....और दूसरा एक बार उनकी क्लास में लंगूर बन्दर घुस आया था.... तो बेचारे डर के मारे टेबल के नीचे घुस गए थे...तबसे उनका नाम लंगूर पड़ गया था......और वैसे भी लोग उनका असली नाम भूल ही चुके थे. खैर.... मैं अपने वाकये पर आता हूँ।
एक बार वो हमें क्लास में इतिहास पढ़ा रहे थे..... तो किसी चैप्टर में इटली के महान दार्शनिक दांते (Dante) का ज़िक्र आया..... तो वो जब दांते के बारे में पढ़ा रहे थे...... तभी क्या हुआ की मेरे बगल में मेरा दोस्त अरुण साईंबाबा मुहँ बंद करके हंसने लगा.... तो हम कुछ लड़कों का गैंग था... सब उसकी उसकी ओर चोर नज़रों से देखने लगे.... हमने पूछा कि 'अबे! साले हंस क्यूँ रहा है?'
तो उसने एक दूसरे लड़के की ओर इशारा कर दिया जो कि बगल में दूसरी रो में बैठा हुआ था ... हमने उस लड़के की ओर देखा तो हम लोग सारी कहानी समझ गए.... कि अरुण क्यूँ हंस रहा था?
दरअसल हमारे साथ एक लड़का पढता था जिसके दांत बिल्कुल सीधे बाहर की ओर निकले हुए थे.... तो अब हमारी क्लास में एक और नामकरण हो गया....उस बेचारे लड़के का नाम दांते पड़ गया...... उसके दाँत इतने बाहर थे कि मुंह बंद करने के बाद भी बाहर ही रहते थे.....और वो बेचारा अक्सर टीचर से डांट खा जाता था कि 'तुम बिना बात हँस क्यों रहे हो ?' तब पूरी क्लास एक सुर में बोलती थी, 'नहीं सर!!!!! इसके दाँत ही ऐसे हैं ...' बेचारा टीचर भी झेल जाता था कई बार.
और उस बेचारे का नाम दांते ऐसा पडा कि सही बता रहा हूँ....आज भी उसको हम लोग दांते ही बुलाते हैं..... ख़ैर ! आजकल वो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में साइंटिस्ट है॥
जब मैं खोया हुआ रहता हूँ,
एकटक छत को घूरता रहता हूँ
अपने आसपास से अनजान
और काटता रहता हूँ
दांतों से नाखून.
नहीं सुनाई देती है
कोई भी आवाज़
कोई मुझे थक हारकर
झिंझोड़ता है और पूछता है
क्यूँ क्या हुआ?
मेरे मुहँ से अचानक निकलता है
नहीं......!!!! कुछ भी तो नहीं...
यह उस वक़्त का सबसे बड़ा झूठ होता है
वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....
कहा था तुमने की कभी रुकना नहीं
तरण-ताल (Swimming-pool)
लघु-कथा
नए खेल अधिकारी ने आज विभाग ज्वाइन करते ही पूरे खेल प्रांगण और विभाग का निरीक्षण किया, फिर चपरासी को सारी पुरानी फाइलें लाने का आदेश दिया.
चपरासी ने सारी फाइलें टेबल पर लाकर रख दिया. फाइलों को देखते हुए अधिकारी की नज़र ऐसी फाइल पर पडी जिसमें एक तरण-ताल का उल्लेख था, उक्त फाइल में उनके पूर्ववर्ती अधिकारी ने तरण-ताल बनवाने के लिए शासन से पचास लाख रुपये स्वीकृत कराये थे.
उस फाइल में खेल प्रांगण में तरण-ताल के होने का उल्लेख था जिसका उदघाटन प्रदेश के खेल-मंत्री ने भी किया था. नए अधिकारी ने पूरे खेल-प्रांगण का दोबारा निरीक्षण किया, परन्तु कहीं तरण-ताल नही दिखा, वापस ऑफिस पहुंचकर नए खेल अधिकारी ने तुंरत शासन को पत्र लिखा की जो तरण-ताल बनवाया गया था, उसमें पिछले दो महीने में दस लोग डूब कर मर गए हैं तथा जनता की बेहद मांग पर उक्त तरण-ताल को बन्द करना पड़ रहा है. कृपया तरण-ताल को भरने के लिए पचास लाख रुपये जल्द-से-जल्द स्वीकृत करें....
