आज बहुत महीनों के बाद दोबारा से ब्लॉग लिखने में बड़ा अजीब सा लग रहा है. लग रहा है कि कुछ है ही नहीं लिखने को या कहने को... हालांकि लिखने की कंसिस्टेंसी मेन्टेन तो रही है ... पर इतने महीनों के बाद ब्लॉग पर लिखना ... अम्म्म… ऐसा लग रहा है कि उंगलियाँ कीबोर्ड पर चल ही नहीं रही है। नेट, कंप्यूटर, या ब्लॉग पर लिखे तो काफी दिन हो गए हैं ... ह्म्म्म… महीनों हो गए हैं। कहते हैं कि ब्लॉग लिखना एक तरह से आज के मॉडर्न ज़माने में डायरी लिखने जैसा है .... बस फर्क यह है कि डायरी में लिखी बातें सिर्फ आप तक रहतीं हैं और ब्लॉग पर लिखा हुआ पूरी दुनिया पढ़ती है. जिसे प्राइवेसी कहते हैं वो चीज़ ब्लॉग पर नहीं है। फिर भी यह तो है कि हम ब्लॉग लिखते हैं। वैसे एक बात तो है कि ब्लॉग की दुनिया ने मुझे बहुत कुछ दिया ... दोस्त ज्यादा और दुश्मन कोई भी नहीं ... हाँ! यह है कि छुट-पुट टुन्न-पुन्न तो हर जगह लगी ही रहती है. फिर भी मुझे तो ब्लॉग जगत ने मुझे बहुत कुछ दिया। अब यह बात अलग है कि फेसबुक के आने से वो बात अब ब्लॉग पर नहीं रही पर लगता तो ऐसा ही है कि ब्लॉग तो पहला घर है. वापस ब्लॉग पर कुछ लिखना थोडा सा पैथेटिक लग रहा है।
समझ ही नहीं आ रहा है कि क्या लिखूं? जब ब्लॉग लिखा करते थे तो दिमाग में पहले से ही सब्जेक्ट मैटर तैयार रहता था ... अभी तो यह हाल है कि कुछ ध्यान ही नहीं आ रहा कि क्या लिखा जाये? एक बड़ा मजेदार संस्मरण याद आ रहा है ... सोच रहा हूँ कि लिखूं या नहीं ...अम्म्म .... लिख ही देता हूँ ... थोडा सा हम सबका एंटरटेनमेंट भी जायेगा और सोचने को भी मजबूर करेगा।
हुआ क्या कि मेरा एक दोस्त है (जिसका नाम-वाम लिखना ज़रूरी नहीं है). बहुत ही ज़्यादा सेंसिटिव है .... पर्सनालिटी में भी ठीक है ... और रिच भी है हर तरह से और साथ ही साथ शादी-शुदा भी ... मगर अपनी पत्नी से बिलकुल भी संतुष्ट नहीं ... कोई भरोसा नहीं कि क्या पता आने वाले दिनों में तलाक - वलाक की नौबत आ जाए। इन महाशय जी की एक गर्ल-फ्रेंड है जिसे यह अपनी सच्ची और सही मायने में पत्नी बताते हैं ... मगर कुछ कारणों से यह उससे शादी नहीं कर सकते। खैर! जो भी है हमें क्या? एक दिन क्या हुआ कि उन महाशय जी का मेरे पास फोन आया रात में दो बजे बड़े घबराए हुए ...उसने मुझे बताया रात में उसका किसी बात पर उसकी पत्नी से झगडा हुआ और दोनों में ज़बरदस्त मार-पीट हुई ... और उसी मार-पीट के दौरान उसकी गर्ल-फ्रेंड पत्नी का फोन आ गया .... जिसकी कॉल उसने झगडे में ही अटेंड की और जैसे ही कॉल उसने अटेंड की कि उसकी पत्नी जिससे कि उसकी मार-पीट चल रही थी ... उसने फोन छीन लिया ... और छीना झपटी दोनों में होने लगी ... इसी छीना झपटी में उसकी पत्नी जान बूझ कर बचाओ - बचाओ चिल्लाने लगी ... खैर! उसने फोन किसी तरह अपनी पत्नी से छीन कर काटा ... और थोड़ी देर के बाद शान्ति जब छा गयी तो उसने अपनी गर्ल-फ्रेंड पत्नी से बात की तो वो कहती है उससे कि वो अपनी पत्नी के साथ बेड पर था और उसने एक मिनट की ज़बरदस्ती वाली आवाज़ बचाओ बचाओ के साथ सुनी है ... उसने काफी समझाने की कोशिश की मगर सब बेकार. अंत में थक हार-कर बैठ गया है। मैंने उसे यही समझाया कि भाई ... तू चूतिया है और रहेगा ... ज्यादा समझाने की ज़रुरत मैंने नहीं समझी क्यूंकि दो लोगों के बीच का रिश्ता सिर्फ वही दोनों समझ सकते हैं ... पर एक बात मैंने उसे कही कि जहाँ विश्वास ... ट्रस्ट नहीं ... वहां रहने का कोई फायदा भी नहीं ...
