मैं कभी आरक्षण विरोधी नहीं रहा. आजकल हमारे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार में बहुत से ऐसी जातियों को जो पहले ओ.बी.सी. में आतीं थीं अब उनको जातियों को एस.सी. में डाला जा रहा है. मैंने देखा है कि रिज़र्वेशन सिस्टम जो है वो कुछ करता नहीं है सिवाय कुछ काबिल लोगों में फ्रस्ट्रेशन भरने के. मैं ख़ुद 1998 में सिविल सर्विसेस के इंटरविउ में 200 में से 180 नंबर पाने के बाद भी फाइनल मेरिट में नहीं आ पाया. मैडम गोम्ज़ का बोर्ड था जो शायद उस वक़्त पंजाब की प्रिंसिपल फायनेंस सेक्रेटरी थीं. (वैसे याद नहीं है). उनसे भी बाद में बात हुई तो स्केलिंग सिस्टम और रिज़र्वेशन पौलिसीज़ को ज़िम्मेदार ठहराया गया. अभी संघ लोक सेवा आयोग को अपने स्केलिंग सिस्टम को डिस्क्लोज़ करने की नोटिस दी गई है. देखिये क्या होता है. अब जो जातियां फ़िर से नये पौलिसीज़ में डाली जा रही हैं... क्या वाकई में उनका कोई उद्धार होगा? क्या वो वाकई में इतने इंटेलिजेंट होंगे? अभी लखनऊ के वर्ल्ड फेमस किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में अभी भी बहुत से ऐसे स्टुडेंट्स हैं जो पैंतीस से बयालीस वर्ष के हैं और अभी भी एम.बी.बी.एस. के दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवे और फाइनल इयर में पिछले दस से पंद्रह सालों से हैं. इस बात पर कभी खुशदीप भैया ने कोई पोस्ट भी लिखी थी. अब ऐसे रिज़र्वेशन सिस्टम का क्या फायदा?
आज मेरी मुलाक़ात मुख्यमंत्री आवास पर एक साहब से हुई... कहने लगे अब तो आपको भी हमारी सरकार से फायदा होगा. मैंने कहा कैसा फायदा? उन्होंने कहा कि हमारी सरकार अब मुस्लिम रिज़र्वेशन भी दे रही है. मैंने उनका डाउट क्लियर किया कि भई जो दे रही है उससे सिर्फ दलित मुस्लिम्स को ही फायदा होगा और मैं दलित नहीं हूँ. और फ़िर मैं अब इस उम्र में लेकर क्या करूँगा क्या? किसी बड़े जगह का चौकीदार बनने से अच्छा है मैं अपने छोटी जगह का राजा बन कर रहूँ. यह रिज़र्वेशन सिस्टम जब तक के रहेगा तब तक के काबिल इन्सान अपनी जगह पर नहीं पहुंचेगा. मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त है वो आई.आर.एस. है उसके मार्क्स बहुत अच्छे होते हुए भी आई.ऐ.एस. नहीं मिला और बहुत से ऐसे भी जिनके मार्क्स पांचवीं पास करने के लायक भी नहीं थे लेकिन रिज़र्वेशन और स्केलिंग सिस्टम की वजह से आज आई.ऐ.एस में हैं. सिस्टम के ऐसे दोहरे नीतियों की वजह से ही काबिल आदमी कुछ करने के लायक नहीं है.
1938 में रिज़र्वेशन सिस्टम को शुरू ही इस बात पर किया गया था कि बीस साल तक दलितों व् पिछड़ों को आरक्षण के माध्यम से समाज के मुख्यधारा में लाया जायेगा फ़िर इसे ख़त्म कर दिया जायेगा. और यह हर बीस साल पर बढ़ता रहा और बढ़ता रहा और बढ़ता रहा और बढ़ता रहेगा. आज भी आई.आई.टीज़. में बहुत सारे ऐसे छात्र हैं जो ना इंग्लिश जानते हैं ना मैथ्स.. बस आ गए हैं. अब दिक्कत यह है कि जिन लोगों को मुख्यधारा में लाना था उनको लाने के चक्कर में जनरल काबिल अब समाज के दलित और पिछड़े हो गए हैं. अब इनके लिए कौन सी सरकार क्या करती है? यह देखना है. देखना यह है कि जो नई पिछड़ी जातियां अब शेड्यूल कास्ट में डाली जा रही हैं.. क्या वो वाकई में इस नये रिज़र्वेशन को डिज़र्व करतीं हैं?
अच्छा! एक चीज़ बता दूं सबको... आजकल मैं हिंदी पढना सीख रहा हूँ... मेरी वोकैब और ग्रैमर बहुत कमज़ोर है हिंदी में. हालांकि मैं हिंदी को बहुत ज़्यादा नहीं जानता हूँ लेकिन यह मेरी राष्ट्र व् मातृभाषा है इसीलिए इसे जानना ज़रूरी समझता हूँ. और सबसे बड़ी बात कि मेरा मतलब अब हिंदी से ही निकलता है. हाँ! साहित्य मैं अंग्रेज़ी का ही पढ़ता हूँ और अंग्रेज़ी का ही लिखता हूँ. हिंदी में मैं साहित्य लिख भी नहीं पाता हूँ. फ़िर भी मैं कई हिंदी मैगजीन्स का शुक्रगुज़ार हूँ ... छाप देते हैं. मुझे अंग्रेज़ी की ज़रूरत है और हिंदी सिर्फ सम्प्रेषण के लिए (Communication :सम्प्रेषण वर्ड मैंने अभी डिक्शनरी में देखा है.) हिंदी में साहित्य इसलिए नहीं लिख पाता हूँ... कि हिंदुस्तान के छः हिंदी भाषी राज्य के हर घर का पांचवा मेंबर हिंदी का साहित्यकार है.
अब एक नज़र मेरी कविता पर....
बेवजह तो नहीं है
रात उतर आई है,
सूरज के पैरों पर
सबकी नज़र है
संशय के घेरों पर
कब तक विश्वास करें?
गीत, ग़ज़ल और शे' रों पर
अबोध नहीं दिखता है
मेरा यह क्रोध लोगों पर..
मेरी पिछली पोस्ट पर कई लोग मुझे कोस रहे होंगे ... मुझे कोई अफ़सोस नहीं है. अफ़सोस किस बात का? ही ही ही ... गाना सुनिए गाना और देखिये.. आजकल मुझे लव सोंग्स बहुत पसंद आते हैं.. जब हम बहुत रोमैंटिक मूड में होते हैं तो लव सोंग्स ही अच्छे लगते हैं. और वैसे भी यह गाना बहुत सुकून देता है .. क्यूँ हैं न?
पिछले दो दिनों से फेसबुक पर बहुत सुंदर सुंदर लड़कियों के ऐड फ्रेंड रिक्वेस्ट आ रहे हैं. पर अचानक ऐसा क्यूँ? लगता है कोई मेरा स्टिंग ऑपरेशन करना चाहता है.