शब्दों के जाल में उलझने की बजाये ,
हाव-भाव से दिल का हाल जान लो तुम।
एक सुरक्षित सहारा ....... एक ऐसा आगोश,
जहाँ दुनिया के किसी खतरे से डर न लगे॥
तारीफ़ की दरकार है मुझे.....
कोई तो हो जिसकी ,
नज़रों में सिर्फ़ मेरा ही अक्स नज़र आए॥
मैं भी पहचान रखता हूँ, अपना मुकाम रखता हूँ,
इसे कोई मेरा अहम् न समझे, स्वाभिमान समझे॥
मेरी भावुकता को कमजोरी न समझे!
जो दिल का सम्मान करे,
वही सच्चा साथी॥
मुझसे बात करो!
संवाद का सोता सूखा,
तो शरीर का सम्बन्ध भी फीका लगता है॥
मैं उड़ना चाहता हूँ, आगे बढ़ना चाहता हूँ,
मगर तुम्हारे साथ, तुम्हारे सहारे!
बोलो ! क्या मंज़ूर है?
ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो.....
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥
सोमवार, 30 नवंबर 2009
अबे! साले, हंस क्यूँ रहा है?
एक और बड़ा अच्छा वाक़या याद आया है। बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं क्लास में पढता था..... हमारे एक इतिहास के टीचर हुआ करते थे.... उनका नाम तो याद नही आ रहा है..... पर लंगूर नाम से पूरा स्कूल उनको जानता था.... यह नाम भी उनका इसलिए पड़ा था.... क्यूंकि एक तो वो ख़ुद भी बड़े लाल लाल थे....और दूसरा एक बार उनकी क्लास में लंगूर बन्दर घुस आया था.... तो बेचारे डर के मारे टेबल के नीचे घुस गए थे...तबसे उनका नाम लंगूर पड़ गया था......और वैसे भी लोग उनका असली नाम भूल ही चुके थे. खैर.... मैं अपने वाकये पर आता हूँ।
एक बार वो हमें क्लास में इतिहास पढ़ा रहे थे..... तो किसी चैप्टर में इटली के महान दार्शनिक दांते (Dante) का ज़िक्र आया..... तो वो जब दांते के बारे में पढ़ा रहे थे...... तभी क्या हुआ की मेरे बगल में मेरा दोस्त अरुण साईंबाबा मुहँ बंद करके हंसने लगा.... तो हम कुछ लड़कों का गैंग था... सब उसकी उसकी ओर चोर नज़रों से देखने लगे.... हमने पूछा कि 'अबे! साले हंस क्यूँ रहा है?'
तो उसने एक दूसरे लड़के की ओर इशारा कर दिया जो कि बगल में दूसरी रो में बैठा हुआ था ... हमने उस लड़के की ओर देखा तो हम लोग सारी कहानी समझ गए.... कि अरुण क्यूँ हंस रहा था?
दरअसल हमारे साथ एक लड़का पढता था जिसके दांत बिल्कुल सीधे बाहर की ओर निकले हुए थे.... तो अब हमारी क्लास में एक और नामकरण हो गया....उस बेचारे लड़के का नाम दांते पड़ गया...... उसके दाँत इतने बाहर थे कि मुंह बंद करने के बाद भी बाहर ही रहते थे.....और वो बेचारा अक्सर टीचर से डांट खा जाता था कि 'तुम बिना बात हँस क्यों रहे हो ?' तब पूरी क्लास एक सुर में बोलती थी, 'नहीं सर!!!!! इसके दाँत ही ऐसे हैं ...' बेचारा टीचर भी झेल जाता था कई बार.
और उस बेचारे का नाम दांते ऐसा पडा कि सही बता रहा हूँ....आज भी उसको हम लोग दांते ही बुलाते हैं..... ख़ैर ! आजकल वो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में साइंटिस्ट है॥
बुधवार, 25 नवंबर 2009
मेरी जंग: वक़्त का सबसे बड़ा झूठ...
जब मैं खोया हुआ रहता हूँ,
एकटक छत को घूरता रहता हूँ
अपने आसपास से अनजान
और काटता रहता हूँ
दांतों से नाखून.
नहीं सुनाई देती है
कोई भी आवाज़
कोई मुझे थक हारकर
झिंझोड़ता है और पूछता है
क्यूँ क्या हुआ?
