पता नहीं क्यूँ?
अब मुझे जीतने कि आदत हो गयी है.... मैं अब हारना नहीं चाहता, किसी भी FRONT पे ... मुझे अब हार जैसे शब्द से चिढ हो गयी है. मैं ऐसे ही अपने पिछले एक साल का विश्लेषण कर रहा था, तो रिजल्ट यही निकला कि इन एक सालों में मैं कहीं हारा नहीं हूँ, मैं हर मोड़ पे जीता ही हूँ, वैसे भी मैं शुरू से ही यानी कि बचपन से मैं हर मोड़ पे जीता ही हूँ, मुझे गुमनामी से बहुत डर लगता है. मैं COMMON MAN बन कर नहीं रह सकता..... मेरे लिए कुछ भी IMPOSSIBLE नहीं है, मुझे हर वक़्त ATTENTION ही चाहिए होता है. मैं हमेशा कोई भी काम शुरू करता हूँ तो यही मान कर चलता हूँ कि इसमें मुझे सफलता मिलेगी. और यही सोच कर आगे बढ़ता हूँ..... और फिर वो सफलता पाने के लिए कुछ भी कर देता हूँ. अगर मेरे सफलता के रस्ते में कोई मुश्किल आती भी है.... तो मैं हर मुश्किल को तोड़ देता हूँ... मैं सफलता पाने के लिए कुछ भी कर सकता हूँ. चाहे वो अच्छा हो या बुरा.... मैं हर रोडे को हटा देने कि कोशिश करता हूँ..... यहाँ तक कि इन एक सालों में कई (तथाकथित) लोग भी मेरे रस्ते में रोडे अटकाने आये..... पर मैं उन सबको दूर करते हुए.... अपनी सफलता को पाया हूँ..... मेरा एक उसूल है शायद ...कि अगर कोई मेरे सफलता के रस्ते में आयेगा ...तो पहले तो समझाऊंगा..... फिर.... भी नहीं माना.... तो साम, दाम, दंड और भेद का इस्तेमाल करूँगा.... इसपे भी नहीं माना तो इतना torture कर दूंगा.... कि मरने के कगार पे आ जायेगा ....और शायद यही सफलता है..... मैं SHAKESPEARE के सिद्धांत पे चलता हूँ... कि.. "BEHIND EVERY GREAT SUCCESS THERE IS A CRIME"....अब यह CRIME कुछ भी हो सकता है..... अब तो जीतने की ही ललक है.....
हार - जीत तो लगी ही रहती है ज़िन्दगी में, लेकिन पता नहीं मेरे साथ ऐसा क्या है... कि मैं अपनी हार कभी बर्दाश्त नहीं कर पाता.... अगर कभी मुझे हार का सामना भी करना पड़ता है न.... तो मैं उस हार को सह नहीं सकता.... मैं फिर से कोशिश करता हूँ और तब तक करता हूँ... जब तक के जीत न जाऊँ..... ऐसे ही मैं कभी अपनी बेईज्ज़ती नहीं बर्दाश्त कर सकता..... अगर कोई ऐसी कोशिश भी करता है... तो उसे वहीँ रोक देता हूँ.... अगर फिर भी वो कोशिश करे तो मेरे पास सिर्फ एक ही रास्ता रहता है.... वो है मारना.... मैं कई बार ऐसे भी हालत में पहुंचा हूँ कि मुझे सामने वाले को इस हद तक पीटना/पिटवाना पड़ा कि बस आप यह समझो कि वो शमशान या कब्रिस्तान के दरवाज़े से लौट के आया..... CAREER ( देखिये ! एक बात बता दूं ...कि नौकरी और CAREER में ज़मीन आसमान का DIFFERENCE है..... नौकरी तो हर कोई कर लेता है.... पर CAREER कितने लोग बना पाते हैं? तो नौकरी और करियर दोनों ही अलग चीज़ हैं... जो लोग CAREER बनाते हैं वो लोग सफल लोग होते हैं... जो सिर्फ नौकरी करते हैं.... वो नालायक... और CAREER बनाने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है... नौकरी करने के लिए सिर्फ वक़्त देना पड़ता है ...पर CAREER के लिए वक़्त और खुद को भी देना पड़ता है....) में भी कई मुकाम ऐसे आते हैं..... कि आपको लगता है कि अब सब गया.... पर मैं ऐसे SITUATIONS में भी जीत के ही आया हूँ.... मैं रिश्तों में भी जीत ही देखता हूँ, मुझे अपने लोगों को बाँध कर रखना अच्छा लगता है, पर कोई रिश्ता अगर मुझे दर्द देता है तो उस रिश्ते को ख़त्म करने में भी कोई वक़्त नहीं लगता हूँ... हाँ! ख़त्म तो करता हूँ रिश्ता पर हमेशा अपनी शर्तों पर..... मैं किसी को खुद को लात मारने का मौका नहीं देता.....और फिर पलट के कभी नहीं देखता....और यही मेरी जीत भी है...
इन एक साल का विश्लेषण कर रहा हूँ आज तो यही लग रहा है कि मेरी फितरत अब जीत कि ही हो गयी है. मुझे हर हाल सफलता ही चाहिए चाहे उसके लिए किसी भी हद तक गुज़र जाना पड़े.
पर अब मुझे हारना मंज़ूर नहीं है....वैसे कभी भी नहीं रहा है.... मैंने हमेशा वो पाया है ...जिसको पाने कि कोशिश मैंने की.... और अब यह आदत बन गयी है.... अब मुझे पीछे रहने में डर लगता है.. यह एक साल मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा है...... तमाम उतार-चढाव से ..... गुज़र कर आज विश्लेषण कर रहा हूँ..... तो कई बातें ध्यान में आ रही है...... विनर वही होता है....जो हर मुसीबतों और मुश्किलों में से भी रास्ता निकाल कर आगे बढ़ता है.... चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े..... मेरा यह मानना है कि अगर आपको अपना SELF-ESTEEM को बचाए रखना है तो हमेशा COMPETITION में रहिये... और यही मान के चलिए कि मुझे जीतना ही है हर हाल में, अगर किसी का नुक्सान करके आपका फायदा हो रहा है... तो आप उस हद तक चले जाइये . यकीन करिए... इसमें कुछ गलत नहीं है....
अब अंत में एक सवाल....
SHAKESPEARE ने कहा था कि "BEHIND EVERY GREAT SUCCESS THERE IS A CRIME" ...
("हर महान सफलता के पीछे कोई न कोई अपराध ज़रूर होता है"...)
तो यहाँ CRIME (अपराध)से क्या मतलब है?
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