रिश्तों को समझना काफी आसान भी है और मुश्किल भी। मुश्किल इसलिए कि जब कोई समझना ही नहीं चाहता तो आप कुछ नहीं कर सकते ...खासकर तब जब सामने वाला आप में सिर्फ बुराई ही ढूँढने की कोशिश कर रहा हो.... और समझना बिलकुल भी नहीं चाह रहा हो। वो रिश्ता ही क्या जिसमें एक्सप्लेनेशन देना पड़े और सामने वाला बुराई ही खोजने पर आमादा हो। अपना तो यही मानना है कि "If you Love the person... Just Love in anyway... as what she or he is..."
और नहीं तो मेरे फेसबुक में फ्रेंड लिस्ट में एक सोनाली बोस हैं ... उन्होंने एक बार लिखा था ... जो कि मुझे काफी अच्छा भी लगा था और उन्होंने रिश्तों को काफी अच्छे से डिफाइन भी किया था जो कि पढने में तो कड़वा था .... मगर सच था ... उन्होंने लिखा था ----
"जिस तरह हमारे जन्म के साथ ही हमारी मृत्यु का दिन भी निश्चित होता है उसी तरह हर नये रिश्ते के जन्म के साथ ही उस रिश्ते की मियाद भी तय होती है...हर नया रिश्ता अपनी उम्र साथ लिखा कर लाता है.... अगर आप किसी रिश्ते को उसकी तय की हुई सीमा से आगे खिचेंगे तो ज़ाहिर है कि वो नहीं चल पायेगा...रिश्ते हमारे जीवन में सुख और खुशी लाते हैं.... हर रिश्ता कुछ ना कुछ सिखाता है और बहुत हद्द तक हमारे जीवन को प्रभावित भी करता है, लेकिन आप किसी मृतप्राय रिश्ते को कुछ दिन वैंटिलेटर पर रख कर कुछ और सांस तो दे सकते हैं लेकिन ज़िंदा नहीं रख सकते हैं... ऐसे मरे हुए, बेकार, निर्जीव और बोझिल रिश्तोँ के बोझ को उतार फेंकने में ही हमारी समझदारी है, मैं यहाँ पर हर किस्म के रिश्तोँ की बात कर रही हूँ... याद रखिये यदि आज हम खुश और आनंदित नहीं हैं तो हम किसी और को भी क्या सुख और आनंद दे पायेंगे.... इंसानी फितरत है कि जो हम पाते हैं वही बांटते हैं...इसलिये खुशी बांटिये, आनंद साझा करिये और जितना हो सके रिश्तोँ को संभालिये लेकिन आत्मसम्मान की कीमत पर नहीं... बोझ हमेशा बोझ ही रहेगा..... और रूई भी जब भीग जाती है तो भारी हो जाती है, ये तो फिर भी रिश्ते हैं...इन्हेँ प्यार और विश्वास की धूप में हमेशा सुखाये रखिये... हल्के हल्के रिश्ते तितली की तरह उड़ने लगेंगे.... लेकिन अगर तमाम कोशिश के बाद भी वो नहीं चल पा रहे हैं तो उन्हेँ छोड़ दिजिये... किसी भी बंधन में बंध कर कोई भी पनप नहीं पाया है... बाकि आपकी और मेरी मर्ज़ी, जो चाहे करेँ... है ना?"
मगर फिर भी मेरा यह मानना है कि रिश्ता लंबा और ता-ज़िन्दगी तभी कायम रहता है जब दो लोग उसे कायम रखना चाहें ... जिसमें ट्रस्ट अटूट हो और प्यार सागर से भी गहरा ... कोई भी चीज़ दोनों में से मिसिंग हो ... तो सोनाली जी की बातों को मान लेना चाहिए और आगे की सुध लेनी चाहिए .... मेरी एक कविता है जिसकी छोटी सी पंक्तियाँ हैं जो मुझे इस वक़्त याद रही है ...
"रात उतर आई है,
सूरज के पैरों पर
ग़म भर नज़र है
शक के घेरों पर
हम कब तलक
विश्वास
करें
गीत, ग़ज़ल और शे'रों पर"
(c) महफूज़
इसी के साथ विदा लेता हूँ .... हाँ! यह है कि ब्लॉग पोस्ट अब हर हफ्ते या टाइम मिलने पर लिखूंगा।