मेरे मुहँ से अचानक निकलता है
नहीं......!!!! कुछ भी तो नहीं...
यह उस वक़्त का सबसे बड़ा झूठ होता है
वास्तव में उस वक़्त मैं .....
लड़ रहा होता हूँ
एक जंग खुद से
जिसमे कुछ भी तो नहीं शामिल होता है....
बुधवार, 18 नवंबर 2009
साला! मालूम कैसे चलेगा कि मुसलमान है?
आज तबियत थोड़ी नासाज़ है.... बहुत हरारत सी हो रही है... किसी काम में मन नहीं लग रहा है.. चिडचिडाहट सी भी हो रही है... शायद वाइरल में ऐसा ही होता है...इसलिए आज घर जल्दी आ गया ....आराम करने...पर घर पर भी किसी काम में मन नहीं लग रहा है, दवाई खायी है... अभी.... सिर्फ एक बाउल सूप पी कर... बड़ी बोरियत सी हो रही है... शायद वाइरल में ऐसा ही होता है... अभी थोड़ी देर पहले शरद कोकास भैया से बात की.... थोडा हल्का फील कर रहा हूँ...उनसे बात कर के... उनसे और बात करने का मन था की उनकी घर की काल बेल बजी.... तो पता चला कि पोस्टमैन आया है.... और शरद भैया के लिए कोई बैरंग चिट्ठी ले के आया है... इसलिए उन्हें जाना पडा... मुझे बड़ी हंसी आई कि लोग कितना परेशां करते हैं... बैरंग चिट्ठी भी आजकल भेजते हैं...और अपनी चिट्ठी पढ़वाने के लिए भी पैसे दिलवाते हैं.... मैंने उनसे कहा कि "ठीक है! आप चिट्ठी पढ़िए.... मैं तब तक के चाय बना कर आता हूँ... चाय खुद ही बनानी पड़ती है... क्यूंकि मेरी खाना बनाने वाली सुबह आती है... और अब वो शाम को आएगी... बाकी टाइम खुद ही बनाना पड़ता है....लोग कहते हैं.... महफूज़ भाई... तीस पार हो गए हो... अब शादी कर लो.... पिताजी भी बड़े परेशां रहा करते थे.... इसी ग़म में चले गए... वैसे मैंने उन्हें बहुत परेशां किया है पूरी ज़िन्दगी.... आज उनकी बहुत याद रही है.... काश! मैंने उन्हें परेशां नहीं किया होता.... बहुत परेशां रहा करते थे वो मुझसे ... मेरी हरकतें ही ऐसी थीं.... मैं एक अच्छा बेटा कभी नहीं बन पाया... मेरे पिताजी मेरी...शादी के लिए बहुत परेशां रहते थे... सन २००८ के नवम्बर में आज ही के दिन उन्होंने .... मुझसे शादी के लिए बहुत जोर दिया था... कुछ ऐसे incidents ऐसे हो गए थे मेरी ज़िन्दगी में... जिसकी वजह से वो बहुत परेशां थे.... पर मैंने उनको फिर बहुत परेशां किया... उन्होंने मुझसे कहा भी था.. कि उनकी ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं है... मुझे लगा कि हर माँ-बाप ऐसे ही कहते हैं.. और वो इसी इसी जद्दोजहद में जनुअरी २००९ में .... हमेशा के लिए मुझे छोड़ कर ...मेरी माँ के पास चले गए... और मुझे एहसास हो गया कि वो सही कह रहे थे...
मेरे पिताजी... मेरी flirt करने कि आदत से बहुत परेशां रहा करते थे.... वो जानते थे... कि मैं खुद को किसी के साथ बाँध कर नहीं रख सकता... वो आये दिन मेरे बारे किसी फिल्म स्टार कि तरह ख़बरें सुनते थे... कि आजकल मैं किस लड़की के साथ flirt कर रहा हूँ... कई बार उन्होंने मुझे समझाया भी... पर मैं नहीं समझा.. मुझे अच्छा लगता था लड़कियों के साथ flirt करना.... मैं उनसे कहता भी था कि क्या ज़रुरत थी इतना handsome लड़का पैदा करने की ... हा हा हा ... वैसे, मेरे पिताजी भी बहुत handsome थे... 1961 में घर से भाग कर बम्बई भी गए थे... और थोड़े दिन में आटे-दाल का भाव उन्हें पता चल गया... तो लौट कर वापस आ गए... और अपनी पढाई पर ध्यान देने कि सोची उन्होंने... फिर 1962 में भारतीय सेना में selection लिया ...और 1963 में commissioned हुए... और 1988 में उन्होंने सेना कि नौकरी छोड़ने का फैसला किया... क्यूंकि मेरी माँ गुज़र गई थी... और हम लोग ३ भाई बहन थे...और बहुत छोटे थे हम लोग.. और सन 1990 में पिताजी.. घर आ गये ...
पर अब मैंने flirt करना छोड़ दिया है... वैसे मैं कभी भी flirt नहीं करता था...मैंने harmless flirt किया है... कभी किसी से कोई वादा नहीं किया.. किसी का दिल कभी नहीं तोडा.. नोर्मल तारीफ़ ही किया करता था... हाँ! यह था कि मेरे आस-पास लड़कियों का साथ मुझे बहुत अच्छा लगता था... लड़कियां मुझे हमेशा घेर कर रखतीं थीं... इसका सबसे बड़ा कारण यह था... कि मैं हर जगह टॉप पर रहता था... studies में, स्पोर्ट्स में, Extra Co-Curricular activities में, और अपने looks कि वजह से भी ... पर लोग उसे गलत समझ लेते थे... अच्छा! मेरे साथ यह भी था.. कि मैं अपने आगे किसी को बर्दाश्त नहीं कर पाता था... मैं हमेशा competition में रहता था और रहता भी हूँ... मैं हर जगह खुद को टॉप पर ही देखना चाहता हूँ... और उसके लिए किसी भी हद तक जाने कि ताक़त रखता हूँ...स्कूल में जब किसी के मार्क्स मेरे से ज्यादा आते थे... तो मैं उस लड़के को मारने का बहाना खोजा करता था... और बहुत टेंशन में आ जाता था... पर टॉप पे मैं ही रहता था... मुझे लोग refined गुंडा कहते थे... आज भी कहते हैं...
बता दूं... कि आर्मी में जाना हर Central School (केंदीय विद्यालय) के लड़के का सपना होता है.. मेरा भी था... और वैसे भी यह कहा जाता है कि जिस लड़के ने SSB नहीं दिया...उस लड़के का जीना बेकार हुआ...मैंने NDA एक्साम दो बार पास किया... और CDS सात बार... मेरा यह all India record है... पर मैं SSB interview नहीं पास कर पाता था.. पर मैं लगा रहा... और नौ बार SSB Board गया...फ़ौज का यह रूल है... कि एक लड़का अगर एक बोर्ड में interview दे चुका है...उसको दोबारा उस board में नहीं भेजा जायेगा.. और मैं सारे बोर्ड टहल चुका था... बेचारे आर्मी वालों को मेरे लिए अलग से बोर्ड उसी जगह पर बनाना पड़ा... पर मैंने नौवीं बार में SSB INTERVIEW पास किया.. वो भी एक ऐसे बोर्ड से पास किया जो कि हिंदुस्तान का सबसे मुश्किल बोर्ड माना जाता है.... यानी कि अलाहाबाद बोर्ड से.... यह मेरा ओवर कांफिडेंस ही था जिसकी वजह से मुझे नौ बार SSB जाना पड़ा... पर अंत में medically unfit हो गया... क्यूंकि मेरे चश्मे का parameter उनके parameter से ज्यादा था... और यह बात मैंने उनके prospectus में ध्यान ही नहीं दिया... खैर! यह All India record आज भी मेरे ही नाम है... मेरे पिताजी बहुत दुखी हुए थे.... मेरे सेलेक्ट न होने पाने पर....आज पिताजी नहीं हैं.... मेरे समझ में नहीं आता कि मैं अब किसको परेशां करून....? अब कौन मेरी फ़िक्र करेगा...?
अच्छा ...... इन्ही सब बातों के बीच एक बड़ा अच्छा वाकया याद आया है...... बचपन का.... हुआ क्या की ...उस वक्त मैं शायद नौवीं क्लास में था....... तो हुआ यह की हमारे पास बजाज स्कूटर हुआ करता था उन दिनों..... एक दिन वो स्कूटर ख़राब हो गया... तो मैं ख़ुद ही उसे खोल खाल के बनाने लगा...... कभी अपने नौकरों से कहता कि रिंच ले आओ तो कभी कहता कि प्लास्क ले आओ, कभी ग्रीस तो कभी ..तो कभी कुछ.... अन्दर से मेरे पिताजी खटर-पटर कि आवाज़ सुन के निकल के आए ......... उन्होंने देखा की मैं स्कूटर बना रहा हूँ.......पूरा स्कूटर खुला हुआ है... और मैं बड़ी तन्मयता से स्कूटर बना रहा हूँ... अच्छा! उसी दौरान मेरे एक्साम्स भी चल रहे थे... और मैं पढाई - लिखाई छोड़ कर स्कूटर बना रहा था....
थोडी देर तो पिताजी..शांत खड़े रहे .......देखते रहे....... फिर पास आ कर स्कूटर बनाते देख मुझे कहते क्या हैं की..... "साला! मालूम कैसे चलेगा की मुसलमान है? "
थोडी देर तो पिताजी..शांत खड़े रहे .......देखते रहे....... फिर पास आ कर स्कूटर बनाते देख मुझे कहते क्या हैं की..... "साला! मालूम कैसे चलेगा की मुसलमान है? "
(हमारे हिंदुस्तान में ज्यादातर मेकानिक ...कैसे भी मेकानिक हों..... सब के सब मुसलमान ही मिलेंगे....ही ही ही ही ....)
आज पिताजी बहुत याद रहे थे... शायद बीमारी में अपने ही याद आते हैं... इसी बीच ६ कप चाय पी चुका हूँ... अदरक वाली... बड़ी अच्छी बनी थी... थर्मस में बना कर रख लिया था... वाइरल है... लेकिन AC चलाया हुआ है.... और रज़ाई ओढ़ कर टाइप कर रहा हूँ.... वाइरल में गर्मी भी लगती है.... पंखा चलाने का मन भी नहीं करता... पंखा चलता है तो चिढ होती है... नहीं चलता है तो भी चिढ होती है... AC में तबियत और खराब होगी..यह भी जानता हूँ... लेकिन मन कर रहा है कि चलाऊँ ...इसीलिए चला कर रखा है... उम्मीद है कि तबियत और खराब होगी... लेकिन दवाई भी खाई है... और दवा का असर भी हुआ है.... अभी छः बजने का इंतज़ार है... ताऊ कि पहेली जो खेलनी है... ताऊ और रामप्यारी के बिना अब शाम नहीं होती .... रामप्यारी से भी प्यार हो गया है... मैं रामप्यारी से flirt नहीं कर रहा हूँ.... उससे मुझे सच्चा प्यार हुआ है... ताऊ और रामप्यारी कि पहेली को जीतने का बहुत बड़ा सपना है... पर आदरणीय समीरजी, ललितजी, पंडित जी, सुनीता दी, रेखा जी, मुरारी जी, और संगीता जी से रोज़ाना हार जाता हूँ.... पर इस हारने का भी एक अलग मज़ा है.... मेरी असली जीत तो आप लोगों का प्यार है... अभी सोच रहा हूँ कि ऑफिस जाऊं...लेकिन मन नहीं कर रहा है....
शनिवार, 14 नवंबर 2009
कहा था तुमने की कभी बुझना नहीं.....मैं लगातार जल रहा हूँ॥
कहा था तुमने की कभी रुकना नहीं
और
मैं लगातार चल रहा हूँ॥
ज़मीन क्या ,
आस्मां पे भी मेरे पैरों के निशाँ हैं.....
मेरी हदें मुझे पहचानतीं हैं,
और
मैंने वीरान हुए रास्तों को भी आबाद किया है॥
शांत हो के मैं ठहर जाऊँ यह असंभव है ,
लपटों को भी चीरकर मैंने खोजे हैं किनारे
कहा था तुमने की कभी बुझना नहीं
और
मैं लगातार जल रहा हूँ॥
लेबल:
अदा,
आस्मां,
उत्तर प्रदेश,
ब्लोग्वानी,
महफूज़,
लखनऊ,
लगातार,
लन्दन,
लपटों,
Theme derived
रविवार, 8 नवंबर 2009
काग़ज़ पर स्वीमिंग पूल .......
लघु-कथा
नए खेल अधिकारी ने आज विभाग ज्वाइन करते ही पूरे खेल प्रांगण और विभाग का निरीक्षण किया, फिर चपरासी को सारी पुरानी फाइलें लाने का आदेश दिया.
चपरासी ने सारी फाइलें टेबल पर लाकर रख दिया. फाइलों को देखते हुए अधिकारी की नज़र ऐसी फाइल पर पडी जिसमें एक तरण-ताल का उल्लेख था, उक्त फाइल में उनके पूर्ववर्ती अधिकारी ने तरण-ताल बनवाने के लिए शासन से पचास लाख रुपये स्वीकृत कराये थे.
उस फाइल में खेल प्रांगण में तरण-ताल के होने का उल्लेख था जिसका उदघाटन प्रदेश के खेल-मंत्री ने भी किया था. नए अधिकारी ने पूरे खेल-प्रांगण का दोबारा निरीक्षण किया, परन्तु कहीं तरण-ताल नही दिखा, वापस ऑफिस पहुंचकर नए खेल अधिकारी ने तुंरत शासन को पत्र लिखा की जो तरण-ताल बनवाया गया था, उसमें पिछले दो महीने में दस लोग डूब कर मर गए हैं तथा जनता की बेहद मांग पर उक्त तरण-ताल को बन्द करना पड़ रहा है. कृपया तरण-ताल को भरने के लिए पचास लाख रुपये जल्द-से-जल्द स्वीकृत करें....
सोमवार, 2 नवंबर 2009
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो..........
शब्दों के जाल में उलझने की बजाये ,
हाव-भाव से दिल का हाल जान लो तुम।
एक सुरक्षित सहारा ....... एक ऐसा आगोश,
जहाँ दुनिया के किसी खतरे से डर न लगे॥
तारीफ़ की दरकार है मुझे.....
कोई तो हो जिसकी ,
नज़रों में सिर्फ़ मेरा ही अक्स नज़र आए॥
मैं भी पहचान रखता हूँ, अपना मुकाम रखता हूँ,
इसे कोई मेरा अहम् न समझे, स्वाभिमान समझे॥
मेरी भावुकता को कमजोरी न समझे!
जो दिल का सम्मान करे,
वही सच्चा साथी॥
मुझसे बात करो!
तो शरीर का सम्बन्ध भी फीका लगता है॥
मैं उड़ना चाहता हूँ, आगे बढ़ना चाहता हूँ,
मगर तुम्हारे साथ, तुम्हारे सहारे!
बोलो ! क्या मंज़ूर है?
ग़र मैं उलझ जाऊँ, नाराज़ हो जाऊँ तो.....
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो॥
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मेरे बारे में
- डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)
- पेशे से प्रवक्ता और अपना व्यापार. मैंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम्.कॉम व डॉ. राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय,फैजाबाद से एम्.ए.(अर्थशास्त्र) तथा पूर्वांचल विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि ली है. I.G.N.O.U. से सन २००५ में PGJMC किया और सन् 2007 में MBA किया. पूर्णकालिक रूप से अपना व्यापार भी देख रहा हूं व शौकिया तौर पर कई कालेजों में भी अतिथि प्रवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं देता हूं. पढ़ना और पढ़ाना मेरा शौक़ है. अंग्रेज़ी में मुझे मेरी कविता 'For a missing child' के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. मेरी अंग्रेजी कविताओं का संकलन 'Eternal Portraits' के नाम से बाज़ार में उपलब्ध है,जो की Penguin Publishers द्वारा प्रकाशित है. अंग्रेजी में मैंने अब तक क़रीब 2600 कविताएं लिखी हैं. हंस, वागर्थ, कादम्बिनी से होते हुए ...अंतर्राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका 'पुरवाई' जो की लन्दन से प्रकाशित होती है ...में प्रकाशित हुआ, तबसे हिंदी का सफ़र जारी है... मेरी हिंदी कविताओं का संकलन 'सूखी बारिश' जो की सन् 2006 में मुदित प्रकाशन से प्रकाशित है... मैं करता हूं कि मेरा ब्लॉग मेरे पाठकों को ज़रूर अच्छा लगेगा... आपकी टिप्पणियां मेरा हौसला बढ़ाती हैं. इसलिए मेरी रचनाएं पढ़ने के बाद अपनी अमूल्य टिप्पणी ज़रूर दें.मेरा प्रमुख ब्लॉग 'लेखनी’ है.
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